spot_img

HinduPost is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma

Will you help us hit our goal?

spot_img
Hindu Post is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma
22.3 C
Sringeri
Sunday, October 6, 2024

वट सावित्री व्रत: प्रेम और कर्तव्य का अनूठा पर्व

आज का दिन भारत में हिन्दू सुहागन स्त्रियों के लिए विशेष होता है। ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को यह व्रत मनाया जाता है। परन्तु अन्य पर्वों की भांति सशक्त स्त्री सावित्री का यह व्रत भी लेफ्ट इस्लामिस्ट फेमिनिज्म की भेंट चढ़ गया। यह अत्यंत दुःख का विषय है कि जो पर्व एवं जो चरित्र हमारे लिए प्रेम एवं स्त्री स्वतंत्रता का प्रतीक होना चाहिए था उसे ही कविताओं में सबसे पिछड़ा बनाकर घोषित कर दिया गया।

सावित्री की जो कहानी है, वह प्रेम से बढ़कर स्त्री स्वतंत्रता की कहानी है। इसमें प्रेरणा की कहानी है। इसमें जीवन दर्शन हैं, इसमें विजय का तत्व है, इसमें प्रेम के लिए हठ है और प्रेम की जीत भी।

यह नैराश्य को समाप्त कर आशा का संचार करने वाली कहानी है। सावित्री की कथा का उल्लेख महाभारत में वनपर्व में आता है, जब युधिष्ठिर समेत समस्त पांडव द्रौपदी के अपमान के उपरान्त अत्यंत दुखी हैं। जयद्रथ को पराजित कर वह द्रौपदी को सकुशल ले तो आए हैं, परन्तु युधिष्ठिर के दिल से अपमान का काँटा निकल नहीं पा रहा है। वह कुछ समझ ही नहीं पा रहे हैं। वह अत्यंत निराश हैं, एवं इन्हीं हताशा के क्षणों में उन्होंने मार्कंडेय ऋषि के सम्मुख अपने हृदय की पीड़ा उकेर कर रख दी है।

वह कहते हैं कि हे महामुने, मुझे न ही अपना, न ही अपने भाइयों और न ही अपने राज्य के नष्ट होने का दुःख है, परन्तु मुझे राजपुत्री द्रौपदी का बहुत शोक है। वह कहते हैं कि द्रौपदी ने द्यूत में भी दुष्टों के हाथों से बहुत दुःख पाया, फिर भी हमारा उद्धार किया। और वन में भी जयद्रथ ने इसे हर लिया।

फिर युधिष्ठिर द्रौपदी के प्रति कृतज्ञता प्रदर्शित करते हुए कहते हैं कि “इससे पहले कभी द्रौपदी के समान पतिव्रता एवं महाभाग्यवती कोई स्त्री नहीं देखी गयी।

यह सुनकर उनकी निराशा को दूर करने के लिए ऋषि मार्कंडेय युधिष्ठिर को कुलीन स्त्रियों के चरित्र की कथा सुनाते हुए सावित्री की कथा सुनाते हैं। मद्र देश में धर्मात्मा अश्वपति नामक राजा हुआ करते थे। उनके कोई पुत्र नहीं था, उन्होंने देवी सावित्री की आराधना एक पुत्र के लिए की। अट्ठारह वर्षों तक उन्होंने पूजा की, फिर देवी सावित्री प्रसन्न हुईं एवं उन्होंने कहा कि उनके यहाँ शीघ्र ही एक कन्या का जन्म होगा। फिर वह कहती हैं कि हे राजन! तुम इसका कोई उत्तर मत दो! मैं तुमसे प्रसन्न होकर ब्रह्मा की आज्ञा से तुम्हें वर दे रही हूँ।

वरदान के उपरान्त कुछ काल के उपरान्त मद्र नरेश ने धर्म का आचरण करने वाली अपनी पटरानी में गर्भ स्थापित किया!

