पश्चिम बंगाल हमेशा से भारत का सांस्कृतिक और बौद्धिक केंद्र रहा है, लेकिन पिछली सदी से इसका स्वरुप बदल गया है । इसका सबसे बड़ा कारण है कट्टर इस्लामिक तत्वों की भरमार होना। इसका दुष्परिणाम हमने विभाजन के समय भी देखा, जब मुहम्मद अली जिन्ना और हुसैन शहीद सोहरवर्दी के नेतृत्व में बंगाल में डायरेक्ट एक्शन डे किया गया था, जिसमे हजारो हिन्दुओ का नरसंहार किया गया था।
आज ममता बनर्जी के नेतृत्व में पश्चिम बंगाल फिर से उसी समयकाल में चला गया है, जहां हिन्दू होना ही एक अपराध है। ममता बनर्जी और उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस येन केन प्रकारेण हिन्दुओ को प्रताड़ित करने के नए नए षड़यंत्र करती ही रहती है। पिछले ही साल चुनावों के बाद तृणमूल कांग्रेस द्वारा प्रायोजित हिंसा में कई हिन्दू मारे गए थे, वहीं हजारो विस्थापित कर दिए गए थे।
ममता बनर्जी के मन में हिन्दुओ के प्रति जो द्वेष है, वो रह-रहकर उभर ही जाता है। उनका एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमे वो हिन्दुओ के बारे में आपत्तिजनक भाषा बोलती नज़र आ रही हैं। ममता बनर्जी एक सभा में लोगो को सम्बोधित करते हुए कह रही हैं कि “हम डरपोक नहीं हैं, हम ‘काफिर’ नहीं हैं, हम ‘उनसे’ लड़ेंगे और समाप्त कर देंगे”। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि ममता बनर्जी अपने राजनीतिक विरोधियो के बारे में ये वक्तव्य दे रही हैं, लेकिन इसकी भाषा बड़ी ही आपत्तिजनक है।
ममता बनर्जी ने कहा कि वो डरती नहीं हैं, वो ‘काफिर‘ नहीं हैं। चलिए वो डरती नहीं हैं ये अच्छी बात है, लेकिन यहाँ ‘काफिर’ शब्द का इस्तेमाल किया गया है, ये एक इस्लामिक शब्द है जिसका अर्थ है ‘ऐसा इंसान जो इस्लाम और अल्लाह को नहीं मानता हो’। बंगाल के परिप्रेक्ष्य में देखा तो काफिर का अर्थ हुआ ‘हिन्दू’। क्या इसका ये अर्थ है कि ममता बनर्जी हिन्दुओ को डरपोक बोल रही हैं?
काफिर एक आपत्तिजनक शब्द है, और इसका प्रयोग करके ममता बनर्जी अपने पारम्परिक इस्लामिक वोट बैंक को सन्देश तो नहीं दे रही हैं कि वो काफिरो से ज्यादा सबल हैं, और सरकार का समर्थन भी उन्ही के साथ है?
बंगाल की राजनीती में ‘काफिर’ शब्द का बड़ा महत्व है। ऐसा कहा जाता है कि ‘डायरेक्ट एक्शन डे‘ से पहले पूरे बंगाल में पत्र बांटे गए थे, जिसमे मुहम्मद अली जिन्ना की का हाथ में तलवार लिए हुए चित्र था। इस पत्रक में लिखा गया था : “हम मुसलमानों ने भारत पर इतने वर्षों शासन किया है, अब समय आ गया है कि मुसलमान एक साथ आएं, अपनी तलवारें निकाल लें.. हे काफिरों, अब क़यामत का दिन दूर नहीं है, तुम्हारा नरसंहार किया जाएगा”।
जैसे जैसे इस तरह के पत्र बंगाल में लोगो को बांटें गए, मुसलमान भड़कते गए और व्यापक स्तर पर हिन्दुओ का जनसंहार किया गया। आज ममता बनर्जी भी अपने लोगो को सम्बोधित करते हुए ‘काफिर’ शब्द का प्रयोग कर रही हैं, क्या वो भी किसी डायरेक्ट एक्शन डे की तैयारी कर रही हैं? साथ ही वो अपने आप को ‘काफिर’ नहीं बोल रही, तो क्या वो स्वयं इस्लामिक हैं? और इस भाषण में किससे लड़ने और समाप्त करने की बात कर रही हैं?
ममता बनर्जी ने पिछले ही दिनों अपनी पुलिस को बीएसफ के विरुद्ध भड़काते हुए कहा था कि वो उन्हें अपने क्षेत्रो में बीएसफ को ना घुसने दे। सीमा सुरक्षा बल को केंद्र सरकार ने सीमा से 50 किलोमीटर के क्षेत्र में कार्यवाही की स्वतंत्रता दी है, और उसके बाद बड़े स्तर पर कार्यवाही हुई है, कई गौ तस्कर पकडे गए हैं, ड्रग्स और अवैध हथियार पकडे गए हैं, और सैंकड़ो अवैध घुसपैठियों को वापस बांग्लादेश भेजा गया है।
इन सब कार्यवाही से ममता बनर्जी भड़की हुई हैं, क्योंकि उनके वोट बैंक पर इनका काफी नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है । ऐसा लग रहा है कि ममता बनर्जी भड़काऊ भाषण दे कर प्रदेश में दंगे करवाना चाहती हैं, इसलिए इस्लामिक शब्दों का प्रयोग कर रही हैं। पश्चिम बंगाल के राजयपाल और केंद्र सरकार को इस मामले का संज्ञान लेना चाहिए और उचित सन्देश ममता बनर्जी को देना चाहिए।