यूट्यूब ने 2 अप्रेल को पाकिस्तान के मरहूम डॉ इसरार अहमद के मजहबी विचारों को फैलाने वाले यूट्यूब चैनल को यूट्यूब ने यहूदियों के प्रति नफरत फैलाने के आरोप में हटा दिया है। मीडिया के अनुसार यूट्यूब ने जिस चैनल को ब्लॉक किया है, उसके 2।9 मिलियन सदस्य हैं तो वहीं उनके 3916 वीडियोंज को 351।2 मिलियन लोगों ने देखा है।
यहूदियों की पत्रिका “द ज्यूस क्रोनिकल” के अनुसार वह कई दिनों से यूट्यूब से अनुरोध कर रहे थे कि नफरत फैलाने वाला कंटेंट हटाए, परन्तु पूर्व मॉडरेटर “खालेद हसन” जिसे दो महीने पहले तक अरबी भाषा में चरमवाद की पहचाना करने के लिए नियुक्त किया गया था, उसने यूट्यूब पर आरोप लगाया कि वह “अपनी कानूनी और नैतिक जिम्मेदारियों को कम कर रहा है!”
यहूदियों के खिलाफ जहरीले कंटेंट को हटाने के लिए व्हिसलब्लोअर ने कई बार अनुरोध किया था, मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ। उन्होंने हैरान करने वाले खुलासे करते हुए कहा था कि
- यूट्यूब ने उन चेतावनियों को अनदेखा किया, जिसमें वीडियो यहूदियों के खिलाफ हिंसा फैला सकते थे। और इन चेतावनियों को अनदेखा करने के कुछ सप्ताह बाद ही ब्रिटिश आतंकवादी मलिक फैजल अकरम ने उन क्लिप्स को देखने के बाद टेक्सास में चार यहूदियों को बंधक बना लिया था।
- और यूट्यूब ने यह कहते हुए इजिप्ट के वैग्दी घोनिम के वीडियो को हटाने के अनुरोध को नकार दिया था, कि उसका नाम यूट्यूब की इन्टरनल वाचलिस्ट में नहीं है, जिसमें केवल 29 नाम हैं। जबकि वैग्दी को यूके ने प्रतिबंधित कर रखा है।
- इसके साथ ही जो सबसे महत्वपूर्ण बात व्हिसलब्लोअर ने बताई थी वह यह कि हसन ने बताया कि वह मिडिल ईस्ट के संघर्ष के बारे में किसी भी वीडियो को “फ्लैग” करना चाहता था, तो उसे फिलिस्तीन सहकर्मी से अनुमोदन लेना होता था।
- और साथ ही यूट्यूब ने जेरुशलम के टूर गाइड एली की हत्या का जश्न मनाने वाले वीडियो को भी हटाने से यह कहते हुए इंकार कर दिया था वह किसी भी आतंकी संगठन का लोगो प्रयोग नहीं कर रहे हैं
हसन ने यह कहा था कि यूट्यूब की नीति शर्मनाक है। वह दावा करते हैं कि वह आतंकवाद को महिमामंडित करने वाली और जातीय नफरत वाले कंटेंट को हटाएँगे, मगर कंपनी की गोपनीयता के पीछे वह एकदम अलग करते हैं। हसन के अनुसार “वह अपनी कानूनी और नैतिक जिम्मेदारियों से भाग रहे हैं। वह अपने यूजर्स से कहते हैं कि उनका प्लेटफोर्म सुरक्षित है, मगर वह लोगों को यह कहने की आजादी देते हैं, कि यहूदी दुष्ट होते हैं!”
