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Thursday, April 25, 2024

राजस्थान में सीए ने की आत्महत्या, लगाया- एससी/एसटी एक्ट में परेशान करने का आरोप, बढ़ रहे हैं इस एक्ट के दुरूपयोग के मामले, परन्तु विमर्श से दूर क्यों है इनकी पीड़ा?

राजस्थान से एक अत्यंत ही झकझोरने वाला समचार आया है, जिसमें 25 वर्ष के एक युवक ने अपने फ़्लैट से कूदकर आत्महत्या कर ली। आखिर क्या कारण होगा कि एक युवक, जिसके कंधे पर परिवार का उत्तरदायित्व था, उसने आत्महत्या कर ली? उसने आत्महत्या का कारण बताते हुए पत्र भी लिखा है, जो ऐसा भावुक है जिसे पढ़कर कोई भी अपनी खुद को रोने ने रोक नहीं सका। पुलिस अधिकारी भी अपने भावों पर नियंत्रण नहीं रख सके थे।

माँ को एससीएसटी एक्ट में फंसा हुआ देखकर था परेशान

25 वर्षीय रक्षित के पिता का कपड़ों का व्यापार था, जो कोरोना के चलते ठप्प हो गया था और इसके बाद रक्षित पर ही परिवार चलाने का उत्तरदायित्व था। रक्षित अपनी माँ से भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ था और यही कारण था कि वह पिछले कुछ दिनों से परेशान था। दरअसल उसकी माँ पर किसी भीम सिंह एससीएसटी अधिनियम का झूठा मामला दर्ज कराया था और रक्षित की माँ परेशान हो रही थीं। इसे लेकर वह परेशान था और इसी कारण उसने आत्महत्या कर ली।

अपने सुसाइड नोट में उसने लिखा है कि

“इस दुनिया में शक्तिशाली लोग हम जैसे मिडिल क्लास लोगों को दबाते हैं। भीम सिंह नाम के व्यक्ति ने मेरे परिवार पर झूठे 420 के केस लगाए। जयपुर और भरतपुर में केस कर दिए। इसके चक्कर में हमारा परिवार इतना परेशान है कि देख नहीं सकता। मेरी मां के खिलाफ तक केस कर दिया। उसका साथ भरतपुर के डिप्टी सतीश वर्मा ने पूरा दिया। आए दिन ये लोग हमें परेशान करते हैं। टीम भेजते हैं। हम लोग कोई क्रिमिनल नहीं हैं। मेरी मां के खिलाफ कार्रवाई की। हमने किसी को कुछ नहीं कहा। फिर भी इन लोगों ने SC-ST का फर्जी केस भरतपुर के सेवर थाने में कर दिया। मैं तो अब हूं नहीं। अब प्लीज मेरे पर परिवार को बचाएं।“

रक्षित का मामला न ही अकेला है और न ही नया। हाल ही में जालोर में भी हमने देखा था कि कैसे शिक्षक द्वारा थप्पड़ मारे जाने की घटना के चलते बच्चे की मृत्यु को जातिवाद से जोड़ दिया था। जबकि मटके वाली कहानी पूरी तरह से संदिग्ध है।

तीन सप्ताह पहले ही राजस्थान में एक युवा व्यापारी ने इसी कारण आत्महत्या की थी

राजस्थान में ऐसे झूठे मामले कई सामने आ रहे हैं। दुर्भाग्य की बात यही है कि इस क़ानून के चलते हिन्दू युवक आत्महत्या कर रहे हैं। और इससे भी बड़ा दुर्भाग्य कि उनकी पीड़ा कोई सुनने वाला नहीं है। यह कानून हिन्दू युवकों के लिए एक ऐसा जाल होता जा रहा है, जिसके तले हिन्दू एकता ही प्रश्नों के घेरे में आ गयी है।

राजस्थान में चुरू से भी पिछले दिनों ऐसा ही एक मामला आया था, जिसमें एक प्रखर हिन्दू युवक ने इस कारण आत्महत्या कर ली थी क्योंकि उसे एक महिला और उसके चार साथी मिलकर एससीएसटी एक्ट एवं बलात्कार के मामले में फंसाने की धमकी दे रहे थे। वह ज्वेलर था और पूरी ज़िन्दगी सोने चांदी को जोड़ने वाला व्यक्ति अपनी देह को टुकड़े टुकड़े कर के चला गया।

जागरण के अनुसार उसने फेसबुक पर सुसाइड नोट में एक कपडा व्यापारी एवं महिला पर आरोप लगाते हुए कहा कि  दोनों उसे अनुसूचित जाति,जनजाति एक्ट और दुष्कर्म के मामले में फंसाने की धमकी दे रहे हैं। उसने लिखा कि इज्जत के भय से मैने उन्हे 70 हजार रुपये भी दे दिए। लेकिन अब उनकी मांग बढ़ती जा रही है।

