झारखण्ड से ऐसा मामला सामने आ रहा है, जो परिवार के अनुसार लव जिहाद तो है ही साथ ही अवैध सम्बन्धों को सामान्य बताए जाने का भी दुष्परिणाम है। एक विवाहित महिला ममता देवी की उसके आशिक ने हत्या कर दी। रामगढ़ जिले के बरकाकाना ओपी क्षेत्र के भादवाटांड में एक महिला की हत्या कर दी गयी। मृतका की बहन जया देवी की अनुसार उसकी बहन की हत्या उसके आशिक रॉकी बाबा उर्फ़ अरमान खान ने की थी।
मीडिया के अनुसार ममता देवी की बहन ने बताया कि उसकी बहन ममता देवी विवाहिता थी और उसकी तीन साल की बेटी भी है। टीवी९ के अनुसार रॉकी ने नाम बदलकर महिला को अपने जाल में फंसाया था!
उसके जीजा निखिल कुशवाहा ने बताया कि “1 साल से हजारीबाग के रहने वाले अरमान खान ने मेरी बहन ममता देवी को अपने प्यार के जाल में फंसा रखा था, लगातार उसे फूल के माध्यम से प्रताड़ित किया करता था, आरोपी रॉकी के दबाव के कारण ही महिला अपने पति को दिल्ली में छोड़कर 14 जनवरी को भदवाटांड़ घुटूवा में अपनी बहन जया के घर आ गई थी।”
आरोपी अरमान खान ममता देवी पर लगातार दबाव डाल रहा था कि वह अपने पति को छोड़ दे। और उसके इसी दबाव के चलते ममता देवी का अपने पति रंजन से भी आए दिन झगड़ा होता था। ममता की बहन की अनुसार पिछली पंद्रह दिनों से वह लोग परिवार के साथ दिल्ली में ममता के पास थे और कुछ ही दिन पहले लौटे थे।
मृतका ममता देवी की बहन जब अपने पति के साथ शनिवार को कहीं गयी थी अरमान उर्फ़ रॉकी उनके घर आ गया और उसकी बहन ममता देवी को लाठी डंडे से मार मार कर अधमरा कर दिया।
जब जया देवी और उसका पति निखिल वापस लौटे तो उन्होंने देखा कि वह लहूलुहान पड़ी है और जब वह ममता देवी को लेकर अस्पताल गए तो डॉक्टर्स ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
यह घटना जहाँ परिवार के अनुसार लव जिहाद की ओर संकेत कर रही है तो वहीं यह यह भी बता रही है कि समाज में मूल्यों का कितना क्षरण हो गया है। जो दिनों दिन अवैध सम्बन्धों को कानूनी संरक्षण दिया जा रहा है, यह उसका भी परिणाम है।
एक यह विमर्श कि शादी का अर्थ यह नहीं कि पति का अधिकार पत्नी पर हो गया, महिलाओं के लिए बहुत हानिकारक है। क्योंकि यह विमर्श उन्हें नायक और खलनायक के बीच अंतर भुलाने को लेकर विवश कर देता है। वह यह समझ ही नहीं पाती हैं कि उनका पति और पारिवारिक जीवन ही उनका जीवन है। आजादी का विमर्श कि पति कौन होता है रोकने वाला, उन्हें एक ऐसे गर्त में लेकर जाता है, जहां से वापस आना सहज संभव नहीं होता।
ओटीटी एवं धारावाहिकों की भूमिका
ऐसा नहीं है कि अभी ही ऐसे सम्बन्धों की बाढ़ आई है। पहले भी अवैध सम्बन्ध हुआ करते थे और यदा कदा पकड़ में आया करते थे। परन्तु पहले सामाजिक लोकलाज एवं सामजिक बहिष्कार का भय हुआ करता था और कहीं न कहीं यह मर्यादाओं को बनाए रखने मी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था।
परन्तु समय के साथ जैसे जैसे मनोरंजन के साधन के रूप में टीवी का विकास होता गया, वैसे वैसे ही महिलाओं के दिल में अपने ही विवाह के प्रति एक घृणा का विकास होता गया और खान तिकड़ी अर्थात शाहरुख, सलमान एवं आमिर खान के अभिनय से सजी फिल्मों ने उनके दिलों में नायक की छवि जैसे इन तीनों की ही स्थापित कर दी।
जहाँ हमारी बेटियों एवं महिलाओं के लिए हिन्दू महिला चरित्र नायिका के रूप मी होनी चाहिए थीं, वहीं उनकी नायिकाएं होने लगी ऐसी अभिनेत्रियाँ जिनका वैवाहिक जीवन एक गॉसिप का हिस्सा रहता था।
टीवी पर ऐसे धारावाहिक आने लगे जिनमें दो तीन शादियाँ आम बात होती थीं। महिला चरित्रों के अफेयर्स बहुत आम बात हुआ करते थे। और टीवी और मोबाइल के चलते इनकी पहुँच घर-घर तक है।
मुस्लिम युवकों से प्यार ही सच्चा प्यार समझा जाता है और उसे ही क्रांति माना जाता है। जैसे फिल्म अतरंगी से, में सोहा अली खान जब पकडूआ विवाह के बाद धनुष के साथ जाती है तो सच्चे इश्क की परिभाषा बताते हुई क्या कहा था, वह सुना जा सकता है?
विवाहित महिलाओं के मन में अपने विवाह से ऊब और नए प्रेमियों से इश्क करना जैसे आम बात ही बना दी गयी है और इसमें और किसी का नहीं बल्कि महिलाओं का ही शोषण सबसे अधिक होता है। उनकी मानसिक शांति से लेकर सामाजिक प्रतिष्ठा ही दांव पर लग जाती है और साथ ही वह कई अपराधों का भी शिकार हो जाती हैं।
जहां समाज में नैतिक मूल्यों की बात करना पिछड़ापन माना जाने लगा है और महिलाओं का अपने पति एवं विवाह के प्रति निष्ठा को भी पिछड़ापन माना जाने लगा है और विवाहेतर संबंधों को आधुनिकता का प्रतीक माना जाने लगा है, ऐसे में महिलाओं की इस प्रकार हत्याओं के मामले भी अधिक सामने आने लगे हैं।
जैसा अभी हाल ही में बिहार में देखा था जिसमें एक महिला का पति बाहर नौकरी करता था और उसका प्यार किसी दानिश आलम से हो गया था और फिर दानिश आलम ने उसे जलाने का प्रयास किया था।
ऐसी कई घटनाएं सामने आती हैं, परन्तु समस्या यह है कि पति के साथ को पिछड़ा कहने वाली कठित आजादी ब्रिगेड की औरतें कभी भी उन महिलाओं के लिए आवाज नहीं उठाती हैं, जो उनकी आजादी के जहर का शिकार होती हैं!