आज जब उत्तर प्रदेश में चुनाव की सरगर्मी अपनी चरम सीमा पर है और अखिलेश यादव द्वारा जनता को यह बताया जा रहा है कि वही सबसे बड़े हिन्दू हैं, तो अब समय आ गया है कि उनके कुछ हिन्दू हितैषी होने के दावे को उनके द्वारा किए गए कामों के आधार पर परखा जाए और पाठकों को स्मरण कराया जाए कि उनके शासन में हज और चौरासी कोस की परिक्रमा में से क्या प्राथमिकता पर था!
आइये जानते हैं कि हज हाउस के विवाद क्या थे, जिनमें हुए भ्रष्टाचार के कारण पूरे प्रदेश की राजनीति में भूचाल आ गया था। पिछले वर्ष सितम्बर में लखनऊ और गाजियाबाद में स्थित हज हाउस के निर्माण में मिली अनियमितताओं का समाचार आया था और चूंकि इन हज हाउस में पूर्ववर्ती समाजवादी सरकार पूरी तरह से संलिप्त थी तो ऐसे में हलचल मचना स्वाभाविक था।
जैसे ही निर्माण में अनियमितताओं का समाचार आया, वैसे ही उत्तर प्रदेश की वर्तमान सरकार ने तत्काल कदम उठाते हुए उस पर जाँच बैठा दी गयी।
गाजियाबाद में बने हज हाउस का शिलान्यास 30 मार्च 2005 में किया था। फिर इसके निर्माण की प्रक्रिया वर्ष 2016 तक चली। इसी बीच मुलायम सिंह के नेतृत्व वाली सपा सरकार के बाद पांच वर्ष बसपा की सरकार भी रही थी। मीडिया के अनुसार 51.30 करोड़ रूपए की लागत आई थी। इसमें 1886 यात्री एक बार में टिक सकते हैं और 47 डोरमेट्री हैं।
हालांकि करोड़ों रूपए की लागत से गाजियाबाद में बना हुआ हज हाउस अभी तक विवादों में पड़ा हुआ है, क्योंकि वर्ष 2018 में प्रशासन ने गाजियाबाद में बने हज हाउस को एनजीटी ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सीलिंग आदेश पारित कर दिया था। एनजीटी अर्थात राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने यह कहा कि इसमें सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट ही नहीं है और इसमें जो भी कचड़ा एवं मानव मल आदि एकत्र होता है वह सीधे हिंडन नदी में जाता है जिसके कारण केवल नदी ही नहीं बल्कि भूगर्भ जल भी प्रदूषित हो रहा है। उस समय कहा गया था कि यह तब तक नहीं खुलेगा जब तक सम्बन्धित विभाग द्वारा सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट नहीं बना दिया जाता। और वर्ष 2019 में कुछ निर्देशों के साथ इस हज हाउस को खोल दिया गया था।
यहाँ पर दो बातें ध्यान करने योग्य हैं कि जहाँ एक ओर यह मुस्लिम तुष्टिकरण तो था ही, साथ ही इस तुष्टिकरण को करते समय उस जल को भी अपवित्र किया गया, जिस नदी के जल में हिन्दू अपने धार्मिक कर्मकांड संपन्न करते हैं। अत: यह अखिलेश यादव का हिन्दुओं के साथ किया गया दोहरा छल था।
कुछ दिन पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हज हाउस और कैलाश मानसरोवर भवज का उल्लेख किया था। दरअसल जहाँ एक ओर अखिलेश यादव ने हर क़ानून को ताक पर रखते हुए हज हाउस का निर्माण कराया था तो वहीं भारतीय जनता पार्टी की सरकार आने के बाद गाजियाबाद में ही अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त कैलाश मानसरोवर भवन का निर्माण कराया गया था।
एक ओर जहाँ अखिलेश यादव ने ऐसे हज हाउस, जिसकी गंदगी सीधे हिंडन नदी में गिरती थी, और जिसके निर्माण में 10 से अधिक वर्ष लग गए थे, के लिए पानी की तरह रुपया बहाया था, और अंतर्राष्ट्रीय स्तर की सुविधाएं प्रदान की थीं तो वहीं दूसरी ओर योगी आदित्यनाथ ने इंदिरापुरम में बने कैलाश मानसरोवर भवन का उदघाटन कर देश के करोड़ों श्रद्धालुओं को उपहार दिया था।
कुम्भ मेले के आयोजन की कुव्यवस्था में गयी थी 36 श्रद्धालुओं की जान
इसके साथ ही जहाँ योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार में वर्ष 2019 में प्रयागराज में कुम्भ मेले का सफल आयोजन हुआ था एवं वह आयोजन हर अव्यवस्था से मुक्त था तो वहीं वर्ष 2013 का अर्द्धकुम्भ भी पाठकों को स्मरण होगा जिसमें कुम्भ मेले के प्रभारी आजम खान थे और 10 जनवरी 2013 को प्रयागराज जंक्शन पर भगदड़ मच गई थी, जिसमें 36 हिन्दू श्रद्धालुओं को अपने प्राण गंवाने पड़े थे और भगदड़ के बाद उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया था।
मौनी अमावस्या पर जहां योगी आदित्यनाथ की सरकार पुष्पों की वर्षा कराती है तो वहीं अखिलेश यादव के शासनकाल के दौरान जब कुम्भ मेले का आयोजन किया गया था, तो प्रभारी ही केवल आजम खान नहीं थे, बल्कि अव्यवस्था भी चरम पर थी। वर्ष 2013 की मौनी अमावस्या 36 श्रद्धालुओं के जीवन में स्थाई मौन ले आई थी क्योंकि वह असंवेदनशील सरकार द्वारा की गयी अव्यवस्था का शिकार हो गए थे।
जब अखिलेश यादव द्वारा हिन्दू होने का इतना दावा किया जा रहा है, तो यह कुछ उदाहरण हैं जिसमें उनकी प्रतिबद्धता और प्राथमिकताएं स्पष्ट दिखाई देती है।