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Saturday, April 27, 2024

भारत की चिंताओं के पश्चात भी संयुक्त राष्ट्र में हिंदू विरोधी ‘दलित’ गैर सरकारी संगठन ‘आईडीएसएन’ को मान्यता दिलवाई

संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद (ईसीओएसओसी) ने एक कुख्यात हिंदू विरोधी संगठन, इंटरनेशनल दलित सॉलिडैरिटी नेटवर्क (आईडीएसएन) को सलाहकार का दर्जा दे दिया है। ब्रिटेन, अमेरिका, और कुछ अन्य यूरोपीय देशों ने आईडीएसएन के आवेदन का समर्थन किया। यह संगठन पिछले 15 वर्षों से ईसीओएसओसी में सलाहकार बनने के लिए प्रयास कर रहा था, लेकिन भारतीय सरकार के प्रयासों से यह सफल नहीं हो पा रहा था।

संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के सदस्य देशों ने 9 गैर सरकारी संगठनों को मान्यता देने के निर्णय पर मतदान किया, जिनके आवेदन सितंबर, 2022 में एनजीओ समिति द्वारा उन्हें अस्वीकार करने के निर्णय के कारण स्थगित अवस्था में थे। उनमें से एक इंटरनेशनल दलित सॉलिडेरिटी नेटवर्क था, जिसका आवेदन भारतीय सरकार के ‘दबाव’ के कारण पिछले 15 वर्षों से स्थगन पर था।

इस निर्णय को बदलने का एकमात्र तरीका था सदस्य देशों द्वारा इन एनजीओ के पक्ष में मतदान करना और ईसीओएसओसी की बैठक में इन संगठनों का समर्थन भी करना, और यही कार्य 7 दिसंबर को हुआ था। अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय देशों सहित 24 देशों ने इस मतदान में भाग ले कर इस गैर सरकारी संगठन का समर्थन किया, वहीं भारत, चीन और रूस ने इसके विरुद्ध मतदान किया था।

क्या है इंटरनेशनल दलित सॉलिडेरिटी नेटवर्क?

इंटरनेशनल दलित सॉलिडेरिटी नेटवर्क एक कथित ‘मानवाधिकार’ गैर सरकारी संगठन है, जिसकी स्थापना 2000 में “दलित मानवाधिकारों का समर्थन करने और राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दलित विषयों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए” की गई थी। यह संगठन दावा करता है कि महत्वपूर्ण मानवाधिकार विषयों पर जातिगत भेदभाव का अंतर्राष्ट्रीयकरण करना ही इसकी एकमात्र उपलब्धि है।

यह भी कहा जा सकता है कि भारत के आतंरिक विषयों को तोड़ मोड़ कर उन्हें वैश्विक पटल पर रख भारत की छवि को खराब करना ही इसका एकमात्र ध्येय है। इस संगठन का नाम देखकर आपको लग सकता है कि यह कोई भारतीय संगठन होगा, लेकिन यह एक विदेशी संगठन है। इसका मुख्यालय डेनमार्क के कोपेनहेगन में स्थित है, यह संगठन “सदस्यों देशों और सहयोगी मानवाधिकार संगठनों ” से सूचनाएं लेता है, और भारतीय दलितों के पक्ष में पैरवी और अन्य गतिविधियों का समन्वय करता है।

आईडीएसएन की कई यूरोपीय देशों में शाखाएं हैं और इसे चर्च संगठनों और यूरोपीय देशों की अन्य संस्थाओं द्वारा वित्त पोषित किया जाता है। संगठन ने कई वर्षों से भारत, ब्रिटेन और अन्य देशों में जातिगत भेदभाव के बारे में झूठे अभियान चलाए हैं, जिसमें आरोपों को साबित करने के लिए कोई विश्वसनीय साक्ष्य भी प्रस्तुत नहीं किये गए हैं। यह संगठन ‘इक्वैलिटी लैब्स’ के नाम पर अमेरिकी हिंदुओं पर जातिगत भेदभाव के आरोप लगा कर उनका शोषण भी करता है। यह आईडीएसएन ही है जो इक्वैलिटी लैब्स के संस्थापक थेनमोझी सुंदरराजन को भारत विरोध विचारों को व्यक्त करने का मंच प्रदान करता है।

आईडीएसएन ने पिछले दिनों ब्रिटेन के समानता अधिनियम में ‘जातिगत भेदभाव प्रावधान’ को लागू करने के लिए एक अभियान भी चलाया था।उस अभियान के कारण ब्रिटेन में सामाजिक एकता को बहुत हानि पहुंची थी, और विभिन्न धर्म के लोगों के मध्य तनाव भी उत्पन्न हो गया था। हालांकि 2018 में जाति कानून पर अपने परामर्श के समापन के पश्चात ब्रिटेन ने जातिगत भेदभाव कानून में इस प्रावधान को लागू नहीं करने का निर्णय किया था।

इस संगठन के कुछ भारतीय सहयोगी भी हैं, आइये उनके बारे में भी जानकारी प्राप्त करें।

