भारत में हिजाब को लेकर कट्टरता अपने चरम पर है। मुस्लिमों के एक बड़े वर्ग के साथ साथ वह सेलेब्रिटीज भी इस मुद्दे पर उन कट्टर मुस्लिम लड़कियों के समर्थन में हैं, जो हिजाब के नाम पर शिक्षा छोड़ रही हैं। यह देखना बहुत ही हैरान करने वाला है कि जहाँ मुस्लिम कट्टरपंथी देशों में महिलाएं उन बंधनों से बाहर निकलने के लिए संघर्ष कर रही हैं जो उन पर मजहब की कट्टरता के नाम पर थोप दिए गए हैं तो वहीं भारत में वह दिन रात इस फिराक में हैं कि कैसे भी करके हिजाब में मुस्लिम लड़की को बंद कर दिया जाए।
पिछले दिनों ईरान की पत्रकार एवं अनिवार्य हिजाब का विरोध करने वाली एक्टिविस्ट मसीह अलिनेजद ने एक तस्वीर ट्वीट की। उसमें लिखा था।
ईरान के इस्लामी गणराज्य पर मनोरोगी आदमियों का शासन है।
गोरगान शहर की एक महिला की मूर्ति को हटा दिया गया है। कारण? उसके टखने दिख रहे हैं, इसलिए वह पर्याप्त रूप से कवर नहीं है और वह आदमियों को आकर्षित कर रही है!
वह इस बात पर भी हैरानी व्यक्त करती हैं कि वैश्विक रूप से महिलाओं की स्थिति की निगरानी करने के लिए संयुक्त राष्ट्र की महिला अधिकारों की समिति में ईरान जुड़ा है। और ईरान में हमे 7 साल की उम्र से ही हिजाब पहनाया जाता है और 13 साल की उम्र से बलात्कार होता है, जिसे लोग शादी कहते हैं:
ईरान में 13 साल की लड़की की शादी की अनुमति है, मगर जज की अनुमति लेनी होगी।
इसके साथ ही ईरान में यह भी अनुमति है कि यदि बच्ची के हित में है तो गोद लेने वाला आदमी भी गोद ली हुई लड़की से शादी कर सकता है।
परन्तु यह बहुत ही हैरान करने वाली बात है कि कोई भी फेमिनिस्ट इन सब बातों पर बोलती हुई नहीं दिखाई देती है,
अफगानिस्तान में मुस्लिम औरतों के साथ व्यवहार
इसके साथ अफगानिस्तान से दो महत्वपूर्ण समाचार आए हैं और दोनों मी मुस्लिम औरतों से जुड़े हुए हैं। अफगानिस्तान में जब तालिबान का शासन आया था तो भारत में ही कई फेमिनिस्ट एवं लिब्रल्स इतने प्रसन्न हुए थे जैसे उनके घर में ही किसी सदस्य ने एंट्री की हो। और उन्होंने धीरे धीरे तालिबान को इस संघी सरकार की तुलना में बेहतर बताना शुरू कर दिया था।
उन्होंने कहा था कि कम से कम वह जो हैं स्पष्ट हैं आदि आदि! लड़के और लडकियां अलग अलग पढेंगे, इस पर फेमिनिस्ट लेखिकाएँ फ़िदा हो गयी थीं, और उन्होंने कहा था यह तो भारत के भी कई स्कूलों में होता है। इसलिए कोई समस्या नहीं है। मगर यह पूरा वर्ग वहां पर तालिबान द्वारा की गयी महिलाओं की हत्या पर मौन रहा था। यहाँ तक कि वह अभी भी मौन है, जब वहां पर इन मुस्लिम औरतों के मूल अधिकार छीने जा रहे हैं।
अफगानिस्तान में पिछले दिनों कक्षा छ से ऊपर की पढ़ाई को लड़कियों के लिए बंद कर दिया।
पिछले सप्ताह लडकियां बहुत मन से स्कूल पहुँची मगर कुछ ही मिनटों बाद उनसे यह कह दिया गया कि लड़कियों के लिए स्कूल नहीं खुले हैं।
इसके बाद यह कहा गया कि कक्षा छ के बाद पढ़ाई शरीयत के अनुसार गलत है।
कई छोटी बच्चियों के रोते हुए चेहरे सामने आए।
बच्चियां अपनी पढ़ाई के लिए रोती हुई नजर आईं, परन्तु यह सब दुनिया की किसी भी वामी इस्लामी फेमिनिस्ट को नहीं दिखता
इतना ही नहीं तालिबान ने अब अफगानी महिलाओं के अकेले हवाई सफ़र पर भी रोक लगा दी है। उन्होंने कहा है कि अब अफगानी औरतें तब तक हवाई सफ़र नहीं कर पाएंगी जब तक उनके साथ उनके साथ घर का आदमी न हो।
तालीबान ने सभी एय्र्लाइन्स को यह आदेश दिया कि वह किसी भी ऐसी औरत को अपनी एयरलाइंस की सेवा प्रयोग न करने दें, जिनके साथ उनका आदमी अभिभावक नहीं है।
आज तालिबान ने दर्जनों औरतों काबुल हवाई अड्डे पर को घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों में जाने से रोक दिया। तालिबान के अनुसार वह अब अकेले सफ़र नहीं कर सकतीं।
लोग प्रश्न कर रहे हैं कि अफगानिस्तान में अब औरतें सफ़र नहीं कर सकती हैं, काम नहीं कर सकती हैं और पढ़ाई भी नहीं कर सकती हैं। और इन सबके बावजूद पूरी दुनिया चुप है!
इतना ही नहीं अब औरतों के लिए नया नियम आया है कि काबुल में जो पार्क हैं उनमें आदमी और औरतों के दिन अलग अलग होंगे। औरतें रविवार, सोमवार और मंगलवार को पार्क में जा सकती हैं और आदमी बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार और शनिवार को!
वहीं भारत में रहने वाली वामपंथी औरतें जहाँ पहले तालिबान के पक्ष में उतर आईं थीं, तो अब वह भारत में तालिबानी सोच के साथ उतर आई हैं कि मुस्लिमों को लड़कियों को स्कूल भी हिजाब में भेजना चाहिए। कर्नाटक में केवल स्कूल यूनिफार्म में हिजाब की अनुमति नहीं है, मगर यहाँ पर यह वामपंथी वर्ग उन लड़कियों को उस कट्टरता में वापस धकेलने में लगा हुआ है, जहाँ से बाहर आने के लिए ईरान और अफगानिस्तान में औरतें संघर्ष कर रही हैं।
यह वामपंथी औरतें hijab के आन्दोलन के साथ हैं, परन्तु पड़ोसी देश अफगानिस्तान में हो रहे अत्याचारों पर मौन रहती हैं, परन्तु हाँ तालिबानियों के पक्ष में जाकर जरूर खडी हो जाती हैं। उनके लिए इन लड़कियों के समर्थन से अधिक जरूरी है यह कहना “ओह तालिबानी, कम से कम वह प्रेस कांफ्रेंस तो कर रहे हैं!”
वहीं काबुल में लडकियां उतर पड़ी हैं सड़कों पर!
हालांकि भारत में मुस्लिम औरतों को मध्ययुगीन अंधेरों में धकेलने के लिए वामपंथी फेमिनिज्म एकदम तैयार बैठा है! वह ताक में है कि कब वह बुर्के के बीच जाकर “ब्राह्मणवाद और पितृसत्ता” को गाली दे! आने वाले समय में हिन्दू लड़कियों के लिए शरीर की आजादी की मांग करने वाली वामपंथी औरतें बुर्के की आजादी के लिए नारा लगाएंगी!