भारत में प्रगतिशील कहलाने का सबसे बड़ा तरीका यही है कि हिन्दुओं को या फिर हिन्दू धर्म को गाली दे दी जाए और हिन्दू धर्म को पिछड़ा बताया जाए, हिन्दुओं को शान से काफिर कहा जाए या फिर उनके खिलाफ कुछ भी कह दिया जाए, उनके पलक पाँवड़े बिछाए जाते हैं, और उनके लिए हर प्रकार का स्वागत किया जाता है। जैसा मुनव्वर फारुकी के साथ हो रहा है। मुनव्वर फारुकी का शो हाल ही में हैदराबाद में हुआ था और जिसे लेकर भारतीय जनता पार्टी के विधायक टी राजा ने विरोध किया था।
और जिसे लेकर उन्होंने एक वीडियो में कुछ ऐसा कहा जिसे मुस्लिम समाज के लोगों ने अपने पैगम्बर का अपमान माना और फिर भीड़ का प्रदर्शन करते हुए उनके विरुद्ध सर तन से जुदा के नारे भी लगाए।
जबकि तेलंगाना सरकार से बार बार अनुरोध किया जा रहा था कि वह मुनव्वर फारुकी का शो आयोजित करने की अनुमति न दें, परन्तु चूंकि हिन्दू भगवानों का उपहास उड़ाने वाले लोग ही कथित प्रगतिशील कहलाते हैं। जबकि धर्म निरपेक्षता या कहें कथित प्रगतिशीलता का अर्थ होता है कि सभी धर्मों के प्रति निरपेक्ष रहना, न कि जिस धर्म को आप मानते नहीं हैं, उसके आराध्यों के विषय में कुछ कहना।
परन्तु मुनव्वर ने बार बार बोला है, अतीत में बोला है और लोगों का गुस्सा इस बात को लेकर है। क्या हिन्दुओं के गुस्से का कोई मोल नहीं है? शायद नहीं है, तभी मुनव्वर के शो के लिए पुलिस व्यवस्था की व्यवस्था की जाती है। और जब उसके विरोध में कोई वीडियो बनाता है और वह भी बिना किसी नाम के, तो उसे लेकर ऐसे प्रदर्शन किए जाते हैं।
उससे भी बड़ी बात यह कि मीडिया के दबाव या फिर स्वयं पर कट्टरपंथी या मुस्लिम विरोधी होने का टैग लगने ने डर से भाजपा ने भी टी राजा सिंह को पार्टी से निलंबित ही नहीं किया, बल्कि उनसे दस दिनों में स्पष्टीकरण भी माँगा
टी राजा को इस बात को लेकर हिरासत में भी ले लिया था गया, क्योंकि मुस्लिमों ने टी राजा के खिलाफ प्रदर्शन किया था परन्तु शाम होते होते टी राजा को न्यायालय से जमानत मिल गयी। क्योंकि उन्होंने पूरे बयान में कहीं भी किसी का नाम नहीं लिया था और इस तर्क को न्यायालय ने मना और साथ ही गिरफ्तारी की प्रक्रियाओं का पालन भी नहीं किया था
न्यायालय ने टी राजा की तत्काल रिहाई के आदेश दिए और हिरासत में लिए जाने की एप्लीकेशन लौटा दी
यह दुखद है एवं यह विडंबना है कि भारत में हिन्दुओं और उनके आराध्यों के अपमान पर कोई भी कार्यवाही नहीं की जाती है, बल्कि उसे मजाक, क्रांति आदि आदि माना जाता है। जिसका जो भी मन होता है वह उसे बोल देता है, और स्टैंड अप कॉमेडी में तो अधिकाँश ऐसे ही कंटेंट कूल माने जाते हैं, जिनमें हिन्दू-विरोध हो या फिर हिन्दुओं के आराध्यों का अपमान होता है।
मुनव्वर फारुकी ने एक नहीं कई बार हिन्दुओं के आराध्यों का अपमान किया है यहाँ तक कि उसने गोधरा ट्रेन में जलते हिन्दुओं पर भी उपहास किया है। परन्तु उसे कथित प्रगतिशीलों का साथ मिलता है और उसके लिए हर प्रकार की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है, हां उसकी प्रतिक्रिया में कुछ भी बोलना एक समुदाय की दृष्टि में अपराध बन जाता है।
जैसे नुपुर शर्मा के मामले में हुआ था। नुपुर शर्मा को जिसने भड़काया उसे लेकर कोई भी बात नहीं की गयी और वह अपनी सामान्य ज़िन्दगी जी रहा है, मगर नुपुर शर्मा? नुपुर अब शायद ही कभी अपनी सामान्य ज़िन्दगी में वापस आ पाएगी!
और उसके बाद जैसे भारतीय जनता पार्टी ने अपने नेताओं पर कदम उठाए हैं, उसे देखकर लोग भी हैरान और परेशान हैं। उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि आखिर पार्टी को हो क्या गया है? सामान्य यूजर्स भी सोशल मीडिया पर प्रश्न कर रहे हैं कि आखिर हिन्दू देवी देवताओं का अपमान करने वालों को कब सजा मिलगी?
लोग टी राजा के समर्थन में आ रहे हैं और यह कह रहे हैं कि टी राजा ने किसी का नाम भी नहीं लिया, जबकि मुनव्वर राना तो खुलकर हिन्दू आराध्यों पर बोलता है
लोग इसी बात पर हैरानी व्यक्त कर रहे हैं कि आखिर ऐसा क्यों होता है कि हिन्दुओं के आराध्यों पर टिप्पणी करने वाले स्वतंत्र रहते हैं और हिन्दुओं के खिलाफ सर तन से जुदा के नारे लगाए जाते हैं
यह वास्तव में अत्यंत हतप्रभ करने वाली बात है कि आखिर ऐसा क्या कारण है कि हिन्दुओं को एक ओर सहिष्णुता और समावेश की घुट्टी पिलाई जाती है तो वहीं दूसरी ओर उनके आराध्यों पर टिप्पणी करने वाले मात्र उनकी सहिष्णुता के आधार पर छोड़ दिए जाते हैं कि हिन्दू धर्म तो अपनी आलोचना को लेकर उदार है! हिन्दू धर्म अपनी आलोचना को लेकर उदार है, बशर्ते वह आलोचना वह व्यक्ति कर रहा हो जो उसका आदर करता है।
भगवान को मानने वाला भक्त ही भगवान के साथ ठिठोली कर सकता है, न कि वह व्यक्ति जो भगवान के अस्तित्व पर भी विश्वास नहीं करता और जो काफिरों से नफरत करता है।
टी राजा को आज जमानत तो मिल गयी है, यह देखना होगा कि भारतीय जनता पार्टी का रुख इस पर क्या रहता है? क्या अब पार्टी सर तन से जुदा नारे लगाने वालों के संकेतों पर ही अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं के भाग्य का निर्धारण करेगी? प्रश्न कई उठ खड़े हुए हैं और इनका उत्तर अब भारतीय जनता पार्टी को ही देना है कि क्या अब वास्तव में सर तन से जुदा नारे लगाने वाले ज़ोम्बीज़ की भीड़ ही उनका नैरेटिव निर्धारित करेगी या पार्टी अपने कार्यकर्ताओं के पक्ष में मुंह खोलेगी?