आज भारत के सामने दो मार्ग हैं, एक है भाइयों और पिता को मारकर खून से सना ताज सिर पर सजाने वाली तहजीब चुनना या फिर उस सभ्यता को चुनना जिसमें भाई के लिए राज्य क्या जीवन तक न्योछावर कर दिया जाता था। यह विडंबना है कि खून खराबे और क़त्ल के वर्णन को तो हमारी पाठ्यपुस्तकों में इतिहास बता दिया गया और सभ्यतागत हिन्दू इतिहास को तमाम वैकल्पिक शोधों के बाद मिथक प्रमाणित करने का असफल प्रयास किया गया।
बात उस नए सेक्युलर नायक के जीवन की, जिसके बहाने हमें एक ऐसे खलनायक को आदर्श मानने के लिए बाध्य किया जा रहा है जिसने अपने स्वार्थ के लिए, अपनी जिद्द के लिए, अपनी सनक के लिए भाइयों का खून बहाया था। अपने अब्बा को जीतेजी मारा था।
औरंगजेब और मुराद दोनों ही हिन्दुस्तान का शासक बनना चाहते थे, मगर शासक तो एक ही हो सकता था! इनमें से मुराद भी चाहता था कि वह ताज पहने, मगर ताज तो एक ही पहन सकता था, वह चाहता था इतिहास बने तो इतिहास या तो वीरों का बनता है या विजेताओं का! जबकि मुराद न तो वीर ही था और न ही विजेता। वह बस क्रूर विजेता औरंगजेब के हाथों का एक उपकरण था, जिसने उसे बहुत ही ख़ूबसूरती से अपने दोनों भाइयों को ठिकाने लगाने के लिए प्रयोग किया था और अब उसकी उपयोगिता समाप्त होने को थी।
सामूगढ़ के युद्ध के बाद जब दारा की हार सुनिश्चित हो गयी तो मुराद और औरंगजेब ने जश्न मनाया! “मुराद भाई, यह जीत तुम्हारे बिना नहीं मिल सकती थी!” मुराद को पीने का बहुत शौक था, और शौक़ीन लोगों के इतिहास भी शौक शौक में लिखे जाते हैं, जिसे शौक चढ़ेगा कभी वह लिख देगा! औरंगजेब केवल क्रूर जीत और सनक का शौक़ीन था!
इस युद्ध के बाद औरंगजेब ने अपने पिता से क्षमा मांगते हुए पत्र लिखा और कारण दिए कि आखिर उसने यह सब क्यों किया! शाहजहाँ दुखी था, और आहत भी! यह सब उसने नहीं चाहा था, मगर चाहने से क्या होता है? उसने भी तो यही सब करके यह ताज पाया था, अब वही सब उसके सामने है! उसने औरंगजेब को मिलने बुलाया! मगर मित्रों ने कहा कि उसे मारने के लिए षड्यंत्र है अत: उस क्रूर शहजादे ने अपने पिता के महल के पानी की आपूर्ति रुकवा दी! शाहजहाँ ने विनती की, “बुढापे में पानी के लिए मत तरसाओ” औरंगजेब ने दो टूक कहा “इसके लिए आप ही उत्तरदायी हैं!”
और आप सोचिये, अपने अब्बू, अपने जन्म देने वाले को एक एक बूँद पानी के लिए तड़पा रहा था, क्योंकि उसे डर था कि उसके अब्बू उसके भाई को कहीं बादशाह न बना दें! उस गद्दी पर जनता जिसे देखना चाहती थी, उस दारा को वह पराजित कर चुका था, माने अपने ही सगे भाई को वह तहजीब मार चुकी थी, जिसे आज भारत में जबरन गढ़ने का ही नहीं बल्कि महान बताने का भी प्रयास किया जा रहा है।
यह सब उस भारत में हो रहा था जहाँ राजा दशरथ द्वारा दिए गए एक वचन को पूर्ण करने के लिए जनता के प्रिय श्री राम अयोध्या के सिंहासन को छोड़कर वन चले गए थे। वह केसरिया सभ्यता थी, भगवा सभ्यता थी जिसमें एक भाई भरत ने अपने हाथ में आया हुआ राज्य अपने भाई को सौंपने का प्रण ले लिया था, और जिनके न मानने पर वह स्वयं भी चौदह वर्ष तक सन्यासी बनकर रहे थे, प्रभु श्री राम की खड़ाऊँ ही शासक थीं!
परन्तु सेक्युलर इतिहास बार बार हमारे बच्चों के कोमल मस्तिष्क में यह डालने का हर संभव प्रयास करता है कि भाइयों के प्रति प्रेम की यह अनुपम परम्परा तो सत्य थी ही नहीं, इसका प्रमाण ही नहीं है, जबकि निरंतर शोध यह बताते हैं कि रामायण सत्य है, वह भारत का इतिहास है!
निर्लज्ज सेक्युलर हरा और सफेद इतिहास यह भूल जाता है कि वह केसरिया सभ्यता दूसरी थी। सत्ता के लिए अपनों का खून बहाने वाली तहजीब उसकी नहीं थी, उसकी सभ्यता तो बुद्ध बन जाने की थी।
यह सभ्यता और तहजीब के बीच अंतर की लड़ाई है, इसे आम जन मानस समझ रहा है, पर निर्लज्ज सेक्युलर हरा और सफेद इतिहास नहीं!
इधर मुराद की आकांक्षाएं बढ़ने लगीं। एक भाई दारा को हरवाकर उसका जी नहीं भरा था, वह औरंगजेब के खिलाफ कुछ न कुछ कहने लगा! औरंगजेब ही बाद्शाह बनेगा यह सोचकर वह तड़पता रहता था। उसके सलाहकार उसे भडकाते रहते और धीरे धीरे एक भाई ने सत्ता के लिए दूसरे भाई के पास जाना बंद कर दिया। यह तहजीब भी अजीब होती है! औरंगजेब ने जाल बिछाया और कुछ धन और घोड़े देकर अपने भाई का मुंह बंद किया!
“भाई हम जश्न करेंगे!” और कहकर उसे पड़ाव में बुलाया! वह जितना खिला सकता था, उतना खिलाया, वह जितना पिला सकता था उससे कहीं अधिक पिलाया, जितना मुराद का होश खो सकता था, उतना उसने होश खो जाने दिया! और फिर दूसरे की तलवार से अपनी तकदीर लिखने का सपना देखने वाला मुराद बेहोश ही ग्वालियर के किले में कैद हो गया, जहाँ से पंछी भी बाहर नहीं आया था, आई मुराद की लाश 4 दिसंबर 1661 को उसी किले में दो गुलामों के द्वारा क़त्ल किए जाने के बाद!
और यह निर्लज्ज सेक्युलर हरा और सफेद इतिहास उस औरंगजेब को महान बनाने पर तुला हुआ है, जिसने अपने सगे भाइयों दारा, मुराद और शाहशुजा के साथ साथ अपने जन्म देने वाले को भी तड़पा- तड़पा कर मारा था।
इतिहास हमें क्या पढ़ा रहा है, इस पर हमें स्वयं ही ध्यान देना होगा और अपनी सभ्यता के इतिहास को बच्चों को समझाना होगा! निर्लज्ज सेक्युलर हरा और सफेद इतिहास इतिहास बच्चों के कोमल मस्तिष्क में जो विष घोल रहा है उसे मिटाना ही होगा एवं केसरिया सभ्यता क्या है, भाइयों का प्रेम है, इसे हमें ही सोदाहरण समझाना होगा!
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