spot_img

HinduPost is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma

Will you help us hit our goal?

spot_img
Hindu Post is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma
32.2 C
Sringeri
Tuesday, April 23, 2024

लव जिहाद एवं लड़कियों की हत्याओं पर अब तक मौन रहने वाली फेमिनिस्ट “करवाचौथ पर शोषण” पर क्रान्ति के लिए जागने वाली हैं!

दिनांक 13 अक्टूबर को इस वर्ष करवाचौथ व्रत आ रहा है। करवाचौथ का पर्व आते ही मीडिया पर चर्चाएँ आरम्भ हो जाती हैं, कि इस व्रत को क्यों नहीं रखना चाहिए या फिर क्यों रखना चाहिए? पति और पत्नी के प्रेम का पर्याय यह पर्व उस विमर्श का हिस्सा उन लोगों के माध्यम से बन जाता है, जो इस पर्व में विश्वास रखती ही नहीं हैं। वह अभिनेत्रियाँ जो मुस्लिमों से निकाह करे बैठी हैं, या वह अभिनेत्रियाँ जो पश्चिमी फेमिनिज्म से प्रभावित होकर अपनी जिन्दगी जीती हैं, उनसे पूछा जाता है कि आखिर क्यों करवाचौथ को समाप्त करना चाहिए?

कोई भी वर्ष ऐसा नहीं जाता जब करवाचौथ को लेकर उपहास न उड़ाया जता हो। अभी कुछ ही दिन पहले रत्ना पाठक शाह ने भी करवाचौथ को असहिष्णुता का पर्याय बता दिया था। उन्होंने यह तक कह दिया था कि मैं क्या पागल हूँ जो करवाचौथ रखूं? उन्होंने कहा था कि “ये आश्चर्य है कि पढ़ी लिखी महिलाएं भी पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं। भारत में विधवा होने एक भयानक स्थिति है, महिलाएं इसी डर से करवा चौथ का व्रत करती हैं। हैरान करने वाली बात है कि हम 21वीं सदी में भी इस तरह की बातें करते हैं।“

यह बात अत्यंत दुखद है कि भारत ऐसा देश है, जहाँ पर बहुसंख्यक के पर्वों को मनाने पर महिलाओं को ट्रोल किया जाता है। हिन्दू समुदाय किसी भी दूसरे पर्व की आलोचना सहज नहीं करता है, परन्तु यह विडंबना ही है कि उसके हर पर्व को एवं पति-पत्नी के प्रेम के पावन पर्व को इस प्रकार निशाना बनाया जाता है।

इस बात को और समझना होता है कि जो भी वामपंथी एवं कट्टर मुस्लिम लॉबी होती है, वह इस पर्व को औरतों का पर्व घोषित करती है और यह कहती है कि “औरत” ही भूखी क्यों रहे? तो उन्हें औरत और पत्नी के बीच अंतर नहीं पता होता है! पति और पत्नी का प्रेम कितना गहरा होता है, यह उन्हें तनिक भी ज्ञात नहीं होता है। और रत्ना पाठक शाह, या फिर करीना खान जैसी औरतें, जिन्होनें अपने धर्म से बाहर जाकर शादी की है या फिर नाम मात्र की हिन्दू अभिनेत्रियाँ जैसे ट्विंकल खन्ना, सोनम कपूर या फिर दीपिका पादुकोण, आदि करवाचौथ पर प्रश्न उठाती हुई दिखती हैं और कहती हैं कि व्रत जरूरी नहीं है!

व्रत एवं धर्म नितांत व्यक्तिगत मामला है

धर्म एवं व्रत नितांत व्यक्तिगत मामले हैं और करवाचौथ मनाना या न मनाना किसी भी स्त्री का अपना अधिकार है, इस पर ऐसी बहसें क्यों मीडिया में आयोजित होती हैं या फिर ऐसी चर्चाएँ क्यों होती हैं, जिनमें यह प्रश्न किया जाए कि कौन करवाचौथ रख रहा है? यदि कोई पत्नी अपने पति की लम्बी आयु के लिए कोई व्रत रखती है तो उसे “औरत” गुलाम है अदि कहने का अधिकार उन लोगों को किसने दे दिया जो न ही हिन्दू धर्म को मानते हैं और न ही पति पत्नी के सम्बन्धों की पवित्रता में विश्वास रखते हैं।

आखिर लेखकों का निशाना दाम्पत्त्य प्रेम का प्रतीक पर्व क्यों है? क्यों वह करवाचौथ का व्रत रखने वाली लेखिकाओं को यह प्रमाणित करने का प्रयास करते हैं, कि दाम्पत्त्य प्रेम दरअसल एक गुलामी है और व्रत न रखना आजादी? ये कैसी आजादी है? ये कैसी आजादी है जो परम्पराओं और परस्पर प्रेम को नष्ट करके ही मिलेगी? इस पर्व के बहाने हिन्दू धर्म को कोसने का बहाना मिल जाता है और फिर मिलता है प्रगतिशीलता का तमगा!

