अभी हाल तक ही लव जिहाद और अन्य षड्यंत्र कर जनसांख्यिकी संतुलन को बिगाड़ने का प्रयत्न हो रहा था लेकिन अब हिन्दुओं के मन मस्तिष्क में गंगा-जमुनी तहजीब और इस्लामिक कट्टरता के बीज बोने का एक नया तरीका निकाला गया है। और वह किया जा रहा है बच्चों के माध्यम से!
बच्चे किसी भी सभ्यता और विचारधारा की आधारशिला होते हैं, अगर उनके मन को ही दूषित कर दिया जाए तो धर्म को बड़ा आघात पहुंचाया जा सकता है। ऐसा ही कार्य कर रहे हैं कुछ विद्यालय, जो हिन्दू बच्चों को जबरन इस्लामिक कुरीतियों का पालन करने पर विवश कर रहे हैं। दुःख की बात यह है कि इस षड्यंत्र में हमारे सेक्युलर हिन्दू भी बढ़ चढ़कर भाग ले रहे हैं।
वडोदरा के स्कूल ने छोटे बच्चों को मस्जिद ले जाने की बनाई योजना
वडोदरा के कलाली में स्थित दिल्ली पब्लिक स्कूल (डीपीएस) के प्रशासन ने किंडरगार्टन के छात्रों को ‘फील्ड ट्रिप’ के नाम पर मस्जिद ले जाने की योजना बनाई थी। हालांकि, इस बात की भनक लगने पर छात्रों के माता-पिता ने जोरदार आपत्ति जताई, उन्हें बजरंग दल के कार्यकर्ताओं का समर्थन भी मिला, जिसके पश्चात डीपीएस प्रशासन ने इस योजना को रद्द कर दिया।
सूत्रों के अनुसार छात्रों को पहले एक मंदिर ले जाया गया था, उसके पश्चात विद्यालय के अधिकारियों ने बच्चों को गंगा-जमुनी तहजीब का उदाहरण स्थापित करने के लिए एक मस्जिद ले जाने की योजना बनाई। विद्यालय प्रशासन ने बताया किउन्होंने कुछ छात्रों के माता-पिता से इस बारे में मंत्रणा भी की, और उन्होंने इस योजना पर सहमति जताते हुए कहा भी था कि ‘मंदिर के साथ बच्चों को मस्जिद ले जाने में कोई बुराई नहीं है’ । सूत्रों ने बताया कि लगभग सभी माता-पिता ने अपने बच्चों को मस्जिद भेजने के लिए सहमति व्यक्त की थी।
जैसा कि देखा गया है कि सेक्युलर हिन्दू ही सबसे बड़ी समस्या बन गए हैं, वही यहाँ भी हुआ। कुछ अज्ञात माता-पिता ने बजरंग दल के कार्यकर्ताओं को ही असामाजिक तत्व बताया, और इस बात पर क्षोभ प्रकट किया कि उनके कारण उनका बच्चा मस्जिद नहीं जा पाया। कुछ छात्राओं के माता पिताओं ने बताया कि उनकी बेटियां मस्जिद जाने के लिए उत्साहित थीं, क्योंकि वह पहले कभी वहां नहीं गयी थी, लेकिन बजरंग दल के कार्यकताओं के अभद्र आचरण से उनकी योजना धरी ही रह गयी।
हालांकि गंगा-जमुनी तहजीब के नशे में डूबे सेक्युलर माता पिताओं को नहीं पता था कि महिलाओं का मस्जिद में जाना प्रतिबंधित होता है। यहाँ विद्यालय ने यह स्पष्ट नहीं किया कि क्या मस्जिद प्रशासन ने उन्हें छात्राओं को लाने की अनुमति दो थी। अगर अनुमति नहीं थी, तो छात्राओं को मस्जिद ले जाने का स्वांग क्यों रचा गया? और ऐसे में बजरंग दल को भला बुरा कहने का उन्हें कोई अधिकार नहीं है।
कानपुर के विद्यालय में समानता के नाम पर हिन्दू छात्रों को कलमा पढ़वाया जा रहा था
ऐसा ही एक मामला कानपुर के एक निजी स्कूल में देखने को मिला है, जहाँ हिंदू छात्रों को इस्लामी ‘कलमा’ पढ़ाया जा रहा था। यह विषय तब सामने आया जब छात्रों के माता-पिता ने पुलिस को सूचित किया कि फ्लोरेट्स इंटरनेशनल स्कूल में पढ़ने वाले उनके बच्चों को सुबह की प्रार्थना के समय कलमा पढ़ने को विवश किया जा रहा है।
विद्यालय में पढ़ने वाले एक छात्र के पिता ने बताया कि “मेरी पत्नी ने मुझे हमारे बेटे के धाराप्रवाह इस्लामी प्रार्थना का पाठ करने के बारे में सूचित किया। पूछताछ करने पर बेटे ने बताया कि उसे यह विद्यालय में सिखाया जा रहा है। इस बात से परेशान हो कर वह विद्यालय गए और प्रशासनिक अधिकारियों से बात की, लेकिन उन्होंने इसे रोकने से मना कर दिया। उन्होंने अन्य छात्रों के माता पिता को सूचित करने के लिए एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाया और साथ ही स्थानीय भाजपा नेताओं को भी सूचित किया।
अगले दिन कई माता-पिताओं ने विद्यालय में प्रदर्शन किया और पुलिस से इस विषय में हस्तक्षेप करने को कहा। दबाव पड़ने पर विद्यालय ने सुबह की प्रार्थना में ‘कलमा’ पढ़ने की प्रथा को रोक दिया। हालांकि विद्यालय प्रशासन ने बताया कि एक दशक से अधिक समय से सुबह की प्रार्थना के समय इस्लामिक कलमा पढ़ने की प्रथा का पालन किया जा रहा है। वहीं दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि विद्यालय प्रशासन छात्रों को इस्लामिक कुरीतियों का पालन करने के लिए विवश कर रहा है।
यह आश्चर्य है कि इतनी घटनाओं के बाद भी कई लोगों की आँखें नहीं खुल रही हैं। बच्चों को मस्जिद ले जाने और कलमा पढ़ाने की क्या आवश्यकता है? विद्यालय में बच्चे पढ़ाई करने जाते हैं, ना कि मजहबी ज्ञान लेने, अगर बच्चों को मजहबी तालीम ही देनी है और गंगा-जमुनी तहजीब ही सिखानी है तो उन्हें ऐसे ही शिक्षण संस्थानों में भेजा जा सकता है।