पाकिस्तान के इसरार अहमद का चैनल देखकर भी फैजल प्रभावित हुआ था
पाकिस्तान के इसरार अहमद के वीडियो को देखकर भी यहूदियों पर हमला करने वाला मलिक फैजल प्रभावित हुआ था, ऐसा उसके दोस्तों और परिवारीजनों ने ज्यूज़ क्रोनिकल को बताया था।
अब यूट्यूब ने ज्युज़ क्रोनिकल को बताया कि “समीक्षा करने पर यह पाया गया कि इसरार अहमद के चैनल को नफरत फ़ैलाने वाले भाषणों की नीति का उल्लंघन करने के कारण हटा दिया गया है”
इसकी घोषणा होते ही पाकिस्तान में हलचल मच गयी है। तंज़ीम-ए-इस्लामी ने इसे इस्लामोफोबिया बता दिया है।
बीबीसी के अनुसार डॉक्टर इसरार के चैनल के एक पार्टनर आसिफ़ हमीद ने कहा कि
“डॉक्टर इसरार की ये तक़रीरें अब की नहीं है, वो कई साल पुरानी हैं। वो क़ुरान और हदीस की रोशनी में बात करते थे। क़ुरान में जो यहूदियों का ज़िक्र है उसका हवाला देते थे। उन्होंने कभी किसी को भटकाने की बात नहीं की। हमारा विरोध भी शांतिपूर्ण है। तंज़ीम-ए-इस्लामी क़ानून को हाथ में लेने की हर कार्रवाई की आलोचना करती है।”
मगर सबसे महत्वपूर्ण बात जो बीबीसी की रिपोर्ट में है वह यह कि यहूदियों के विरुद्ध घृणा का इस हद तक विस्तार करने वाले डॉ इसरार तंज़ीम-ए-इस्लामी के मुताबिक़ छात्र जीवन में अल्लामा इक़बाल और मौलाना अबुल आला मौदुदी से प्रभावित रहे।

अल्लामा इकबाल की कौमी मानसिकता के विषय में हमने बार-बार लिखा है, एवं प्रश्न भी उठाए हैं कि आखिर क्यों ऐसे व्यक्ति के नाम पर उर्दू दिवस मनाया जाता है, जिन्हें पाकिस्तान अपना “अब्बा’ अर्थात फादर मानता है! पाकिस्तान का मानना है और यह सत्य भी है कि इकबाल ही ऐसे व्यक्ति थे जिन्होनें वर्ष 1930 में इलाहाबाद में पाकिस्तान की स्पष्ट रूपरेखा बताई थी, और इसे पाकिस्तान के एक यूजर ने इकबाल दिवस पर व्यक्त भी किया था:
परन्तु मजे की बात यही है कि पाकिस्तान को मजहबी आधार देने वाले इकबाल, जिनसे प्रभावित हुए डॉ इसरार और डॉ इसरार से प्रभावित हुआ फैजल, जिसने यहूदियों को बंधक बनाया, उन्हें भारत के प्रगतिशील लेखकों ने “प्रगतिशील और सेक्युलर” घोषित किया एवं उनकी नज्में हमारे बच्चों को घोंट घोंट कर पिलाई जाती हैं। यह वही इकबाल हैं जिन्होनें वर्ष 1909 में अल्लाह से शिकवा करते हुए जो नज़्म लिखी थी, उसमे इस्लाम के कथित गौरव कि कितना उसने कत्लेआम किया है, वह बताया था, परन्तु फिर भी वह सेक्युलर हैं और इकबाल के बारे में बोलना भी इस्लामोफोबिया माना जाएगा, फिर भले ही वह सोमनाथ को गिराने वालों का इंतज़ार करते रहें!
वह शिकवा में खुदा से उलाहना कर रहे हैं कि याद कीजिये, इस्लाम के आने से पहले इस जहाँ का मंजर कैसा था?
