“हर हर शंभू” गाना गाकर ख्याति पाने वाली फ़रमानी नाज ने अपने चैनल से उस गाने को हटा दिया है। ऐसा इसलिए किया है क्योंकि इस गाने को लिखने वाले जीतू शर्मा ने कानूनी कार्यवाही की बात की थी। जीतू शर्मा ने कहा था कि यह उनका लिखा हुआ है और इस गाने का क्रेडिट कहीं न कहीं मीडिया पूरी तरह से फ़रमानी नाज को दे रहा है, जिन्होनें उसकी मात्र कॉपी की है।
मीडिया द्वारा इस गाने को फ़रमानी नाज का बताए जाने पर आम लोगों में भी बहुत आक्रोश था क्योंकि यह सेक्युलर वर्ग का बहुत बड़ा खेल है, छल है जिसमें वह हिन्दू प्रतीकों को मुस्लिमों का प्रमाणित कर देते हैं, और सन्दर्भ भी ऐसे देते हैं, जिनकी प्रमाणिकता नहीं होती है। जैसा हमने इतिहास में देखा है और जैसा हमने रक्षाबंधन पर्व के मामले में देखा है। रक्षाबंधन को पहले तो रानी कर्णावती एवं हुमायूं के बीच हुए पत्राचार को लेकर हिन्दुओं से छीनने का प्रयास किया गया, तो वहीं दो वर्ष पहले ही अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की इतिहासकार ने रक्षाबंधन को मुगलों का लाया हुआ बता दिया था।
हालांकि उनका यह झूठ पकड़ा गया था और जब इन ऐतिहासिक तथ्यों का विश्लेषण किया गया तो पाया गया कि उन्होंने यह सन्दर्भ किसी बज़्म –ए – आखिर से लिया था, जिसे वर्ष 1885 में लिखा गया था। अर्थात किसी भी ऐतिहासिक सन्दर्भ से उन्होंने इसे नहीं लिया था। यही अनैतिहासिक सन्दर्भ ही बाद में जाकर किसी न किसी एजेंडा इतिहासकार द्वारा प्रयोग कर लिए जाते हैं,
कहीं न कहीं यही खेल भी इस गाने के साथ खेला गया। और फिर जब बाद में हंगामा हुआ तो कुछ लोगों ने कहा कि पहले से धुन उपलब्ध है, पहले से हर हर शंभू शब्द उपलब्ध हैं, तो ऐसे में क्या कॉपीराईट का मामला?
इसे दूसरी तरह से समझना होगा कि राम कथा एवं महाभारत कथा भारत में शताब्दियों से उपस्थित है, परन्तु महर्षि वाल्मीकि की रामायण को हूबहू लिख देना तो नकल ही कहलाएगी। रामकथा को कई तरीके से एडेप्ट किया जा सकता है, उसका प्रतिकथन हो सकता है, परन्तु महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखी गयी रामायण तो उन्ही की कही जाएगी?
जैसे वही रामकथा कलयुग में आते आते रामचरित मानस के रूप में आई तो वह राम कथा होते हुए भी वाल्मीकि जी की रामायण से एकदम पृथक थी। तो यह समझना होगा कि लोक धुन पर शब्द बैठाना अलग बात है और पहले से व्याप्त तत्वों के आधार पर बनी रचना को पूरी तरह से चुरा लेना, वह अलग बात है!
यह दो अलग अलग तथ्य हैं, जिनपर लोगों का ध्यान नहीं था और जीतू शर्मा एवं अभिलिप्सा पांडा की आवाज का मूल गाना, यूट्यूब पर कॉपी राईट के मामले को लेकर प्रतिबंधित कर दिया था क्योंकि लोगों ने शिकायत की थी यह कृष्ण भक्त अच्युता गोपी जी की धुन है।
हालांकि यह धुन लोक धुन है, परन्तु अच्युता गोपी जी से इस भजन धुन की अनुमति जीतू शर्मा ने ली थी। अत: यह वीडियो शीघ्र ही वापस आ गया। परन्तु उसी बीच मूल गाने को पश्चिमी उत्तर प्रदेश की मुजफ्फरनगर में रहने वाली फ़रमानी नाज ने गा दिया था। कहा यह भी जा रहा है कि फ़रमानी नाज ने यह कहा कि यह उनका ही गाना है। इस बात को लेकर मूल लेखक जीतू शर्मा को आपत्ति है और उन्होंने कहा था कि उन्हें फ़रमानी नाज के गाने से कोई आपत्ति नहीं है, परन्तु उन्हें उनके गाने का श्रेय दिया जाना चाहिए।
आजतक से बात करते हुए जीतू शर्मा ने कहा था कि फरमानी उन्हें क्रेडिट दें और माफी मांगे, नहीं तो वे कानूनी कार्रवाई करेंगे।
उन्होंने इस गाने की कहानी बताते हुए कहा था कि इस गाने के लिए उन्हें अपनी लोडर गाड़ी भी बेचनी पड़ गयी थी। वहीं फरमानी नाज कह रही हैं कि यह गाना दरअसल उन्होंने ही लिखा है और उनका ही गाना असली है जो बीच में डिलीट हो गया था।
जबकि कहानी उल्टी है। कहानी यह है कि अभिलिप्सा और जीतू शर्मा का गाया हुआ गाना मई 2022 में रिलीज हुआ था और उसे यूट्यूब ने फर्जी स्ट्राइक के चलते हटा दिया था, हालांकि वह शीघ्र ही वापस आ गया था। परन्तु तब तक फ़रमानी नाज इसे गा चुकी थीं और न जाने कैसे धमकी के कारण, कि फतवा जारी हुआ है, आदि आदि की बातें फैलीं और उन्हें अचानक से ही प्रसिद्धि मिली।
तब भी उन्होंने यह नहीं कहा कि यह गाना उनका नहीं है। जीतू शर्मा और अभिलिप्सा पांडा का गाना 5 मई 2022 को रिलीज हुआ था, और अब तक आठ करोड़ लोग इस गाने को देख चुके हैं। और न जाने कितने और चैनलों पर यह लाखों दर्शकों को खींच चुका है। फिर भी फरमानी नाज ने ऐसा किया, और ऐसा क्यों किया, यह समझ से परे है?

