आज 9 नवम्बर हैं, आज के दिन पाकिस्तान के वैचारिक अब्बा अल्लामा इकबाल का जन्म हुआ था। आज जहां पाकिस्तान इकबाल दिवस मना रहा है तो वहीं भारत में भी कथित धर्मनिरपेक्ष लेखक एवं एनजीओ इकबाल का जन्मदिन मना रहे हैं। हमने परसों ही अल्लामा इकबाल की नज्मों का वर्णन किया था कि कैसे उनमें हिन्दुओं के विरुद्ध जहर भरा हुआ था।
जबकि अल्लामा इकबाल भारत के ही नहीं हिन्दुओं के प्रति घृणा से भरे हुए थे। पाकिस्तानी हैंडलर्स ने यह बताया कि कैसे इकबाल के कारण ही पाकिस्तान आज अमल में आ सका है। एक यूजर ने लिखा कि अल्लामा इकबाल मुस्लिमों के एक महान नेता थे। वह दो देशों वाले सिद्धांत को सबसे पहले लेकर आए थे। उन्होंने पाकिस्तान का सपना दिया। तो हम कह सकते हैं कि उन्होंने ही पाकिस्तान बनाया है।
जिस इकबाल के लिए भारत के वह एनजीओ पागल हो रहे हैं, जिनमे अधिकाँश मुस्लिम या कथित सेक्युलर शामिल हैं, उन्हीं इकबाल के लिए पाकिस्तान में लिखा जा रहा है कि
अल्लामा को मुफाकिर-ए-पाकिस्तान कहा जा सकता है। वह हमेशा ही अपने शानदार काम के लिए याद किए जाएंगे। अल्लाह उनकी रूह को सुकून दें। और मैं दुआ करता हूँ कि पाकिस्तान वह देश हो जाए जैसा अल्लामा इकबाल ने सपना देखा था
वहीं भारत का एक एनजीओ जो युवाओं को जगाने का दावा करता है, वह “सारे जहाँ से अच्छा लिखने वाले” इकबाल को याद कर रहा है
वहीं वह अपने देश के पसमांदा मुस्लिमों की उस आवाज़ पर ध्यान नहीं दे रहा है, जो खुलकर देश के साथ और उस अरबी सोच के खिलाफ खड़े हैं, जो अल्लामा इकबाल फैला रहे थे। पसमांदा मुस्लिम भारत को अपनी पहचान बताते हैं तो अल्लामा इकबाल अरब को!
इसी बात को फज़िक्ज़ नामक यूजर ने बहुत सही तरीके से कहा है। देश कवियों के दिल में जन्म लेते हैं। वह राजनेताओं के हाथों में तरक्की करते हैं और मरते हैं। और फिर उसने भी लिखा है कि पाकिस्तान का सपना देखने वाले इकबाल
भारत में भूतपूर्व पत्रकार और अब आरएलडी के एससी/एसटी शाखा के प्रशांत कनौजिया ने लिखा
तराना-ए-हिन्द “सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा” लिखने वाले महान शायर अल्लाहमा इक़बाल जी की जयंती पर नमन।
प्रशांत कनौजिया दरअसल मुस्लिम वोटों के लिए यह लिख रहे हैं, जबकि इकबाल भारत के सबसे बड़े खलनायकों में से एक हैं। क्योंकि उनका तराना-ए-मिल्ली पूरी तरह से हिन्दुओं के खिलाफ लिखी गयी है। और भारत के हिन्दुओं को मारने वाली सेना और मुस्लिम शासकों का कितना महिमामंडन किया गया है, वह देखें:
तेग़ों के साए में हम पल कर जवाँ हुए हैं
ख़ंजर हिलाल का है क़ौमी निशाँ हमारा
मग़रिब की वादियों में गूँजी अज़ाँ हमारी
थमता न था किसी से सैल-ए-रवाँ हमारा
बातिल से दबने वाले ऐ आसमाँ नहीं हम
सौ बार कर चुका है तू इम्तिहाँ हमारा
इसमें उन्होंने पूरी तरह से मुस्लिमों का गुणगान किया है, यह अंग्रेजों की किसी नाइंसाफी के खिलाफ नहीं है, बल्कि यह पूरी तरह से मजहबी आवाज है। जिसमें कहा है कि हम (मुसलमान) तलवारों के साए में पलकर जवान हुए हैं और हमारी कौम का निशान है आधा चाँद! और फिर वह कहते हैं कि वह झूठ से नहीं दब सकते हैं, और खुदा उनका इम्तिहान ले चुका है।
इक़बाल इस तराने में कह चुके हैं कि यह सारी दुनिया मुस्लिमों की है। फिर वह अपनी नज़्म शिकवा में लिखते हैं:
बस रहे थे यहीं सल्जूक़ भी तूरानी भी
अहल-ए-चीं चीन में ईरान में सासानी भी
इसी मामूरे में आबाद थे यूनानी भी
इसी दुनिया में यहूदी भी थे नसरानी भी
पर तिरे नाम पे तलवार उठाई किस ने
बात जो बिगड़ी हुई थी वो बनाई किस ने
थे हमीं एक तिरे मारका-आराओं में
ख़ुश्कियों में कभी लड़ते कभी दरियाओं में
इसमें वह अपने खुदा से शिकायत कर रहे हैं कि हर जगह कोई न कोई बसा था। इसी दुनिया में सल्जुक थे, तूरानी थे, ईरानी थे और यूनानी थे, मगर खुदा के नाम पर तलवार उठाई किसने? अर्थात मुस्लिमों ने! इस नज़्म में मुस्लिमों की वर्तमान स्थिति के विषय में शिकायतें थीं। कि ऐ खुदा अपने मानने वालों की समस्या सुनें।
वह लिखते हैं
हम से पहले था अजब तेरे जहाँ का मंज़र
कहीं मस्जूद थे पत्थर कहीं माबूद शजर
ख़ूगर-ए-पैकर-ए-महसूस थी इंसाँ की नज़र
मानता फिर कोई अन-देखे ख़ुदा को क्यूँकर
अर्थात वह लिखते हैं कि हम (मुसलमानों) के आने से पहले इस संसार का आलम अजीब था, कोई मूर्ती बनाकर पूजता था तो कोई कैसे। इंसान अपने देवताओं को अनुभव कर सकता था फिर अनदेखे खुदा को क्यों कोई पूजता?
