हिन्दू त्योहारों पर बीबीसी का मुस्लिम प्रेम सभी के प्रति स्पष्ट है। हर हिन्दू पर्व को मुस्लिम घोषित करना उसका एक मात्र उद्देश्य रह जाता है। किसी भी प्रकार से पर्व से हिन्दू पहचान गायब करनी होती है। उसे हिन्दू पहचान से विस्मृत कर देना होता है। वर्ष 2018 में किसी इतिहासकार राना सफवी के हवाले से बीबीसी ने लिखा था कि “होली: कौन कहता है कि यह सिर्फ़ हिंदुओं का त्योहार है?”

और उसमें तमाम बातें लिखीं थीं कि कैसे इस त्यौहार को मुग़ल काल में मनाया जाता था? उसमें यह भी था कि ईद मनाते हुए मुग़ल बादशाह की कोई तस्वीर सामने नहीं आती है तो वहीं होली खेलते हुए कई ऐसी तस्वीरें सामने आती हैं जिनमें स्वयं बादशाह और हिन्दू रानियाँ होली खेल रही हैं।
वह यह बताती हैं कि मुग़ल बादशाह हिन्दू त्यौहार मनाते थे, परन्तु उस त्यौहार मनाने का मूल्य कितना बड़ा लिया है, यह लिखने पर राना सफवी का ध्यान नहीं जाता। दरअसल यह नैरेटिव की लड़ाई है। बार बार यह नैरेटिव स्थापित करने का कुप्रयास किया जाता है कि हिन्दुओं के पास दरअसल संस्कृति नहीं थी, वह तो तहजीब वालों ने दी। जबकि जाहिल कबीलाई तहजीब ने जिस हिन्दू सभ्यता का दमन किया, जिसे नष्ट करने का प्रयास किया, वह बार बार उभर कर सामने आती है, अपना प्रमाण देती है। कभी कहीं से जमीन से दबे हुए शिवलिंग निकलते हैं तो कभी किसी और तरीके से।
उनका ध्यान कभी भी उन हत्याओं की ओर नहीं जाता है, जो बाबर से लेकर औरंगजेब तक अनवरत जारी रहीं। बल्कि पूरा ध्यान इसी ओर रहता है कि कैसे भी हिन्दुओं के पहचान के इतिहास को नष्ट कर दिया जाए। नष्ट नहीं तो कम से इतना भ्रमित कर दिया जाए कि वास्तविकता जानने में ही व्यक्ति का जन्म व्यतीत हो जाए। समस्त स्रोत ही प्रदूषित कर दिए जाएं।
ऐसा ही बीबीसी हर पर्व के साथ करता है। परन्तु आज जब बीबीसी ने अपना मुस्लिम प्रेम दर्शाते हुए एक तस्वीर post की, जिसमें हिन्दू, मुस्लिम और सिख एक साथ इस पर्व को मनाते हुए दिख रहे हैं। इसमें एक सिख व्यक्ति एक मुस्लिम के चेहरे पर गुलाल लगा रहा है और एक हिन्दू व्यक्ति एक मुस्लिम महिला को गुलाल लगा रहा है। उसके गाल को छू रहा है।
बीबीसी द्वारा मुस्लिम समाज की जो उदार और लिबरल तस्वीर प्रस्तुत की जाती है और जिस प्रकार से हिन्दुओं को कट्टरता का दोषी ठहराया जाता है, वह झूठ एक ही पल में उतर गया, जब इस तस्वीर को लेकर मुस्लिमों ने बीबीसी की एक प्रकार से लिंचिंग ही कर डाली।
एक मुस्लिम यूजर ने लिखा कि बीबीसी हिन्दी, यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण और बकवास है। दिए गए कैप्शन का इस तस्वीर के साथ क्या सम्बन्ध है? आप लोग संघी गुंडों का एजेंडा ही आगे बढ़ा रहे हैं।
शफक परवीन नामक यूजर ने लिखा कि
“यह सब क्या है? किसी हिन्दू को ईद का नमाज पढ़ते हुए कभी देखा है, और ये किस टाईप का फिरका परस्ती मुसलमान, एक तरफ हिजाब पहनते हैं, नमाज पढ़ते हैं और दुसरी तरफ होली खेलते हैं, और इनको इतना भी शर्म नहीं कि कोई पराया इंसान इसकी बॉडी को टच कर रहा है
जहां बीबीसी हर त्यौहार को मुस्लिम बनाने पर तुली है, वहीं उसके लेखकों को मुस्लिम ब्राह्मण कहकर कोस रहे हैं, जैसे एक यूजर ने लिखा कि

एक और यूजर ने लिखा कि
बकरीद के मौके पर BBC वाले किसी भगवाधारी की फोटो लगा सकते हैं ?
एक यूजर ने कई सारे ऐसे ही कमेन्ट एकत्र करके एक ट्वीट किया और बीबीसी पर तंज कसते हुए लिखा कि बीबीसी हिन्दी, अपनी सेक्युलर कम्युनिटी के कमेन्ट देखें:
एक यूजर ने कमेन्ट पर टिप्पणी करते हुए लिखा कि
“भाई चारे का नाटक कमेन्ट सेक्शन मे फुस्स होता दिख रहा है मुस्लिमों को एक हिन्दू आदमी द्वारा मुस्लिम महिला को रंग लगाना भी लाजिमी नहीं लग रहा है लेकिन मुस्लिम, हिन्दू लड़की को लव जिहाद मे फंसा कर बर्बाद कर दे तब ए कुछ नहीं बोलते यही है इनका भाईचारा”
परन्तु यूजर्स यह प्रश्न कर रहे हैं कि आखिर हिन्दू पर्वों पर ही सारा सेक्युलरिज्म दिखाने की आवश्यकता क्या है? और यह बहुत ही सही प्रश्न है, कि आखिर वह क्या विवशता और बाध्यता है जो बीबीसी जैसे संस्थानों को बार बार हिन्दू पर्वों को सेक्युलर या शेष पन्थ वालों का प्रमाणित करने के लिए बेचैन कर देती है?
यह विवशता है हिन्दू धर्म की सांस्कृतिक पहचान मिटाने की, यह विवशता है जिहादी मानसिकता के चलते हिन्दूओं का नाश करने की!