सलमान रुश्दी इन दिनों जीवन और मृत्यु के बीच संघर्ष कर रहे हैं। और भारत में हिंदू उनके जीवन के लिए प्रार्थना कर रहे हैं, उस पार्टी के लोग उनके लिए प्रार्थना कर रहे हैं, जिन्हें वह हिन्दुत्ववादी मानते थे और जिसकी बुराई वह किया करते थे! और उस कांग्रेस के लोग बहुत सम्हल सम्हल कर बातें कर रहे हैं, वह कथित प्रगतिशील उस मानसिकता को नहीं कोस रहे हैं, जिसने उन्हें जीवन मृत्यु के बीच पहुंचाया है।
ट्विटर पर पत्रकार कंचन गुप्ता ने इस प्रकरण को साझा करते हुए कहा कि
वर्ष 1999 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने सलमान रश्दी पर कांग्रेस पार्टी द्वारा लगाया गया प्रतिबन्ध हटा दिया था। यह प्रतिबन्ध वर्ष 1988 में लगाया गया था, और सलमान रुश्दी के उपन्यास सैटेनिक वर्सेस पर भी प्रतिबन्ध राजीव गांधी अर्थात कांग्रेस ने ही लगाया था।
परन्तु लुटियन पत्रकारों द्वारा आयोजित किए गए डिनर में उन्होंने नेहरू, उनके परिवार और कांग्रेस की तारीफ़ की थी और साथ ही हिन्दू राष्ट्रवादी भाजपा पर बरसे थे।
उसके बाद जब वर्ष 2004 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार के गिरने की खुशी में उन्होंने एक लेख लिखा था, और जिसमें उन्होंने भारत के हिन्दू राष्ट्रवादी भाजपा से मुक्त होने पर जश्न मनाया था। और मुख्यमंत्री मोदी की बुराई की थी तथा कांग्रेस को रक्षक बताया था
सलमान रुश्दी की इस स्थिति पर उस भाजपा और नरेंद्र मोदी के समर्थक दुःख व्यक्त कर रहे हैं, जिनके नेतृत्व की सरकार को सलमान रुश्दी ने “बुली” अर्थात धमकाने वाली सरकार कहा था। क्या लिखा था सलमान रुश्दी ने भारतीय जनता पार्टी की सरकार वर्ष 2004 में गिरने पर और वर्ष 2014 में मोदी सरकार आने पर!
वाशिंगटन पोस्ट में लिखा था कांग्रेस की सरकार के विषय में
वर्ष 2004 में जब भारतीय जनता पार्टी की सरकार चुनावों में वापस नहीं आ पाई थी और कांग्रेस की सरकार वापस आ गयी थी तो सलमान रुश्दी ने वाशिंगटन पोस्ट में एक लेख लिखा था “इंडियाज न्यू एरा” के नाम से जिसमें उन्होंने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की थी कि यह सरकार गयी क्योंकि यह सरकार इतिहास में परिवर्तन करने का प्रयास कर रही थी। और साथ ही आंध्र प्रदेश एवं तमिलनाडु में भारतीय जनता पार्टी की पराजय को ऐसा बताया था जैसे तकनीकी रूप से विकसित राज्यों में भाजपा नहीं जीत पाई है अर्थात जहाँ से वह जीती है वह तकनीकी रूप से पिछड़े हैं।
फिर वह अपनी दो इच्छाओं में से एक को बताते हुए लिखते हैं कि मेरी दूसरी इच्छा है कि अब भारत का इतिहास चरमपंथियों एवं विचारकों के चंगुल से मुक्त हो सकेगा। जाने वाली सरकार ऐतिहासिक ज्ञान का राजनीतिकरण कर रही थी और वह भारत के स्कूल एवं कॉलेज में संकुचित, हिन्दू राष्ट्रवादी दृष्टिकोण का इतिहास पढ़ाने जा रही थी। यहाँ तक कि रुश्दी की दृष्टि में रोमिला थापर एक बड़ी इतिहासकार हैं। और रुश्दी ने कांग्रेस से आशा की थी वह शिक्षा के अनुसार कूल ऑब्जेक्टिविटी को बनाए रखेगी।
फिर उन्होंने लिखा था कि यह तो भविष्य के गर्भ में है कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार जाने पर हिंसा फैलेगी या फिर आधुनिकीकरण के उस खोल में रहेगी जिसमें अटल बिहारी वाजपेई ने रखा था। तब तक हम इस आशा के दुर्लभ क्षण का लुत्फ़ उठाते हैं!
यह सलमान रुश्दी के विचारों का सार है जो उन्होंने श्री अटल बिहारी वाजपेई जी की सरकार के जाने पर व्यक्त किए थे, और वह भी उन वाजपेई जी की सरकार के लिए जिन्होनें उन्हें वीजा दिया था, उनका अघोषित प्रतिबन्ध समाप्त किया था, परन्तु फिर भी वाजपेई जी उनके लिए अस्पर्श्य थे और जिस कांग्रेस ने उनकी किताब को प्रतिबंधित किया था, वह उनके लिए रक्षक थी!
