इस समय बॉलीवुड निराश है। हिन्दुओं के प्रति घृणा से भरा हुआ बॉलीवुड एक ओर अपने नुकसान पर रो रहा है तो वहीं दूसरी ओर वह यह भी देखने के लिए तैयार नहीं है कि आखिर उससे कहाँ गलती हो रही है या फिर क्यों लोग उससे नाराज हैं। इसी बीच बीबीसी भी अपनी दुराग्रह पूर्ण कहानी लेकर उपस्थित हो गया है, जिसमें विरोध करने वाली जनता को या अपनी बात कहने वाले राष्ट्रवादी यूट्यूब चैनलों को लेकर घेरा गया है। यद्यपि यह दोनों अलग अलग समाचार हैं, परन्तु उसके मूल में एक ही है, वह है जम कर किया जा रहा हिन्दू विरोध और औपनिवेशिक परिभाषा वाले अल्पसंख्यको का तुष्टिकरण!
पहले बॉलीवुड को हुए कथित नुकसान और प्रोड्यूसर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने सरकार से क्या मांग की है, यह देखना होगा। मीडिया के अनुसार पिछले दो वर्षों में फिल्म उद्योग को लगभग 21,000 करोड़ रूपए का नुकसान हो चुका है। यह नुकसान हालांकि कहा जा रहा है कि कोरोना के कारण हुआ है, फिल्म रिलीज़ बॉक्स ऑफिस को होने वाली कमाई भी 10% के लगभग रह गयी है।
दैनिक भास्कर के अनुसार इंडस्ट्री ने बजट में पैकेज माँगा है। परन्तु यह भी विरोधाभास है कि जहाँ कोरोना के चलते हिन्दी फिल्मों को नुकसान हुआ है, वहीं दक्षिण भारतीय फिल्मों के साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ है। ऐसा क्या कारण है कि 1983 में क्रिकेट विश्वकप की जीत पर बनी फिल्म फ्लॉप हो जाती है और दक्षिण भारत की फिल्म पुष्पा सुपरहिट ही नहीं होती है बल्कि हिन्दी भाषा में लगभग सारे रिकॉर्ड जैसे तोड़ रही है।

क्यों ऐसा हो रहा है कि दर्शक हिन्दी फिल्मों को नकार रहा है? क्यों ऐसा हो रहा है कि हिन्दी फिल्मों के नकारे जाने पर बीबीसी एक दुराग्रह पूर्ण स्टोरी बना रहा है। यह दोनों ही मामले आपस में जुड़े हुए हैं क्योंकि इन दोनों के ही मूल में अत्यधिक हिन्दू विरोध है।
बॉलीवुड से पूछा जाना चाहिए कि आखिर एक हिन्दू बॉलीवुड की फिल्मों को क्यों देखे? जबरन सेक्युलर बनने के लिए या फिर हिन्दू विरोधी कंटेंट को देखने के लिए?
बॉलीवुड की फिल्मों में वामपंथियों का इस हद तक कब्जा हो गया है कि ऐसा लगता है कि वह जैसे हिन्दू धर्म के लोगों के ठेकेदार हो गए हैं और उसे कथित रूप से सुधारने के लिए फ़िल्में बना रहे हैं। राजनीतिक कंटेंट बनाए गए, जैसे उड़ता पंजाब और साथ ही साम्प्रदायिकता को एक रंग देने का प्रयास किया गया। पीके, ओह माई गॉड जैसी कई फिल्मों के माध्यम से जमकर हिन्दू विश्वासों का उपहास उड़ाया गया।
इतना ही नहीं सुशांत सिंह राजपूत की मृत्यु के साथ जो नशे के व्यापार का पता चला, क्या उसके कारण हुए नुकसान की भरपाई भी आम जनता करेगी?
इतना ही नहीं जो कुछ ही मुट्ठी भर घराने हैं, जो कथित रूप से नए लोगों को सामने लाते हैं, वह हमेशा ही स्टार किड्स को ही लांच करते हैं, सुशांत सिंह राजपूत जैसे आम जीवन से जुड़े लोग आगे बढ़ते हैं तो उसका विरोध किया जाता है और ऐसे वीडियो भी दिख जाते हैं। कंगना रनावत जैसी अलग विचार वाली नायिकाओं के साथ एक अत्यंत अलग व्यवहार किया जाता है।
चूंकि कंगना रनावत स्वयं को आम हिन्दू के साथ जोडती हैं, तो कंगना के बहाने आम हिन्दू को तिरस्कृत किया जाता है।
और बॉलीवुड यह चाहता है कि स्टार किड्स की लौन्चिंग के लिए और कुछ ही मुट्ठी भर घरानों के लिए एवं हिन्दू विरोधी कंटेंट के लिए आम हिन्दू की जेब से कर लेकर छूट दी जाए?
