spot_img

HinduPost is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma

Will you help us hit our goal?

spot_img
Hindu Post is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma
28.1 C
Sringeri
Monday, November 4, 2024

हिन्दुओं से घृणा करने वाली जिहादी मेडिकल छात्रा, समाचार और घटना पुरानी है, परन्तु प्रश्न वही है?

भारत और अन्य सभ्य समाजों के अधिकांश लोग एक छद्म धारणा रखते हैं, कि उचित शिक्षा और विकास के अवसर देने से इस्लामवादियों को अपने कट्टरपंथी और कट्टर विचारों को छोड़ने और गैर-मुसलमानों से द्वेष ना रखने के लिए मनाया जा सकता है। हालांकि यह धारणा एकदम गलत है, क्योंकि हमने असंख्य इंजीनियरिंग और अन्य पेशेवर पाठ्यक्रम में डिग्री वाले कई उच्च-योग्य आतंकवादियों को आत्नकी हमले करते देखा है, वहीं ज्यादा पढ़े लिखे लोगों को दूसरे धर्म के लोगों के प्रति अधिक द्वेष रखते हुए देखा है।

आज हम बात कर रहे हैं कोलकाता की गुलफ्शा नाज़ नाम की एक मेडिकल छात्रा की। यद्यपि यह समाचार पुराना है, घटना पुरानी है, परन्तु उनका दृष्टिकोण वही है! उनका फेसबुक प्रोफाइल इस बात का पक्का साक्ष्य है कि आप एक इस्लामवादी को कितनी ही अच्छी शिक्षा दे दीजिये, लेकिन उसके जिहादी विचारों और गैर-मुस्लिमों के प्रति द्वेष को समाप्त नहीं कर सकते। नाज़ ने अपने सोशल मीडिया प्रोफाइल पर कलकत्ता नेशनल मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस करने का दावा किया है। उसने साउथ पॉइंट स्कूल में पढ़ाई की है, जो कलकत्ता के सबसे अच्छे विद्यालयों में गिना जाता है।

गुलाफ्शा नाज़ का ऑनलाइन व्यवहार उसे एक उग्र इस्लामवादी के रूप में स्थापित करता है। वहीं हिंदुओं के प्रति उसकी अवमानना ​​और द्वेष से भरी मानसिकता कहीं ना कहीं हिन्दू मरीजों के लिए एक स्पष्ट खतरा है, जो उसके पास इलाज करवाने आते होंगे।

गुलाफ्शा रहती तो भारत में हैं, लेकिन इन्हे पाकिस्तानी क्रिकेटर बहुत पसंद हैं। यह बहुत ही प्रसन्न होती हैं जब भारतवंशी ऋषि सुनक कंजर्वेटिव पार्टी की दौड़ में लिज़ ट्रस से हार जाते हैं। यह अलग बात है कि ट्रस ने कुछ ही समय बाद पद छोड़ दिया और अब सुनक ब्रिटेन के प्रधानमंत्री हैं। गुलाफ्शा को ऋषि सनक से नफरत क्यों है? क्योंकि वह हिंदू है या इसलिए कि वह भारतीय मूल का है? अथवा दोनों?

उसने अपनी एक पोस्ट में (यहां संग्रहीत) अंकिता सिंह के हत्यारे शाहरुख का बचाव करने के लिए एक घृणित प्रयास किया। उसने नृशंसता से मारे गए बच्चे को बदनाम करने और मजहबी रूप से प्रेरित अपराध पर पर्दा डालने के लिए एक गलत तस्वीर अपलोड की।

उसने इस्लामी कुरीतियों का पालन करते हुए दावा किया कि इस प्रकार के अपराध के लिए किसी को ‘हिंदू-मुस्लिम कोण’ से नहीं सोचना चाहिए। वहीं मोहतरमा भूल गयी कि उन्ही के लोग एक चोर तबरेज़ अंसारी के लिए खड़े हो जाते हैं, जो रंगे हाथों पकड़ा जाता है, पीटा जाता है और बाद में लॉक अप में मर जाता है। तब यही लोग हिन्दुओं को बदनाम करने का कोई अवसर नहीं छोड़ते। काफिरों के लिए उनके मन में द्वेष की भावना इतनी बलवती है कि यह लोग एक जिंदा जला दी गई एक अवयस्क हिंदू लड़की के बारे में बात करते हुए स्माइली पोस्ट कर सकते हैं।