दलित मानवाधिकारों पर राष्ट्रीय अभियान (एनसीडीएचआर) – यह गैर सरकारी संगठन है, जो वास्तव में गृह मंत्रालय के साथ पंजीकृत है। इसका नेतृत्व पॉल दिवाकर नमाला कर रहे हैं , जो आरटीई (शिक्षा का अधिकार कानून) विषय में अपने ‘योगदान’ के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होंने ईसाई एड, मिसेरेर, ब्रेड फॉर द वर्ल्ड और अन्य जैसे बड़े और भारत विरोधी ईसाई संगठनों से धन प्राप्त किया है।

नवसर्जन ट्रस्ट– यह एक और गैर सरकारी संगठन है जो चर्च के पैसे से चलता है। इसकी स्थापना मार्टिन मैकवान द्वारा की गयी थी, हालांकि 2017 में इस संस्था का एफसीआरए पंजीकरण केंद्र सरकार ने रद्द कर दिया था। यह संगठन कथित रूप से अनुसूचित जातियों के अधिकारों की रक्षा करने का दावा करता है। इसके निदेशक के एक साक्षात्कार के आधार पर यह पता लगता है कि इस संगठन का कुल वार्षिक राजस्व का 85% एफसीआरए के माध्यम से विदेशी ‘दान’ से आया था, और इसके मुख दानकर्ता मिसेरेर है, जो जर्मनी की एक मिशनरी संस्था है।

पीपल्स वॉच– यह मानवाधिकार सेवा करने का स्वांग रचने वाला एक अन्य गैर सरकारी संगठन है, जो पंजीकृत भी नहीं है। एक समय था जब इसका नाम लगभग हर हफ्ते मीडिया की खबरों में देखा जाता था, मुख्यतः न्यायायिक कार्यवाहियों में। पीपल्स वॉच, सेंटर फॉर प्रमोशन ऑफ सोशल कंसर्न (सीपीएससी) की एक कार्यक्रम इकाई है, जिसका लाइसेंस 2016 में केंद्र सरकार ने रद्द कर दिया था।

सीपीएससी ने कुख्यात अंतरराष्ट्रीय चर्च-संबंधित संगठनों जैसे कि ब्रेड फॉर द वर्ल्ड (बीएफडब्ल्यू), मिसेरेर, डेनिश चर्च, यूनाइटेड चर्च फाउंडेशन, कॉमन ग्लोबल मिनिस्ट्रीज, कैथोलिक ऑर्गनाइजेशन फॉर रिलीफ एंड डेवलपमेंट एड (कॉर्डेड) और स्विस संगठन एंफैंट्स डू मोंडे से धन प्राप्त किया है। आप सीपीएससी पर एक विस्तृत लेख यहां पढ़ सकते हैं।

दलित महिलाओं का राष्ट्रीय संघ – एनएफडीडब्लू की स्थापना रूथ मनोरमा ने की थी। वह ऊपर उल्लिखित एनसीडीएचआर के पॉल दिवाकर नमाला की सहयोगी हैं और एक अन्य एफसीआरए एनजीओ ह्यूमन राइट्स एडवोकेसी एंड रिसर्च फाउंडेशन (एचआरएआरएफ) की कार्यकर्ता हैं।

आईडीएसएन के अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों में लूथरन वर्ल्ड फेडरेशन, आईसीएमआईसीए/पैक्स रोमाना, चर्चों की विश्व परिषद और फ्रांसिस्कन्स इंटरनेशनल सम्मिलित हैं। ऐसे कुख्यात सहयोगियों के साथ मिलकर यह संगठन मिशनरी के दुष्प्रचार को आगे बढ़ाता है, और भारत और नेपाल जैसे हिन्दू बहुल देशों में जातिगत मतभेदों का दुरूपयोग कर धर्मांतरण कराने का कार्य करता है।

ब्रिटेन, अमेरिका और यूरोपीय सरकारों द्वारा इसका समर्थन करने का अर्थ है कि यह देश भी येन केन प्रकारेण ईसाई धर्मांतरण की आक्रामक नीति का समर्थन करते हैं। यह संगठन भारत की प्राचीन धार्मिक प्रथाओं का विरोध करता है, मूर्तिपूजा को बुरा बताता है, और हिन्दुओं को जातिवादी बता उन्हें नीचे दिखाने का प्रयास करता है।

धर्मांतरण के परिणामस्वरूप भारत जैसे देशों में ऐसी संस्थाएं अनुचित हस्तक्षेप करती हैं, और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में दुर्भावना पैदा करती हैं। यही कारण था कि भारत सरकार इस संस्था का पिछले 15 वर्षों से विरोध कर रही थी, लेकिन अब आईडीएसएन संयुक्त राष्ट्र का सलाहकार का दर्जा प्राप्त कर चुका है। इससे यह स्पष्ट हो गया है कि यह पश्चिम देश पूरी तरह से भारत का विरोध करने पर उतर आये हैं, और भारत की छवि को धक्का पहुंचाने का कार्य कर रहे हैं।

ऐसा लगता है जैसे आने वाले समय में वैश्विक विमर्श में हिन्दू धर्म की और बुराई के लिए तैयार रहना होगा एवं एक ऐसे विमर्श को निरंतर ही तैयार करना होगा जो इस विध्वंसक विमर्श का काट कर सके

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