उसके पास एक महिला ने कुछ गहने गिरवी रखे थे, जिसके बदले में उसने उसे कुछ रूपए दिए थे। जब नियत समय में महिला ने पैसे वापस नहीं दिए तो उसने वह गहना प्रयोग में ले लिया। मगर उसके बाद महिला पुलिस के साथ आई तो उसने मानवता के नाते एक नया गहना बनाकर देने की बात कही, मगर महिला पुलिस के पास पहुँच गयी और कहा कि उसने उत्तम के पास नौ फुलड़े और छ: मोती गिरवी रखें थे।

उसके बाद महिला और उसका साथी राम स्वरुप खटिक उत्तम को एससीएसटी एक्ट एवं बलात्कार के मामले फंसाने की बात करने लगे। उन्होंने उसे धमकी थी, जिसके चलते उसने 70,000 रूपए भी दे दिए। मगर दोनों वहीं नहीं रुके और उसे और परेशान करने लगे। जिसके चलते उसने ट्रेन के आगे कूदकर आत्महत्या कर ली!

मुख्य आरोपी को हिरासत में लिया जा चुका है!

किशोर भी कर रहे हैं आत्महत्या

यदि ऐसा लगता है कि प्रखर हिन्दू युवक ही आत्महत्या कर रहे हैं, तो यह उससे भी बड़ा झूठ है। उत्तर प्रदेश में कन्नौज में कक्षा बारह में पढ़ रहे अभिनव प्रताप बैस ने जेल में ही आत्महत्या कर ली थी। अभिनव पर एक दलित महिला ने एससीएसटी एक्ट के अंतर्गत मुकदमा दर्ज कराया था।

मीडिया के अनुसार अभिनव अपने परिवार का इकलौता बेटा था। 24 मार्च को उसे जेल हुई थी, तो उस दिन उसका पहला पेपर था। अभिनव के पिता का कहना है कि निजी दुश्मनी के चलते उनके बेटे पर यह आरोप लगाए गए थे। हालांकि मजिस्ट्रेट जांच की आदेश दिए गए थे, परन्तु अभिनव अब इस दुनिया में नहीं है, अब जाँच कुछ भी होती रहे!

यह कुछ ही उदाहरण हैं। परन्तु पिछले कई वर्षों से मीडिया में न जाने ऐसे कितने मामले हैं, जो खोए जा रहे हैं, क्योंकि उनके चलते किसी को वोट नहीं मिलेंगे, उनके कारण सामाजिक न्याय की अवधारणा नहीं स्थापित होगी।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने वकीलों पर ही कदम उठाते हुए सीबीआई को पचास मामलों की जांच सौंपी है

इसी सन्दर्भ में उत्तर प्रदेश में प्रयागराज से एक बहुत ही महत्वपूर्ण समाचार आया है और वह यह कि यहाँ पर उच्च न्यायालय ने प्रयागराज के वकीलों के खिलाफ ही 50 मुकदमों की जांच सौंप दी है।

https://hindi.livelaw.in/category/top-stories/allahabad-hc-orders-cbi-probe-into-fake-cases-lodged-against-advocates-206898

मीडिया के अनुसार

“वकीलों के खिलाफ रेप और एससी-एसटी (SC-ST Act) की गंभीर धाराओं के तहत ये केस दर्ज कराए गए हैं। आरोप है कि वकीलों पर केस की पैरवी ना करने और धन उगाही के लिए दबाव बनाने की वजह से फर्जी मुकदमे दर्ज कराए गए हैं।”

अर्थात एक संगठन बहुत ही सोचे समझे तरीके से वकीलों के खिलाफ फर्जी मुक़दमे दर्ज कराकर उनका उत्पीडन कर रहा था, और उनका यह उत्पीडन हो किस कारण रहा था, उनका उत्पीडन हो रहा था मात्र इस कारण कि वह वकील एससीएसटी एक्ट में फंसाए गए किसी भी पीड़ित पक्ष की ठीक से पैरवी न करें और केस दर्ज होने के बाद समझौते के नाम पर पैसे खर्च करें।

राजस्थान में भी झूठे एससीएसटी अधिनियम के मामले बहुत सामने आ रहे हैं और पुलिस ने कहा है झूठे मामलों पर कदम उठाया जाएगा