नाज़ ने अपने एक फ़ेसबुक पोस्ट में हिंदुओं द्वारा “बलात्कारियों का स्वागत” करने और एक इस्लामी तरीके से एक व्यक्ति (जिसे बलात्कारी दर्शाया गया है) का सिर काटने का चित्र साझा किया। इसमें वह यह कहती हैं कि, “क्योंकि मेरा धर्म महिलाओं का सम्मान करता है, और हम कभी भी एक जैसे नहीं हो सकते”, जिसका अर्थ है कि इस्लाम महिलाओं का सम्मान करता है (और हिंदू धर्म नहीं करता) और यह हमेशा ‘श्रेष्ठ’ रहेगा।

इसी प्रकार इस युवा इस्लामवादी डॉक्टर ने “अग्निपरीक्षा” के संदर्भ में भगवान राम पर कटाक्ष भी किया था। ऐसे धर्मांधों को धर्मग्रंथों की सूक्ष्मता समझाना व्यर्थ है, जिनका मन केवल ‘माई गॉड गुड, योर गॉड बैड’ संदेशों को समझने में सक्षम है। ऐसे इस्लामवादी अपने मजहब में व्याप्त अमानवीय कुरीतियों जैसे तीन तलाक, निकाह हलाला और निकाह मुतह के बारे में आत्मनिरीक्षण करने के बजाय दूसरे धर्मों पर प्रश्नचिन्ह लगाना पसंद करते हैं।

ऐसी महिलाएं इस्लामिक मानसिकता जिनमे मुस्लिम महिलाओं को संपत्ति के रूप में माना जाता है, या महिलाओं के लिए कुख्यात उर्दू शब्द यानी ‘औरत‘ के प्रयोग पर विरोध नहीं जताती, बल्कि दूसरे धर्मों को ही बुरा भला कहती हैं।

यही लोग 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के बलात्कार के दोषी लोगों की सजा में छूट मिलने पर समस्त हिन्दुओं को दोषी ठहरा देते हैं, जबकि ऐसी कोई भी छूट स्थापित कानूनी प्रक्रियाओं के अनुसार ही दी गई थी, जिसका विरोध किया जा सकता है, इसे चुनौती भी दी जा सकती है। लेकिन वहीं यह लोग एक 8 वर्षीय हिंदू बच्ची के बलात्कार और हत्या के लिए दोषी ठहराए गए मुस्लिम बलात्कारी को मृत्यदंड देने के उच्चतम न्यायालय के आदेश पर विरोध जताते हैं।

उपमहाद्वीप में इस्लामवादियों द्वारा गैर-मुस्लिम लड़कियों के बलात्कार करने और जबरन धर्मांतरण करने के मामलों से हमें पता चलता है कि कौन सा समुदाय बलात्कार को ‘ईश्वर प्रदत्त अधिकार’ के रूप में मानता है। यह बीमार लोग इस प्रकार के जघन्य काण्ड को मजहबी औचित्य के तौर पर उपयोग भी करते हैं, और येन केन प्रकारेण अपने ऐसे जिहादी भाइयों बहनों का बचाव भी करते हैं, जो गैर-मुस्लिम महिलाओं का शोषण करने में लिप्त होते हैं।

2017 में काहिरा में प्रसिद्ध अल-अजहर विश्वविद्यालय से महिला इस्लामिक प्रोफेसर सुआद सालेह ने जोर देकर कहा था, कि अल्लाह ने मुस्लिम पुरुषों को गैर-मुस्लिम महिलाओं को ‘अपमानित’ करने के लिए बलात्कार करने की अनुमति दी है। इस्लामवादी आक्रमणकारी गैर-मुस्लिम महिलाओं को यौन दासता के लिए विवश करने के लिए कुख्यात हैं।