क्या कहा था प्रधानमंत्री मोदी के विषय में?
इतना ही नहीं, सलमान रुश्दी को नरेंद्र मोदी सरकार का भी आलोचक माना जाता है। जब नरेंद्र मोदी सरकार के आने की आहट थी, तभी उन्होंने इस सरकार के विषय में बात करते हुए कहा था कि मोदी के नेतृत्व में सरकार धमकाने वाली सरकार होगी। मई 2014 में दसवें वार्षिक पेन वर्ल्ड वोइस फेस्टिवल में मीडिया से बात करते हुए कहा था कि मोदी सरकार एक बुलींग सरकार होगी जिसमें बोलने की आजादी नहीं होगी और जिसमें भय का वातावरण होगा।
इतना ही नहीं उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को “हार्डलाइनर का हार्डलाइनर” अर्थात कट्टर से भी कट्टर कहा था!
उन्होंने कहा था कि समय बहुत खराब आने वाला है क्योंकि ऐसा लग रहा है जैसे चुनावों में हिन्दू राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी सरकार आरही है और एक अत्यंत विभाजनकारी व्यक्ति जो कट्टरपंथियों से भी कट्टर है, वह भारत का प्रधानमंत्री होने जा रहा है!
प्रधानमंत्री के प्रशंसकों को मोदी टोडीज कहा था!
सलमान रुश्दी ने भारत में चल रहे उस एजेंडा पुरस्कार वापसी अभियान को समर्थन दिया था, जिसके विषय में कहा जाता है कि पुरस्कार वापस करने वाले लेखकों में से बहुत ही कम लोगों ने पुरस्कार वापस नहीं किया था! zee news के अनुसार
सिर्फ 13 लेखकों ने ही पैसे और स्मृति चिन्ह दोनों लौटाए. हालांकि 39 में से 35 लेखकों ने अवॉर्ड की धनराशि वापस करने के लिए साहित्य अकादमी को चेक ऑफर किया है. लेकिन साहित्य अकादमी का ऐसा कोई नियम नहीं है, जिसके मुताबिक साहित्य अकादमी अवॉर्ड वापस ले सके. जिन 35 साहित्यकारों ने अवॉर्ड के पैसे लौटाने के चेक साहित्य अकादमी को दिए हैं, उनके पैसे आज भी उन्हीं के बैंक खातों में मौजूद हैं. उस पैसे को साहित्य अकादमी अपने पास वापस नहीं ले सकती है. ये नियम इन सभी लेखकों और साहित्यकारों को अच्छी तरह से पता है, क्योंकि साहित्य अकादमी इन्हीं लेखकों और साहित्यकारों द्वारा ही संचालित होती है. इसके बावजूद भी इनके द्वारा अवॉर्ड वापसी का ऐलान करना महज सुर्खियों में बने रहने का और एक प्रोपेगैंडा फैलाने का खेल ही नजर आता है.
वर्ष 2015 में यह सरकार को बदनाम करने के एक अभियान के साथ आरम्भ हुआ था और नयनतारा सहगल ने यह अभियान आरम्भ किया था।
इस पर सलमान रुश्दी ने उन सभी लेखकों का समर्थन करते हुए प्रधानमंत्री मोदी के समर्थकों को मोदी टोडीज कहा था। इसे हम “भक्त” का अंग्रेजी संस्करण मान सकते हैं जैसा कि द गार्जियन ने भी लिखा था कि सलमान रुश्दी ने जिन्हें मोदी टोडीज कहा है उन्हें भक्त के रूप में भी जाना जाता है जो हर जगह पाए जाते हैं!
यह भी अजीव विडंबना है कि जिन्हें सलमान रुश्दी ने मोदी टोडीज कहा, अपमानित किया, जिस विचार को बार बार अपनी कथित प्रगतिशीलता के चलते अपमानित किया, अपने लुटियन प्रेम के चलते कोसा, वही मोदी टोडीज उनके स्वास्थ्य के लिए कामना कर रहे हैं और जिनके लिए वह सॉफ्ट बने रहे, जिनके इशारे पर हिन्दू, हिंदुत्व एवं हिन्दूवादियों को कोसते रहे, वह “किन्तु, परन्तु” के साथ उनके हमलावर की आलोचना कर रहे हैं!
काश कि आपने भी समझा होता कि सत्य क्या है? परन्तु दुखद है कि इस हमले के बाद भी आपके साथी प्रगतिशील लेखक यही कहेंगे कि यह “किसी भटके हुए का काम है!”
यही प्रगतिशीलता का सत्य है, जो हिन्दुओं को कोसती है, जो हिंदुत्व का अपमान करती है और जो आत्मघात को आमंत्रित करती है और एक ओर वह लोग हैं, जिन्हें हिंदुत्व के नाम पर कोसा जाता है, बिना कारण अपमानित किया जाता है, फिर भी वह दुःख में, घात में खड़े रहते हैं आपके साथ! अभी भी आपकी सलामती की दुआ वही लोग अधिक कर रहे हैं, जिन्हें आप कोसते रहे! यही हिन्दू है और यही हिंदुत्व!