जैसे एक बड़े कवि उदयप्रकाश की कविता का यह अंश:

वह औरत जो सुहागन बने रहने के लिए रखे हुए है करवाचौथ का निर्जल व्रत

वह पति या सास के हाथों मार दिए जाने से डरी हुई सोती-सोती अचानक चिल्लाती है

एक औरत बालकनी में आधी रात खड़ी हुई इंतज़ार करती है

अपनी जैसी ही असुरक्षित और बेबस किसी दूसरी औरत के घर से लौटने वाले अपने शराबी पति का

या फिर

निर्मला गर्ग की यह कविता

करवाचौथ है आज

मीनू साधना भारती विनीता पूनम राधा

सज-धजकर सब

जा रही है कहानी सुनने मिसेज कपूर के घर

आधा घंटा हो गया देसणा नहीं आई

*****************

देसणा कह रही है—

‘मुझे नहीं सुनी कहानी-वहानी नहीं रखना कोई व्रत

आप कहती हैं सभी सुहागिनें इसे रखती हैं

शास्त्रों में भी यही लिखा है

इससे पति की उम्र लंबी होती है

यह कैसा विधान है!

मैं भूखी रहूँगी तो निरंजन ज़्यादा दिनों तक जिएँगे!

करवाचौथ को हिन्दी के साहित्य में ऐसा अछूत बना दिया गया कि इसका विरोध करना ही प्रगतिशीलता हो गयी। यह मान लिया गया कि पति है तो मारता ही होगा और यदि पत्नी है तो पिटती ही होगी! पति है तो शराबी ही होगा, और पत्नी को वह मारता ही होगा!

हिन्दी साहित्य और कथित प्रगतिशील सिनेमा में पति और पत्नी का दामपत्य प्रेम जैसे दूर की कौड़ी हो गया। कई बार ऐसा लगता है जैसे व्यक्तिगत कुंठाएं साहित्य एवं प्रगतिशील सिनेमा में हावी हो गईं, जिनका शिकार हिन्दू धर्म और उसके पर्व बन गए।

करवाचौथ यदि किसी को नहीं मनाना है तो वह न मनाए, परन्तु वह नहीं मना रहा है, उसे क्रांति के रूप में क्यों प्रस्तुत किया जा रहा है, और यही हिन्दी साहित्य और प्रगतिशील सिनेमा, बुर्के का समर्थन करने के लिए सबसे आगे हो गया था। हिजाब दिवस भी यह लोग अल्पसंख्यक पहचान के नाम पर स्वीकृत करते हैं। और दक्षिण भारत में कुछ ननों के साथ हो रहे दुष्कर्म पर भी यही क्रांतिकारी लेखिकाएँ और लेखक मौन रहते हैं!

सारी क्रान्ति रत्ना पाठक शाह, करीना कपूर खान, दीपिका पादुकोण आदि की करवाचौथ पर ही निकलती है! 13 अक्टूबर को देखना होगा कि वह लोग इस बार क्या नया कहते हैं?  

Subscribe to our channels on Telegram &  YouTube. Follow us on Twitter and Facebook

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest Articles

Sign up to receive HinduPost content in your inbox
Select list(s):

We don’t spam! Read our privacy policy for more info.

Thanks for Visiting Hindupost

Dear valued reader,
HinduPost.in has been your reliable source for news and perspectives vital to the Hindu community. We strive to amplify diverse voices and broaden understanding, but we can't do it alone. Keeping our platform free and high-quality requires resources. As a non-profit, we rely on reader contributions. Please consider donating to HinduPost.in. Any amount you give can make a real difference. It's simple - click on this button:
By supporting us, you invest in a platform dedicated to truth, understanding, and the voices of the Hindu community. Thank you for standing with us.