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Thursday, June 8, 2023

अपनी ही बेटी को नहीं करने दी शादी, उसके आशिकों को मरवा दिया और फेमिनिस्ट भरती हैं आहें उसी शाहजहाँ के नाम की!

भारत में इतिहासकारों का एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है जिसने मुग़ल काल को ही सबसे रूमानी बताया है जैसे कि इसके अतिरिक्त और कोई इतिहास था ही नहीं। जैसे भारत को जन्म ही मुगलों ने दिया है, परन्तु वह यह भूल जाते हैं कि जो कुछ उन्होंने झूठ बताया है उससे परे ही इतिहास है।

भारत में सती प्रथा को लेकर लेखिकाएं फ्रांसिस बर्नियर की दीवानी हैं, इतना ही नहीं इसके बहाने वह पूरे हिन्दू धर्म को कोसती रहती हैं। परन्तु वह उसी फ्रांसिस बर्नियर की पुस्तक में उनके प्यार के मसीहा शाहजहाँ के विषय में लिखी गयी सत्य बातों को नकारती हैं। वह यह नहीं बताती कि जिस आदमी को वह सबसे बड़ा प्रेमी, सबसे महान प्रेमी और अब तक का सबसे प्रेमिल प्रेमी बताती हैं, वह दरअसल अपनी ही बेटी के साथ न जाने कितने अत्याचारों का कारण था, उसने खुद ही न जाने उनपर कितने अत्याचार किए थे।

शाहजहाँ का बड़ा बेटा दाराशिकोह, जिसे यह पूरा का पूरा लिबरल वर्ग मात्र तब प्रयोग करता है जब उन्हें हिन्दुओं को गाली देनी होती है और मुस्लिमों को उदार बताना होता है, और जो इस बात को सफलतापूर्वक दबा जाते हैं कि यह वही दारा शिकोह है जिसे भारत का मुस्लिम वर्ग आदर्श नहीं मानता है, वह केवल औरंगजेब और बाबर जैसों को ही अपना आदर्श मानता है।

बर्नियर लिखता है कि

“बादशाह की बड़ी बेटी बेगम साहब अत्यंत रूपवती, प्रसन्न एवं अपने पिता की बहुत ही प्यारी थी। पिता का अपनी पुत्री के साथ ऐसा सम्बन्ध हो जाने की खबर थी कि जिस पर विश्वास नहीं किया जा सकता था। कहते हैं कि मुल्लाओं ने यह व्यवस्था दी थी कि बादशाह का उसी वृक्ष के फल का आनंद लेना, जिसको उसने खुद लगाया है, अनुचित और अन्याय नहीं है!”

अर्थात शाहजहाँ के सम्बन्ध अपनी बड़ी बेटी के साथ थे। यह कैसा सबसे बड़ा प्रेमी हो सकता है जो अपनी ही बेटी को जिस्मानी रूप से इस्तेमाल करे? खैर बर्नियर की हिन्दुओं की बातों को सत्य मानने वाली पूरी की पूरी लॉबी इस बात पर मौन रहती है या फिर यदि लिखती भी है तो उसे हिन्दू चरित्रों में ढालकर लिखती है, कि हिन्दू पिता अपनी बेटियों की शादी अपनी शान और मूंछों के चलते नहीं करने देना चाहते थे।

परन्तु हिन्दू राजकुमारियों में शायद ही कोई ऐसा उदाहरण मिले कि राजकुमारियों के विवाह न हुए हों! खैर, अब बर्नियर आगे लिखते हैं कि “बेगम साहब की कृपा बढ़ाने का दारा भी निरंतर यत्न करता और यह भी कहा जाता है कि उसने उससे प्रतिज्ञा भी की थी कि जब मैं बादशाह हो जाऊंगा तब तुरंत तुझको शादी करने की अनुमति दूंगा! कित्नु दारा की यह प्रतिज्ञा hindustan के बादशाहों की नीति के विरुद्ध थी जिसके अनुसार शाह्जादियों का विवाह अनुचित माना गया है!”

