अफगानिस्तान में तालिबान का कहर जारी है और उन्होंने अपने खूनी इरादे खुलकर दिखाने शुरू कर दिए हैं। वह खुलकर स्वतंत्र सोच वालों की हत्या कर रहा है। मगर मजे की बात है कि अभी तक उस वर्ग से विरोध आना शुरू नहीं हुआ है, जो बदले हुए तालिबान पर लेख लिख रहा था, जो बार बार यह साबित करने की फिराक में था कि “ओह, अब तालिबान औरतों को आज़ादी देगा और तालिबान अब बदल गया है।” क्या वह वाकई बदला था या फिर यह केवल लिब्रल्स द्वारा फैलाया गया झूठ था? हालांकि तालिबान ने हमेशा कहा था कि औरतों के विषय में वह अपनी शर्तोंपर ही बात करेंगा!
क्या इस्लामी कट्टरपंथी वाम लिब्रल्स ने जानते बूझते माहौल बनाया कि तालिबान बदल रहे हैं, और अमेरिका ही मानवाधिकार का हनन कर रहा है? यह प्रश्न इसलिए और महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि कुछ ही दिन पहले कॉमेडियन नज़र मोहम्मद की हत्या एक बेहद सोची समझी साज़िश के अंतर्गत की गयी थी तो अब अफगानिस्तान में अफगानी कवि अब्दुल्ला अतिफी की हत्या कर दी गयी है। हालांकि अभी तक तालिबान की ओर से इस विषय में कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है।
उरुगन क्षेत्र के गवर्नर मोहम्मद ओमर शिराज़ ने कहा कि अब्दुल्ला आतिफी को छोरा जिले में 4 अगस्त को मार डाला गया। उन्होंने आरईई/आरएल के रेडियो आज़ादी से बात करते हुए कहा “अब्दुल्ला आतिफी नामक एक कवि और इतिहासकार को उनके घर से ले गए और और फिर उन्हें तरह तरह से परेशान किया और फिर हत्या कर दी”
हालांकि तालिबान के प्रवक्ता ने इस हत्या के बारे में कुछ भी कहने से इंकार कर दिया है।
मगर फिर भी एक इतिहासकार या कवि से किसी को क्या समस्या हो सकती है कि वह क़त्ल कर दे? यदि ऐसा लगता भी है कि कुछ गलत लिखा जा रहा है तो न्यायालय है, वहां जाया जा सकता है? पर कट्टर आक्रान्ता आततायी अपनी बात रखने का अवसर नहीं देते हैं, बस हत्या करते हैं। जैसे आईएसआईएस ने की, या फिर तालिबान कर रहा है, और पाकिस्तान में मंदिर तोड़कर कर रहे हैं।
परन्तु इस विषय पर सदा की तरह हमारे वाम और कट्टर इस्लामी लिबरल चुप्पी साधकर बैठे हैं। भाई आपकी बिरादरी का व्यक्ति तालिबान ने मारा है, वह कवि था! परन्तु वामपंथी कवि तो खुद ही इस्लामी कट्टरपंथ के सामने हथियार डाले बैठे हैं और वह केवल इसलिए चुप हैं जिससे वह ऐसा कुछ न कह दें जिससे हिंदुत्व का चेहरा अच्छा दिखने लगे!
