जब भी 26 फरवरी आता है, हिन्दुओं के लिए दर्द की एक ऐसी लहर दोबारा से उत्पन्न होती है, जो बार बार उन्हें उन जलती हुई देहों की याद दिलाती है जो गोधरा स्टेशन पर जिंदा ही जल गयी थीं। यह कहना गलत होगा कि जल गयी थीं,बल्कि यह कहना उचित होगा कि उन्हें जलाया गया था। उन्हें उस नफरत में जलाया गया था जो नफरत प्रभु श्री राम से वामपंथी और कट्टर इस्लामी करते हैं। उन्हें उस घृणा ने जलाया था, जो इतने वर्षों से हिन्दुओं के अस्तित्व के प्रति थी।
वामपंथी हों या कट्टर इस्लामी, प्रभु श्री राम से प्रेम करने वाले या अपने लोक और संस्कृति से प्रेम करने वाले लोक से इनकी घृणा अपने चरम पर रहती है। और इनकी घृणा के कारण गोधरा के स्टेशन पर जो कारसेवकों की जो बोगी जली थी, उसकी आंच न्यायालय के निर्णय के बाद भी उतनी ही ताजी है, वह बार बार हिन्दुओं को उतना ही जला जाती है, जितना उस दिन जलाई थी।
यह लोग अपने कुबौद्धिक तर्कों से बार बार यह स्थापित करने का प्रयास करते हैं, कि कहीं कुछ नहीं हुआ था, और जो हुआ था वह महज हादसा था, लोग अपने आप जले थे। जबकि यह न्यायालय में प्रमाणित हो चुका है कि कैसे उस बोगी में आग लगाई गयी थी, कैसे जानबूझकर उसे जलाया गया था, फिर भी अकादमिक रूप से और कथित बौद्धिक लिंचिंग में उन्हें लिंच किया जाता है। उन्हें बार बार मारा जाता है, उन्हें बार बार जलाया जाता है।
3 मार्च को द वायर में प्रेम शंकर झा ने एक बड़ा लेख लिखते हुए यह स्थापित करने का प्रयास किया कि कैसे गोधरा जब हुआ था, उससे पहले भारतीय जनता पार्टी की स्थिति खराब थी और कैसे राजनीतिक लाभ के लिए इस दुर्घटना का प्रयोग किया गया। वह लिखते हैं कि यह मुस्लिमों द्वारा किया गया षड्यंत्र था, इसे साबित करने के लिए प्रमाण गढ़े गए।

और फिर उन्होंने वर्ष 2005 में तत्कालीन रेल मंत्री द्वारा बनाई गयी यूं सी बनर्जी कमीशन की रिपोर्ट का उल्लेख किया और पुन: यह प्रमाणित करने का प्रयास किया कि जस्टिस बनर्जी की रिपोर्ट ने यह प्रमाणित कर दिया था कि आग कहीं बाहर से नहीं लगी थी। हालाँकि वह यह नहीं कह रहे हैं कि उस समय ही इस रिपोर्ट को न्यायालय द्वारा अवैध घोषित किया जा चुका था।
न्यायालय ने कहा था कि जब राज्य सरकार द्वारा नियुक्त आयोग पहले से ही जांच कर रहा था तो रेलवे एक समानांतर आयोग कैसे बना सकता है और साथ ही न्यायालय ने यह भी कहा था कि इसे बनाने का आधार भी दुराग्रह पूर्ण है।
परन्तु यह बहुत ही हैरानी भरी बात है कि प्रेम शंकर झा, एक अवैध आयोग की उस फाइंडिंग के आधार पर लेख लिख रहे हैं, जिसे इस देश की न्यायप्रणाली द्वारा पहले ही अस्वीकार किया जा चुका है, जो अवैध था और जो एक राजनीतिक थ्योरी को गढ़ने के लिए ही बनाया गया था। परन्तु प्रेम शंकर झा जैसे कई हैं, जो इसी को आधार बनाकर अपने लेख लिखते हैं। और यह अन्याय उन सभी 59 निर्दोष लोगों के साथ किया जा रहा है, जो मजहबी घृणा का शिकार हुए थे।
अब देखते हैं कि गोधरा काण्ड पर आए हुए न्यायालय के निर्णय में क्या लिखा था:
“[26] साजिशकर्ता हाजी बिलाल, फारुक भाना, अब्दुल रजक और सलीम पानवाला के बीच अमन गेस्ट हाउस में हुई बैठक के दौरान पिछले दिन यानी 26-2-2002 को साजिश रची गई थी।
