हिन्दुओं के नाम पर बनी फिल्म ब्रह्मास्त्र में जमकर उर्दू का तड़का तो है ही, साथ ही इसके अंत में जो तर्क दिया है कि प्यार के आगे ब्रह्मास्त्र शांत हो गया और प्यार ही सबसे बढ़कर है, आदि आदि, वह उसी आशंका को सही साबित करता है कि यह फिल्म दरअसल इस्लामी परम्पराओं को हिन्दू टैग के भीतर लपेटकर प्रस्तुत करने का कुप्रयास है!
फिल्म में जो खलनायिका है, उसका नाम जूनून है! यह बात भी नहीं लेखक एवं संवाद लेखक नहीं बता पाए हैं कि हिन्दुओं को लेकर बनी फिल्म में जूनून कैसे एक खलनायिका का नाम हो सकता है? जूनून पूरी तरह से उर्दू का शब्द है, इतना ही नहीं फिल्म में रोशनी अर्थात नूर पर इतना जोर है कि लगता है कि अयान मुखर्जी यह भूल गए हैं कि उन्होंने फिल्म को ड्रैगन से शिवा में बदल दिया है। उनका नायक रूमी नहीं शिवा है!
बार बार लाइट की बात नायक करता है! परन्तु कौन सी लाइट? कैसी रोशनी? और अंत में जाकर यह कहना कि ब्रह्मास्त्र प्यार की आग के आगे हार गया। शिवा ने प्यार का असली स्वरुप दिखाया, जो था कुर्बानी! एवं क्लाइमेक्स में जाकर नमाज की स्थिति में शिवा के हाथ जुड़ जाते है
यह बहुत ही हास्यास्पद एवं दुखद दोनों ही है कि भगवान की प्रतिमा के सामने सूफियाना गाना गाया जा रहा है, जबकि सूफियों की वास्तविकता हम लोग कई बार अपने लेखों में पाठकों के सामने जा चुके हैं। कैसे उर्दू ने बार बार हिन्दी को अपमानित किया है और कैसे उर्दू ने अपने मजहबी वर्चस्व को बनाए रखने के लिए फिल्मों का सहारा लिया है, यह भी देखा गया है, फिर भी क्या कारण है कि भगवान की प्रतिमाओ के सम्मुख इस प्रकार के गाने गाए जा रहे हैं और वह भी हिन्दू धर्म के नाम पर!
इस फिल्म को हालांकि आलोचकों ने डिजास्टर घोषित कर दिया है, परन्तु फिर भी वीकेंड में यह फिल्म ठीक ठाक कमाई कर लेगी, ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है। इसकी असली परीक्षा सोमवार से आरम्भ होगी क्योंकि इस फिल्म का बजट ही अपने आप में इतना भारी भरकम है कि इसे काफी समय तक थिएटर में लगे रहना होगा!
परन्तु इस फिल्म के बाद जो दूसरी फिल्म का ट्रेलर आया है, वह अपने आप में इतना हिन्दू विरोधी है कि जिसकी कल्पना ही नहीं की जा सकती है। पता नहीं क्यों बॉलीवुड हिन्दुओं का अपमान करने से बाज नहीं आ रहा है। इस बार टीसीरीज की एक फिल्म का ट्रेलर आया है, जिसमें अजय देवगन मुख्यभूमिका में हैं। अजय देवगन इस फिल्म में चित्रगुप्त की भूमिका निभा रहे हैं, परन्तु वह किस वेशभूषा में हैं, उसे देखकर यह पता चल जाएगा, कि यह फिल्म पूरी तरह से हिन्दुओं का अपमान करने के लिए एवं हिन्दू धर्म को नीचा दिखाने के साथ साथ, हिन्दू धर्म का ईसाईकरण करने के लिए बनाई गयी है।
यह फिल्म पूरी तरह से दर्शकों के दिमाग को प्रदूषित करने के लिए बनाई है! हमारे मस्तिष्क में भगवान चित्रगुप्त की क्या छवि है? हम लोग कैसे उनकी पूजा करते हैं? एक बड़ा वर्ग है जो दीपावली के बाद भाई दूज पर कलम एवं दवात की पूजा के माध्यम से चित्रगुप्त महाराज की पूजा करते हैं। कायस्थ समाज एवं पढ़ाई लिखाई, लेखन, आदि कार्य करने वाले लोग उस दिन चित्रगुप्त महाराज की पूजा करते हैं। इसी दिन बहीखाते की भी पूजा का भी विधान है।
परन्तु एक समय में बॉलीवुड में भजनों एवं हिन्दू संस्कृति के प्रसार के लिए प्रख्यात टीसीरीज आज इस हद तक गिर गयी है कि वह अप्सराओं को तो अश्लील तरीके से दिखा रही है, बल्कि साथ ही स्वर्ग की पूरी की पूरी अवधारणा तक को विकृत कर रही है। क्या हिन्दू देव इस प्रकार दिखते हैं? क्या आत्माएं इस प्रकार किसी का स्वागत करती हैं? क्या ऐसे लोक का कहीं पर वर्णन है?
