अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में बलात्कार की ऐतिहासिकता को हिन्दू धर्मग्रन्थों से जोड़ने का जो मामला सामने आया था, उस पर डॉ जितेंद्र ने बिना शर्त माफी मांग ली है। परन्तु मामला इतना सरल नहीं है, जितना दिख रहा है। मामला बहुत गहरा है, समस्या बहुत गहरी है एवं इसका हल किसी की माफी से नहीं निकलेगा। डॉ जितेन्द्र ने आखिर क्या लिखा था अपनी प्रेजेंटेशन में आइये पहले वह देखते हैं। बलात्कार का ऐतिहासिक परिप्रक्ष्य (भारत) और उसमें उन्होंने लिखा कि ब्रह्मा द्वारा अपनी ही पुत्री के बलात्कार की कहानी, ऋषि गौतम का रूप लेकर अहल्या का बलात्कार करना एवं जालंधर की पत्नी का बलात्कार विष्णु भगवान ने किया था।
अब आइये देखते हैं कि यह सब कैसे और कहाँ से आया? यह दुष्प्रचार कई वर्षों से चल रहा है कि ब्रह्मा जी ने अपनी पुत्री सरस्वती से विवाह किया था, बलात्कार किया था! इस विषय में यह तर्क दिया जाता है कि सरस्वती पुराण में यह लिखा हुआ है। परन्तु सरस्वती पुराण कौन सा पुराण है यह समझ नहीं आता? पुराणों की संख्या अट्ठारह है और वह हैं:
1. ब्रह्म पुराण 10. ब्रह्म वैवर्त पुराण
2. पद्म पुराण 11. लिङ्ग पुराण
3. विष्णु पुराण 12. वाराह पुराण
4. वायु पुराण 13. स्कन्द पुराण
5. भागवत पुराण 14. वामन पुराण
6. नारद पुराण 15. कूर्म पुराण
7. मार्कण्डेय पुराण 16. मत्स्य पुराण
8. अग्नि पुराण 17. गरुड़ पुराण
9. भविष्य पुराण 18. ब्रह्माण्ड पुराण
इनमें से वह सरस्वती पुराण नहीं है, जिसमें यह कहा जाता है कि ब्रह्मा जी ने अपनी पुत्री सरस्वती जी के साथ विवाह के उपरान्त मनु को जन्म दिया था। ब्रह्मा जी ने सम्पूर्ण सृष्टि का निर्माण किया था, जिसमें गंधर्व, राक्षस आदि सभी सम्मिलित थे, तो क्या उन सभी को दैहिक समागम के माध्यम से जन्म दिया गया? यह एक झूठ है, जिसका उल्लेख न ही विष्णु पुराण में प्राप्त होता है एवं न ही शिव पुराण में, न ही मनुस्मृति में। मात्र सरस्वती पुराण का सन्दर्भ है, जो अट्ठारह पुराणों एवं उप-पुराणों में कहीं नहीं है।
इन्टरनेट पर ब्रह्मा और सरस्वती जी का नाम साथ दर्ज करने पर जो लिंक आते हैं, उनमें इन्हीं दो पुराणों का उल्लेख किया जाता है तथा यह कहा जाता है कि इसी कारण ब्रह्मा जी का पांचवा सिर महादेव ने काट दिया था एवं ब्रह्मा जी की पूजा नहीं होती है।
इसका उल्लेख मत्स्य पुराण में भी नहीं प्राप्त होता है। हाँ, धर्मवीर भारती के लोकप्रिय उपन्यास “गुनाहों का देवता” में अवश्य यह सन्दर्भ आता है कि कैसे किसी पौराणिक कहानी में पढ़ा था कि सरस्वती पर उनके पिता ही मोहित हो गए थे।
इस विषय पर तमाम वीडियो नेट पर उपलब्ध हैं, और स्रोत वही हैं, क्योंकि न ही विष्णु पुराण, न ही शिव पुराण, न ही मत्स्य पुराण एवं न ही मनुस्मृति में ऐसा कोई उल्लेख है। फिर भी बिना स्रोत एवं सन्दर्भ के यह साहित्य में पढ़ाया जाता है।
रामायण में भी ऋषि गौतम की पत्नी के साथ बलात्कार नहीं हुआ था:
डॉ जितेन्द्र ने जो दूसरा उदाहरण दिया है वह भी झूठ है। देवराज इंद्र ने गौतम ऋषि की पत्नी अहल्या के साथ बलात्कार नहीं किया था।
यह रामायण से एक प्रसंग है जिसने अब तक सम्पूर्ण विमर्श को बदल कर रख दिया है, महर्षि गौतम के बहाने सम्पूर्ण हिन्दू पुरुष वर्ग को स्त्री विरोधी घोषित कर दिया गया है एवं कई क्रांतिकारी कविताएँ भी लिख दी गयी हैं, जबकि मूल रामायण अर्थात वाल्मीकि रामायण में वास्तविकता इसके विपरीत है। वाल्मीकि रामायण में यह पूर्णतया स्पष्ट लिखा गया है कि
तस्य अन्तरम् विदित्वा तु सहस्राक्षः शची पतिः ।
मुनि वेष धरो भूत्वा अहल्याम् इदम् अब्रवीत् ॥
ऋतु कालम् प्रतीक्षन्ते न अर्थिनः सुसमाहिते ।
संगमम् तु अहम् इच्छामि त्वया सह सुमध्यमे ॥
अर्थात-
आश्रम में मुनि को अनुपस्थित देखकर शचीपति इंद्र ने गौतम का रूप धारण कर अहल्या से कहा कि कामी पुरुष ऋतुकाल की प्रतीक्षा नहीं करते हैं! हे सुन्दरी आज हम तुम्हारे साथ समागम करना चाहते हैं!
