एक वर्ष पहले अर्थात 26 अक्टूबर को हरियाणा के बल्लभगढ़ में दिन दहाड़े एक लड़की की गोली मारकर हत्या कर दी गयी थी। और इस हत्या ने पूरे देश को स्तब्ध करके रख दिया था। यह हत्याकांड ऐसा हत्याकांड था, जिसने कई प्रश्न दिए थे, पर उत्तर अभी तक नहीं आया है।
यह मामला था जबरन एक तरफ़ा प्यार में धर्म न बदलने वाली एक बीस साल की हिन्दू लड़की निकिता तोमर का। निकिता तोमर, जिससे तौसीफ एकतरफा प्यार करता था और उसका पीछा कर रहा था। निकिता की हत्या से दो वर्ष पहले तौसीफ ने उसका अपहरण भी कर लिया था। तौसीफ, निकिता के साथ ही पढ़ता था और वह स्कूल के समय से ही उससे शादी करना चाहता था। पर निकिता ऐसा नहीं चाहती थी और वह पढ़ना चाहती थी! एक हिन्दू लड़की की उड़ान को तौसीफ और उसके घरवालों ने असमय ही नष्ट कर दिया था, और वह भी इस कारण कि वह धर्म नहीं बदलना चाहती थी!
निकिता के परिवार के अनुसार जब निकिता का अपहरण किया था तो उन्होंने तौसीफ के विरुद्ध निकिता के अपहरण के लिए एफआईआर दर्ज कराई थी। हालांकि बाद में परिवार वालों ने सामाजिक दबाव के चलते इस एफआईआर को रद्द कर दिया था क्योंकि तौसीफ एक बहुत प्रभावशाली राजनीतिक परिवार से था और कांग्रेस पार्टी के कई लोगों के साथ उस परिवार की नजदीकी थीं।
निकिता की हत्या के बाद परिवार ने इस बात को अनुभव किया, कि उन्होंने यह कदम गलत उठा लिया था। हालांकि इस मामले की रिकॉर्ड समय में सुनवाई की गयी थी और 11 दिनों में ही तौसीफ और रेहान को धारा 120 बी, अर्थात आपराधिक षड्यंत्र, 302 अर्थात हत्या, 366 अर्थात किसी महिला का अपहरण करना और शादी के लिए बाध्य करना और धारा 364 अर्थात हत्या के लिए अपहरण करना एवं आर्म्स एक्ट के अंतर्गत गिरफ्तार कर लिया था।
और न्यायालय दोषियों को उम्र कैद की सजा सुना चुका है। परन्तु परिवार संतुष्ट नहीं है और वह फांसी चाहते थे।
इस हत्याकांड में दोषी कौन था?
निकिता तोमर की हत्याकांड में सबसे बड़ी समस्या थी कि इस हत्या में दोषी कौन था? क्या यह घटना मात्र एक जलनखोर प्रेमी द्वारा की गयी हत्या थी या फिर यह हत्या गुस्से में की गयी थी क्योंकि निकिता ने तौसेफ का प्यार ठुकरा दिया था? जैसा कुछ समाचारपत्रों ने रिपोर्ट किया कि कुछ शोहदों ने निकिता तोमर की हत्या कर दी। क्या यह हत्या केवल शोहदों द्वारा की गयी हत्या थी?
यह प्रश्न समझना और उत्तर खोजना आवश्यक है। क्योंकि यह प्रश्न हिन्दुओं के लिए बहुत आवश्यक है। यह प्रश्न उन्हें स्वयं से पूछना ही होगा। यह प्रश्न था धार्मिक स्वतंत्रता का और धर्म पर मजहबी वर्चस्व का। और सबसे महत्वपूर्ण कि समस्या को न समझने का!
यह समस्या एक वृहद समस्या है। यह समस्या न ही क़ानून व्यवस्था की है और न ही किसी ईर्ष्यालु प्रेमी की। यह समस्या है जिहाद की! यह समस्या उस मानसिकता है, जिसमें हिन्दुओं की लड़कियों को उनका ही माल माना जाता है। जिसमें वह हिन्दुओं को बर्दाश्त ही नहीं कर सकते हैं।
और एक सबसे बड़ी समस्या कि इसके मूल को ही पहचाना नहीं जाता है। मीडिया जहाँ इसे केवल शोहदे कहकर बता देता है, वहां वह यह नहीं बताता कि हत्या किस बात पर की गयी? हत्या इस बात पर की गयी कि वह अपना हिन्दू धर्म नहीं छोड़ रही थी।
यदि मामला केवल एक जलनशील प्रेमी का ही होता तो तौसीफ की माँ क्यों निकिता पर धर्म परिवर्तन का दबाव डाल रही थी? निकिता के परिजनों ने यह आरोप लगाया था कि तौसीफ की माँ निकिता को अपहरण के बाद यह कहा करती थी कि अब तुमसे कौन शादी करेगा, इससे बेहतर है कि धर्म बदल कर तौसीफ से निकाह कर ले!
