भारत में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में हिन्दू धर्म पर पहला पाठ्यक्रम आरम्भ किया है। यह अत्यंत हैरानी एवं क्षोभ की बात है कि कथित रूप से हिन्दुओं की बहुलता वाले देश में हिन्दू धर्म पर जहाँ पहला पाठ्यक्रम बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में आरम्भ किया गया है तो वहीं इस्लामिक स्टडीज एवं क्रिश्चियन स्टडीज के कई पाठ्यक्रम भारत में पहले से चल रहे हैं। आप उन्हें पढ़कर डिग्री ले सकते हैं एवं अपना कैरियर बना सकते हैं।
परन्तु भारत में हिन्दू धर्म के अध्ययन पर पाठ्यक्रम नहीं था। ऐसा नहीं है कि हिन्दू धर्म की पुस्तकों को एकेडमिक विमर्श के दायरे से बाहर रखा गया हो। दुर्भाग्य यही रहा कि हिन्दुओं के धार्मिक ग्रंथों को सामान्य साहित्य के ग्रन्थ मानकर शोध किए गए, जिन्हें समाधि का अर्थ नहीं ज्ञात था, उन्होंने प्रभु श्री राम की जल समाधि को आत्महत्या लिखा। हमारे बच्चों की पुस्तकों में हिन्दू धर्म की निंदा करने वाली कविताएँ भर डाली गईं। परन्तु हिन्दू धर्म को एक विषय के रूप में नहीं पढ़ाया गया!
इतिहास से यह पूरी तरह से विलुप्त करने का प्रयास किया गया कि अंतत: हिन्दू धर्म पर क्या अत्याचार हुए, हिन्दू धर्म के मूलभूत सिद्धांत क्या हैं और इतने संक्रमणों के उपरांत क्या रह गए। परन्तु हिन्दू धर्म को अपने अकेडमिक प्रयोग के लिए अवश्य प्रयोग किया गया।
जिन लोगों को संस्कृत नहीं आती थी, जिन लेखिकाओं ने रामायण और महाभारत कभी नहीं पढ़ा, और यदि पढ़ा भी तो उनकी अपनी विकृत व्याख्याओं को क्रांति माना गया, और इन समस्त विकृत व्याख्याओं से इस्लामिक स्टडीज एवं क्रिश्चियन स्टडीज को अछूता रख दिया गया।
बार बार हिन्दू धर्म को एकेडमिक्स में अपमानित किया गया एवं मुस्लिम तथा ईसाई परस्त लेखकों एवं लेखिकाओं को ही लेखिका माना गया तथा उनकी विकृत मानसिकता वाली रचनाओं से हमारे बच्चों की पुस्तके सजा दी गईं। हालफिलहाल में जो एनसीईआरटी की पुस्तकें चलन में हैं, उनमें बच्चों को इतिहास में महाभारत का सन्दर्भ देते हुए महाश्वेता देवी की कहानी “कुंती ओ निषादी” पढ़ाई जा रही है।
प्रश्न यही उठता है कि अकेडमिक्स में हिन्दू धर्म के साथ इतनी स्वतंत्रता लेने वाले शिक्षाविदों ने हिन्दू धर्म पर किसी ठोस पाठ्यक्रम की बात क्यों नहीं की? रामायण से लेकर महाभारत तक हर ग्रन्थ की तोड़मोड़ कर व्याख्या की गयी, वेदों को अपमानित किया गया और यहाँ तक कहा गया कि वेदों में गौमांस का वर्णन है।
स्मृतियों को अपमानित किया गया। एक प्रकार का दुराग्रह हिन्दू धर्म के प्रति अकादमिक स्तर पर विकसित किया गया, उसे पाला पोसा गया और अब आकर उसका परिणाम हम आज की कथित शिक्षित पीढी में फक हिंदुत्व के रूप में देखते हैं।
स्वागत योग्य है यह प्रथम पाठ्यक्रम
