एनसीईआरटी से इस वर्ष कई प्रसंगों को हटा दिया गया है। यह अत्यंत हर्ष की बात है कि उन तमाम प्रसंगों को तत्काल के लिए पाठ्यक्रम से हटा दिया गया है। इसे उच्चतम न्यायालय द्वारा हाल ही में आए निर्णय के साथ देखा जाए तो पता चलेगा कि कैसे सोनिया गांधी द्वारा रचे गए षड्यंत्र के माध्यम से तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के बहाने से पूरे हिन्दू समाज को दोषी ठहराकर हमारी नई पीढ़ी के सम्मुख प्रस्तुत किया जा रहा था।
क्या लिखा था और क्या सच है?
इस सम्बन्ध में कक्षा 12 की राजनीति विज्ञान की पुस्तक के नौवें अध्याय से जो सामग्री हटाई गयी है, उसमें गोधरा काण्ड, जिसमें न्यायालय मात्र निर्णय ही नहीं दे चुका है, बल्कि यह भी प्रमाणित हो चुका है कि कैसे एक षड्यंत्र के अंतर्गत कारसेवा से वापस आ रहे हिन्दुओं को जलाया गया था।
हमारे बच्चों को अब तक अर्थात जो वर्ष 2006 में आरम्भ किया था पढ़ाना, पढ़ाया जा रहा था कि गोधरा में जो ट्रेन के डिब्बे में आग लगी थी, वह दरअसल अपने आप लगी थी। एनसीईआरटी के बहाने एक ऐसा षड्यंत्र रचने की योजना बनाई गयी, जिससे हमारे बच्चे हिन्दू विरोधी राजनीति के एक सबसे बड़े टूल बनकर उभरें जिससे उन्हें कहीं भी सरलता से प्रयोग किया जा सके।
मात्र यही नहीं लिखा था कि ट्रेन की बोगी में आग अपने आप लगी थी, बल्कि यह भी पढ़ाया जा रहा था कि चूंकि यह सोचकर कि आग मुस्लिमों ने लगाई है, हिन्दुओं ने मुस्लिमों को चुन चुन कर मारना आरम्भ कर दिया।
इसमें लिखा था कि
“2002 के फरवरी मार्च में गुजरात में बड़े पैमाने पर हिंसा हुई। गोधरा स्टेशन पर घटी एक घटना इस हिंसा का तात्कालिक उकसावा साबित हुई। अयोध्या से आ रही एक ट्रेन की बोगी कारसेवकों से भरी हुई थी और इसमें आग लग गयी। सत्तावन व्यक्ति इस आग में मर गए। यह संदेह करके कि बोगी में आग मुसलमानों ने लगाई होगी, अगले दिन गुजरात के कई भागों में मुसलमानों के खिलाफ बड़े पैमाने पर हिंसा हुई। हिंसा का यह तांडव लगभग एक महीने तक जारी रहा।”


जबकि यह अध्याय जब लिखा गया होगा, तब जांच चल रही होगी एवं कई लोग हिरासत में भी लिए गए होंगे। परन्तु यह भी सत्य है कि सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में रेल मंत्री रहे लालू प्रसाद यादव ने तो लगभग यह प्रमाणित ही करवा दिया था कि आग दरअसल भीतर से ही लगी थी, कोई भी बाहरी साधन प्रयोग नहीं किया गया था।
जस्टिस यूसी बनर्जी के एक सदस्य वाले आयोग का गठन किया गया, जबकि उस समय राज्य सरकार द्वारा गठित आयोग जांच कर ही रहा था। परन्तु फिर भी मुस्लिम वोटों के लालच में यह कदम उठाया गया था, वह बात दूसरी है कि उसे गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा अवैध घोषित कर दिया गया था। फिर भी यह एक ऐसी राजनीतिक दलाली थी, जिसकी कहीं भी अन्यत्र तुलना नहीं है!