फिर बर्नियर बड़ी बेगम के दो आशिकों के किस्से लिखते हैं कि। इतना पहरे में रखे जाने के बाद भी बड़ी बेगम को एक युवक से इश्क हो गया। बहुत छिपाया परन्तु यह मामला छिप न सका,। न ही बादशाह और न ही उसकी बंदियों से छिप सका। एक दिन जब वह युवक बड़ी बेगम से मिलने के लिए आया था तो बादशाह कुसमय मिलने आ गया और जब उस युवक को छिपने का कोई स्थान नहीं मिला तो बड़ी बेगम ने पानी गर्म करने की एक बड़ी देग रखी थी, उसने उसीमें उसे छिपा दिया।

बादशाह अन्दर आया और उस समय उसके चेहरे पर क्रोध और आश्चर्य का चिह्न नहीं था। उसने सदा की ही तरह बेगम से बातें की और फिर कहा कि “मालूम होता है कि तुमने आज हस्ब मूम गुसल नहीं किया है। हम्माम गर्म करना चाहिए!” और फिर उसने “ख्वाजासराओं को देग के जीचे आग लगाने के लिए कहा!

जब तक उसे इस बात का निश्चय नहीं हो गया कि शहजादी का आशिक जलकर मर नहीं गया होगा तब तक वहीं खड़ा रहा और फिर चला गया!

और ऐसे क्रूर और अय्याश आदमी को इतिहासकार ही नहीं बल्कि फेमिनिस्ट अर्थात औरतों के अधिकारों की बात करने वाली लेखिकाएँ महान प्रेमी बताती हैं और ऐसा प्रेमी मिलने के लिए आहें भरती हैं!

पर शाहजादी को एक बार फिर से इश्क हुआ। और फिर से एक और आशिक बादशाह की अय्याशी और क्रूरता का शिकार हुआ।

दोबारा उसे इश्क हुआ एक ईरानी नवयुवक से, जो सुन्दरता के लिए तो प्रसिद्ध था ही बल्कि वह बहुत ही सुयोग्य, बुद्धिमान था और साहसी था। और जिसे दरबार के लोग भीपसंद करते थे और जो खानसामा का कम करता था।

बर्नियर ने लिखा है कि औरंगजेब का मामा शाइस्ता खान उसकी बहुत प्रशंसा करता था और फिर उसने एक दिन भरे दरबार में यह कह भी दिया था कि “यह ईरानी शख्स इस काबिल है कि बेगम साहब की शादी इससे कर दी जाए!”

यह बात शाहजहाँ को बहुत बुरी लगी और उसे पहले ही शक था कि उसकी बेटी और नजरखां में कुछ अनुचित सम्बन्ध है! और जब उसे यह सुनाई दिया तो उसने उसे रास्ते से हटाने के लिए कोई विशेष उपाय करने की आवश्यकता नहीं समझी बल्कि दरबारे आम में उसे बुलाकर कृपा दिखाने की रीति पर अपने हाथ से पान का बीड़ा खाने के लिए दिया।

उसे नहीं पता था कि इसमें विष है। उसने यह सोचा कि यह मिलना बहुत ही मान एवं प्रतिष्ठा की बात है, उसने बीड़ा मुंह में रख लिया और उसे लगा कि बादशाह की कृपा दृष्टि हुई है और वह उन्नति करेगा, बहुत आगे जाएगा, परन्तु पान खाने के बाद वह घर न पहुंचकर कहीं दूसरे ही संसार में चला गया!

शाहजहाँ ने अपनी अय्याशी, अपने नाम के कारण अपनी बेटियों की शादी नहीं होने दी और उनके अरमानों पर पानी फेरते हुए उससे प्यार करने वालों को ही मार डलवाया। बादशाह की लड़की में गलती थी कि वह यह सब जानते हुए भी नौजवानों को फंसाती थी, कि उसके अब्बा उसके आशिकों को मार डालेंगे, तो बादशाह को अपनी बेटी को मारना चाहिए था, मगर वह अपनी ही खेती को कैसे बर्बाद कर सकता था?

इसी शाहजहाँ जैसे प्रेमी पाने के लिए पूरी सेक्युलर लेखिकाएँ आहें भरती रहती हैं, परन्तु क्या वह वास्तव में ऐसा शौहर चाहेंगी जो उनकी ही बेटी को इस प्रकार प्रयोग करे?

स्रोत-बर्नियर की भारत यात्रा पृष्ठ 8-9

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