भारतीय लेखक उर्दू और अंग्रेजी के बहाने मुस्लिम और अंग्रेज प्रेमी होते हैं। वह लोग उद्धारक हैं उनके लिए और उनका अपना लोक पिछड़ा! वह पिछड़ी मानसिकता लेकर इधर उधर घुमते हैं क्योंकि उन्हें अपनी उल्टी सीधी कहानियों के लिए अंग्रेजों का प्रमाणपत्र चाहिए। पर इन सभी में जो हीनभावना होती है, वह इन्हें अपने लोक की उस प्रताड़ना की ओर देखने से निरंतर रोकती है, जिसके मूल में यही अंग्रेज हैं।
आइये आज जानते हैं कि कैसे अंग्रेजों ने अपने सैनिकों की अय्याशी के लिए, उनकी हवस को पूरा करने के लिए भारतीय लड़कियों को आधिकारिक रूप से चकलाघर में बैठाया था। अंग्रेजों ने अपने इस पाप को छिपाने के लिए बहाना बहुत अच्छा बनाया था कि चूंकि उनके सैनिक बिना बीवियों के यहाँ पर आते हैं तो उनके पास अपने शरीर की जरूरतों को पूरा करने के लिए साधन नहीं होता, इसलिए बलात्कार करने से बेहतर है कि आधिकारिक रूप से चकलाघर ही चलाया जाए।
the Queen’s Daughters in India नामक पुस्तक में एक अंग्रेज महिला ने ही अपने लोगों द्वारा भारतीय महिलाओं पर किए जा रहे अत्याचारों को सविस्तार बताया है। जोसेफिन एफ बटलर ने लिखा है कि वह चाहती हैं कि उनके देश की महिलाएं भारत में हो रहे इन अत्याचारों पर आवाज़ उठाएं। उन्होंने लिखा था कि वह एक निष्ठावान अंग्रेज महिला हैं, और उन्हें अपने देश से बहुत प्यार है, इसलिए वह यह लिख रही हैं।
क्या लिखा है पुस्तक में:
पुस्तक आपको एक ऐसी काली दुनिया में ले जाती है जहाँ पर भारतीय या कहें हिन्दू स्त्रियों की पीड़ा का काला संसार है, यहाँ पर वह बातें हैं, जो इन गुलाम लेखकों की रचनाओं में नहीं मिलती है। इसमें लिखा है कि भारत में लगभग एक सौ सैन्य कंटोंमेंट्स थे। सैनिकों की यौन इच्छाओं को पूरा करने के लिए एवं यौन रोगों से बचाने के लिए कन्टेजीयस डिजीज एक्ट्स के रूप में एक पूरी व्यवस्था बनाई गयी थी, जिन्हें कैंटोंमेंट रेग्युलेशन के अंतर्गत किया गया, और इसकी मुख्य विशेषताएँ थीं
“हर कंटोंमेंट में एक हजार से अधिक सैनिक रहा करते थे। इन सैनिकों के लिए बारह से लेकर पंद्रह स्थानीय महिलाएं हुआ करती थीं, जो हैसियत या मामले के अनुसार दिए गए घरों या टेंट में रहा करती थीं, जिन्हें चकला कहा जाता था। इन महिलाओं को केवल अंग्रेजी सैनिकों के साथ ही सोना होता था और उन्हें कैंटोनमेंट मजिस्ट्रेट के द्वारा रजिस्टर किया जाता था, और लाइसेंस के टिकट दिए जाते थे।”
सरकारी चकलाघरों के साथ साथ कैंटोनमेंट में अस्पताल भी हुआ करते थे, जिनमें कैदियों को उन की इच्छा के विरुद्ध रखा जाता था। इन बंद अस्पतालों में महिलाओं को अपने शरीर की यह जांच कराने के लिए जाना होता था कि कहीं उनमें उन सैनिकों के साथ बने हुए सम्बन्धों के कारण कोई बीमारी तो नहीं हो गयी है और शरीर की जांच ही एक बलात्कार से कम नहीं होती थी।”
