लिब्रल्स एवं बुद्धिजीवियों के प्रिय नसीरुद्दीन शाह की बीवी रत्ना पाठक शाह को डर लगने लगा है, और यह डर इसलिए लग रहा है क्योंकि पढी लिखी हिन्दू महिलाएं करवाचौथ रखने लगी हैं एव यही कारण है कि उन्हें लग रहा है कि अब कट्टरता इस हद तक बढ़ गयी है कि भारत सऊदी अरब बन जाएगा!
यह डर कितना क्यूट है, इस डर की बलिहारी होना चाहिए, क्योंकि यह डर एकदम वही डर है जो हिन्दी जगत के प्रगतिशील लेखकों और लेखिकाओं की रचनाओं में होता है। उन्हें यह डर हो रहा है कि लडकियां मंगलसूत्र पहन रही हैं, उन्हें यह डर है कि लड़कियां एकत्र होकर करवाचौथ का व्रत रख रही हैं, वह अहोई का व्रत रख रही हैं, वह धार्मिक जीवन जी रही हैं। यही धार्मिकता उन्हें भयान्क्रित करती है। यही धार्मिकता उन्हें बेचैन करती है। यह जो रत्ना पाठक शाह ने कहा है वह वह उनका डर नहीं है, बल्कि यह उस वर्ग का डर है जो भारत को इस्लामीकरण की ओर ले जा रहे हैं।
हिन्दी साहित्य और मीडिया एवं मनोरंजन उद्योग का इसमें बहुत बड़ा योगदान रहा है। हिन्दू समुदाय की लडकियों को कट्टर इस्लामिक मानसिकता की ओर धकेलने का कार्य रत्ना पाठक शाह जैसी औरतों ने बहुत किया है, जिन्होनें अपने शौहर की कट्टर इस्लामी बातों को अपने हिन्दू होने से ढका और उनके लिए सहानुभूति उत्पन्न की। नसीरुद्दीन शाह हिन्दुओं को तो छोटी मोटी बात पर कोसते हुए दिखाई दे जाएँगे और यह कहेंगे कि हिन्दुओं के कारण असहिष्णुता बढ़ गयी है, मगर वह मुस्लिमों द्वारा की जा रही हिंसा पर मौन रहते हैं। इस मौन को और आवरण प्रदान करता है रत्ना पाठक शाह का हिन्दू नाम!
रत्ना पाठक शाह ने कहा कहा कि किसी भी पिछड़े समाज को देख लीजिये महिलाएं सबसे अधिक प्रभावित होती हैं, सऊदी अरब को देख लीजिये, क्या हम सऊदी अरब बनना चाहते हैं?
और फिर उन्होंने कहा कि ये आश्चर्य है कि पढ़ी लिखी महिलाएं भी पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं। भारत में विधवा होने एक भयानक स्थिति है, महिलाएं इसी डर से करवा चौथ का व्रत करती हैं। हैरान करने वाली बात है कि हम 21वीं सदी में भी इस तरह की बातें करते हैं।
इस बात को समझना होगा कि कट्टर मुस्लिम लॉबी हो या वामपंथी लॉबी, ऐसे हर पर्व पर आक्रमण किया जाता है जो सहज संबंधों की बात करते हैं। जो हमारे अर्द्धनारीश्वर के सिद्धांत की बात करते हैं। जो स्त्री और पुरुष के प्रेम के बात करते हैं। करवाचौथ का व्रत ऐसा व्रत है, जिसे सबसे अधिक ट्रोल किया जाता है या कहें पिछड़ा कहा जाता है और कहा जाता है कि “औरत ही क्यों भूखी रहे?”
तो यह व्रत कभी भी “औरतों” का नहीं होता है यह व्रत पत्नियां रखती हैं और वह भी अपने पति की लम्बी आयु की प्रार्थना करते हुए! क्या अपने पति की लम्बी आयु की प्रार्थना करना इन लोगों की दृष्टि में गुनाह है? शायद ऐसा ही लगता है क्योंकि यह लोग जिस समाज की बात करते हैं उसमे औरत और आदमी की समानता की बात करते हैं, वह यह नहीं जानते कि हिन्दुओं में तो स्त्री और पुरुष दोनों मिलकर ही सृष्टि का निर्माण करते हैं, तभी उनके इस रूप को अर्द्धनारीश्वर कहा गया है।
रत्ना पाठक शाह जिस सऊदी की बात करती हैं, उसमें क्या होता है वही बेहतर जानती होंगी, परन्तु भारत यदि अपनी जड़ों की ओर लौटेगा तो वहां पर भव्यता होगी, वहां पर स्त्री पुरुष का सहज जीवन होगा, वह जीवन नहीं जो यह लोग कथित प्रगतिशीलता की आड़ में कट्टर इस्लामिक बुर्के में चाहती हैं।
रत्ना पाठक शाह ने पति और पत्नी की प्रेम के प्रतीक करवाचौथ की तो आलोचना कर दी, और कहा कि हम सऊदी तो नहीं बनगे, मगर वह यह भूल गईं कि भारत सऊदी बन जाए, उसके लिए वह और उनके पति अवश्य बहुत योगदान कर रहे हैं।
रत्ना पाठक शाह कभी भी तीन तलाक पर नहीं बोलती हैं, कभी भी मुस्लिम समाज में जहेज पर नहीं बोलती हैं, वह हलाला पर नहीं बोलती हैं, वह नुपुर शर्मा का गला काटने पर नहीं बोलती हैं और सबसे बढ़कर वह मुस्लिम औरतों को जिस हिजाब के चक्कर में फंसाया जा रहा है, और हिजाब के चलते लोगों को मारा जा रहा है, शिक्षिकाओं को नंगा किया जा रहा है, वह उसके बारे में नहीं बोलतीं!