यह है इंद्र की बात! अब देखिये कि अहल्या क्या कहती हैं:
मुनि वेषम् सहस्राक्षम् विज्ञाय रघुनंदन ।
मतिम् चकार दुर्मेधा देव राज कुतूहलात् ॥
अथ अब्रवीत् सुरश्रेष्ठम् कृतार्थेन अंतरात्मना ।
कृतार्था अस्मि सुरश्रेष्ठ गच्छ शीघ्रम् इतः प्रभो ॥
इन पंक्तियों में कहा गया है कि हे राम, यद्यपि अहल्या ने मुनिवेश धारण किए गए इंद्र को पहचान लिया था, फिर भी उसने प्रसन्नतापूर्वक इंद्र के साथ भोग किया एवं फिर इंद्र से कहा कि हे इंद्र, मेरा मनोरथ पूर्ण हुआ, अब तुम यहाँ से शीघ्र चले जाओ!
इसका अर्थ यह हुआ कि वर्षों से जो भी अहल्या को लेकर तमाम कविताएँ एवं अब व्हाट्स एप फॉरवर्ड आ रहे हैं, वह पूर्णतया झूठ हैं। हैरानी यह नहीं है कि किसी और ने झूठी व्याख्या की, हैरानी इस बात की है कि हिन्दुओं ने भी इतने बड़े झूठ को स्वीकार कर लिया और राम को स्त्री विरोधी घोषित कर दिया या फिर उनके साथ जाकर खड़े हो गए जो इस झूठ को फैला रहे थे।
इस प्रकरण में स्पष्ट है कि पत्नी ने गलत किया है, महर्षि गौतम ने नहीं बल्कि अहल्या ने अपने पति को धोखा दिया है। परन्तु उन्होंने कौतुहल वश ऐसा कर दिया है, पराई देह की कामना में अहल्या यह कदम उठा गयी हैं, उसमें भी महर्षि गौतम उन्हें उसी आश्रम में तपस्या का आदेश देकर स्वयं चले जाते हैं।
पर चूंकि हमें अध्ययन की आदत नहीं है तो हम पढ़ते नहीं और उस झूठे नैरेटिव में फंसते चले जाते हैं, जो वामपंथी फैलाते हैं। और अब वह झूठ इस हद तक बढ़ गया है कि कोई डॉ जितेन्द्र इन झूठों को यह सत्यापित करने का प्रयास कर रहा है कि भारत में तो बलात्कार की परम्परा थी, और बलात्कार और कोई नहीं बल्कि ऋषि, देव, प्रजापति ब्रह्मा एवं स्वयं विष्णु किया करते थे। यह हिन्दुओं में आत्महीनता भरने के लिए छलपूर्वक किया गया भाषांतरण है, जिसने बार बार हिन्दुओं के साथ छल किया है।
यह न ही साधारण मामला है एवं न ही क्षमा मांगने जैसा साधारण मामला, बल्कि यह कहीं अधिक बढ़कर है, यह उस नैरेटिव का छोटा सा हिस्सा है जो उन भगवान विष्णु को बलात्कारी घोषित करता है, जो इस धरती की रक्षा करने तब आते हैं, जब पाप बढ़ता है एवं धरती को पापमुक्त करते हैं, ऐसे में यह नैरेटिव ही बना दिया जाए कि भगवान विष्णु, और ब्रह्मा दोनों ही बलात्कारी थे, तो वह धरती को पापमुक्त कैसे कर सकते हैं?