भारत में इन दिनों मुस्लिम औरतों को मध्ययुगीन अँधेरे में फेंके जाने की पूरी तैयारी हो चुकी है और उसमें उन्हें लेफ्ट लिब्रल्स से लेकर फेमिनिस्ट तक का पूरा साथ मिल रहा है। भारत में कथित फेमिनिस्ट का एक बड़ा वर्ग कभी भी इस्लाम और ईसाई मजहबी कट्टरता से पीड़ित लड़कियों के पक्ष में खड़ा नहीं हुआ है, कहीं न कहीं तटस्थ रहा है, बल्कि जब से यह आन्दोलन आरम्भ हुआ है, तब से तो वह पूरी तरह से बुर्के के समर्थन में आकर कह रहा है कि “उन्हें बुर्के में ही सही, पढने दो!”
परन्तु यह कैसे पता चलेगा कि बुर्के में कौन है? क्या बुर्का विवाद पहचान छिपाकर अपराध की प्रक्रिया है? यह एक बड़ा प्रश्न है, जिसके विषय में कोई नहीं सोच रहा है, परन्तु इसी कारण कई देशों में बुर्के पर प्रतिबन्ध है। और रोज ही पूरे विश्व से ऐसे मामले सामने आते रहते हैं, जिनमे बार बार यह दिखाया जाता है कि कैसे बुर्के के नीचे आदमी होते हैं।
आज यह समाचार लिखे जाने तक जहाँ भारत में गुरुग्राम में एक बुर्का पहने औरत पुलिस पर हमला कर चुकी थी तो वहीं दुबई में तीन नाइजीरियाई युवकों को तब हिरासत में ले लिया गया, जब वह परम्परागत रूप से अरब की औरतों की पोशाक पहने थे और औरतों जैसा मेकअप किए हुए थे।
डेलीस्टार के अनुसार तीन औरतों को शक के आधार पर रोका गया, और जब उनका बुर्का और हिजाब हटाया गया तो सभी के होश उड़ गए क्योंकि वह तीन अफ्रीकी आदमी थे, जो औरतों के कपड़े पहनकर आए थे, और उन्होंने पूरा मेकअप किया हुआ था, अर्थात जितना भी चेहरा खुला हुआ था, उसमें बहुत ही अधिक मेकअप था। और पूरे शरीर को ढाक लिया था।
उन्होंने यह काम इसलिए किया क्योंकि उन्हें अच्छी ज़िन्दगी गुजारनी थी, अब उन्हें दुबई के क़ानून के अनुसार कड़ी सजा मिलेगी क्योंकि दुबई में बहुत ही कड़े क़ानून हैं।
इस घटना पर सोशल मीडिया पर भी चुटकुले बनने लगे हैं:
भारत में गुरुग्राम में मिस्र की बुर्का पहने औरत ने पहले टैक्सी ड्राइवर पर हमला किया और फिर पुलिस के साथ हाथापाई की
उधर दुबई में आदमी बुर्के में छिपकर आए थे तो भारत में तो औरतों को बुर्के के पीछे किए जाने के लिए सारी लॉबी लग गयी है। बड़ी से बड़ी महिला साहित्यकार उसे “तहजीब” बताकर सही ठहरा रही हैं और प्रश्न कर रही हैं, कि यदि पहनने दिया गया, तो क्या हो जाएगा?
खैर, आगे बढ़ते हैं! गुरुग्राम में बुर्का पहले एक औरत ने टैक्सी ड्राइवर पर हमला कर दिया।
आजतक के अनुसार
हरियाणा के गुरुग्राम में एक टैक्सी चालक पर हिजाब और बुर्का पहनी हुई महिला ने चाकू से हमला किया है। टैक्सी ड्राइवर को गुरुग्राम के सरकारी अस्पताल में एडमिट करवाया गया है, जहां उसकी हालत खतरे से बाहर है। मौके पर तैनात गुरुग्राम पुलिस ने बुर्का-हिजाब पहनी महिला को हिरासत में ले लिया है और मामले की जांच की जा रही है!”
गुरुग्राम पुलिस के मुताबिक, हिजाब-बुर्का पहने महिला की विदेशी बताई जा रही है। अभी तक पुलिस को जो जानकारी मिली है, उसके मुताबिक, महिला मिस्र ‘Egypt’ की की रहने वाली है। अब उससे पूछताछ की जा रही है कि आखिर उसने टैक्सी ड्राइवर पर हमला किया। फिलहाल पुलिस की ओर से अभी ज्यादा जानकारी नहीं साझा की गई है।
यह बहुत ही विडंबना है, कि देशी बुर्का वाली कट्टर औरतों के साथ साथ बाहर से घूमने आई बुर्का पहने औरतें भी उग्र हो रही हैं। और कारण कुछ पता नहीं है।
कर्नाटक में भी जो लडकियां शोर मचा रही हैं, वह आज से कुछ समय पहले तक सहज थीं अब असहज हो गयी हैं, उग्र हो गयी हैं। यह उग्रता नहीं पता किस कारण है?
