दिल्ली में महिला पत्रकारों की एक संस्था है जिसका नाम है आईडब्ल्यूपीसी, उसने महादेव का अपमान करने पर सबा नकवी पर हुई एफआईआर में सबा का साथ दिया, जिस पर क्लब के सदस्यों ने ही अपने बोर्ड के विरुद्ध स्वर उठाए। दरअसल इन दिनों आईडब्ल्यूपीसी में भी समावेशी स्वर हो गए हैं, जहाँ पहले एक ही विचार का लगभग अधिकार होता था तो अब वहीं पर गैर-वाम विचार भी बढ़े हैं। यही कारण था कि इस बार चुनाव में वह पैनल भी मैदान में था, जिसमें गैर-वाम चेहरे ही थे।
परन्तु जीत उस पैनल की हुई, जिसमें वाम विचारों की ही प्रमुखता थी। फिर भी आरम्भ हो चुका है कि दूसरे विचारों को आप दबा नहीं सकते हैं अब! ऐसे में जैसे ही सबा नकवी के पक्ष में आईडब्ल्यूपीसी के ऑर्गनाइजिंग बोर्ड ने यह वक्तव्य जारी किया कि वह सबा नकवी के साथ हैं और इस एफआईआर का विरोध करता है, वैसे ही सोशल मीडिया पर इस बात की बहस आरम्भ हो गयी कि क्या आईडब्ल्यूपीसी अब ऐसे कट्टर इस्लामिस्ट पत्रकारों के निजी ऐसे विचारों का भी समर्थन करेगा जो उसने अपने मजहब की कट्टरता से भरे हुए हैं।
ऐसा इसलिए क्योंकि सबा पर जो एफआईआर हुई है, वह किसी रिपोर्ताज या प्रेस के विश्लेषण के कारण नहीं हुई है, बल्कि उस ट्वीट पर हुई है, जिसमें उसने महादेव का अपमान किया था। क्या अब आईडब्ल्यूपीसी इस बात पर भी एफआईआर रद्द होने की मांग करना आरम्भ करेगा कि उनके क्लब से जुड़ी कोई पत्रकार अपने निजी मजहबी विचार के चलते जहर भी न उगले? यह तो एक प्रकार की गुंडागर्दी है, जिसके चलते वाम और इस्लामी विचार वाले पत्रकार सरकार का विरोध करने के नाम पर यह छूट पा चुके हैं कि वह हिन्दू धर्म और उसके आराध्यों का अपमान जब मन चाहें तब कर सकते हैं।
सबा के पक्ष में जारी इस पत्र के विरोध में आई क्लब की सदस्य पत्रकार
आईडब्ल्यूपीसी की ओर से जैसे ही यह पत्र जारी हुआ, वैसे ही twitter पर हंगामा हो गया। क्योंकि सबा नकवी पर एफआईआर कहीं से भी सबा की पत्रकारिता के आधार पर थी ही नहीं, वह उस अपमानजनक ट्वीट पर थी, जो सबा ने महादेव पर किया था। तो सोशल मीडिया पर लोगों ने प्रश्न करना आरम्भ कर दिया कि क्या आईडब्ल्यूपीसी की हिन्दू पत्रकार भी इस बात का समर्थन करती हैं? और क्या अब आईडब्ल्यूपीसी इस्लामी कट्टरता के पक्ष में जाकर खड़ा होगा? महिला पत्रकारों के मूल अधिकारों के लिए कार्य का दावा करने वाली संस्था दरअसल हिन्दू विरोधी प्रगतिशील (इस्लामी और वामी) राजनीतिक विचारों के लिए कार्य करेगी?
