दिल्ली के प्रतिष्ठित हिन्दू कॉलेज में “इतिहास” पढ़ाने वाले प्रोफ़ेसर रतनलाल को अंतत: पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। परन्तु क्या इससे कोई समाधान प्राप्त होगा? क्या इससे कुछ ऐसा हल प्राप्त हो सकता है कि हमारे बच्चों को पढ़ाने वाले प्रोफ़ेसर हमारे बच्चों के दिल में उनके ही धर्म के आराध्यों के प्रति विष न भरें। प्रोफेसर रतनलाल ने शिवलिंग के ऊपर टिप्पणी करते हुए कहा था कि यदि यह शिवलिंग है तो लगता है शिवजी का भी खतना कर दिया गया था!”
और जब इस बात को लेकर उनकी आलोचना बार-बार हुई तो उन्होंने दलित होने का कार्ड खेलते हुए सरकार से एके 56 की मांग की कि उन्हें धमकी देने वालों से रक्षा के लिए हथियार चाहिए! दलित प्रोफ़ेसर होने से क्या यह अधिकार प्राप्त हो जाता है कि आप हिन्दुओं के आराध्य पर इस प्रकार की अपमानजनक टिप्पणी करें? जब बार बार इस बात को लेकर उनसे सोशल मीडिया पर प्रश्न किया गया तो उन्होंने तमाम सारे तर्क दे दिए और कई चैनल्स को दिए गए इंटरव्यू अपनी फेसबुक वाल पर लगाए।
फिर से वही प्रश्न आ जाता है कि आखिर वह क्या विवशता है कि भारत के शिक्षा प्रदान करने वाले कुछ लोग हिन्दू धर्म के आराध्यों का इस प्रकार अपमान करते हैं? क्यों एक षड्यंत्र के चलते भारत की प्राचीन ज्ञान परम्परा को पिछड़ा घोषित किया गया है? यह एक प्रश्न अब वामपोषित विमर्शकारों से पूछना ही होगा? और यह पूछना ही चाहिए। क्यों हमारे बच्चों के दिल में उनकी हिन्दू पहचान के प्रति विष भर दिया जाता है? इसके उत्तर भी हम तलाशेंगे, परन्तु आइये इस यात्रा को और आगे लेकर चलते हैं, कि हम जिनके हाथों में अपने बच्चों का भविष्य सौंप देते हैं, या कहें हिन्दू अपने बच्चों का भविष्य बनाने के अधिकार को जिन्हें आउटसोर्स करता है, वह हिन्दू धर्म के प्रति कितने घृणा से भरे होते हैं।
हमने दृष्टि आईएएस के विकास दिव्यकीर्ति का एक वीडियो अपने पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत किया था, जिसमें वह ब्राह्मणों के प्रति जमकर विष उगल रहे थे। उसी दृष्टि आईएएस में बच्चों का इंटरव्यू लेने वाले विजेंद्र सिंह चौहान उर्फ़ विजेंद्र मजीस्वी, जो रह रह कर हिन्दू विरोधी वक्तव्य देते हैं, और साथ ही वह जाकिर हुसैन कॉलेज की वेबसाईट के अनुसार हिन्दी विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर हैं, उन्होंने भी महादेव को लेकर अत्यंत आपत्तिजनक वक्तव्य दिया।
उन्होंने अपनी फेसबुक वाल पर न्यूयॉर्क सिटी फायर हाइड्रेट की तस्वीर लगाई और लिखा कि इस गुजरने वाले हिन्दुओं से दूर रखें!
परन्तु चूंकि इनकी आईएएस की कोचिंग में अधिकाँश हिन्दू ही होते हैं तो शायद यह डर गए या विरोध से डर गए, कि मास्साब की छवि पर क्या असर पड़ेगा? तो उन्होंने या तो अपना सोशल मीडिया खाता शायद डिलीट कर दिया है। या अस्थाई रूप से बंद कर दिया है। विजेंद्र मजीस्वी “मास्साब” के नाम से काफी प्रसिद्ध हैं और कई ऐसे भी विद्यार्थी उन्हें फेसबुक पर फॉलो करते हैं या उनसे बातें करते हैं, आदर करते हैं, जो उनके राजनीतिक विचारों से सहमत नहीं होते।
परन्तु विजेंद्र मजीस्वी जैसे लोगों के लिए अपना एजेंडा, अपना राजनीतिक विचार ही सबसे बढ़कर होता है और यही कारण है कि वह समय समय पर बहुसंख्यक हिन्दू धर्म के प्रति अपमानजनक टिप्पणी करते रहते हैं। देखना होगा कि क्या वह दोबारा सोशल मीडिया पर आते हैं या नहीं?
दिल्ली विश्विद्यालय में ऐसे प्रोफेसर्स की एक लम्बी श्रृंखला है जो हिन्दू देवी देवताओं का अपमान दलित होने के नाम पर करती है! यह एक बहुत ही घातक परम्परा है जो समाज में विष घोलने के अतिरिक्त और कुछ नहीं प्रदान करती है। हमारे बच्चे प्रोफेसर्स के पास उच्च शिक्षा प्राप्त करने जाते हैं, न कि उनके राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा बनने के लिए! ऐसी ही जामिया मिलिया इस्लामिया में हिन्दी पढ़ाने वाली हेमलता माहिश्वर ने भी अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखा कि
“यही तो सत्ता सुख है! सत्ता के बस चाह करने भर की देर है। सब कुछ हाजिर हो सकता है। आश्चर्य नहीं कि चाँद, मंगल — कहीं भी शिवलिंग मिल सकता है!
