In yet another display of Marxist intolerance and fascism on university campuses, members of SFI – Students Federation of India, the student wing of CPI-M i.e Communist Party of India – Marxist, the ruling party in Tripura – urinated in the mouth of a student who had a ‘Bharat Mata ki Jai’ sticker on his motorcycle. The gruesome incident occurred in Kamalpur Subdivisional College in Dhalai district, Tripura.
Christian Police Officers Desecrate Temple in Kanyakumari, Beat up Devotees
A shocking incident of desecration of a Hindu temple and brutal assault on Hindu devotees by Christian police officers has occured in Kanyakumari district, Tamil Nadu.
Jesus as a Third Candidate in the US elections
In the last 30 or so years the importance of Jesus in US elections has increased substantially. This is in a situation where Christianity– in the church going /family values sense– has seen a decline. The number of births out of wedlock have increased to more than 50 percent of total births, and that itself shows the weakening of traditional Church influence on American citizens.
Treasonous Bharatiyas Abroad
Bharatiya social science and humanities academics abroad are playing a role that is unprecedented historically, by straining nonstop to legitimize assault on Hindu Dharma and, as a corollary, against Bharat itself. Indeed the very idea of Bharat is now being challenged in California on the brazenly stated grounds that the Hindu culture of its civilization is pure evil. The cynicism is hard to credit because the nineteenth century Protestant evangelical roots depicting Hindu Dharma as a system of caste apartheid cannot be unknown to the self-hating Hindu secularists of Harvard, Stanford, Chicago, Pennsylvania, Columbia and Oxbridge, etc.
Kejriwal’s Obsession With Modi’s Degree Reveals a Dangerously Flawed Mindset
A person from humble origins belonging to a socially backward community rising to the top of the political system in a vast & diverse democracy would normally be a feat that gets universal applause, even if it’s of the grudging variety from political rivals.
Bharat’s current PM, Narendra Damodardas Modi, has performed this feat
Mewar Chronicles – Rana Sanga
(Continuing my series on Mewar, with this post on Rana Sanga, another great ruler)
In my previous post on the Ranas of Mewar, I had talked about Rana Kumbha . Now we shall take a look at Rana Sanga, Kumbha’s grandson, and one of the greats of the kingdom. As I had stated earlier, Kumbha was killed by his own son Udai Singh I, who however proved to be a worthless ruler. Under Udai Singh I, Mewar lost both Abu and Ajmer, and soon there was a clash for the throne between Udai Singh and Raimal, his brother. Raimal defeated Udai Singh I in a series of battles at Jawar, Darimpur and Pangarh, forcing him to flee. Udai Singh I tried to seek the help of the Delhi Sultanate, but was struck down by lightning and died. Raimal proved to be a successful ruler, repelling an invasion by the Sultan of Malwa, Ghiyas Shah and later his general Zafar Khan at Mandalgarh. He also put an end to the feud between Chittorgarh and Jodhpur, by marrying Rao Jodha’s daughter, Sringardevi and the Rathores would later be one of the staunchest allies of Mewar. Ajmer was recaptured, and Mewar was once again restored to its glory under Raimal.
In Pursuit of Elusive “Peace” with Pakistan
In its recently held meeting, the State Cabinet welcomed resumption of talks with Pakistan. Was this endorsement necessary and in consonance with State practice, and what was the prompting? Observers will comment on that if they analyze the event in some depth.
