हाल ही में पैंगोंग त्सो के दक्षिण तट पर हुए ऑपरेशन में “विशेष सीमा बल” या “स्पेशल फ्रंटियर फोर्स” की भूमिका सामने आई है | इस अभियान में स्पेशल फ्रंटियर फोर्स ने कुछ ऐसी ऊँची चोटियों पर कब्जा कर लिया था, जो अपने रणनीतिक मूल्य के कारण चीन की सेना के लक्ष्य पर थीं | चीन इस पूरे घटना क्रम से स्तब्ध हो गया है और उसने भारत से सेना को वापस बुलाने का आग्रह किया है। भारत द्वारा की गई कार्रवाई ‘सलामी स्लाइसिंग’ रणनीति{निरंतर भारत की भूमि के छोटे छोटे टुकड़ों पर कब्ज़ा करना } का एक प्रभावी उत्तर प्रतीत होती है | ‘सलामी स्लाइसिंग’ नीति का उपयोग चीन विगत कई वर्षों से सीमा पर कर रहा है और भारत की भूमि पर कब्ज़ा करता रहा है । इस सैन्य कार्रवाई में, “7, विकास” के एक सैनिक, कंपनी लीडर न्यिमा तेनजिन ने वीरगति प्राप्त की ।
बहुत से लोग स्पेशल फ्रंटियर फोर्स ,जिसने इस ऑपरेशन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, से परिचित नहीं हैं। 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान गठित यह बल रहस्य से घिरा हुआ है। तब से भारत सभी युद्धों में इसने भाग लिया है, लेकिन इसके योगदान को गुप्त रखा गया है।
गठन और संरचना
यह बल 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद में गठित किया गया था। इसका मूल उद्देश्य भारत चीन युद्ध की स्थिति में चीनी सीमा के पीछे गुप्त गतिविधियों का संचालन करना था। चूंकि उस समय विदेशी खुफिया विभाग के लिए कोई विशेष एजेंसी नहीं थी, इसलिए इस बल ने शुरुआत में इंटेलिजेंस ब्यूरो के तहत काम किया।
यह बल संयुक्त राज्य अमेरिका की “सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी” और आईबी द्वारा संयुक्त रूप से प्रशिक्षित किया गया था।अमेरिका 1960 के दशक के दौरान चीनी इरादों के प्रति सशंकित था और इस बल की भर्ती और प्रशिक्षण में मदद करता था। 1968 में “रिसर्च एंड एनालिसिस विंग” की स्थापना हुई और बल का नियंत्रण RAW के हाथ में चला गया । अपने शुरुआती दिनों में, बल को प्रथम महानिरीक्षक, मेजर जनरल सुजान सिंह उबान के कारण “इस्टैब्लिशमेंट 22” भी कहा जाता था| उबान ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान यूरोप में 22 वें माउंटेन डिवीजन की कमान संभाली थी।
बल के अधिकतर योद्धा उन तिब्बती शरणार्थियों में से हैं, जो भारत में रहते हैं। देहरादून में एक बड़ी तिब्बती आबादी के कारण, इसका मुख्यालय चकराता, देहरादून में बनाया गया था। प्रारंभ में यह “चुशी गंगदृक्र” सैन्य बल के पूर्व योद्धाओं से बना | “चुशी गंगदृक्र” सैन्य बल तिब्बतियों ने 1950 के दशक में चीन के विरोध में बनाया था।
चीनी तिब्बत के अधिग्रहण के बाद भारत के आने पर इस सैन्य बल ने भारतीय अधिकारियों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था। SFF योद्धाओं को पहाड़ और जंगल युद्ध में पूर्णतः प्रशिक्षित किया जाता है। SFF RAW सचिव के माध्यम से कैबिनेट सचिवालय को रिपोर्ट करता है। SFF की बटालियनों को “विकास” के नाम से जाना जाता है और इसके योद्धाओं को “विकासी” कहा जाता है।
प्रमुख ऑपरेशन