जैसे जैसे आप इस पुस्तक में आगे बढ़ते हैं, भारतीय महिलाओं के इस आधिकारिक अंग्रेज सरकार द्वारा यौन शोषण की कहानियाँ आपको बेचैन कर देंगी।
जैसे अकबर के हरम में एक बार लड़की आती थी तो अर्थी ही जाती थी, ऐसे ही इन चकलाघरों में लडकियां आती थीं, तो अर्थी में ही जाती थीं। वह बाहर नहीं जा सकती थीं, उन्हें बीमारी हो जाती थी, तो पहले उन बीमारियों को ठीक किया जाता था और फिर जब वह ठीक हो जाती थीं, तो फिर से उसे यातनागृह में भेज दिया जाता था।
और यह सब वही अंग्रेज कर रहे थे, जिन्हें वामपंथी लेखक अपना खुदा मानते हैं।
रेजिमेंट के साथ ही लड़कियों को भेजा जाता था और अगर अधिक सैनिक आ जाते थे तो और लडकियां खरीदी जाती थीं। और सैनिकों को हर प्रकार का आराम देने के लिए इन लड़कियों के लिए हर प्रकार की सुख सुविधासंपन्न टेंट या घर बनाए जाते थे। जवान और सुन्दर लडकियों की मांग की जाती थी। परन्तु उन्हें अपनी देह के बदले जो पैसे मिलते थे वह बेहद कम हुआ करते थे।
और उन्हें वर्जिन ही लड़कियां चाहिए होती थीं।
इन लड़कियों को जो यौन संक्रमण होता था, उसकी पर्याप्त जाँच नहीं होती थी एवं कभी कभी वह बीमारी में ही यौन सेवाएँ बेचने लगती थी।
वह बाहर इसलिए भी नहीं जा सकती थी क्योंकि उसे इस स्थिति में कौन अपनाता। इस पुस्तक में लिखा है कि जब उन्हें काम से हटाया जाता था तो, हो सकता है कि वह उन लोगों से सैकड़ों मील दूर हो, जिन्हें वह जानती थी।और भारत में लगभग हर दरवाजा उनके लिए बंद हो जाता था। वह कहाँ जाती थीं, उनके साथ उस कैंट से बाहर निकलने पर क्या होता था, कोई नहीं जानता था और उनके शरीर का सुख लेने वाले कभी यह जानने की कोशिश भी नहीं करते थे।
इन्हें अधिकारियों द्वारा खरीदा जाता था और यदि कोई औरत उस पद पर होती थी तो उसे महलदारनी कहते थे।
छोटी छोटी बच्चियों को भी चकलाघर में भेज दिया जाता था। और वह लोग इसे अपना भाग्य मान बैठती थीं। कई लड़कियों को अंग्रेज सैनिकों की बात न मानने पर जला भी दिया जाता था, मार दिया जाता था।
जो महलदारनी जितनी अधिक सुन्दर लडकियां लाती थी, उसे प्रमाणपत्र मिलता था कि उसे किसी रेजीमेंट में और काम मिले!
सुन्दर और वर्जिन लड़की लाने पर पचास रूपए तक मिलते थे।
असंख्य अत्याचारों की यह कहानियाँ आपको हतप्रभ करने के लिए पर्याप्त हैं, परन्तु भारत में एक बहुत बड़ा वोक वर्ग है जो अंग्रेजों को अपना मसीहा मानता है और उनके किए गए हर अत्याचार पर आँखें मूंदता है जैसे इन लड़कियों से आँखें मूँद रखी हैं!
इन पीडाओं की ओर न ही कथित सुधारकों द्वारा किया गया कोई काम याद आता है और न ही किसी शिक्षिका आदि द्वारा किया गया महान कार्य, न ही किसी ने अंग्रेजों को इस कुकृत्य के लिए दोषी ठहराया है!