सन्नी लियोनी का गाना 22 दिसंबर को रिलीज हुआ है और यह बहुत ही तेजी से वायरल हो रहा है। इस गाने का मथुरा के संत विरोध कर रहे हैं। गाने में “मधुबन में राधिका नाचे रे” शब्द प्रयोग किया गया है। और इसमें सनी लियोनी अत्यंत अश्लील मुद्रा में डांस करती हुई दिखाई दे रही हैं। अश्लील हाव भाव के साथ इस पूरे गाने के बोल भी अश्लील ही हैं।
अब इस मामले में मध्य प्रदेश के गृह मंत्री डॉ नरोत्तम मिश्रा ने भी कहा है कि यदि यह गाना तीन दिनोंमे नहीं हटा तो कानूनी कार्यवाही की जाएगी!
धीमे जहर को समझना आवश्यक है
जैसे ही यह गाना आया, वैसे ही लोग कहेंगे कि यह तो पहले भी हो चुका है। यह केवल रीमेक ही तो है। यह तो पहले भी कोहिनूर फिल्म में आ चुका है। फिर ऐसा कैसे हो सकता है, कि आप अब विरोध करें!
दरअसल अब इस मीठे जहर को समझना आवश्यक है। देवी और देवता कौन हैं, हिन्दू, और उन्हें प्रयोग कौन कर रहा है, पहले शकील बदायूनी ने इसे सहज भाव से लिखा कि मधुबन में राधिका नाचे रे, गिरधर की मुरलिया बाजे रे!”
परन्तु भाव राधिका और नाच का कहीं अंतस में बसता गया। राधा रानी जैसे एक रिझाने वाले नृत्य का ही पर्याय बनती चली गईं। जो प्रेम और जो नृत्य सात्विक था, प्रेम और भक्ति का पर्याय था, फिल्मों ने आकर उसे दूषित करना आरंभ कर दिया। यह एक खेल था जो आरम्भ हुआ। एक बीज था जो रोपित कर दिया गया। अब उस पर धीरे धीरे फसल लहलहानी थी,
मोहे पनघट पे नन्द लाल छेड़ गयो रे!
यह गीत कहने के लिए काल्पनिक, परन्तु सच्चाई बताकर प्रस्तुत की गयी फिल्म का गाना है, जिसमें उस व्यक्ति को प्यार का मसीहा बनाकर पेश किया गया, जो अपनी असली ज़िन्दगी में बेहद अय्याश था, क्रूर था और बहुत सारे निकाह किए थे। वह स्वभाव से अय्याश था, और वह अपने जीवन में कोड्स ऑफ चंगेज़ खान का पालन करता था। जहांगीर अपनी अम्मी “मरयममुज्ज़मानी (Maryamuzzamani) के सम्मान में तब झुकता है जब वह लाहौर में उससे मिलने के लिए आती हैं। जहांगीर ने अपनी आत्मकथा तुजुके-जहांगीरी (अनुवाद Wheeler M। Thackston-व्हीलर एम थैक्स्टन ) में लिखा है “खुसरो की तलाश में मैंने अपने बेटे खुर्रम को महलों और खजाने की रक्षा के लिए नियुक्त कर दिया था और मेरा दिमाग शांत हुआ तो मैंने खुर्रम से कहा कि वह माननीय “मरयममुज्ज़मानी (Maryamuzzamani) और शेष हरम को लाहौर लाए। जब वह लाहौर पहुँची तो मैं एक नाव पर बैठकर अपनी अम्मी का स्वागत करने गया। कोरुनुश, और सिजदा और तस्लीम और वह सारी औपचारिकताएं करने के बाद, जो चंगेज़ कोड और तैमूर नियमों में छोटों के लिए बताई गयी हैं, मैंने शाम राजा के साथ बिताई।”
कोहिनूर और मुगलेआजम दोनों ही फ़िल्में वर्ष 1960 में प्रदर्शित हुई थीं। तभी से गानों के माध्यम से हमारे देवी देवताओं के साथ खिलवाड़ की नींव रखी जाने लगी थी। छोटे छोटे शब्द, बड़े बड़े नैरेटिव रच रहे थे और हिन्दू इस बात को लेकर प्रसन्न थे कि शकील बदायूनी, नौशाद, के आसिफ जैसे लोग हमारी राधा, हमारे कृष्ण को अपनी फिल्मों का हिस्सा बना रहे थे।
धीरे धीरे उन बीजों का वृक्ष बनने लगा
एक ने राधा जी के लिए गीत में “डोलत छम-छम कामिनी” लिखा, क्योंकि इस्लाम में नृत्य आध्यात्मिक नहीं होता, वहां पर नाचना हराम है। हिन्दुओं में नृत्य मात्र देह या कामनाओं तक सीमित नहीं रहता है, बल्कि हमारे यहाँ तो महादेव नृत्य के देव हैं।
परन्तु जब पहली बार राधा जी पर लिखे हुए गीत का विरोध नहीं हुआ, मोहे पनघट पर नन्द लाल छेड़ गयो रे, की काल्पनिक कहानी को ऐतिहासिक ही बना दिया गया, और “एक राधा, एक मीरा” के बहाने भक्ति को देह तक सीमित किया गया, तो फिर समय आया कि “राधा ऑन द डांस फ्लोर” पर भी हमारी लडकियां नाचने लगीं, तो आज जब सन्नी लियोनी अश्लील नाच “राधा रानी” के नाम पर कर रही है, तो लोगों के दिल में तनिक भी यह खटक नहीं रहा है कि राधा रानी के बहाने प्रभु श्री कृष्ण एवं प्रेम के सात्विक रूप को भी बाजार में ही नहीं खड़ा किया जा रहा है बल्कि बाजारू और अश्लील बनाया जा रहा है!
जिन राधा का वर्णन ब्रह्म वैवर्त पुराण में मोक्षदात्री के रूप में है, जिन्हें श्रीकृष्ण ने स्वयं कृष्णवामांगसम्भूता” कहा है, जिन्हें विषय में यह कहा गया है कि वह श्री कृष्णरूप को लीलापूर्वक निकट लाने में समर्थ हैं, तथा सभी अंशों में श्रीकृष्ण के सदृश हैं, अत: उन्हें कृष्णस्वरूपिणी” कहा गया है, ऐसी राधारानी को कोई शारिब और तोषी साबरी संगीत देते हैं, fफिर उसे कोई तौसीफ शेख मिक्स करता है और मास्टर करता है, फिर उसे कोई जोहेब खान रिकॉर्ड करता है, और उसे शारिब और तोषी, कनिका कपूर, अरिंदम चौधरी गाते हैं और गणेश आचार्य इसे कोरियोग्राफ करते हैं और फिर सब मिलकर मधुबन को अश्लील लोगों का अड्डा बना देते हैं और राधा को एक तवायफ बनाकर पेश करते हैं!
पर चूंकि हिन्दू समाज राधा जी को मधुबन में एक बार नचा चुका है, अब उसे कोई फर्क की नहीं पड़ता कि इस गीत पर कौन अश्लील भाव भंगिमा के साथ नाच रहा है!
इसे दिमागी अतिक्रमण कहते हैं, जो वर्षों से हो रहा है, और धीरे धीरे हिन्दुओं का मस्तिष्क आदी होता जा रहा है, इस अतिक्रमण का!