किसी दलित की बरात पर कोई पत्थर बरसाए, मगर कथित दलित विचारक आदि शांत रह जाएं तो इसका क्या अर्थ होता है? आखिर ऐसा क्या कारण है कि दलितों की बरात पर पथराव पर वह एक बहुत बड़ा वर्ग शांत है, जो दलितों की एक पुकार पर दौड़ा चला जाता है? बशर्ते यदि वह भाजपा शासित क्षेत्र में हो या फिर कथित अत्याचार करने वाला ब्राह्मण हो!
अब राजगढ़ में ऐसा क्या है कि उसमें दलित चिन्तक जरा भी आवाज नहीं कर रहे हैं और न ही मुस्लिम यह कह पा रहे हैं कि दलितों के साथ बुरा हुआ। दलितों की बरात कर इस कदर पथराव नहीं होना चाहिए था कि एक बच्ची ही बुरी तरह से घायल हो जाए!
मामला क्या था?
17 मई 2022 को एक दलित के घर बरात आई थी। रायगढ़ के जीरापुर में आई इस बरात में डीजे बहुत जोर शोर से मच रहा था तो वहीं दूल्हा भी घोड़ी पर सवार था। परन्तु जैसे ही बरात माताजी मोहल्ले में मस्जिद के सामने से गुजरी तो कुछ मुस्लिमों को आपत्ति हुई और उन्होंने मस्जिद के सामने डीजे बजाने से मना किया। और इसी बीच कुछ मुस्लिम युवकों ने पथराव शुरू कर दिया। और बरात पक्ष वालों से बहुत मारपीट की।
opindia के अनुसार “पीड़ित के पक्ष के अंकित मालवीय ने बताया कि उसकी चचेरी बहन अंजू की बारात सुसनेर के सुरेश चौहान के यहाँ से आई थी। वे सब बारात का स्वागत करने के लिए गेट पर खड़े थे। बारात जैसे ही मस्जिद के पास पहुँची, मुस्लिमों ने बैंड और ढोल बंद करवा दिए और कहा कि इस गाँव में मस्जिद के सामने बैंड बाजे बजाने की मनाही है।“
वहीं राजगढ़ के पुलिस अधीक्षक प्रदीप शर्मा के अनुसार बरातियों ने मस्जिद के पास म्युज़िक की आवाज को कम भी कर दिया था। मगर फिर कहासुनी हुई और मुस्लिम पक्ष ने पथराव करना आरम्भ कर दिया। जिसमें कई लोग घायल हो गए थे।
आरोपियों के मुस्लिम होने से जातिवादी नेताओं ने धारण किया मौन
जैसे ही यह पता चला कि आरोपी मुस्लिम हैं, वैसे ही जाति के नाम पर जहर फ़ैलाने वाले नेताओं ने अपना मुंह सिल लिया। उनके पास कहने के लिए कुछ नहीं था। यदि दलितों पर किसी भी प्रकार से किसी हिन्दू या फिर कहें किसी सवर्ण ने कुछ कहा होता और वह भी हिंदुत्व वादी विचारधारा का पालन करने वाले सवर्ण ने, तो इस सम्बन्ध में उनकी भूमिका कुछ और होती?
उस स्थिति में वह धरना प्रदर्शन करते, मनुस्मृति को गाली देते, ब्राह्मणवादी व्यवस्था को कोसते, परन्तु अब वह मौन हैं! उन्होंने ऐसी चुप्पी धारण कर ली है, कि जैसे कुछ हुआ ही नहीं है। दलित और मुस्लिम एक्टिविस्ट की यह सिलेक्टिव चुप्पी बहुत ही नुकसानदायक है और बहुत ही हैरान करने वाली इसलिए हो जाती है कि क्या मुस्लिमों को उन्होंने यह पूरी तरह से अधिकार दे दिया है कि वह कुछ भी करते रहें और कहते रहें, परन्तु दलितों की ओर से दलित एक्टिविस्ट आवाज नहीं उठाएंगे?
गरजा शासन का बुलडोजर तो दिग्विजय सिंह को याद आया अन्याय
इस मामले में जब प्रशासन द्वारा कड़ी कार्यवाही करते हुए न केवल आरोपियों को सीसीटीवी के आधार पर गिरफ्तार किया गया बल्कि साथ ही कई मकानों को ध्वस्त किया गया। क्योंकि वह मकान अतिक्रमण करके बनाए हुए थे।
मध्यप्रदेश सरकार को घेरते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने इस कार्यवाही को दुर्भाग्यपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि
“कुछ दिन पूर्व जीरापुर जिला राजगढ़ में अनुसूचित जाति की बारात पर कुछ शरारती तत्वों ने पत्थरबाज़ी की थी उनकी मैं निंदा करता हूँ।
वे लोग गिरफ्तार भी हो गए।
लेकिन अब निर्दोष लोगों के मकान तोड़े जा रहे हैं।
निर्दोष लोगों को दण्ड देना उचित नहीं है।“
वहीं प्रशासन का कहना है कि अधिकाँश मकान अवैध थे और सड़क पर अतिक्रमण करके बने थे और यही कारण है कि उन पर बुलडोजर चलाया जा रहा है:
जहाँ एक ओर इस प्रकार की कार्यवाही से राजनीतिक आरोपों और प्रत्यारोपों का नया दौर आरम्भ हो रहा है तो वहीं जनता भी यह देखकर हैरान है कि आखिर दलित और मुस्लिम एक्टिविस्ट इसमें पीड़ितों के साथ क्यों नहीं हैं? क्यों भीम-मीम का एजेंडा चलाकर हिन्दुओं के खिलाफ हर समय विष उगलने वाले लेखक इस बात को लेकर मौन हैं?