[27] योजना के अनुसार अब्दुल रजक कुरकुर और सलीम पंवाला दोनों 26-2-2002 को रात करीब 10 बजे मोपेड स्कूटी से कालाभाई पेट्रोल पंप गए थे और उनके साथ अन्य साजिशकर्ता सलीम जर्दा, शौकत अहमद चरखा उर्फ लालू, इमरान अहमद भाटुक उर्फ शेरू, हसन अहमद चरखा, महबूब खालिद चंदा और जाबिर बिन्यामीन बेहरा भी थे जो एक थ्री व्हीलर टेंपो नंबर जीजे-6 यू- 8074 में थे और उन्होंने 7अलग-अलग कारबॉय में 140 लीटर पेट्रोल खरीदा और फिर अब्दुल रजक कुरकुर के घर अमन गेस्ट हाउस के पीछे रख दिया। तत्पश्चात उक्त अमन गेस्ट हाउस के कक्ष क्रमांक 8 में पुनः इन षडयंत्रकारियों की बैठक हुई।
[29] उक्त निर्देश के अनुसार हमलावरों ने कोचों के बाहर स्थित एसीपी की डिस्क को मोड़कर ‘ए’ केबिन के पास ट्रेन को रोक दिया।
[30] फिर तुरंत, अब्दुल रजक कुरकुर और फरार आरोपी सलीम पंवाला अपने साथ एक पेट्रोल युक्त कारबॉय लेकर लाल रंग की एम-80 बजाज मोपेड स्कूटी पर ‘ए’ केबिन की ओर बढ़े।
[32] महबूब याकूब मीठा उर्फ पोपा, महबूब खालिद चंदा, अयूब अब्दुलगनी पटलिया, यूनुस अब्दुलहक घड़ियाली आदि हथियारों के साथ कोच एस-2 के पास गए और खिड़की के शीशे तोड़ने लगे। और उक्त कोच एस-2 के अंदर एक जलता हुआ कपडा भी फेंका।
[33] अब्दुल रजक कुरकुर और फरार आरोपी सलीम पंवाला कोच एस -6 के पास गए और टूटी हुई खिड़की से कोच एस -6 के बंद दरवाजे (इंजन / सामने की ओर) के पास पेट्रोल डाला।
[34] महबूब अहमद यूसुफ हसन @ लतीको, जिनके पास एक बड़ा चाकू (मांस काटने के लिए छरो) था, ने पहले कारबॉय के ऊपरी हिस्से में छेद किए और फिर, कोच एस -7 के कैनवास वेस्टिब्यूल को कोच एस-6 और एस-7 (गलियारा) के बीच में काटा।।
[35] महबूब अहमद हसन और जाबिर बिन्यामीन बेहरा उक्त गलियारे की जगह पर चढ़ गए और लातों आदि से बल प्रयोग कर कोच एस -6 के पूर्वी हिस्से के स्लाइडिंग दरवाजे को खोल दिया।
[36] महबूब अहमद हसन उर्फ लतीको, जाबिर बिन्यामीन बेहरा और सौकत अहमद चरखा उर्फ लालू फिर उक्त स्लाइडिंग दरवाजे से पेट्रोल युक्त कारबॉय के साथ कोच एस -6 में प्रवेश किया।
[37] फरार आरोपी सौकत लालू ने कोच एस-6 के ईस्ट-साउथ कॉर्नर का दरवाजा खोला, जहां से बाकी तीन यानी इमरान शेरू, इरफान भोभा, रफीक भाटुक कारबॉयज के साथ कोच में घुसे और पेट्रोल डाला।
[38] रामजानी बिन्यामीन बेहरा और हसन लालू कोच के बाहर से खिड़कियों की ओर पेट्रोल फेंक रहे थे।
[39] हसन अहमद चरखा उर्फ हसन लालू ने कोच एस-6 में जलते हुए कपड़ों से आग लगा दी।
[42] यदि कोई योजना नहीं होती, तो पांच से छह मिनट के भीतर मुस्लिम व्यक्तियों को घातक हथियारों के साथ इकट्ठा करना और रेलवे ट्रैक पर ‘ए’ केबिन के पास पहुंचना संभव नहीं होता।
[47] गोधरा सांप्रदायिक दंगों के अपने पिछले इतिहास के लिए जाना जाता है।
[48] गोधरा के लिए, हिंदू समुदाय के लोगों को जिंदा जलाने की यह पहली घटना नहीं है।
यह तो है न्यायालय का निर्णय! परन्तु यह देखना बहुत ही हैरानी भरा है और चौंकाने वाला है कि हमारे बच्चों को प्रेम शंकर झा यूसी बनर्जी की रिपोर्ट को उद्घृत कर रहे हैं, जिसे गुजरात उच्च न्यायालय पहले ही अवैध घोषित कर चुका है।
और दुर्भाग्य की बात यही है कि हमारी युवा पीढ़ी की दृष्टि में बौद्धिक रहे यह लोग जो विमर्श उत्पन्न करते हैं, उसीके आधार पर मुनव्वर फारुकी जैसे मजहबी लोग गोधरा पीड़ितों को “बर्निंग ट्रेन” कहकर उपहास करते हैं और एक बार फिर से वही जलांध हवाओं में तैरने लगती है, जो आज से कई वर्ष पहले हवाओं में घुलकर वह जलन दे गयी थी, जो आज तक बनी हुई है और हर साल वह जलांध बढ़ती ही जाती है!