यह लोग युद्ध में बंदी बनाई गई असहाय महिलाओं को माल-ए-गनीमत कहते हैं। इस्लामिक स्टेट ने हजारों यज़ीदी महिलाओं को सेक्स-गुलाम के रूप में रखा है, उनके साथ बलात्कार किया है, उन्हें प्रताड़ित किया है, उन्हें बदनाम किया है और अपने मजहब के नाम पर इन सभी अत्याचारों का बचाव भी किया है।

विभाजन के समय दो इस्लामी राष्ट्रों की स्थापना के लिए पाकिस्तान और बांग्लादेश को भारत से अलग किया गया था। इन दो इस्लामिक छद्म ‘लोकतंत्रों’ में गैर-मुस्लिम महिलाओं का अपहरण और बलात्कार इस हद तक सामान्य हो गया है कि जब इस्लामवादी गैर-मुस्लिम लड़की के साथ छेड़छाड़ या बलात्कार करते हैं तो पुलिस और प्रशासन भी कोई कार्रवाई नहीं करते हैं।

शायद, नाज़ को लगता है कि बांग्लादेश में उस 12-13 वर्षीय हिंदू लड़की के बारे में कोई नहीं जानता, जिसका अक्टूबर 2001 में बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी और जमात-ए-इस्लामी के साथ राजनीतिक संबंधों वाले इस्लामी पुरुषों की भीड़ द्वारा सामूहिक बलात्कार किया गया था। इस इस्लामवादी डॉक्टर द्वारा किए गए झूठे दावे कि “इस्लामी समाजों में बलात्कारियों को दंडित किया जाता है” के विपरीत उस हिन्दू लड़की के किसी भी बलात्कारी को फांसी नहीं दी गई – वह अभी भी न्याय मांग रही है।

1971 में तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में हुए नरसंहार के समय धार्मिक कट्टरता से प्रेरित पाकिस्तानी सेना और उनके इस्लामी सहयोगियों द्वारा हिंदू बंगाली महिलाओं के सामूहिक बलात्कार हमारी स्मृति में आज भी अंकित हैं। अजमेर शरीफ दरगाह के खादिम परिवार से सम्बन्ध रखने वाले फारूक चिश्ती, एक युवा कांग्रेस नेता और अजमेर के अन्य इस्लामवादियों द्वारा दर्जनों हिंदू लड़कियों का बलात्कार किया गया था, लेकिन ऐसी महिलाओं को यह सब नहीं दिखता।

आज भी हम देख रहे हैं कि ईरान की मुल्ला-नियंत्रित सरकार किस तरह “सम्मानपूर्वक” अपनी महिलाओं के साथ व्यवहार कर रही है। इस्लामवादी शरणार्थियों ने स्वीडन को यूरोप की ‘बलात्कार राजधानी’ बना दिया है यह किसी से छिपा नहीं है। कोई भी इस बात से बेखबर नहीं है कि कैसे ब्रिटिश पाकिस्तानी ग्रूमिंग गैंग ने ब्रिटेन में भी हजारों ईसाई और सिख लड़कियों के साथ बलात्कार किया है। कैसे सीरिया से भागे हुए इस्लामिक शरणार्थियों ने यूरोप को इस्लामिक जिहाद का अड्डा बना लिया है।

नाज अपने मजहब के बारे में कहती हैं कि, “मेरा धर्म बलात्कारियों को अंजाम तक पहुंचाता है”, लेकिन वह भूल जाती हैं कि इस्लामी शरिया कानून एक बलात्कार पीड़िता को चार मुस्लिम पुरुष गवाह लाने या उसके हमलावर द्वारा कबूलने के पश्चात ही सजा देता है। आप स्वयं समझ सकते हैं कि इन मामलों में कितने लोगों को सजा होनी संभव है, जब मजहबी कानून ही महिलाओं के इतना विरुद्ध है।

