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Tuesday, July 1, 2025

अदानी और अम्बानी विरोध में कैरियर बनाने वाले पत्रकार कैसे करेंगे अदानी समूह का मीडिया में स्वागत?

अदानी समूह अब मीडिया में आने की तैयारी में है और उसने अब अपने मीडिया उपक्रम के लिए संजय पुगलिया के नाम की घोषणा कर दी है। संजय पुगुलिया क्विंट मीडिया के सम्पादकीय निदेशक रह चुके हैं और वह मीडिया के क्षेत्र में एक विख्यात नाम हैं। वह 12 वर्षों तक सीएनबीसी आवाज़ के साथ जुड़े रहे और वही उसे शुरू करने वाले थे।

अदानी समूह की ओर से जारी किए गए पत्र में संजय पुगलिया के इन अनुभवों के विषय में विस्तार से लिखा गया है। अदानी समूह की ओर से जारी नियुक्ति घोषणापत्र में यह कहा गया है कि हमें अदानी ग्रुप में संजय पुगलिया का स्वागत करते हुए खुशी का अनुभव हो रहा है और वह चीफ एग्ज़ेक्युटिव ऑफिसर और एडिटर इन चीफ के रूप में ग्रुप में मीडिया के नए विभाग से जुड़े हैं।

संजय पुगलिया बहुत ही चर्चित चेहरा हैं और उनके नाम पर कई उपलब्धियां हैं ऐसे स्टार न्यूज़ को हिंदी में शुरु करना और जी न्यूज़ का नेतृत्व करना।

यूं तो हर ग्रुप किसी भी व्यापार में प्रवेश कर सकता है, परन्तु भारत में अदानी और अम्बानी दो ऐसे व्यापारिक समूह हैं, जिनपर हर ओर से निशाना साधा जाता है। यह भी आश्चर्य करने वाला तथ्य है कि अदानी समूह का व्यापार हर पार्टी की सरकार में उतना ही रहता है, और न जाने कितने लोगों को रोजगार मिलता है। फिर भी अदानी समूह हमेशा ही निशाने पर रहता है। राहुल गांधी से लेकर वामदलों के नेता और यहाँ तक कि छोटे छोटे लोग, जो एक भी व्यक्ति को रोजगार नहीं दे सकते वह भी अम्बानी और अदानी को कोसते हैं।

अदानी से इस हद तक इनके दिल में घृणा है कि हाल ही में किसान आन्दोलन में भी अदानी समूह को क्षति पहुंचाई गयी थी। पंजाब के फिरोजपुर में अदानी समूह का साइलो बंद करना पड़ा था, जो वर्ष 2018 में आरम्भ किया गया था। और इस पर लगभग 700 करोड़ रूपए की लागत आई थी। यहाँ पर सात हजार टन के करीब धान का भंडारण किया जा सकता है। परन्तु पिछले सात माह से किसान प्लांट के बाहर ही बैठे थे, अंतत: इसे बंद कर दिया गया और इसके कारण 400 से अधिक लोग बेरोजगार हो गए हैं।

इतने ही लोग तब बेरोजगार हो गए थे जब अदानी समूह ने लुधियाना में लोजिस्टिक पार्क बंद कर दिया था। क्योंकि किसान आन्दोलन में केवल अदानी समूह का ही विरोध हो रहा है। रिलायंस के जिओ के टावर तोड़े जाते हैं और अदानी के उद्योग बंद कराए जाते हैं।

ऐसा क्यों हो रहा है, क्या जो शक्तियाँ हैं, उन्हें हिन्दू उद्योगपतियों से चिढ़ है या फिर गुजरात की सफलता की कहानियों से घृणा है या फिर सफलता से ही घृणा है? या फिर उन्हें इस बात से घृणा है कि कैसे कोई साधारण परिवार का व्यक्ति विश्व के सबसे सफल उद्योगपतियों में से एक हो सकता है? क्या वह भारतीय मेधा से चिढ़ते हैं?

कहीं न कहीं कुछ तो है, तभी वह टाटा समूह का इतना विरोध नहीं करते, उनके निशाने पर कभी अजीम प्रेम जी नहीं होते और न ही वह नारायण मूर्ति के विरोध में कुछ कहते हैं, ऐसे ही कई व्यापारिक समूह हैं, वह कभी भी वामपंथी विचारधारा वाले आन्दोलनकारियों के निशाने पर नहीं आते, बस गुजरात से आने वाले यही दो व्यापारिक समूह उनके निशाने पर रहते हैं। ऐसा क्यों?

विरोध और घृणा के इस वातावरण में, अदानी समूह उसी मीडिया में कदम रख रहा है, जिस मीडिया ने उन्हें एक बड़ा खलनायक बनाने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। क्योंकि मीडिया भी यह प्रश्न नहीं करता कि आखिर किसान आन्दोलन में अदानी और अम्बानी का ही विरोध क्यों हो रहा है? मजे की बात यह है कि अपने देश के व्यापारिक समूहों का विरोध कर उन्हें अपना व्यापार समेटने के लिए विवश करने वाले लोग फोर्ड जैसी कंपनी के जाने पर आंसू बहा रहे थे।

ऐसे में यह अत्यधिक रोचक होगा कि अदानी समूह संजय पुगलिया के साथ मीडिया में कदम रख रहा है। और यह भी देखना रोचक होगा कि कल तक अदानी और अम्बानी को अपने अपने सोशल मीडिया पर गाली देने वाले कथित क्रान्तिकारी पत्रकार क्या करेंगे? क्या वह अच्छे पैकेज के लालच में जाएँगे या फिर अदानी का विरोध चालू रखेंगे?

या फिर कौन से ऐसे लोग होंगे जो अपने प्रगतिशील अर्थात ऑर्थोडॉक्स प्रोग्रेसिव मित्रों के साथ तालमेल करते हुए इस नए वेंचर के साथ जुड़ेंगे? मीडिया में भारतीय व्यापारिक घरानों का निवेश इसलिए भी आवश्यक है ताकि उनका पक्ष तो सामने आए! क्या जानबूझकर गुजरात से आए उद्यमियों को ही निशाना इसलिए भी बनाया जा रहा है ताकि आत्मविश्वास और भारतीयता से परिपूर्ण  समृद्धि की भावना ही विलुप्त हो जाए?

रविश कुमार, पुण्य प्रसून वाजपेई एवं हरिशंकर व्यास सहित कई वामपंथी पत्रकारों ने अदानी और अम्बानी के विरुद्ध बोल बोल कर जनता को बहुत भड़काया है, परन्तु विदेशी कम्पनियों एवं मीडिया में ही किए जा रहे शोषण पर वह शांत रहे हैं।    

नर्मदा घाटी पर कई तरह की परियोजनाओं के विरोध में आन्दोलन करने वाली मेधा पाटेकर भी अदानी और अम्बानी के विरुद्ध विष वमन करती हुई दिखाई दी थीं, जब उन्होंने किसान आन्दोलन का साथ दिया था, और कहना अनुचित न होगा कि मेधा पाटेकर जैसे लोग अभी भी मीडिया की आँखों के तारे हैं। ऐसे में यह देखना बहुत ही रोचक होगा कि मीडिया उपक्रम में अदानी और अम्बानी को गाली देकर अपना कैरियर बनाने वाले पत्रकार इस कदम का स्वागत कैसे करेंगे?

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