हिन्दू अध्ययन में यह पाठ्यक्रम स्वागत योग्य है। 18 जनवरी 2022 को इस पाठ्यक्रम की शुरुआत की गयी।
इस पाठ्यक्रम का उद्घाटन कुलगुरु प्रोफ़ेसर वीके शुक्ला ने किया और उन्होंने पाठ्यक्रम में देश भर से प्रवेश पाने वाले 45 विद्यार्थियों को शुभकामनाएँ दीं।
प्रोफ़ेसर शुक्ला के अनुसार पाठ्यक्रम हिन्दू धर्म से जुड़े विभिन्न पहलुओं से विश्व को अवगत कराएगा।भारत अध्ययन केन्द्र के समन्वयक प्रो।सदाशिव द्विवेदी ने कहा कि इस कोर्स में त्रिनिदाद एवं टोबैगो से भी एक छात्र ने प्रवेश लिया है।उन्होंने कोर्स के विभिन्न पहलुओं के बारे में जानकारी दी।
युवा पीढ़ी को अब धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की धारणाओं के विषय में पता चलेगा। उन्हें पूर्वजन्म के बन्धनों को जानने का भी अवसर प्राप्त होगा तथा साथ ही वह रामायण और महाभारत का अध्ययन कर सकेंगे।
अमर उजाला में प्रकाशित समाचार के अनुसार भारत अध्ययन केंद्र बीएचयू के समन्वयक प्रोफ़ेसर ने इस पाठ्यक्रम में प्रवेश प्रक्रिया के विषय में बताते हुए कहा कि “
नेशनल टेस्टिंग एजेंसी यानी एनटीए की ओर से कराई गई प्रवेश परीक्षा में इस बार 265 अभ्यर्थियों ने आवेदन किया था। रैंक और प्रवेश के नियमानुसार दाखिला लिया जा रहा है। इस कोर्स को साप्ताहिक चलाया जाएगा। इसमें बीएचयू के विभिन्न विभागों के शिक्षकों को जोड़ा जाएगा।
एमए हिंदू अध्ययन पाठ्यक्रम शुरू करने वाला बीएचयू देश का पहला विश्वविद्यालय है। छात्र बहुत उत्सुक हैं। पहले ही साल रेग्यूलर की सभी 40 सीट में 39 पर दाखिले हो चुके हैं। इसके अलावा छह पेड सीट भी भर गई है। एक विदेशी छात्र ने भी दाखिला लिया है। कुलपति के निर्देशन में इसका संचालन कराया जा रहा है।“
हालांकि हिन्दुओं की बहुलता वाले देश में ऐसे पाठ्यक्रम का न होना स्वयं में एक अपमानजनक बात थी क्योंकि यह प्रश्न सहज उठता ही है कि जब आप अब्राहिक रिलिजन का अध्ययन आधिकारिक रूप से कर सकते हैं, उनमें कैरियर बना सकते हैं, फिर हिन्दू धर्म में ऐसा क्यों नहीं है? क्या एकेडमिक्स में हिन्दू धर्म मात्र उपहास का ही विषय था, या फिर तरह तरह के उस शोध का जिनका अंतिम परिणाम उसे अपमानित करना ही होता था, उसे स्त्री विरोधी ठहराना होता था।
जिन्हें संस्कृत और रामायण बोध नहीं था उन्होंने सीता माता और प्रभु श्री राम पर कहानियाँ लिखीं, कविताएँ लिखीं।
सोशल मीडिया पर भी कुछ यूजर्स ने कहा कि हिन्दू बहुत देश में स्वतंत्रता के 74 वर्ष उपरान्त हिन्दू अध्ययन में पाठ्यक्रम आरम्भ होना वास्तव में हर दल के लिए शर्म की बात है:
हिन्दू पाठ्यक्रम आरंभ करने के साथ साथ अब अकादमिक स्तर पर यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि पाठ्यक्रम से वह सभी अवांछित प्रसंग निकाले जाएं जो असत्य होने के साथ हिन्दू धर्म के प्रति दुराग्रह से भरे हुए हैं।