इन्हे तो यह भी ज्ञात नहीं होगा कि शरिया अदालतों द्वारा डीएनए साक्ष्यों की भी अवहेलना की जाती है। वहीं अगर पीड़िता अपने ऊपर हुए बलात्कार के लिए उचित साक्ष्य नहीं दे पाए तो उल्टा उसे ही पत्थर मारने या कोड़े मारने की सजा मिल जाती है । इस्लाम में दियाह (रक्त धन) की प्रथा भी है जिसका उपयोग पीड़िता के परिवार को बलात्कार और हत्या के बाद ‘मुआवजा’ करने के लिए किया जा सकता है। इस प्रथा में बलात्कारी थोड़ा सा धन दे कर अपने अपराध से मुक्त हो जाता है।

हमे यह भी पता लगा है कि नाज़ के फेसबुक अकाउंट को अभद्र भाषा और अन्य अवैधताओं के लिए कई बार रिपोर्ट किया गया है, लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है। वह खुल कर हिन्दुओं के विरुद्ध द्वेष फैलाती हैं, और इस्लामिक कुरीतियों का प्रचार प्रसार भी करती हैं।

गुलाफ्शा नाज़ ने अपने फ़ेसबुक पोस्ट के माध्यम से वह सब किया है जो एक औसत, काफिर से नफरत करने वाला, विषैला इस्लामवादी करना पसंद करता है :

  • भ्रामक और विपरीत चित्र प्रस्तुत करना।
  • इस तरह के विश्वास के साथ तथ्यों को छुपाएं और इस्लाम के बारे में झूठे दावे करें, ताकि सामान्य लोग उसे सच मान लें।
  • हिंदू धर्म और हिंदू मूल्यों से द्वेष करना।

हालाँकि, नाज़ अपने एक दावे में सही है: “हम कभी भी एक जैसे नहीं हो सकते।”

जो हिंदू नारी के सम्मान की रक्षा के लिए महाभारत शुरू करते हैं, जो अपनी महिलाओं के सम्मान के लिए समुद्र पार करते हैं, वह कभी भी पागल इस्लामिक कट्टरपंथियों के समान नहीं हो सकते हैं, जिनका इतिहास महिलाओं को सेक्स गुलाम बनाये रखने और सामूहिक बलात्कार करने का है। इस्लामवादियों के लिए फेसबुक पर उतरना और हिंदुओं के खिलाफ जहर उगलना आश्चर्यजनक नहीं है – सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म उनके विचारों को ही आगे बढ़ाते हैं, वहीं इन मंचों के सञ्चालन करने वाले लोग उनके द्वेष और जिहाद की ओर आँखें मूँद लेते हैं।

यहाँ सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि यह महिला मेडिकल की छात्रा है। समय के साथ, इलाज के लिए हिंदू मरीज उसके पास जा सकते हैं, ऐसे में क्या वह हिंदू रोगियों की देखभाल और ईमानदारी से इलाज कर पाएगी? क्या वह हिन्दुओं के प्रति अपने द्वेष और अपनी मजहबी कट्टरता को अलग रख कर मरीजों की चिकित्सा कर पाएगी? गुलाफ्शा नाज जैसे डॉक्टरों के पास हिंदू मरीज कितने सुरक्षित होंगे?

प्रश्न बड़े ही गंभीर हैं, और इनके उत्तर ढूंढने भी हिन्दुओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

अंग्रेजी लेख का हिन्दी अनुवाद: मनीष शर्मा

Subscribe to our channels on Telegram &  YouTube. Follow us on Twitter and Facebook

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest Articles

Sign up to receive HinduPost content in your inbox
Select list(s):

We don’t spam! Read our privacy policy for more info.

Thanks for Visiting Hindupost

Dear valued reader,
HinduPost.in has been your reliable source for news and perspectives vital to the Hindu community. We strive to amplify diverse voices and broaden understanding, but we can't do it alone. Keeping our platform free and high-quality requires resources. As a non-profit, we rely on reader contributions. Please consider donating to HinduPost.in. Any amount you give can make a real difference. It's simple - click on this button:
By supporting us, you invest in a platform dedicated to truth, understanding, and the voices of the Hindu community. Thank you for standing with us.