राजस्थान में एससीएसटी एक्ट के दुरूपयोग के मामले सामने आते हैं। मार्च 2022 में राजस्थान में उन लोगों पर सख्त कदम उठाने के दिशा निर्देश दिए गए थे, जो झूठा मुकदमा करते हैं। मीडिया के अनुसार एडीजी क्राइम डॉ. रवि प्रकाश मेहरड़ा ने बताया कि प्रदेश में वर्ष 2021 में अनुसूचित जाति अत्याचार के कुल 7524 प्रकरण दर्ज किए गए। जिसमें से 3224 प्रकरणों में पुलिस ने कोर्ट में एफआर पेश की, यानी कि अनुसूचित जाति अत्याचार के 50 फीसदी प्रकरण झूठे पाए गए। इसी प्रकार से अनुसूचित जनजाति अत्याचार के तहत प्रदेश में 2121 प्रकरण दर्ज किए गए, जिसमें से 925 प्रकरणों में पुलिस ने कोर्ट में एफआर पेश की। यानी कि अनुसूचित जनजाति अत्याचार के 53 फीसदी प्रकरण झूठे पाए गए।

उत्तर प्रदेश में ही एक ब्राहमण युवक को बंधक बनाकर रखा गया था और जबरन पेशाब पिलाई गयी थी, परिवार ने इच्छा मृत्यु माँगी थी

अब जरा उस स्थिति की कल्पना करें जिसमें एक युवक को कई दिनों तक अपहृत करके रखा जाता है, मारा जाता है और 6 महीनों तक पेशाब पिलाई जाती है। और अब परिवार का रहना मुश्किल है। परिवार ने जुलाई में माननीय मुख्यमंत्री योगी जी से इच्छा मृत्यु की मांग की थी।

सार्वजनिक विमर्श और चर्चाओं से यह सब मामले गायब क्यों हैं?

प्रश्न इस बात का है ही नहीं कि क़ानून अपना काम करेगा, क़ानून तो करेगा ही, जैसा विष्णु जी के साथ हुआ था, उन्हें 20 वर्ष बाद इस एक्ट के फंदे से मुक्ति मिली, परन्तु उस बीच उनका सब कुछ नष्ट हो गया। ललितपुर निवासी विष्णु तिवारी, जिन्हें बिना किसी दोष के बीस वर्ष जेल में बिताने पड़े थे उन्होंने बताया कि जेल की सजा के दौरान ही परिवार में चार मौतें हो गईं। पहले मातापिता की और फिर दो भाइयों की!

दुर्भाग्य यह कि विष्णु को किसी के भी अंतिम संस्कार में नहीं जाने दिया गया।

परन्तु उससे भी बड़ा दुर्भाग्य यह कि मीडिया और वैचारिकी से विष्णु का विमर्श गायब है। मीडिया से रक्षित का विमर्श गायब है, सोशल मीडिया में रक्षित या विष्णु की कहानियाँ उस प्रकार से सम्वेदना नहीं पा पाती है, जो उन्हें मिलनी चाहिए,

वह राजनीतिक विमर्श की सूखी जमीन पर दम तोड़ देती है। जबकि यह संविधान में लिखा है कि जाति के आधार पर भेदभाव नहीं होगा तो यह नियम सामान्य वर्ग के लिए लागू क्यों नहीं है? फिरोजाबाद में तो इस क़ानून के चलते लोग सामूहिक पलायन तक की धमकी दे चुके थे। परन्तु मुस्लिमों के कारण पलायन का मुद्दा इतना उठता है, फिर इस सम्बन्ध में इतनी हैरान करने वाली चुप्पी क्यों?

विष्णु, रक्षित, फिरोजाबाद के गोथुआ गांव के वह दस परिवार, अभिनव बैस, भगवा धवज उठाने वाले उत्तम, इन सबकी पीड़ा हमारी सामूहिक पीड़ा क्यों नहीं बन पा रही है? क्या पीड़ाएं भी राजनीतिक विमर्श के चलते ही उठाई जाएँगी? क्या पीडाओं पर चर्चा भी अब इस विचार से होगी कि यह मुद्दा उठाने से अमुक दल या अमुक दल को वोट न मिल जाएं?

क्या हिन्दू एकता मात्र राजनीतिक है? या फिर उसमें सभी वर्गों का आदर एवं सुरक्षा सुनिश्चित है? यह नहीं कह रहे कि समाज के वंचित वर्ग के साथ भेदभाव नहीं हो रहा, प्रश्न यह है कि क्या इस भेदभाव को कोई समाप्त करने के स्थान पर और बढ़ा रहा है और यह सुनिश्चित कर रहा है कि हिन्दू समाज कभी एक हो ही न पाए? प्रश्न यह है और प्रश्न इस बात सबसे महत्वपूर्ण है कि विमर्श में यह पीड़ा कब आएगी?

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