तुझ को मालूम है लेता था कोई नाम तिरा
क़ुव्वत-ए-बाज़ू-ए-मुस्लिम ने किया काम तिरा
अर्थात ऐ खुदा, क्या तुम्हें पता है कि तुम्हारा नाम कौन लेता था, और मुस्लिमों के बाजुओं ने ही तुम्हारा काम किया है।
अर्थात वह मजहब को फैलाने के लिए खुदा को ही जिम्मेदार बताते हुए कह रहे हैं कि हमने तुम्हारा नाम और राज्य फैलाया।
फिर लिखते हैं:
किस की हैबत से सनम सहमे हुए रहते थे
मुँह के बल गिर के हू-अल्लाहू-अहद कहते थे
अर्थात किसके आतंक से मूर्तिपूजक सहमें हुए रहते थे और फिर मुहं के बल गिरकर अल्लाह एक ही है कहते थे।
फिर इस शिकवा में अंत में कहते हैं:
अजमी ख़ुम है तो क्या, मय तो हिजाज़ी है मेरी।
नग़मा हिन्दी है तो क्या, लय तो हिजाज़ी है मेरी।
इसके अर्थ को समझना होगा। अजमी अर्थात अरब का न रहने वाला, खुम: शराब रखने का घडा, मय: शराब, परन्तु यहाँ पर मय का अर्थ शराब तो है ही, परन्तु इसकी जो प्रकृति है वह अरबी है। और फिर है हिजाजी: इसका अर्थ है, हिजाज का निवासी, हिजाज सऊदी अरब का प्रांत है, हिजाजी का अर्थ है ईरानी संगीत में एक राग!
अब समझना होगा कि जब अल्लामा इकबाल मुसलमानों की तत्कालीन बुरी स्थिति की शिकायत खुदा से कर रहे थे तो अंत में उन्होंने मुस्लिमों की पहचान अरब से जोड़ दी है। उन्होंने लिखा है
कि
घड़ा अरबी नहीं है तो क्या हुआ मय तो अरबी है। यहाँ पर घड़े का अर्थ है भारतीय मुस्लिम! अल्लामा इकबाल ने कहा “मैं कहने के लिए देशी मुसलमान हूँ, मगर मैं मय अर्थात स्वभाव, प्रकृति, और अपनी जीवन पद्धति से तो अरबी हूँ!”
मैं नगमा जरूर हिंदी का हूँ, पर लय तो अरबी ही है! लय का अर्थ हम सभी जानते हैं, नगमे की आत्मा!
अल्लामा इकबाल ने भारतीय मुसलमानों की पहचान को वतन अर्थात भारत से कहीं दूर अरब से जोड़ दिया था।
तभी पाकिस्तानियों का तो समझ में आता है कि वह अल्लामा इकबाल का दिन मना रहे हैं पर भारत और विशेषकर हिन्दू क्यों दिमागी गुलाम बनकर इकबाल की जयंती मना रहे हैं?
पकिस्तान सरकार अल्लामा इकबाल के सपने के पकिस्तान को बनाएगी, ऐसा वहां के मंत्री ट्वीट कर रहे हैं:
एक यूजर ने लिखा कि यह अल्लामा इकबाल का वर्ष 1930 में इलाहाबाद में दिया गया भाषण था, जिसने पाकिस्तान का सपना दिखाया:
किन्तु यह हिन्दुओं का दुर्भाग्य ही है कि वह उन पढ़ने लिखने वालों के षड्यंत्र का शिकार हुए, जिन्होनें उनका क़त्ल करने वालों को ही उनके लिए मसीहा साबित कर दिया और प्रगतिशील होने के लिए उनका नाम जपना अनिवार्य कर दिया!