spot_img

HinduPost is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma

Will you help us hit our goal?

spot_img
Hindu Post is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma
22.8 C
Sringeri
Friday, January 17, 2025

एनसीईआरटी की “इतिहास” की पुस्तक है या नमाज की गाइडलाइन?

“माँ, मुस्लिम लोग मक्का की ओर मुंह करके नमाज क्यों पढ़ते हैं?” बेटे ने जब यह प्रश्न किया तो मैं चौंक गयी। यह चौंकना स्वाभाविक ही था क्योंकि मस्जिद में कैसे नमाज पढ़ी जाती है और क्यों, इससे बच्चों का क्या लेना देना? परन्तु बच्चे यह सीख रहे हैं, और यह भी किसी धार्मिक अध्ययन की पुस्तक से नहीं बल्कि वह सीख रहे हैं एनसीईआरटी की इतिहास की पुस्तक से!

हमारे अतीत भाग दो: अध्याय तीन पृष्ठ 36

कक्षा सात की इतिहास की पुस्तक न केवल झूठ से भरी हुई है बल्कि यह बच्चों के मस्तिष्क को धार्मिक रूप से भी दूषित करती है। मस्जिद का वर्णन केवल एक ही पंक्ति में दिया जा सकता है कि यह मुस्लिमों की इबादत करने की जगह होती है जहाँ पर वह एकत्र होते हैं और नमाज पढ़ते हैं। परन्तु नहीं, एक तो इसमें यह झूठ है कि क़ुतुब मीनार का निर्माण तीन सुल्तानों जैसे कुतुबुद्दीन ऐबक, इल्तुतमिश और फ़िरोज़ शाह तुगलक ने किया था, तो वहीं मस्जिद में क्या किया जाता है और किस दिशा की ओर मुंह करके नमाज पढ़ी जाती है वह भी है!

जबकि यह बात पूरी तरह से असत्य है क्योंकि एनसीईआरटी के पास इसका कोई प्रमाण है ही नहीं कि क़ुतुब मीनार गुलाम वंश के लोगों ने बनाई थी।

परन्तु फिर भी इस झूठ को दोहराते हुए बच्चों के कोमल मन में मस्जिद में नमाज के प्रति पूरी पद्धति बताई गयी है। ऐसा आखिर क्यों किया गया है?

और मस्जिद को एक ऐसा स्थान बताया है, जहाँ पर समान आचार संहिता और आस्था का पालन करने वाले श्रद्धालुओं के परस्पर एक समुदाय के जुड़े होने का बोध हो सकता था, क्योंकि मुसलमान अनेक भिन्न भिन्न प्रकार की पृष्ठभूमियों से आते थे।

एनसीईआरटी की इतिहास की इस पुस्तक में बच्चों के दिमाग में यह भरा गया है कि मस्जिदों का स्वतंत्र रूप से निर्माण किया गया था, जबकि यह सर्वविदित है कि मस्जिदों का निर्माण मंदिरों को तोड़कर किया गया, और यह एक नहीं कई ऐतिहासिक सन्दर्भों में वर्णित है। सीताराम गोयल की पुस्तक हिन्दू टेम्प्लेस: व्हाट हप्पेनेड टू देम में यह विस्तार से दिया गया है कि किस किस सुलतान ने कितने मंदिरों को तोड़कर मस्जिदें बनाईं।

परन्तु इस “इतिहास” की पुस्तक में यह बात नदारद है, यह सच्चाई नदारद है कि इन मस्जिदों का निर्माण हिन्दू मंदिरों के अवशेषों पर हुआ है।

इतना ही नहीं इस पुस्तक में गुलामों की कुप्रथा को भी महिमामंडित कर दिया है।

बच्चों के मस्तिष्क में यह भरा जा रहा है जैसे मंदिरों का निर्माण भारत में हुआ ही नहीं था और स्थापत्य कला का अर्थ दिल्ली सल्तनत से ही है।

कीर्तन को सूफी से जोड़ दिया गया

इतना ही नहीं, हिन्दुओं द्वारा किए जा रहे कीर्तन और भजनों को सूफी और भक्ति आंदोलनों से जोड़ दिया गया है। बच्चों के मन में यह बात इतिहास के माध्यम से बैठाई गयी है कि हिन्दुओं में जन्म से ही किसी विशेष परिवार में जन्म लेने पर विशेषाधिकार मिलते थे। और यही कारण था कि लोग बुद्ध और जैनों के उपदेशो की ओर उन्मुख हुए, जिनके अनुसार व्यक्तिगत प्रयासों से सामाजिक अंतरों को दूर किया जा सकता है।

