आज 1 सितम्बर है, आज के दिन सेक्युलर एवं कथित राष्ट्रवादी साहित्यकार याद करते हैं राही मासूम राजा को! और इसलिए याद करते हैं क्योंकि वह अच्छे लेखक होने के साथ साथ बीआर चोपड़ा की महाभारत के संवाद भी लिखने वाले लेखक थे। और कुछ लोग यह तक कहते हैं कि उन्होंने “पिताश्री, माताश्री” आदि शब्दों के “अविष्कार” भी किये। वैसे प्रगतिशील हिन्दी लेखकों की बात ही निराली होती है, वह सब कुछ कर सकते हैं, सब कुछ! प्रगतिशील हिन्दी लेखकों एवं कथित राष्ट्रवाद का ठप्पा खुद पर लगाए हुए अवसरवादी लेखकों के भीतर अपनी हिन्दी और हिन्दू धर्म को लेकर इतनी आत्महीनता होती है कि उन्हें अपने धार्मिक ग्रंथों पर भी मुस्लिमों का और उर्दू का ठप्पा चाहिए होता है।
ऐसा ही कुछ राही मासूम रजा और महाभारत के साथ का भी मामला है। इस बात को लेकर बहुत प्रसन्नता व्यक्त की जाती है या फिर हिन्दू समुदाय पर अहसान थोपा जाता है कि कैसे हिन्दू न होते हुए भी राही मासूम रजा ने महाभारत के संवाद लिखे! परन्तु क्या संवाद लिखने के बहाने उन्होंने वही एजेंडा नहीं चला दिया, जो उनकी वामपंथी विचारधारा का था? हिन्दू धर्म की स्त्रियों को अपमानित करने का?
चूंकि वामपंथ हिन्दू स्त्रियों को और सबल हिन्दू स्त्रियों को घृणा की दृष्टि से देखता है, क्योंकि जब तक सबल हिन्दू स्त्रियाँ आदर्श रहेंगी तब तक हिन्दू स्त्रियाँ उनमे फेमिनिज्म के जाल में नहीं फंसेगी तो वह बहुत ही गहराई से चाल चलते हुए, कथित रूप से हिन्दू सबल स्त्रियों को महान दिखाते हुए, उनके चरित्र के साथ खेल कर जाता है।
जैसे महाभारत में मात्र एक ही दृश्य ऐसा है, जो इस पूरे खेल का पर्दाफाश करने के लिए पर्याप्त है।
महाभारत में एक दृश्य है जब युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ का आयोजन किया होता है। दुर्योधन उस वैभव को देखकर दंग है, हैरान है और वह ईर्ष्या से मरा जा रहा है, वह पागल हो रहा है, उसे यह सहन नहीं हो पा रहा है कि जिन्हें उसने मक्खी तरह बाहर निकाल दिया है, वह अपने श्रम, अपने पराक्रम से समस्त दिशाओं के राजाओं को अपने ध्वज के अधीन लाकर राजसूय यज्ञ ही नहीं कर रहे हैं, बल्कि स्वर्ग से भी बढ़कर वैभव का आनंद उठा रहे हैं।
दुर्योधन उस महल में ऐसा वैभव देखकर डाह से मरा जा रहा है। फिर एक दृश्य आता है जब वह गिरता है।
इसी गिरने में रही मासूल रजा ने हिन्दू धर्म की पांच सतियों में एक से द्रौपदी को गिरा दिया है
पाठकों को स्मरण होगा महाभारत का वह दृश्य जिसमें दुर्योधन गिरता है और द्रौपदी हँसते हुए कहती है कि “अंधे का पुत्र अँधा!”
और इसी अपमान को आधार बनाकर दुर्योधन द्युत क्रीडा की रचना करता है!