डियर रत्ना शाह, कट्टरता आती है जब आप अपने मजहबी पहनावे को देश और संस्कृति से ऊपर प्राथमिकता देते हैं, डियर रत्ना शाह, कट्टरता तब आती है जब औरत को खेती मानकर छोड़ दिया जाता है, और डियर रत्ना शाह कट्टरता तब आती है जब मजहब के नाम पर पड़ोसियों के गले भी भी काट दिए जाते हैं।
रत्ना शाह ने कहा कि भारत में विधवाओं की स्थिति बहुत खराब रहती है, इसलिए वह डर के चलते यह व्रत रखती हैं। रत्ना शाह को पढ़ना चाहिए! उन्हें पढ़ना चाहिए कि चाणक्य काल में भी विधवा स्त्री के कितने अधिकार स्पष्ट रूप से वर्णित हैं।
यहाँ तक कि उन्हें पुनर्विवाह का अधिकार भी चाणक्य के अर्थशास्त्र के अनुसार था। वह अपने पति के परिवार से बाहर भी विवाह कर सकती थी।
परन्तु रत्ना पाठक शाह जी, यह पति और पत्नी का परस्पर प्रेम है जो करवाचौथ जैसे व्रतों से और प्रगाढ़ होता है, यह एक ऐसी अनुभूति है जो उसे ही समझ में आ सकती है जिसे अर्द्धनारीश्वर का सिद्धांत पता होगा, जिसे अर्द्धनारीश्वर पर विश्वास होगा, जिसे यह पता होगा कि करवाचौथ का व्रत उसने अपने प्रेम के लिए रखा है।
किसी भी सभ्यता में सबसे महत्वपूर्ण कड़ी परिवार होती है और परिवार में भी दंपत्ति के मध्य परस्पर प्रेम। फेमिनिज्म और इस्लाम और वामपंथ इसी पर प्रहार करके आगे बढ़ते हैं। मुग़लकाल में बादशाहों की ज़िन्दगी में देखने से लगता ही है कि कैसे परिवार नाम की कोई चीज नहीं थी। वामपंथ भी देह को ही प्रधानता देता है, और उसकी दृष्टि में पति के प्रति दैहिक निष्ठा पत्नी के लिए सबसे बड़ा बंधन है, सबसे बड़ी बेड़ी है।
और वह तीनों ही इसी पर प्रहार करते हैं, जिससे परिवार टूटे और इस्लामीकरण और वामपंथ के लिए राह आसान हो!
वैसे रत्ना पाठक शाह को सोशल मीडिया के यूजर्स ने भी आइना दिखाया कि कैसे जिस समय हिन्दुओं को बेअदबी के नाम पर दिनों दिन गला रेत कर मारा जा रहा है उस समय में रत्ना पाठक शाह को सबसे बड़ा मुद्दा मिला, और वह था करवाचौथ!
यूजर्स ने कहा कि हिजाब मामले पर रत्ना पाठक शाह मौन थी, और हम क्या बॉलीवुड सेक्युलारिस्ट से आशा कर सकते हैं
हिजाब के मुद्दे पर लोगों ने रत्ना पाठक शाह को घेरा है
दरअसल यह अब कुंठित हो चले हैं, क्योंकि इनकी वास्तविकता अब लोगों के सामने आ गयी है। लोग देख रहे हैं कि कैसे जिहादी तत्व नुपुर शर्मा के बाद टार्गेट किलिंग करते जा रहे हैं, रोज ही कोई न कोई हिन्दू इस “सिर तन से जुदा” का शिकार हो रहा है और रत्ना पाठक शाह को लगता है कि करवाचौथ रखने से कट्टरता बढ़ रही है!
बेशर्मी और थेथरई की कोई सीमा होती है, परन्तु रत्ना पाठक शाह ने आज हर सीमा पार कर दी है!