ईसाई उद्धार (Salvation) की धारणा के बारे में हिन्दू राय
ईसाई धर्मांतरण इस बात पर आधारित है कि यीशु में विश्वास के द्वारा सभी पापों की माफ़ी मिल सकती है और हमेशा के लिए उद्धार हो सकता है। यह जरूरी है कि हिन्दू और दूसरे लोग जिन्हें धर्मान्तरित करने की कोशिश की जाती है, वे इसके पीछे के गलत विचारों और खयाली पुलाव को समझें।
ईसाई पंथ पाप और उससे उद्धार (Salvation) की विचारधारा पर आधारित है। ईसाई मत के अनुसार आदम और हव्वा (ईव) पहले पुरुष और महिला थे और बाइबिल के अनुसार वे शैतान के बहलावे में आकर ईश्वर के विरुद्ध गए और पहला पाप किया। उस पहले पाप के कारण हम सभी जन्म से ही पापी पैदा होते हैं। हमारा उद्धार ईश्वर के एक ही बेटे जिनका नाम यीशु है, उनके द्वारा होता है। यीशु को ईश्वर ने धरती पर हमारा उद्धार करने के लिए भेजा था। यीशु ने हमें हमारे और आदम और हव्वा के पहले पाप से बचाने के लिए सूली (cross) पर अपनी जान दी, और उनके खून ने वे पाप धो दिए।
जो यीशू को अपना उद्धारक स्वीकार करके ईसाई बनते हैं उनको तुरंत पापों से बचाने का विश्वास दिलाया जाता है। यीशु पर विश्वास ही पाप से मुक्ति का आधार है, न कि हमारे खुद के कर्म। ईसाई मत के अनुसार, यीशू को स्वीकार करने के अलावा और कुछ भी करने से हमारा बचाव नहीं हो सकता। जो यीशू को स्वीकार नहीं करते वे हमेशा के लिए अभिशप्त हो जाते हैं, चाहे वो कितने भी अच्छे और विवेकशील क्यों ना हों। यीशू को स्वीकार करने या ना करने का निर्णय लेने के लिए हर इंसान को सिर्फ एक ही जीवन मिलता है, इसके बाद यह निर्णय अनंतकाल तक बदला नहीं जा सकता।
मृत्यु के बाद जो लोग बचा लिए गए हैं, वे स्वर्ग जाते हैं, जहाँ यीशु रहते हैं। ईसाई मत में स्वर्ग सामान्यतः एक भौतिक संसार माना जाता है, जिसके लिए भौतिक शरीर की आवश्यकता होती है। यह ईसाई मत के प्रलय के दिन मृत शरीर के पुनर्जीवित होने की धारणा में बताया जाता है, और यही कारण है कि ईसाई मृत शरीर को दफनाते हैं।
यह ईसाई धर्मशास्त्र का एक संक्षिप्त वृत्तान्त है, इसमें अलग-अलग ईसाई सम्प्रदायों की मान्यताओं में थोड़ा बहुत अंतर है । बिना यीशू के कोई ईसाईयत नहीं और यीशू में विश्वास के अलावा कोई उद्धार नहीं । यीशू में विश्वास के द्वारा उद्धार और स्वर्ग में जगह पाने की धारणा ही ईसाई धर्मपरिवर्तन के प्रयत्नों और ईसाई बनाने के लिए किये जाने वाले ‘बप्तिस्मा’ (baptism) अनुष्ठान का आधार है।
यीशू और बाइबल पर जोर देने वाले Evangelical ईसाई , जैसे कि अमेरिका से भारत आते हैं, वे इस पंथ की मान्यता को शब्दशः लेते हैं और यह दावा करते हैं कि संसार बाइबल के अनुसार सिर्फ छह हजार वर्ष ही पुराना है । कुछ आधुनिक ईसाई जो कि अपने धर्म में गैर-ईसाइयों (जो कि मानव जाति का ज्यादातर हिस्सा है) के प्रति अकारण भर्त्सना से शर्मिंदा होते हैं, वे इस भर्त्सना को सांकेतिक कह कर इससे छुटकारा पाने की कोशिश करते हैं।
मुक्ति की हिन्दू धारणा
हिन्दू धर्म सभी लोगों की मान्यताओं की स्वतंत्रता का सम्मान करता है, यह कहता है कि अंत में केवल एक ही सत्य है और सभी अस्तित्व के पीछे चेतना एक ही है। हिन्दू धर्म कहता है कि हर व्यक्ति को स्वतंत्रता होनी चाहिए कि वह जिस भी आध्यात्मिक पथ की ओर आकर्षित होता है उसे अपना सके, यहाँ तक कि कोई भी उपलब्ध पथ पर ना जाने की भी स्वतंत्रता होनी चाहिए।
