कहते हैं मजहबी लड़कों के प्रेम में पड़ने वाली लडकियां बागी हो जाती हैं, और फिर सुनती नहीं हैं। इसके पीछे वैसे तो कई कारण हैं, मगर एक सबसे महत्वपूर्ण कारण हैं, अपनी हिन्दू लोक कथाओं की प्रेम कहानियों का लोप हो जाना और लैला-मजनू, शीरी-फरहाद और सोहनी-महिवाल जैसी कहानियों का प्रचार प्रसार होना, जिसमें केवल और केवल प्यार के नाम पर मरना है, जीना नहीं!
हिन्दुओं की जो प्रेम कहानियां हैं, उनमें प्रेमी को प्राप्त कर पति रूप में प्राप्त करने और हर स्थिति में साथ निभाने की कहानियां हैं, जिन्हें समाज मानता है। जिन्हें समाज आदर्श मानता है। सबसे बड़ी एवं भव्य प्रेम कहानी है महादेव और गौरी की। यह जन्मों की यात्रा का प्रेम है। यही वह प्रेम है जो इस पृथ्वी को संचालित रखे हुए है। जैसा पति पाने के लिए स्त्रियाँ प्रार्थना करती हैं और जैसा पति पाने के लिए व्रत रखती हैं।
और फिर सीता-राम, राधा-कृष्ण की कहानियाँ हैं, जिनमें मिलन है, विरह, है आध्यात्मिकता है, परन्तु साथ देना है। फिर ऐसे देश में प्रेम करने वालों को लैला-मजनू क्यों कहा जाने लगा जिनका मिलन नहीं हो पाया था। जैसे जैसे कबीलाई तहजीब आने लगी वैसे वैसे हर उस क्षेत्र से आध्यात्मिक प्रेम मिटने लगा, जहाँ पर मिलन का प्रेम था, और गान्धर्व विवाह जैसे विवाह थे, जहाँ पर स्त्री को अपना मनचाहा वर चुनने की स्वतंत्रता थी, वहां से प्रेम हटने लगा और सभ्यता के तहजीब में बदलते ही स्त्री, औरत में परिवर्तित हो गयी और औरत खेती हो गयी।
वर्तमान में जहाँ जहाँ भी अधूरे प्यार की कहानियां हैं, वह कौन से क्षेत्र हैं? और कब से उनकी प्रेम कहानियां बदलनी आरम्भ हुईं? वर्तमान सिंध, कंधार, काबुल आदि क्षेत्र जहां की अतृप्त प्रेम की कहानियाँ हैं, वह पूर्व में भारत के ही अंग तो थे। कंधार अर्थात गांधार का उल्लेख ऋग्वेद में प्राप्त होता है। रामायण में भी इस क्षेत्र का उल्लेख है परन्तु क्या इतने सूखे क्षेत्र और बंजर थे या फिर हरे भरे थे, जैसा प्रेम हरा भरा था और जैसे ही तहजीब आई, और उसने सभ्यता पर हमला किया, और फिर छीन ली प्रेम की स्वतंत्रता और प्रेम की कहानियाँ? आज जो बंदूकों के साए में बुद्ध हैं, वह सदा से यूं थे, प्रेम की भांति खंडित, प्रेम की भांति शापित? प्रेम को शापित करने का आरम्भ कब से हुआ होगा? क्योंकि गांधार तो स्वर्ग तुल्य था।
एक स्वर्ग तुल्य क्षेत्र, जिस क्षेत्र के निवासी गायन, नृत्य में प्रवीण थे, जिस क्षेत्र के निवासी गंधर्व युद्ध कौशल में माहिर थे। जिस क्षेत्र के सौन्दर्य ने रामायण काल में राम का भी ध्यान आकर्षित किया तथा राम तक यह संदेशा भिजवाया गया कि गंधर्वदेश बहुत से फल और मूलों से सुशोभित है, यह गंधर्व देश सिन्धु नदी के दोनों तटों पर बससा है तथा युद्ध विशारद शस्त्रधारी गंधर्व लोग इस देश की रक्षा करते हैं।