मोदी है तो मुमकिन है!”

यह कितना निर्लज्ज वक्तव्य है। क्या दलित होना या बौद्ध होना कहीं से भी हिन्दू विरोधी होना है? या यह जो नव बौद्धों की पीढ़ी है वह हिन्दुओं को अपमानित करना चाहती है? हिन्दू समाज स्वयं में कितना सहिष्णु है वह इस बात से समझा जा सकता है कि वह अपने आराध्यों का अपमान करने वालों के विरुद्ध कानूनी प्रक्रिया की शरण ले रहा है। जबकि इस्लाम या अब तो सिख समुदाय में भी कथित बेअदबी की क्या सजा है, वह सबने देखा ही है।
पाठकों को यह स्मरण होगा ही कि पकिस्तान में ही श्रीलंका के बौद्ध नागरिक को कथित पैगम्बर निंदा के बाद घेर कर मार डाला गया था परन्तु यह इन कथित बौद्ध या दलित चिंतकों को दिखाई नहीं देता है, या वह देखना नहीं चाहते, पता नहीं। पर हिन्दू समाज संविधान पर विश्वास करने वाला समाज है और वह कानूनी मार्ग की शरण ले रहा है! ऐसा ही एक और फेसबुक पोस्ट कथित अनुवादक, लेखिका और एक मीडिया संस्थान में कार्यरत पूजा प्रियंवदा ने की, जिसमें महादेव का अपमान था। सबसे हैरानी वाली बात यह है कि पूजा प्रियंवदा ने अपनी जो तस्वीर लगा रखी है, उसमें स्मृति ईरानी से अवार्ड लेती हुई तस्वीर लगा रखी है। और पूजा के twitter को खंगालने से पता चला कि वह नेशनल म्यूजियम के साथ भी काम कर चुकी हैं!
सबसे अधिक हैरानी वाली बात यह भी है कि इस कथित पोस्ट पर भी विजेंद्र मजीस्वी का घटिया कमेन्ट है!
पूजा प्रियंवदा क्या पढ़ाती होंगी, वह उनकी ट्विटर वाल से पता चल सकता है और साथ ही उनके फेसबुक पेज से। इस लेख की लेखिका संभवतया उनकी प्रोफाइल से ब्लॉक्ड है तो अपने पाठकों के लिए उनके पेज से ही कुछ पोस्ट के स्क्रीनशॉट प्रस्तुत किए जा रहे हैं। पूजा जो खुद को सिंगल पेरेंट बताती हैं, और मेंटल हेल्थ, डिसएबिलिटी आदि पर काम करने वाली बताती हैं, वह परिवार तोड़ने वाले मैरिटल रेप अर्थात वैवाहिक बलात्कार के लिए क़ानून बनाने को लेकर भी बहुत मुखर हैं और इस कानून की पक्षधर हैं।
और यह भी स्पष्ट है कि वह मोदी की विरोधी भी हैं:, कुछ यूजर्स ने उनके स्क्रीनशॉट भी साझा किये!
हैपीनेस के लिए वह क्या सलाह देती होंगी वह उनके फेसबुक पेज से पता चलता है जिसमें वह ऐसे लेख साझा करती हैं कि जिनमें बताया गया है कि कैसे ओर्गैज्म तक पहुंचा जा सकता है! और जो माँ का स्तनपान डॉक्टर्स के अनुसार भी बच्चे के लिए अमृततुल्य यह वह इनके लिए “कठिन जैविक निर्णय है, जैसे माँ बनना!”

यह देखकर अत्कियंत क्षोभ होता है कि अंतत: हमारे शैक्षणिक संस्थानों में बच्चों को क्या पढ़ाया जा रहा है, कौन पढ़ा रहा है, कितना विष उनके अपने आराध्यों, उनकी अपनी पौराणिक जीवनशैली के प्रति घोला जा रहा है और यह कब तक चलेगा और कब तक शैक्षणिक आकाश पर भारतीयता का अधिकार होगा, यह भी नहीं पता! कब तक बच्चों को इसी प्रकार अपमानित किया जाएगा, नहीं पता!
क्या किसी विशेष सरकार का विरोध आपको इतना नीचे गिरा सकता है कि आप बहुसंख्यक समाज की आस्थाओं के विरुद्ध जाकर विषवमन करने लगें? यह आपकी राजनीतिक हार की बौखलाहट है या फिर कुछ और?
शांतिप्रियता की बातें युगों से चली आ रही हैं जिसके कारण हम दासता में बंधे रहे। अब समय आ गया है इस्लामियों से सीखने का। “सनातने गुस्ताख़ की एक सजा, सिर धड़ से जुदा, सिर धड़ से जुदा” ……..