इस धार्मिक विचारों की बहुलता का यह अर्थ नहीं है कि हिन्दू धर्म सभी धार्मिक धारणाओं को सही या बराबर मानता है। विज्ञान की ही तरह हिन्दू विचार भी अलग अलग सिद्धांतों के अस्तित्व को स्वीकार करता है लेकिन ये सिद्धांत अनुभव के द्वारा सिद्ध होने चाहिएं, केवल किसी के मान लेने मात्र से वे सही नहीं कहे जा सकते।
हिन्दू धर्म हमें अपने अन्दर की प्रकृति के बारे में जानकारी के लिए स्वयं के मन का शोध करके सत्य के प्रत्यक्ष अनुभव पाने को प्रोत्साहित करता है, हिन्दू धर्म अनेक धार्मिक विचारधाराओं और ध्यान की विधियों के द्वारा यह करना सिखाता है।
उपनिषद और भगवद्गीता जैसे पवित्र हिन्दू ग्रन्थ सर्वोच्च सत्य या ब्रह्म को एक अनंत और चिरंतन (कभी नष्ट ना होने वाली) सत्ता – एक चेतना – और परम आनंद (सच्चिदानन्द) की तरह वर्णित करते हैं जो कि सभी नामों और आकारों से परे हैं। यह अनंत सत्ता ही सभी का ‘स्व’ (खुद) है, जिसे ‘आत्मन’ भी कहते हैं और जो सभी प्राणियों में बसता है। यह सर्वोच्च सत्य आपके अन्दर खुद की तरह रहता है, आपके भौतिक शरीर की तरह नहीं, बल्कि आपकी अन्दर की चेतना है, आपकी सारी सोच और अनुभव का आंतरिक प्रेक्षक है।
हिन्दू धर्म में आत्मा व्यक्ति की स्वयं की चेतना की शक्ति को कहते हैं, यह कई जीवन लेती है, जिनमें यह अपनी चेतना का विकास करते हुए परम से अपनी एकात्मता (एक होने) के सत्य को पहचानती है। हरेक आत्मा अज्ञानता और कर्म के बंधन से बंधी होती है, इसके ही कारण उसका पुनर्जन्म होता है और दुःख मिलता है। अतः अपने सही स्वरुप को पहचान ना पाने से ही मनुष्य अपने बाहरी स्वरुप और जन्म और मृत्यु के चक्र के प्रति आसक्त हो जाता है।
हिन्दू धारणा कर्म और पुनर्जन्म की है, न कि पाप और उससे उद्धार और सिर्फ एक ही जीवन होने की । सभी आत्माएं अंत में मुक्ति पाएंगी और अपने शुद्ध चेतना के स्वभाव में वापस जायेंगी। लक्ष्य स्वर्ग प्राप्ति का नहीं, बल्कि आत्मबोध का है। यह धारणा कोई महिमामंडित भौतिक संसार (स्वर्ग) की नहीं बल्कि एक ऐसे परमानंद से पूर्ण चेतना की है जो शरीर और मस्तिष्क से परे है।
आस्थाओं के बीच संवाद
दूसरी आस्थाओं से संवाद के समय हमें अपने सिद्धांतों के प्रति बहुत स्पष्ट होने की आवश्यकता है। हमारे यहाँ ईसाई पाप से मुक्ति (salvation) और हिन्दू ‘मोक्ष’ को एक जैसा मानने की एक सतही सोच और बिना प्रश्न किये कुछ भी स्वीकार कर लेने का तरीका चला आ रहा है। यही बात संस्कृत शब्द ‘धर्म’ को आस्था और पंथ (religion) के ही बराबर मान लेने की बात के बारे में कही जा सकती है।
हिन्दू धर्म में हमारे पूर्वजों या शैतान के कोई ‘पहला पाप’ की धारणा नहीं है, जिसके लिए हमें प्रायश्चित करना पड़े। ग़लत कर्म और अज्ञानता ही हमारे दुखों का कारण है। यह अज्ञानता सत्य के ज्ञान और एक उच्चतर चेतना के विकास से दूर होती है, न कि सिर्फ आस्था से।
हमारे हालात हमारे कर्मों के परिणाम स्वरुप हैं और इसके लिए हम खुद जिम्मेदार हैं। कुछ कर्म, जैसे दूसरों को नुक्सान पहुँचाना स्वाभाविक रूप से गलत होते हैं। ये किसी देवता की आज्ञा पर निर्भर नहीं करते, बल्कि धर्म और प्राकृतिक नियमों को तोड़ने पर निर्भर करते हैं।
उद्धार या आध्यात्मिक बोध प्रतिनिधि द्वारा नहीं
हिन्दू धर्म में उद्धार या आध्यात्मिक बोध प्रतिनिधि द्वारा नहीं होता। न यीशु और न ही कोई दूसरी हस्ती आपको बचा सकती है या आपको सत्य का बोध करवा सकती है। असलियत तो यह है कि आपको बचाने की जरूरत ही नहीं है!