परन्तु समय के साथ जब हिन्दू सभ्यता वहां से गायब होनी आरम्भ हुई, वैसे वैसे ही अतृप्त प्रेम की कहानियां आनी आरम्भ हुईं। उससे पहले जो प्रेम था, वह पूर्णता की ओर जाता था। भारत में छठवीं शताब्दी से ही इस्लाम के आक्रमण आरम्भ हो गए थे और भारत में गांधार के रास्ते, मुल्तान के रास्ते मुस्लिम आक्रमणकारी भारत में प्रवेश करने लगे थे। और जब वह आए तो उनका उद्देश्य मात्र भूमि पर विजय स्थापित करना ही नहीं बल्कि उस संस्कृति का विनाश करना था।
इस्लाम के तीव्र आक्रमणों ने ज्यों ज्यों संस्कृति में परिवर्तन किया और उसे तहजीब में बदलना शुरू किया, वैसे वैसे प्रेम के प्रति भी अवधारणा परिवर्तित होती चली गयी। सनातन में स्त्री और प्रेम के प्रति जो उन्मुक्तता थी वह शनै: शनै: कड़े परदे में सिमटती हुई चली गयी। इस्लामी आक्रमणकारियों ने कुरआन की इस आयत का अनुसरण किया कि पूर्व और पश्चिम भी अल्लाह का है, अत: जिस ओर भी मुंह फेरो, वहीं अल्लाह की झलक पाओगे। निस्संदेह अल्लाह बहुत विस्तार प्रदान करने वाला और स्थायी ज्ञान रखने वाला है।
और सनातन में प्रेम का आधार जहाँ पर परस्पर आदर, सम्मान एवं आध्यात्मिकता से पर आधारित था, एवं इस आधार पर था कि प्रेम के माध्यम से स्वयं को पूर्ण करना है, तो वहीं इस्लाम के आने के साथ प्रेम का अर्थ धर्म परिवर्तन भी हो गया क्योंकि कुरआन में स्पष्ट लिखा है कि मुश्रिक स्त्रियों से निकाह न करो, जब तक वह ईमान न ले आएं और निश्चित ही एक मोमिन दासी एक स्वतंत्र मुश्रिक स्त्री से उत्तम है, चाहे वह तुम्हें कैसी भी प्रिय हो!
तथा इसी के साथ जहां सनातन में स्त्रियों के प्रति दाम्पत्तय प्रेम में बलात संबंध का विरोध था तो वहीं इस्लाम में यह स्पष्ट है कि पुरुषों के लिए स्त्रियाँ उनकी खेती हैं।*
यह स्पष्ट है कि जब स्त्री के प्रति समाज के विचार परिवर्तित होते हैं, तो उसका प्रभाव प्रेम पर पड़ता है। और जब स्त्री को औरत में बदल दिया गया, फिर मिलन और सम्पूर्णता का प्रेम समाप्त होने के साथ ही प्यार का ऐसा रूप सामने आया, जिसमें दुनियावी दीवारें थीं। लैला मजनू जो जीते जी नहीं मिल पाए, हीर अपने रांझा से नहीं मिल पाई और बुखारा का इज्जत बेग सोहनी से शादी न कर सका और फिर इनके प्यार को भुनाया गया, किस्से कहानियों में!
यह अधूरे किस्से छा गए और घर से भागी हुई लडकियां जैसी कविताएँ इनके आधार पर लिखी जाने लगीं, और हमारी पीढी के सामने यह नहीं आया कि कैसे ओरछा की प्रवीण राय जो अपने प्रेम को लेकर उन्मुक्त थी वह अपने प्रेमी के लिए अकबर की कैद से भी निकल आई, हमारी पीढ़ी को यह नहीं पता कि कैसे सुभद्रा अपने प्रेम के लिए अर्जुन के साथ घर से भाग गयी थीं और अर्जुन ने भी मरने के स्थान पर सेना का सामना करने का साहस किया था।
हमारी पीढ़ी के सामने हिन्दुओं की सबसे बड़ी एवं भव्य प्रेम कहानी सावित्री और सत्यवान को सबसे पिछड़ा घोषित कर दिया गया, जिसमें हर स्थिति में दांपत्त्य की पूर्णता है, और वह कल्पना हो गयी, जो काल्पनिक अधूरी कहानियाँ थीं, उन्हें महान बनाकर हमने इतने वर्षों ढोया और फिर प्रश्न किसी और से क्यों?
* https://www.alislam.org/quran/Holy-Quran-Hindi.pdf
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