प्राय: हम लोग यह शिकायत करते हैं कि भाषांतरण, या अनुवाद या ट्रांसलेशन के माध्यम से कुछ न कुछ परिवर्तन कर दिया गया। एक विचार को गलत ट्रांसलेट कर दिया गया। और भारत के विषय में तो यह सत्य ही है कि उसके ग्रंथों के साथ ट्रांसलेशन के स्तर पर बहुत छेड़छाड़ की गयी है। मनुस्मृति से लेकर रामायण तक, वेदों से लेकर उपनिषद तक ट्रांसलेशन के स्तर पर वह नहीं रहे हैं, जो वह मूल में थे। अब इसमें कारण क्या थे, यह समझने की आवश्यकता है। कि क्या यह सत्ता की विचारधारा के कारण हुए या फिर विचारधारा की सत्ता बनाए रखने के लिए हुए।
इसके लिए सबसे पहले समझना होगा कि विचारधारा क्या है? और कैसे यह सत्ता और साहित्य को प्रभावित करती है?
आंद्रे लेफेयर विचारधारा को उन विमर्शों का एक समूह बताते हैं जो उन हितों को स्थापित करते हैं, जो किसी न किसी तरह से सत्ता संरचना के एकीकरण या उन्हें बनाए रखने के लिए प्रासंगिक होते हैं और जो सामाजिक और ऐतिहासिक जीवन के सम्पूर्ण रूप का केंद्र होते हैं।” और जब विचारधारा के अनुवाद की बात आती है तो जिसकी सत्ता होती है वह अपने अनुसार ही सब अनुवाद कराना चाहता है, फिर चाहे वह संस्कृति ही क्यों न हो!
सत्ता संचालक सबसे पहले विचारों का अनुवाद अपने अनुसार कराते हैं। इसे manipulation of translation कहते हैं। विचारधारा इस manipulation का सबसे बड़ा कारण है, और यह सत्ता के हाथ का सबसे बड़ा हथियार है। यही कारण है कि अंग्रेजों ने सबसे पहले भारत के इतिहास का manipulated अनुवाद कराना शुरू किया।
वह वनवासी जो वस्त्रों में एवं जीवन की अन्य परम्पराओं में उन्मुक्तता बसाए रहते थे, उन्हें पिछड़ा ट्रांसलेट किया जाने लगा। मुग़ल काल तक वह इसी प्रकार उन्मुक्त और प्रकृति के निकट बने रहे थे, जितने शायद वह सभ्यता के आरम्भ से रहे थे। उनकी परम्पराओं को पिछड़ा और कूपमंडूक किसने कहा और किसने यह कहा कि वह बेचारे हैं?
जो चेतना का स्तर था, वहां तक न पहुँच कर वनवासियों को बेचारा किसने अनूदित किया? दरअसल यह वही सत्ता थी जो चाहती थी कि पूरी दुनिया में केवल वही रहे, केवल वही सभ्यता रहे, तभी उराऊं जैसे भोले भाले लोगों की हर परम्परा फिर चाहे वह विवाह से पहले लड़की और लड़के का मिलना और लड़की की मर्जी पर विवाह करना जैसी परम्पराओं को भी पिछड़ा और कूड़ा बताया गया।
यह विस्तारवादी सभ्यता का manipulation था। और यह उन्होंने एक एक करके किया। यह समाज के स्तर पर किया, नहीं तो जहां पर मैत्रेयी, गार्गी और न जाने कितनी बौद्ध भिक्षुणी, और जैन भिक्षुणी हुआ करती थीं, जो समाज को शिक्षा देती थीं, कश्मीर में ललद्यद थीं, जिन्होनें समाज में चेतना का विस्तार किया, अक्क महादेवी थीं जिन्होनें जब गृह त्याग किया तो वस्त्र तक त्याग दिए एवं देह से परे चेतना का अनुभव सम्पूर्ण समाज को कराया।
यही समाज था जहां पर मराठा शक्ति का उदय हुआ तो उसमे एक स्त्री अर्थात जीजाबाई की ही भूमिका सबसे महत्वपूर्ण थी। जहाँ एक खगनिया थी, जिसने पहेली पहेलियों में ही जीवन के रहस्यों को प्रस्तुत किया। इस समाज में प्रवीण राय जैसी स्त्रियाँ भी थीं जो कहने के लिए वैश्या थीं परन्तु उन्होंने संगीत एवं काव्य सभी की शिक्षा ग्रहण की। शेख हैं, जो कृष्ण की भक्ति में कविता लिखने लगी थीं।
इनके अतिरिक्त कई और स्त्रियाँ रही हैं जिन्होनें पुरुषों के समकक्ष ही नहीं अपितु उनसे बढ़कर रचनाएं लिखीं हैं और उनका इतिहास नहीं है। उनका इतिहास इसी manipulation का शिकार हुआ। इस manipulation के माध्यम से यह बार बार स्थापित किया गया कि भारत में स्त्रियों का इतिहास नहीं। भारत की स्त्रियाँ इतिहास विहीन रही हैं, और भारत के पुरुष स्त्रियों का शोषण करने वाले रहे हैं। परन्तु यह कोई नहीं लिखता कि अपनी स्त्रियों को मुगलों से या मलेच्छों से बचाने के कारण पूरे के पूरे नगर के पुरुष तलवार लेकर निकल जाते थे, अपना सर्वस्व बलिदान कर देते थे, परन्तु अपने प्राण रहते अपनी स्त्रियों पर आंच नहीं आने देते थे। उन पुरुषों को पितृसत्ता का वाहक ट्रांसलेट कर दिया, क्योंकि वहां के मर्द ऐसे ही होते थे।
यह सत्य है कि भारत की भूमि पर चेतना का इतिहास रहा है। और यह चेतना कहीं से उधार ली गयी चेतना नहीं थी, यह चेतना ज्ञान की चेतना थी, जो स्त्री को हर तरह का प्रशिक्षण दिलवाती थी। रानी लक्ष्मी बाई के स्थान पर प्राण समर्पण करने वाली झलकारी बाई का इतिहास होना चाहिए। जाति से तेली खगनिया का इतिहास सामने आना चाहिए और साथ ही पुरुषों की वह सब कहानियाँ एक नई दृष्टि से जिन्हें मेनुपुलेट करके स्त्री शोषण की कहानियां ट्रांसलेट कर दिया है
इस manipulation से ऊपर उठ कर ही काम हो सकेगा, नहीं तो खगनिया, झलकारी बाई के साथ साथ वह सभी स्त्री कवियत्रियाँ इतिहास में कहीं इतिहास नहीं पा पाएंगी, जो उनका है। और हम अंग्रेजों के आगमन के बाद से ही अपना इतिहास मानेंगे और पुरुषों को अपना शोषक एवं यह भी आवश्यक है कि हम उनके आगमन के बाद हुए ऊपरी विकास को वास्तविक विकास न मान बैठें!
हमें अपने इतिहास और साहित्य की तहों में जाना ही होगा! साहित्य के अनुवाद का manipulation होने से समाज अपने आप ही manipulated हो जाएगा, यह समझना ही होगा!