“हम से पहले था अजब तेरे जहाँ का मंज़र
कहीं मस्जूद थे पत्थर कहीं माबूद शजर
ख़ूगर-ए-पैकर-ए-महसूस थी इंसाँ की नज़र
मानता फिर कोई अन-देखे ख़ुदा को क्यूँकर”
तुझ को मालूम है लेता था कोई नाम तिरा
क़ुव्वत-ए-बाज़ू-ए-मुस्लिम ने किया काम तिरा
बस रहे थे यहीं सल्जूक़ भी तूरानी भी
अहल-ए-चीं चीन में ईरान में सासानी भी
इसी मामूरे में आबाद थे यूनानी भी
इसी दुनिया में यहूदी भी थे नसरानी भी
पर तिरे नाम पे तलवार उठाई किस ने
बात जो बिगड़ी हुई थी वो बनाई किस ने
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तू ही कह दे कि उखाड़ा दर-ए-ख़ैबर किस ने
शहर क़ैसर का जो था उस को किया सर किस ने
तोड़े मख़्लूक़ ख़ुदावंदों के पैकर किस ने
काट कर रख दिए कुफ़्फ़ार के लश्कर किस ने
फिर शिकवा में ही वह अल्लाह से दुआ करते हैं कि हिन्द के मंदिरों को मुसलमान कर दें
जींस-ए-ना-याब-ए-मोहब्बत को फिर अर्ज़ां कर दे
हिन्द के दैर-नशीनों को मुसलमाँ कर दे
इकबाल की यह पंक्तियाँ हर मजहबी को पसंद आएंगी, परन्तु प्रश्न यही है कि हिन्दुओं को यह पट्टी क्यों पढ़ाई जाती है कि इकबाल एक तरक्कीपसंद, सेक्युलर आदि आदि थे, जबकि शिकवा नज़्म में वह साफ़ लिखते हैं कि
अजमी ख़ुम है तो क्या, मय तो हिजाज़ी है मेरी।
नग़मा हिन्दी है तो क्या, लय तो हिजाज़ी है मेरी।
इसके अर्थ को समझना होगा। अजमी अर्थात अरब का न रहने वाला, खुम: शराब रखने का घडा, मय: शराब, परन्तु यहाँ पर मय का अर्थ शराब तो है ही, परन्तु इसकी जो प्रकृति है वह अरबी है। और फिर है हिजाजी: इसका अर्थ है, हिजाज का निवासी, हिजाज सऊदी अरब का प्रांत है, हिजाजी का अर्थ है ईरानी संगीत में एक राग!
अब समझना होगा कि जब अल्लामा इकबाल मुसलमानों की तत्कालीन बुरी स्थिति की शिकायत खुदा से कर रहे थे तो अंत में उन्होंने मुस्लिमों की पहचान अरब से जोड़ दी है। उन्होंने लिखा है
कि
घड़ा अरबी नहीं है तो क्या हुआ मय तो अरबी है। यहाँ पर घड़े का अर्थ है भारतीय मुस्लिम! अल्लामा इकबाल ने कहा “मैं कहने के लिए देशी मुसलमान हूँ, मगर मैं मय अर्थात स्वभाव, प्रकृति, और अपनी जीवन पद्धति से तो अरबी हूँ!”
मैं नगमा जरूर हिंदी का हूँ, पर लय तो अरबी ही है! लय का अर्थ हम सभी जानते हैं, नगमे की आत्मा!
अल्लामा इकबाल ने भारतीय मुसलमानों की पहचान को वतन अर्थात भारत से कहीं दूर अरब से जोड़ दिया था।
और उन्होंने जिस पहचान को जोड़ा, उसी पहचान को भारत का एक बड़ा कट्टर मुस्लिम वर्ग मानता है, तभी इकबाल की उन नज्मों पर बात नहीं होती है जो इस्लाम की कट्टरता को प्रदर्शित करती हैं, जिसे वह इसरार प्रभावित होते हैं, जिनकी प्रशंसक वह राना अयूब भी हैं, जो कट्टर इस्लामी पत्रकारिता के साथ साथ झूठ भी फैलाती पाई जाती हैं, जिन्होनें करोड़ों रूपए का फ्रॉड किया है!

यूज़र्स ने राना अयूब से प्रश्न भी किये कि आखिर ऐसा इन्होने क्या कहा कि यूट्यूब को इनका चैनल हटाना पड़ा:
प्रश्न यही है कि कट्टरता को कट्टरता कहना इस्लामोफोबिया कैसे हो गया, जैसे तंजीम ए इस्लामी ने कहा है? क्या गैर-मुस्लिमों की जान की कोई कीमत नहीं है? वहीं डॉ इसरार और यूट्यूब के मामले पर वापस लौटें तो हसन के अनुसार यूट्यूब की नफरत फैलाने वाले भाषणों को हटाने वाली नीति एक शर्म से बढ़कर कुछ नहीं है!