आपको केवल अपने वास्तविक रूप और अपने अस्तित्व की वास्तविकता को पहचानना होगा, जो कि दोनों एक ही हैं। यह बोध ही आपको शरीर और मन के प्रति लगाव से उपजी पीड़ा से परे ले जाता है। अज्ञानता से परे जाने के लिए साधना या आध्यात्मिक अभ्यास की जरूरत होती है, जो कि हिन्दू शास्त्रों में धार्मिक जीवन शैली, अनुष्ठान, मंत्र, योग और ध्यान द्वारा परिभाषित होती है।
केवल किसी पर विश्वास कर लेने या किसी को अपना उद्धारक मान लेने से व्यक्ति अपने कर्मों और अज्ञानता से परे नहीं जा सकता। यह केवल खयाली पुलाव है। जिस प्रकार कोई दूसरा व्यक्ति आपके बदले खाना नहीं खा सकता या आपके बदले शिक्षित नहीं हो सकता, उसी प्रकार आपको अपने शरीर और मन की शुद्धि करके सार्वभौमिक चेतना तक पहुँचने के लिए के लिए स्वयं ही आध्यात्मिक क्रियाएं करनी होती हैं।
ऐसा स्वर्ग जिसके लिए भौतिक शरीर आवश्यक है, वह संसार और भौतिकता के प्रति लगाव का ही दूसरा रूप है, न कि हमारे स्वयं के वास्तविक रूप की समझ। आत्मा को अपने आनंद के लिए शरीर की आवश्यकता नहीं होती। चेतना का शुद्ध प्रकाश ही आत्मा का वास्तविक स्वरुप है।
हम यीशु के द्वारा दिखाई गयी करुणा का सम्मान कर सकते हैं, लेकिन पाप और उद्धार की ईसाई धारणा सत्य से बहुत दूर है। यह धारणा हमारे वास्तविक स्वरुप या जीवन का वास्तविक उद्देश्य सामने नहीं लाती।
हमें विभिन्न धर्म/पंथ की विचारधाराओं और उनके विभिन्न लक्ष्यों की सही समझ होनी चाहिए। केवल आत्मबोध ही मुक्ति ला सकता है। ईसाई पंथ की विचारधारा, और इसमें आज वेटिकन द्वारा समर्थित विचारधारा भी आती है, यह नहीं सिखाती और इसके उद्धार का लक्ष्य बिलकुल अलग है।
(वीरेंद्र सिंह तथा अनिल मोटवानी का हिंदी अनुवाद के लिए आभार)
20 year old Shot Dead by JDU Legislator’s Son in Bihar
Jungle-raj 2 is well and truly back in Bihar. Last night, a 20 year old youth was shot dead by JD(U) MLC Manorama Devi’s son Rocky for overtaking his vehicle in Bihar’s Gaya district.