परन्तु सबा का यह पक्ष लेना कई सदस्यों को पसंद नहीं आया और उन्होंने twitter पर ही विरोध करना आरम्भ कर दिया। इस विषय में वरिष्ठ पत्रकार और आईडब्ल्यूपीसी की सदस्य सर्जना शर्मा ने हमसे बातचीत में कहा कि बोर्ड अपने आप बिना किसी सलाह के ऐसे वक्तव्य जारी कर सकता है? क्योंकि यह भी हो सकता है कि मैं सदस्य के रूप में सहमत न होऊं! उन्होंने हमसे स्पष्ट कहा कि वह इस स्टेटमेंट के विरोध में हैं।
वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखिका प्रितपाल कौर ने भी इस वक्तव्य का विरोध किया। उन्होंने भी हमसे यही कहा कि वह इस स्टेटमेंट के विरोध में हैं।
ट्विटर पर इस निर्णय के विरोध में खड़ी होने वाली महिला पत्रकारों में ऋचा अनिरुद्ध जैसी पत्रकार भी सम्मिलित थीं। उन्होंने ट्वीट किया कि वह आईडब्ल्यूपीसी की सदस्य होने के नाते इसका समर्थन नहीं करती हैं:
मोना पार्थसारथी ने भी ट्वीट किया कि वह इस पत्र का समर्थन नहीं करती हैं। तथा वरिष्ठ पत्रकार संध्या जैन ने भी लिखा कि कई मित्र इस प्रकार के एकतरफा पत्र से आहत हैं, जो सबा के इस ट्वीट के समर्थन में जारी किए गए पत्र के विरोध में हैं।
प्रितपाल कौर ने भी twitter पर इसका विरोध दर्ज कराया था:
पायल मेहता ने भी ट्वीट किया कि वह आईडब्ल्यूपीसी की सदस्य हैं, और वह सदी होने के नाते इस वक्तव्य का समर्थन नहीं करती हिं। मैं चाहती हूँ कि इस वक्तव्य को वापस लिया जाए जो कुछ ऑफिस के अधिकारियों ने जारी कर दिया है,
गौरी द्विवेदी ने भी कहा आईडब्ल्यूपीसी के वक्तव्य को वापस लेना चाहिए क्योंकि यह सभी सदस्यों के विचारों का समर्थन नहीं करता है:
यह अत्यंत ही आश्चर्यचकित करने वाला तथ्य है कि सबा का समर्थन आईडब्ल्यूपीसी का बोर्ड एक ऐसे विषय पर कर रहा है, जो उनके ही क्लब की कई सदस्यों के आराध्य का अपमान है? क्या आईडब्ल्यूपीसी हिन्दू धर्म के अपमान के अतिरिक्त किसी पंथ के अपमान का समर्थन करने के विषय में सोच भी सकता है?
या फिर आईडब्ल्यूपीसी का जो बोर्ड है वह यह प्रमाणित करने का प्रयास कर रहा है कि आईडब्ल्यूपीसी की सभी पत्रकार हिन्दू धर्म विरोधी हैं और इस्लामी कट्टरता के समर्थन में हैं।
जबकि आईडब्ल्यूपीसी पर यह भी तलवार लटकी है कि उनके पास उनका बँगला रहेगा या नहीं क्योंकि 31 जुलाई तक उन्हें वह बंगला खाली करना है, जो उन्हें आवंटित हुआ था। वहीं नेशनल हेराल्ड से जुडी एश्लिन मैथ्यू ने सबा के पक्ष में जारी किये गए पत्र के समर्थन में लिखा कि ऑर्गनाइजिंग बोर्ड को सभी सदस्यों के सहयोग से चुना गया है, और जीबीएम की सदस्यों की भलाई के लिए काम करता है, तभी यह वक्तव्य जारी किया गया है!
परन्तु यह बात एश्लिन भी नहीं बता पा रही हैं कि आने वाले कल में यदि कोई इस संस्था की सदस्य पत्रकार निजी स्तर पर घोटाला करती हुईं, लड़ाई लडती हुईं या हत्या जैसे गंभीर अपराध में लिप्त पाई जाती हैं तो क्या वह उनके समर्थन में उतरेंगी?
बस प्रश्न इतना ही है कि क्या अब वह निजी विश्वास, मजहबी यकीन और एक विशेष राजनीतिक विचार के आधार पर पत्र आवंटित करेंगी या फिर महिला पत्रकारों के लिए भी कार्य करेंगी?