अर्थात जलनशील प्रेमी से भी कहीं बढ़कर यह मामला था।
ऐसे एक नहीं कई मामले सामने आते हैं। कुछ दिनों पहले ही झारखंड से ही एक ऐसा मामला आया था जिसमें अजाबुल ने राजेश बनकर सबिता से शादी कर ली थी और और जब सबिता को उसकी वास्तविकता पता चली तब तक बहुत देर हो चुकी थी। उसका और उसके बच्चों का धर्म बदलवा दिया और फिर बाद में जब सबिता के पैसे खत्म हो गए, तो वह उसे छोड़कर चला गया।
पूरे भारत से ऐसे कई मामले रोज सामने आते रहते हैं, जिनमें या तो मुस्लिम लड़के अपनी पहचान छिपाकर प्यार करते हैं और फिर लड़की पर धर्म परिवर्तन का दबाव डालते हैं, कुछ धर्म बदल लेती हैं, तो कुछ इंकार करती हैं। जो इंकार करती हैं, उनका परिणाम निकिता जैसा होता है। यह केवल और केवल अब्राह्मिक रिलिजन की इसी जिद्द को बताता है कि इस दुनिया में केवल वही रहेगा और किसी को रहने का अधिकार नहीं है।
कल ही एक ऐसा मामला असम से सामने आया जिसमें जसीमुद्दीन ने अपनी पहचान छिपाकर हिन्दू महिला से विवाह किया और फिर अपने घर भाग गया, जब महिला उसके गाँव गयी तब उसे उसकी असली पहचान पता चली!
हाल ही में धर्मांतरण के मामले में मौलाना कलीम सिद्दीकी को उत्तर प्रदेश एटीएस ने हिरासत में लिया था, और फिर सामने आया था कैसे मुस्लिम युवक नाम बदलकर हिन्दू लड़कियों को अपना निशाना बनाते हैं, ब्राह्मण लड़कियों को विशेष निशाने पर लिया गया था
ऐसा नहीं है कि ऐसे मामलों में दोषियों को सजा नहीं मिलती हैं, निकिता तोमर के मामले में सजा मिली है। पर सजा का कोई फल नहीं होता क्योंकि मानसिकता पर प्रभाव नहीं पड़ता! और ऐसे मामले आने जारी रहते हैं। व्यक्ति को दंड दिया जा सकता है, पर उस मानसिकता का क्या किया जाए, जो मानसिकता हर हिन्दू लडकी को अपना माल समझती है। जिस मानसिकता का परिचय अभी हाल ही में सपा के एक नेता ने दिया था कि हिन्दू औरतें हमारी हरम का हिस्सा होती थीं।
तो यही मानसिकता कि हिन्दू औरतें उनके हरम का हिस्सा थीं, अधिकाँश ऐसे लोगों की है जो हिन्दू लड़की को अपना धर्म बदलने के लिए बाध्य करती हैं। और जब ऐसा करने में वह विफल रहते हैं, तो लड़की को मारना उनके लिए बाएँ हाथ का खेल होता है। क्योंकि यह मामला जब केवल एक धर्म को अपमानित करने के स्थान पर मात्र जलनखोर प्रेमी का रह जाता है और मीडिया सामने आकर मारने वाले व्यक्ति के गैर आपराधिक बैकग्राउंड की बातें करता है और फिर लड़की धर्म के नाम पर अपनाना नहीं चाहती थी, जैसा एक प्रोपोगैंडा चलाते हैं। मगर जो मूल समस्या है, उसमें दबी रह जाती है।
जिहादी वर्चस्व की मानसिकता को आड़ देती है मीडिया और बौद्धिक समाज! जबकि इन अपराधों की, लड़कियों की पहचान खा जाने वाले अपराधों की श्रेणी ही अलग होनी चाहिए और ऐसे मामलों के लिए सरकार द्वारा कड़े कदम उठाए जाने चाहिए, जैसे उत्तर प्रदेश में उठाए गए हैं, मध्य प्रदेश में उठाए गए हैं। वहां पर क़ानून बना है। हरियाणा सरकार ने भी निकिता हत्याकाण्ड के बाद यह आश्वासन दिया था कि वह ऐसे मामलों के लिए क़ानून बनाएंगे, पर ऐसा अभी तक नहीं हुआ है।
एक ऐसे अपराध में, जिसमें लड़की का कोई दोष नहीं होता, लड़की के परिवार का कोई दोष नहीं होता, पर वह मुक़दमे आदि के कारण जीवन भर प्रताड़ित होते रहते हैं, जैसे निकिता के मामले में हुआ! निकिता के पिता की नौकरी छूट गई क्योंकि बार बार उन्हें तारीख या पहचान के लिए आना होता था तो वहीं निकिता का भाई जो सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहा था, उसकी भी जिन्दगी बर्बाद हो गयी। ऐसे मामलों में सरकार की ओर से भविष्य सुरक्षित करने की कोई योजना होनी चाहिए क्योंकि लड़की का वध इसीलिए हो सकता है जब सरकार की ओर से दंड की नीतियाँ स्पष्ट न हों, जब समस्या को समझकर कदम न उठाए गए हों।
निकिता हत्याकांड के एक वर्ष बाद भी हम वहीं पर हैं, जहाँ पर एक साल पहले थे अर्थात समस्या की जड़ को न पहचानने पर!