फिर भी जब तक जब तक जांच नहीं हुई थी तब तक बच्चों के लिए एक ऐसी घटना के माध्यम से हिन्दुओं के हृदय में विष भरना कहाँ तक उचित था, जो पूरी तरह से मुस्लिम साम्प्रदायिकता का ही परिणाम थी? मीडिया में जाँच जब होने लगी थी, तभी से यह प्रमाणित हो रहा था कि ट्रेन में आग किसने लगाई थी, और किस प्रकार पूरे समुदाय ने ही सहयोग दिया था।
पत्रकार एवं लेखक संदीप देव ने अपनी पुस्तक साज़िश की कहानी, तथ्यों की जुबानी, में बताया था कि कैसे इस षड्यंत्र की रूपरेखा बनाई गयी और एक पीड़िता की कहानी उन्होंने भी बताई है। गायत्री पंचाल के अनुसार 27 फरवरी की सुबह लगभग 8 बजे गाड़ी गोदरा स्टेशन से आगे बढ़ी। गाड़ी में सवार सभी कारसेवक रामधुन गा रहे थे। गाड़ी मुश्किल से 500 मीटर आगे गयी होगी कि अचानक रुक गयी। इससे पहले कि कुछ समझ पाता, पत्री के दोनों ओर से बड़ी संख्या में लोग हाथ में तलवार, गुफ्ती आदि लेकर गाड़ी की ओर भागे आ रहे थे। वे लोग गाड़ी पर पत्थर बरसा रहे थे। गाड़ी के अन्दर मौजूद लोग डर गए और उन्होंने खिड़की दरवाजे बंद कर लिए।

बाहर के लोगों की आवाज स्पष्ट सुनाई दे रही थी। वे लोग कह रहे थे “मारो-मारो” लादेन ना दुश्मनों ने मारो! और फिर भीड़ ने ट्रेन पर हमला कर दिया। हमलावरों ने खिड़की को तोड़ दिया। और बाहर से गाड़ी का दरवाजा बंद कर दिया, ताकि कोई भी बाहर न आ सके। उसके बाद उन्होंने गाड़ी के भीतर पेट्रोल उड़ेल कर आग लगा दी!”
ऐसा नहीं है कि मात्र गायत्री के बयान के आधार पर इतने सारे लोगों को सजा दी गयी होगी। पूरे 253 गवाहों और 1500 दस्तावेजों के आधार पर निर्णय दिया गया था।
निर्णय भी वर्ष 2011 में सुना दिया गया था। फिर ऐसा क्या कारण था कि बच्चों को ऐसा कुछ पढाया जा रहा था जो उनके दिल में हिन्दुओं के प्रति घृणा भर रहा था?
जैसे ही यह समाचार आया कि एनसीईआरटी ने इस वर्ष के लिए गोधरा काण्ड सहित कई और विषयों को हटा दिया है तो कई लोगों ने कहा कि ‘इतिहास तो इतिहास है, इसे पलटा नहीं जा सकता है।’
यह बात सत्य है कि इतिहास को पलटा नहीं जा सकता है, परन्तु यह भी बात सत्य है कि त्यागी साहब, कि कम से कम तथ्यों को सही रूप में प्रस्तुत तो किया जा सकता है? क्या कारण है कि अभी तक वह ही पढाया जा रहा था बच्चों को जो उन्हें उनके ही धर्म के प्रति घृणा से भर रहा था?
वर्ष 2011 में इस काण्ड के आरोपियों को सजा सुनाई गयी थी और यह न्यायालय द्वारा कहा गया था कि वह षड्यंत्र था, कोई हादसा नहीं!” इसके लिए 31 लोगों को सजा सुनाई गई थी। और जब यह स्थापित हो गया था कि ट्रेन को जलाया जाना एक षड्यंत्र था, जिसे भारत की न्यायपालिका ने माना तो एनसीईआरटी में बच्चों को अब तक यह कैसे पढ़ाया जा रहा था कि ट्रेन में आग “लग गयी थी!”
साबरमती एक्सप्रेस का वह डिब्बा अपने आप नहीं जला था, परन्तु फिर भी राजनीतिक हथकंडों के लिए एवं पार्टी विशेष के साथ साथ हिन्दुओं के प्रति द्वेष प्रदर्शित करने के लिए यह बताया गया कि आग अपने आप लगी थी!
भारतीय जनता पार्टी को राजनीतिक रूप से नीचा दिखाने के लिए हिन्दुओं को उस कृत्य के लिए दोषी ठहराया जा रहा था, जिसमें वही पीड़ित थे!
और अब जिस झूठ को अब तक आधिकारिक रूप से पढ़ाया जा रहा था, उसे ही अब उच्चतम न्यायालय ने जैसे अस्वीकृत कर दिया है और यह कहा है कि उन दंगों में सरकार की कोई भूमिका नहीं थी। साबरमती का झूठ भी न्यायालय ने खारिज कर दिया था, फिर क्या कारण है कि बच्चों को दंगों की कहानी को इस प्रकार बताया जाए कि जो पीड़ित है, वह अपराधी प्रमाणित हो जाए और जिसने पहले अपराध किया, वह निर्दोष एवं पीड़ित होकर हिन्दुओं के बच्चों के सामने आए?
हिन्दुओं के बच्चों को उनके ही अस्तित्व के प्रति यह विष क्यों पिलाया जा रहा था, क्या यह पूछा नहीं जाना चाहिए? और जो लोग यह कह रहे हैं कि इतिहास तो इतिहास है, इसे पलटा नहीं जा सकता तो वह यह भी बताएं कि क्या इतिहास के नाम पर झूठ पढ़ाया जाना चाहिए?