एक और बात इसमें बच्चों के मन में भरने की कुचेष्टा की गयी है कि भिन्न भिन्न क्षेत्रों में पूजे जाने वाले देवों और देवियों को शिव, विष्णु एवं दुर्गा का प्रतीक माना जाने लगा। अर्थात विष्णु, शिव और दुर्गा जैसे हिन्दुओं के देव मिथक थे और जो स्थानीय देवी-देवता थे वह वास्तविक थे और उन्हें हिन्दुओं ने जबरन हथिया लिया। यह कुचेष्टा की गयी है कक्षा 7 की ही इतिहास की पुस्तक हमारे अतीत भाग 2 के अध्याय 8, ईश्वर और अनुराग में!

हमारे अतीत भाग दो: अध्याय 8,पृष्ठ 104

श्रीमद्भगवतगीता का उल्लेख है, उसमें व्यक्त कर्म का विचार है, भक्ति का विचार बताया है, परन्तु उसे इसका कारक बता दिय गया कि इसी के कारण धार्मिक अनुष्ठानों के माध्यम से शिव, विष्णु और दुर्गा को परम देवी देवताओं के रूप में पूजा जाने लगा और स्थानीय देवी देवताओं को भी इन्हीं लोगों ने हथिया लिया।

यह कहीं वर्णित नहीं है कि श्रीमद्भगवतगीता और पुराणों का काल क्या है? किस काल में इनकी रचना हुई? इस विषय में यह मौन है!

इतिहास की पुस्तक में शिव, विष्णु और दुर्गा मिथक हैं:

इतिहास की इन पुस्तकों में हिन्दू धर्म के तमाम देवी देवता मिथक हैं। और यही कारण है कि बच्चों के कोमल मस्तिष्क में यह बात घर कर जाती है कि वह झूठे देवी-देवताओं की पूजा कर रहे हैं, जहाँ एक ओर इतिहास की आधिकारिक पुस्तक में मंदिरों का उल्लेख या तो है नहीं है या फिर किसी एजेंडे के अंतर्गत है, और मस्जिद का उल्लेख एकता के प्रतीक के रूप में है तो बच्चों का कोमल मस्तिष्क अपनी पुस्तकों के कहे अनुसार ही संचालित हो जाता है।

और भक्ति आन्दोलन में भी उन्हीं कवियों की रचनाएं कथित इतिहास की पुस्तक में ली हैं, जो उनके एजेंडे के अनुसार हैं। तुलसीदास और सूरदास के विषय में लिखा है कि

“तुलसीदास और सूरदास ने उस समय विद्यमान विश्वासों एवं पद्धतियों को स्वीकार करते हुए उन्हें सबकी पहुँच में लाने का प्रयत्न किया। तुलसीदास ने ईश्वर को राम के रूप में धारण किया।”

“सूरदास श्री कृष्ण के अनन्य भक्त थे।”

इतिहास का अर्थ एक धर्म के विरुद्ध दुष्प्रचार नहीं होता

इतिहास का अर्थ होता है निरपेक्ष होकर हर काल की सच्चाई को लिखना, परन्तु बच्चों को इतिहास के नाम पर क्या पढाया जा रहा है, यह बात सोचने योग्य है। “हमारे अतीत भाग II” को पढ़ने से यही प्रतीत होता है जैसे इसे हिन्दू द्वेष के भाव से लिखा गया है। सल्तनत काल में हिन्दुओं पर किया गया अत्याचार एकदम गायब है, बच्चों के कोमल मन में मंदिरों के प्रति घृणा एवं मस्जिद के प्रति आदर भरा गया है।

और फिर हम इन पुस्तकों को पढ़कर युवा हुए बच्चों पर यह आरोप लगाते हैं कि वह हिन्दू धर्म का आदर नहीं करते, जबकि उन्हें हम ही आधिकारिक पुस्तकें पढ़वाकर अपने धर्म से दूर कर रहे हैं!

एक बार ठहर कर सोचना होगा कि क्या वास्तव में बच्चों का दोष है या फिर उन पुस्तकों का जो उन्हें उनके पाठ्यक्रमों में पढ़ाई जा रही हैं?

Subscribe to our channels on Telegram &  YouTube. Follow us on Twitter and Facebook

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest Articles

Sign up to receive HinduPost content in your inbox
Select list(s):

We don’t spam! Read our privacy policy for more info.