हालांकि इसके संचालन को अत्यधिक गुप्त रखा किया गया है, लेकिन इसे 1960 के दशक में चीन में गतिविधियों करने के लिए जाना जाता है।बल ने CIA के साथ हिमालय में ऐसे सेंसर लगाने का काम किया जो चीनी परमाणु परीक्षणों का पता लगा सकें। हालांकि, नंदा देवी पर रखा गया ऐसा ही एक परमाणु संचालित सेंसर, 1960 के दशक में खो गया था। 1970 के दशक में CIA ने दो कारणों से अपने जुड़ाव को रोक दिया। सबसे पहले, संयुक्त राज्य अमेरिका के जासूसी उपग्रह काम करने लगे थे अतः एसएफएफ की सेवाओं को खुफिया जानकारी एकत्र करने की आवश्यकता नहीं थी। दूसरे, संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बीच संबंधों में सुधार हुआ औरअमेरिका ने पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना को मान्यता दे दी। ध्यातव्य है कि 1979 के पहले चीन और अमेरिका के बीच कोई राजनयिक सम्बन्ध नहीं थे |
SFF ने भरत द्वारा लड़े गए युद्धों में अपनी भूमिका निभाना जारी रखा। बांग्लादेश युद्ध में, इसने चटगाँव के पहाड़ी इलाकों में ऑपरेशन चलाया और मुक्ति वाहिनी को भी प्रशिक्षित किया। यह कई गुप्त ऑपरेशनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था, जिसमें कई सेतुओं का ध्वंस भी सम्मिलित है |इसने पाकिस्तानी सेना की गतिशीलता को गंभीर रूप सेप्रभावित किया था। कारगिल युद्ध में एसएफएफ ने भूमिका निभाई, लेकिन इसके विवरण सार्वजनिक नहीं किये गए हैं।
तिब्बतियों का प्रतिशोध
SFF के तिब्बतियों के लिए, चीन उनका सबसे बड़ा दुश्मन है। वे पूज्य दलाई लामा के प्रति अनन्य निष्ठां रखते हैं | उनका गीत, “हम विकासी” भी चीन से अपनी जमीन वापस लेने की इच्छा व्यक्त करता है। 1975 में SFF को भारत-चीनी सीमा के 10 किमी के भीतर तैनात किए जाना रोक दिया गया था। इसका कारण ऐसी कई घटनाएं थीं, जिनमें SFF चीन के भीतर सीमा पार खुफिया कार्रवाई करते हुए पायी गयी थी ।
हालिया ऑपरेशन में ऐसी अपुष्ट सूचना है कि SFF ने चीन को अपमानजनक सामरिक हार दी है। चीनी और उनके कैमरा आदि अन्य उपकरण अंतिम समय तक SFF की चाल को नहीं भाँप सके। यह सूचना है कि कई चीनी सैनिक घायल हो गए थे और कुछ को एसएफएफ ने पकड़ भी लिया था। कुछ समय बाद उन्हें लौटा दिया गया । इसका जश्न तिब्बती ऑनलाइन समुदाय द्वारा व्यापक रूप से मनाया गया और साथ ही हुतात्मा सैनिक के लिए शोक भी व्यक्त किया गया था।
उम्मीद है कि पैंगोंग त्सो में एसएफएफ द्वारा प्राप्त रणनीतिक विजय अक्साई चिन और अंततः तिब्बत को चीन से मुक्त कराने का पहला कदम है। एक कमांडो बल के रूप में, स्पेशल फ्रंटियर फोर्स उस क्षेत्र में एक सीमित युद्ध के लिए सर्वोत्तम है और निश्चित रूप से आने वाले दिनों में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
Read this post in English here. This post was translated by Urvashi Juyal and first appeared here.
Did you find this article useful? We’re a non-profit. Make a donation and help pay for our journalism.
HinduPost is now on Telegram. For the best reports & opinion on issues concerning Hindu society, subscribe to HinduPost on Telegram.