ऐसा दावा फ़रमानी ने क्यों किया कि यह गाना उनका है, और उन्होंने ही संगीत दिया है, जबकि यह लोक धुन है और इस धुन का प्रयोग अमेरिका में इस्कोन भक्त अच्युता गोपी जी कर चुकी हैं। इसी लोक धुन की अनुमति जीतू शर्मा ने ली थी और इस प्रकार यह ऐतिहासिक भजन तैयार हुआ था।
संघर्षों से भरा हुआ है जीतू शर्मा का जीवन
फ़रमानी नाज ने अपना निजी जीवन इस भजन के बहाने से बेचा और कहा कि वह गरीब थीं आदि आदि! परन्तु उन्होंने जब मूल लेखक के श्रम की चोरी की तब उन्हें लाज नहीं आई और वह भी उस लेखक की, जिसने इस गाने के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया था, यहाँ तक कि अपनी लोडर गाड़ी बेच दी थी। और जीतू ने कहा था कि
“”बेची हुई लोडर गाड़ी को उन्होंने इएमआई पर खरीदा था। उसके लिए मैंने 80 हजार डाउन पेमेंट किया था। उसकी चार साल तक ईएमआई भी भरी। वह कूरियर कंपनी में लगी हुई थी। कोविड के दौरान वह भी छूट गई थी। मैंने वह गाड़ी 60 हजार में बेच दी। रिकार्डिंग के लिए मुझे जमशेदपुर जाना होता था। वहां जाने पर एक बार में 500 का खर्च आता था। उसमें मैं जाता था और अभिलिप्सा को भी ले जाता था।”
उन्होंने यह कहा कि उन्हें इससे कोई आपत्ति नहीं है कि फ़रमानी नाज इसे गा सकती हैं, परन्तु उन्हें इस बात का क्रेडिट दिया जाना चाहिए कि यह गाना उनका है।
अब कहा जा रहा है कि यूट्यूब ने फ़रमानी नाज के चैनल से हर हर शंभू हटा दिया है। हालांकि वह अभी और चैनलों पर उपस्थित है,

मीडिया और इकोसिस्टम द्वारा पहचान छीनकर कल्चरल या सांस्कृतिक जीनोसाइड करने का कुप्रयास किया गया है जैसा इकोसिस्टम अभी तक करता हुआ आया था। जैसे होली छीन ली गयी, और जैसे रक्षाबंधन छीन लिया और जैसे दीपावली छीन ली, जैसे हमारे सारे प्रतीक छीने जाने का षड्यंत्र रचा गया। और इस बार षड्यंत्र और भी अधिक बड़ा था क्योंकि यह हिन्दुओं के सबसे बड़े बाजार अर्थात भजन के बाजार को भी विधर्मी के हाथों में सौंपने का षड्यंत्र ही प्रतीत हुआ था!
इस षड्यंत्र के माध्यम से हिन्दुओं के अस्तित्व के सबसे बड़े प्रतीक अर्थात महादेव को अभिलिप्सा पांडा और जीतू शर्मा के हाथों से छीनकर किसी फ़रमानी के हाथ में सौंपने का ही कहीं न कहीं षड्यंत्र था और दुर्भाग्य की बात यह है कि इस जाल में कुछ राष्ट्रवादी भी फंस गए थे क्योंकि फरमानी को फतवे की बात पर उनकी सहानुभूति उसके साथ हो गयी जबकि फरमानी ने यह स्वयं स्वीकारा कि उन्हें कोई भी फतवा नहीं दिया गया!