यदि नहीं तो चित्रगुप्त जी का चित्रण इस प्रकार कैसे किया जा सकता है? अप्सराओं को इस सीमा तक अश्लील दिखा दिया गया है कि एक अप्सरा की ही पुत्री थी शकुन्तला, जिनके वीर पुत्र भरत के नाम पर ही इस देश का नाम भारत है, लोग अब शकुन्तला जैसी स्त्रियों को ही इस प्रकार छोटे कपड़े पहनने वाली मानेंगे?
महाराज पुरु एवं अप्सरा उर्वशी की प्रेम कथा कितनी अद्भुत है, अब क्या उर्वशी को भी ऐसा ही अश्लील और कामुक नहीं लोग कल्पना में चित्रित करेंगे? जिन्हें चित्रगुप्त महाराज, अप्सराओं की अवधारणा का बोध नहीं है, वह लोग ऐसी अश्लील तस्वीरें क्यों हिन्दुओं के मन में बनाना चाहते हैं?
क्या अप्सरा और हूरों की अवधारणा को एक करना चाहते हैं टीसीरीज वाले? जबकि इन दोनों का दूर दूर तक कोई भी नाता नहीं है! परन्तु फिर भी अप्सराओं का इतना भद्दा चित्रण किया गया है? और ऐसा करने की शक्ति इसलिए मिली क्योंकि इंद्र एवं अप्सराओं की ऐसी छवि बना दी गई है कि उनका कोई भी अपमान अब हिन्दुओं को बुरा नहीं लगता है।
परन्तु अप्सराओं को हूर की श्रेणी में जाने से एवं अपने देवताओं को “ईसाई वस्त्रों” में दिखाए जाने का विरोध करना ही होगा एवं यह समझना होगा कि आधुनिक युग कुछ नहीं होता है, क्योकि आधुनिक कुछ नहीं होता है, जिसे कथित आधुनिकता कहा जाता है, वह ईसाई रिलिजन ही है। जैसा कि सीएफ एंड्रूज़ ने कहा ही है कि भारत में ईसाई मत की शिक्षा दी जानी चाहिए। और वह शिक्षा मात्र तभी दी जा सकती है जब अंग्रेजी भाषा से शिक्षा दी जाएगी। क्योंकि अंग्रेजी शिक्षा ईसाई सभ्यता ही नहीं बताती है बल्कि वह ईसाई धर्म में रची बसी है। “अंग्रेजी साहित्य, अंग्रेजी इतिहास, और अर्थशास्त्र, अंग्रेजी दर्शन अपने साथ ईसाई जीवन की आवश्यक जीवन अवधारणाएं लाता है; क्योंकि जिन लोगों ने यह लिखा है, उन्होंने ईसाई माहौल में ही लिखा है!”
फिल्म का यह ट्रेलर हिन्दू धर्म को अब्राह्मिक या ईसाई खांचे में फिट करने का एक कुप्रयास है एवं इसमें वह लोग अधिक दोषी हैं, जिन्हें यह गलत नहीं लग रहा है क्योंकि चित्रगुप्त को आधुनिक युग में दिखाया गया है! आधुनिक कुछ नहीं होता है, हर चीज़ किसी न किसी मत के अधीन होती है, फिर चाहे वह वस्त्र हों, खानपान या फिर स्वर्ग, जन्नत एवं हेवेन! तीनों ही अलग अलग हैं!