पाकिस्तान में 8 मार्च अर्थात अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस को “हिजाब दिवस” के रूप में मनाना चाहते हैं मजहबी मामलों के मंत्री
भारत सहित पूरी दुनिया में वामपंथी 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने के नाम पर हिन्दुओं को कोसने की अनर्गल बातें करते हैं। खैर, इस बार भारत के वामपंथी फेमिनिस्ट के प्रिय देश पाकिस्तान से उनके नाम पर यह सन्देश आया है कि वहां के मजहबी मामलों के वजीर नूरुल हक कादरी चाहते हैं कि 8 मार्च का दिन अंतर्राष्ट्रीय हिजाब दिवस घोषित कर दिया जाए?
वैसे यह प्रस्ताव हिन्दी की फेमिनिस्ट लेखिकाओं के लिए बुरा नहीं है। हमने देखा है कि कैसे फेमिनिस्ट हिजाब और बुर्के के पक्ष में जाकर खड़ी हैं, और यहाँ तक कि ऑस्ट्रेलिया तक में वामपंथी एजेंडा चलाकर हिन्दू धर्म की बुराई करने वाले इयान वूलफोर्ड खुलकर हिजाब के पक्ष में आ गए हैं, उनका कहना है कि
यहाँ ऑस्ट्रेलिया में , मेरी बेटियों के स्कूल में कई लड़कियाँ यूनफ़ॉर्म के ऊपर हिजाब पहन के आती हैं । और हमारी यूनिवर्सिटी में कोई भी लड़की पढ़ सकती हैं। हम प्रोफेसर्स हैं, फ़ैशन पुलिस या रेलिजिन पुलिस नहीं।
लड़कियों को शिक्षा से वंचित करना एक प्रतिगामी प्रथा है।
दरअसल समस्या यही है कि हिन्दुओं को सहिष्णुता सिखाने वाले लोग वास्तविक जीवन में इतने असहिष्णु होते हैं कि अपने ट्वीट के उत्तर भी बंद कर के बैठते हैं। वहीं इयान वुलफोर्ड उस बच्चे के पक्ष में आए थे या नहीं, पता नहीं, जिसे केवल तुलसी की माला पहनने के कारण फुटबाल के मैदान से बाहर कर दिया था।
वहीं पवन पांडे ने ट्वीट को रीट्वीट करते हुए कहा कि
सभी भारतीय मुस्लिमों को वुल्फोर्ड जी के देश भेज दिया जाए ताकि वुल्फोर्ड जी अच्छे लोगों की संगति का लाभ मिल सके।
दरअसल मुस्लिमों के वास्तविक शत्रु ऐसे ही वोक लोग हैं, जो उन्हें और अधिक कट्टर बनाए रखे हुए हैं। वहीं एक यूजर ने लिखा कि
ऑस्ट्रेलीय मैं आपके जनजाति और अब्रोईगिनालस को मतदान का अधिकार १९६२ मैं दिया गया। भारत मैं महिलाओं , जनजाति और हरिजनो को मतदान का अधिकार १९४७ में से दिया गया। आप हमें ना बताएँ हमें हमारा राष्ट्र कैसे चलना है।
धीरे धीरे कट्टर इस्लाम और वाम का यह गठजोड़ लोगों की समझ में आ रहा है और इसका विरोध हो रहा है। परन्तु क्या वामपंथी अपने प्रिय पाकिस्तान के मंत्री का विरोध करेंगे? वह नहीं करेंगे, हालांकि पाकिस्तान से उसका विरोध हो रहा है और स्पष्टीकरण माँगा जा रहा है। शेरी रहमान ने कहा कि महिला दिवस सभी वर्ग की महिलाओं के नाम पर मनाया जाता है तो ऐसे में आप उस दिन को महिलाओं के अधिकारों का हनन करने के रूप में कैसे सोच भी सकते हैं?

वहीं मलीचा लोधी ने भी हैरानी व्यक्त करते हुए कहा कि विश्वास नहीं होता कि नुरुल हक़ कादरी ने प्रधानमंत्री इमरान खान को औरत मार्च को रोकने के लिए कहा है:
हालांकि जब शोर मचा तो सफाई दी गयी कि उनकी मंशा ऐसी नहीं थी और कुछ लोग सियासी फायदे के लिए इसे इस्तेमाल कर रहे हैं।
खैर, इस बहाने से पूरे विश्व के कथित फेमिनिस्ट का वह चेहरा सामने आता जा रहा है, जो उन्होंने अब तक छिपा रखा था और अब वह इस्लाम की कट्टरता के साथ कदम मिलाकर चल रही हैं और मजहब के नाम पर औरतों के साथ होने वाले हर जुल्म में बराबर की हिस्सदार हैं!