नेट्फ्लिक्स को भी हुआ है नुकसान
इतना ही नहीं, जमकर हिन्दू विरोधी कंटेंट प्रस्तुत करने वाला नेटफ्लिक्स भी इस बात का रोना रो रहा है, कि उसे नुकसान हो रहा है। नेटफ्लिक्स के स्टॉक 22% तक गिर गए हैं और सीईइओ और उसके सहसंस्थापक का कहना है कि भारत में सफलता न मिलने से उन्हें निराशा है।
परन्तु ऐसा क्या है कि नेटफ्लिक्स के ही सब्स्क्राइबर कम हैं तो वहीं मीडिया के अनुसार उसके प्रतिद्वंदी डिज़नी+हॉटस्टार के 46 मिलियन सब्स्क्राइबर हैं और अमेजन प्राइम के 22 मिलियन सब्स्क्राइबर हैं।
बॉलीवुड और नेटफ्लिक्स: नुकसान का कारण एक ही है
जब हम नेटफ्लिक्स की बात करते हैं तो पाते हैं कि नेटफ्लिक्स का जो कंटेंट है, वह हद से अधिक हिन्दू-घृणा से भरा हुआ है। बार बार हिन्दुओं के विरुद्ध शो दिखाना नेटफ्लिक्स की फितरत है। हद से अधिक वोकिज्म कंटेट ने भारतीय बाजार का उससे मोह भंग किया है। पाठकों को याद होगा कि कैसे सेक्रेड गेम्स जैसी बकवास सीरीज चलाई गयी थी। बॉम्बे बेग्म्स में किस तरह से केवल अश्लीलता को परोसा गया था, उसके साथ ही लस्ट स्टोरीज़ में भारतीय महिलाओं की जो कामुक असंतुष्ट छवि प्रस्तुत की गयी थी, वह किसी से छिपी नहीं है।
किस प्रकार से बार बार हिन्दुओं की भावनाओं को जानबूझकर आहत किया गया, अ स्युटेबल बॉय, जो विक्रम सेठ द्वारा लिखी गयी प्रेम कहानी है और यह एक हिन्दू लड़की और मुस्लिम लड़के के बीच प्रेम कहानी है, फिर भी मीरा नायर ने मंदिर में जाकर एक चुम्बन का दृश्य रचा था।
और इसके बाद भी नेट्फ्लिक्स के विरुद्ध असंतोष उत्पन्न हुआ था। परन्तु नेटफ्लिक्स की सेहत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा था। हद से अधिक वोक कंटेंट का परिणाम यह हुआ कि लोगों ने नेटफ्लिक्स से मुंह मोड़ लिया। हालांकि नेटफ्लिक्स की ओर से दाम भी कम किए गए थे। परन्तु इसका कोई ठोस परिणाम नहीं निकला।
लीला नामक सीरीज में आर्यावर्त को बदनाम किया गया था। गुंजन सक्सेना पर बनी फिल्म में सेना को ही जैसे कठघरे में खड़ा कर दिया था, कहानी को तोड़ मरोड़ दिया था। पगलैट फिल्म पूरी तरह से हिन्दुओं की परम्पराओं के विरोध में थी।
बॉलीवुड और नेटफ्लिक्स दोनों ही हिन्दू धर्म के प्रति घृणा फैलाने के लिए हिन्दुओं से ही सहयोग चाहते हैं
यह देखना बहुत ही विरोधाभासी है कि चाहे बॉलीवुड हो या फिर नेटफ्लिक्स, दोनों ही हिन्दुओं के प्रति घृणा फैलाने वाले कंटेंट दिखाते हैं, दोनों ही यह चाहते हैं कि वह वोकिज्म के कीचड में पड़े रहें और उस कीचड़ से सनी फिल्मों एवं सीरीज को वह हिन्दू पर थोपते रहें।
बॉलीवुड और नेटफ्लिक्स दोनों को ही लगता है कि उन्हें अपनी हिन्दू घृणा फैलाने के लिए और स्टार किड्स को लॉंच करने के लिए ही आर्थिक लाभ चाहिए, सरकार से लाभ चाहिए, परन्तु उनमें से कोई भी यह नहीं कह रहा है कि वह हिन्दू घृणा से भरे कंटेंट नहीं बनाएंगे
बीबीसी हिन्दू घृणा से भरे कंटेंट को बचाने के लिए कूद पड़ा है
बीबीसी भी बेहद बचकानी रिपोर्ट लेकर इस कथित बॉलीवुड को बदनाम करने वाले गैंग का पर्दाफाश करने के लिए कूद पड़ा है। और उसमें यह प्रमाणित करने का प्रयास किया है कि कट्टर हिन्दुओं के विरोध के कारण बॉलीवुड में डर का माहौल है। परन्तु यह डर का माहौल वास्तव में किसके कारण है, यह उस रिपोर्ट में नहीं बताया है। इस रिपोर्ट में उसने कुछ राष्ट्रवादी यूट्यूबर के चेहरे दिखाए हैं और बिना प्रमाण के यह साबित करने का प्रयास किया है कि यह लोग बॉलीवुड के प्रति घृणा फैला रहे हैं।
जबकि आम हिन्दू यह देख रहा है कि वास्तव में कैसे हिन्दू धर्म के प्रति सॉफ्ट पावर के माध्यम से घृणा फैलाने का कार्य किया जा रहा है। उस रिपोर्ट में स्वरा भास्कर कह रही हैं कि अब वास्तव में डर का माहौल है। परन्तु यह बहुत ही बचकानी दलील उसमे दी गयी है कि एक ऐसा उद्योग जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से लाखों लोगों को रोजगार देता है, उसके विषय में ऐसा नहीं बोलना चाहिए।
तो क्या रोजगार के लिए हिन्दू समाज को स्वयं को गाली देने वाले उद्योग को स्वीकार कर लेना चाहिए? क्या बॉलीवुड के लिए यह आवश्यक नहीं होना चाहिए कि वह स्वयं से ऐसा परिवर्तन करें कि लोग हॉल तक आएं जैसे पुष्पा देखने के लिए आ रहे हैं।
क्या यह समझा जाए कि हिन्दूओं के भीतर आती चेतना से बॉलीवुड, नेटफ्लिक्स और बीबीसी सब डरे हुए हैं? और अब भ्रम फैला रहे हैं और अब वह विक्टिमहुड की शरण में जाकर रो रहे हैं। परन्तु आम हिन्दू का प्रश्न यही है कि आखिर क्यों उसे स्वयं को दोषी ठहराने वाले, स्वयं को धर्म के आधार पर अपमानित करने वाले कंटेंट के लिए देखना चाहिए?