अर्थात वह दुर्योधन, जिसने पांडवों को मारने के लिए हर षड्यंत्र रचा, जिसने लाक्षागृह का षड्यंत्र रचा, और एक प्रकार से उन्हें मार ही डाला था! जब पांडव विदुर की सहायता एवं अपनी सूझबूझ से बच आए तो उन्हें अभी तक वामपंथी विमर्श में खलनायक ठहराया जाता है कि वह स्थानीय लोगों को जलाकर आए थे, ऐसे दुर्योधन को नायक बनाने के लिए राही मासूम रजा ने एड़ी चोटी का जोर लगा दिया था।
महाभारत में क्या ऐसा दृश्य है? क्या द्रौपदी ने वास्तव में ऐसा कहा था? क्या हुआ था? द्युतक्रीडा में आखिर युधिष्ठिर ने मौन क्यों धारण किया और वह 13 वर्षों तक शांत क्यों रहे? जो तमाम पहलू दुर्योधन की दुष्टता दिखा सकते थे, वह सब राही मासूम रजा ने गुम कर दिए और द्रौपदी एवम युधिष्ठिर को पूरी महाभारत का खलनायक घोषित कर दिया।
झारखंड की अंकिता जिस अस्वीकृत होने की बात के कारण मारी गयी है, या फिर निकिता तोमर मारी गयी थी, उसी मानसिकता से भर कर ही जैसे द्रुत क्रीड़ा वाला दृश्य रच दिया है और एक प्रकार से उसे उचित भी ठहरा दिया है, और वह भी कल्पना ही है क्योंकि असली महाभारत में तो यह हुआ ही नहीं था!
महाभारत में क्या लिखा है, आइये पढ़ते हैं।
“आगे स्फटिक के समान अमल जल भरे स्फटिक के बने फूले कमल वाले एक ताल को स्थल जानके वस्त्र सहित जल में जा गिरा। उसको जल में गिरते देखकर भीम एवं नौकर चाकर बहुत हँसे और राजा की आज्ञा से अच्छा चीर दिया। उसकी वह दशा निहार के उस समय महाबली भीमसेन, अर्जुन, नकुल, सहदेव सब हंसने लगे। रिसभरे सुयोधन से उनकी वह हंसी सही नहीं गयी। पर बाहरी आकर को छुपाय उस काल मुंह उठाय, उनकी ओर नहीं ताका मानो यह समझ के कि वह जल पार करेंगे, वह फिर चीर उतार कर स्थल पर आया, तिस पर भी सब कोई फिर हंस उठे!”
यह उस दृश्य का वर्णन है! अब इसमें द्रौपदी कहाँ पर हैं? जब द्रौपदी है ही नहीं, तो इतनी सबल स्त्री, इतनी पावन स्त्री के साथ हुए उस जघन्य पाप को जस्टिफाई करने के लिए यह दृश्य डाला गया? इस महाभारत की पटकथा अर्थात स्क्रीन प्ले राही मासूम रजा ने ही लिखा था।
इतना ही नहीं, वह दृश्य जब अर्जुन कर्ण पर भारी पड़े थे, उन प्रकरणों को भी विस्तार से न दिखाते हुए कर्ण का वह चरित्र दिखाया है, जिससे एक प्रतिनायक के प्रति सहानुभूति उत्पन्न होती है। कर्ण जैसा मित्र मिले, जैसी बातें होने लगती हैं।
युधिष्ठिर के चरित्र के साथ महाभारत में खेल किया गया है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि महाभारत का निर्माण अत्यंत भव्य था एवं यह नई पीढ़ी को इस महान ग्रन्थ के साथ जोड़ने का कारण है। परन्तु यह भी बात सत्य है कि इस धारावाहिक के कारण ही आम हिन्दू युधिष्ठिर और द्रौपदी को दोषी मानता है और कर्ण एवं दुर्योधन को निर्दोष!
मात्र एक ही दृश्य को गलत प्रस्तुत करने से पूरे के पूरे हिन्दू विमर्श को विकृत कर दिया गया है, क्योंकि बाद में आने वाली फेमिनिस्ट तथा कथित राष्ट्रवादी महिला सुधारक द्रौपदी को कर्ण के अपमान का दोषी ठहराने लगे, द्युत के लिए दोषी ठहराने लगे! और कहीं न कहीं चीरहरण के लिए एवं सम्पूर्ण महाभारत के युद्ध के लिए!
यह दृश्य वही लिख सकता था, जिसके हृदय में औरतों के प्रति अनादर का भाव हो या फिर कुछ और? समझ नहीं आता!