खैर अब पिछड़े प्रगतिशीलों के बाद आते हैं, वामपंथी इस्लामी फेमिनिस्ट पर! सीरिया आदि की कवयित्रियों की कविताओं के अनुवाद पर धर धर आंसू बहाने वाली इन फेमिनिस्ट ने ईरान में हिजाब का विरोध कर रही लडकियों का साथ न देकर हिजाब का साथ दिया था। बल्कि यह पिछड़ी औरतें हिजाब को पहचान का प्रतीक बताकर हिजाब के समर्थन में जाकर खड़ी हो गयी थीं।
और अब वह तालिबान के भी समर्थन में जाकर खड़ी हो जाएंगी क्योंकि उनके प्रिय तालिबान ने एक लड़की की केवल इसलिए कार से उतारकर हत्या कर दी क्योंकि उसने पर्दा नहीं किया था। भारत की वामपंथी इस्लामी फेमिनिस्ट के लिए तो बुर्का और हिजाब पहचान का प्रतीक है, तो वह तालिबान का समर्थन ही करेंगी कि उन्हें अपनी पहचान बनाए रखते हुए, पर्दा करना चाहिए। आखिर वह उस जगह की सांस्कृतिक अस्मिता की बात है, यह मुस्लिम औरतों की पहचान की बात है।
तालिबान ने 21 साल की लड़की नाजनीन की कार को रोका। नाजनीन बल्ख डिस्ट्रिक्ट सेंटर की ओर जा रही थीं। नाजनीन चूंकि बेचारी स्वतंत्र सोच वाली होगी, और इसीलिए कार चला रही होगी, मगर न ही तालिबान को यह पसंद है और न ही उस कट्टरता को जिस कट्टरता का पालनपोषण यह लोग करते हैं, तो नाजनीन को उन्होंने कार से बाहर खींचा और फिर उसे मार डाला।
हालांकि तालिबान ने इस घटना में हाथ होने से इंकार किया है तो तालिबान प्रेमी भारतीय वामपंथी कट्टर इस्लामी लेखिकाएं अभी तालिबान का वक्तव्य सही मान सकती हैं, जैसे उन्होंने दानिश सिद्दीकी के समय किया था।
जैसे ही तालिबान ने अपना हाथ दानिश सिद्दीकी की हत्या में होने से इंकार किया था, वैसे ही यह प्रगतिशील कट्टर पिछड़ी सोच वाले बुद्धिजीवी तालिबान को क्लीन चिट देने के लिए जैसे उतर आए थे, होड़ मच गयी थी और हाँ, इसमें जफर सरेशवाला भी थे।
मगर जैसे ही यह बातें सामने आईं कि उन्हीं के प्रिय दानिश सिद्दीकी के साथ तालिबान ने कितनी बर्बरता की, यह पिछड़ी सोच वाले अपने दानिश सिद्दीकी के साथ भी जाकर खड़े नहीं हुए।
ऐसे ही वह नाजनीन के लिए आवाज़ नहीं उठाएंगी क्योंकि उनके प्रिय तालिबान ने तो कुछ किया ही नहीं है। उनका प्रिय तालिबान, कॉमेडियन की हत्या कर रहा है, उनका प्रिय तालिबान कवि की हत्या कर रहा है, एक युवा लड़की की हत्या कर रहा है क्योंकि उसने पर्दा नहीं किया था और उनका प्रिय तालिबान उनके प्रिय दानिश सिद्दीकी की हत्या कर चुका है, पर फिर भी वह इसलिए चुप हैं क्योंकि तालिबान का विरोध करते ही वह जैसे हिंदुत्व की खूबियों को उभार देंगी।
जो लोग कहते हैं कि तालिबान या आईएसआईएस या पाकिस्तान में मंदिर तोड़ने वाले लोग सच्चे मुस्लिम नहीं हैं, या कुछ कट्टर लोग हैं, तो भाई इन सब हरकतों की आलोचना करने वालों के चेहरे भी तो भारत में सामने आएं! यह अजीब बात है कि सुदूर अमेरिका में ब्लैक लाइव्स मैटर्स का शोर मचाने वाली जमात अपने बगल में हो रही हत्याओं पर नहीं बोल रही है, वह उस फतवे पर चुप है जिसमें लड़कियों को परदे में रखने के लिए कहा जा रहा है! भारत की फेमिनिस्ट इस हद तक कट्टरपंथी इस्लामी और हिन्दुओं की विरोधी हो गयी हैं कि वह यदि औरतों की सामूहिक हत्याएं भी इन तालिबानियों द्वारा की जाएँगी तो चुप रहेंगी जैसे वह यजीदी स्त्रियों को आईएसआईएस द्वारा जलाए जाने पर और यौन गुलाम बनाए जाते समय चुप रही थीं।
भारतीय वाम फेमिनिस्ट और कट्टरपंथी औरत में कोई अंतर इन मुद्दों पर दिखाई नहीं देता है!
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