उसके उपरान्त उनके एक कन्या का जन्म हुआ। कन्या अत्यंत रूपवती थी। गुणी थी। उसके तेज के सम्मुख कोई खड़ा ही नहीं हो पाता था। कोई सावित्री के साथ ब्याहने की इच्छा व्यक्त नहीं कर पाता था। फिर एक दिन राजा ने अत्यंत दुखी होकर अपनी रूप एवं गुणों से परिपूर्ण पुत्री से कहा कि वह स्वयं जाएं एवं अपने गुणों के समान ही कोई वर अपने आप चुनें।

सावित्री की कथा का सबसे प्रगतिशील पक्ष यही है, जिसमें एक पिता अपनी पुत्री से यह कह रहे हैं कि उन्हें स्वयं जाना है और अपना वर खोजना है। वह कह रहे हैं कि धर्म शास्त्रों के अनुसार जो पिता अपनी कन्या का विवाह न करे वह निंदा के योग्य है एवं जो पुत्र पिता की मृत्यु के उपरान्त माता की रक्षा न करे तो वह भी निंदा के योग्य है।

उसके उपरान्त वह मंत्रियों के साथ अपनी पुत्री को वर खोजने के लिए भेजते हैं। यह स्मरण रखना होगा कि गुण महत्वपूर्ण थे। उसके उपरान्त सावित्री वृद्ध एवं मान के योग्य लोगों को प्रणाम करती हुई सब वनों में विचरण करने लगी। कुछ वर्ष उपरान्त सावित्री जब अपने पिता के पास वापस लौटीं तो नारद जी भी वहीं उपस्थित थे। उन्हें प्रणाम कर सावित्री ने बताया कि उन्होंने द्युमत्सेन नामक राजा जो अभी शत्रुओं से पीड़ित होकर वन में रह रहे थे, उनके पुत्र को अपना पति मान लिया है।

नारद ने फिर राजा को बताया कि सत्यवान में यद्यपि बहुत गुण हैं, वह जितेन्द्रिय हैं, चंद्रमा के समान मनोहर है एवं अश्विनीकुमारों के समान रूपवान एवं बलिष्ठ है। परन्तु उसके पास जीवन शेष नहीं है। उसके पास एक ही वर्ष की आयु शेष है। राजा ने फिर सावित्री से कहा कि व जाए और दूसरा वर खोजे!

परन्तु सावित्री ने इंकार कर दिया। सावित्री ने कहा कि वह मन से वरण कर चुकी हैं। विवाह के एक वर्ष व्यतीत होने पर अंतत: वह दिन आ गया, जो नारद ऋषि ने उन्हें बताया था। सावित्री ने उससे चार दिन पूर्व उपवास किया और फिर मृत्यु वाले दिन वह भी सत्यवान के साथ ही वन में गईं।

फल काटते-काटते सत्यवान के सिर में दर्द हुआ और वह सावित्री की गोद में सिर रखकर लेट गए। उसके कुछ ही क्षण उपरान्त उन्होंने एक पीले वस्त्र वाले सूर्य के समान तेजयुक्त तथा सिर पर किरीट पहने हुए एक पुरुष को देखा। सावित्री ने उन्हें प्रणाम किया तथा ज्ञान के कुछ वचन कहे! यमराज उनके ज्ञान के वचनों से प्रसन्न हुए और उन्हें तीन वर दिए। उन तीनों वरों में सबसे महत्वपूर्ण था सावित्री को पुत्रवती होने का वरदान देना।

यमराज उनसे अत्यंत प्रसन्न हुए एवं सत्यवान को जीवनदान दे दिया।

इस कहानी में ऐसा क्या था, जिसके कारण हिन्दू स्त्रियों के लिए यह अपमानजनक शब्द बना दिया गया और सावित्री को पिछड़ेपन का प्रतीक बना दिया गया। इस कथा ने निराश होते पांडवों में एक आशा का संचार किया था, और इस कथा को सही परिप्रेक्ष्य में पढने से कथित आधुनिक स्त्री विमर्श भी टूटता है। जैसे स्त्री को अपना वर चुनने का अधिकार नहीं था, स्त्री का अनादर था आदि आदि!

यह कहानी प्रेम की भी कहानी है, हिन्दू स्त्री के प्रेम की! यह लोक में बसे हुए उस विश्वास की कहानी है कि मेरे सत्यवान को कुछ नहीं होगा! यह पति चुनने की स्वतंत्रता से लेकर उस प्रेम की हर मूल्य पर रक्षा की कहानी है! यह हिन्दू प्रेम एवं प्रेम के हिन्दू स्वरुप की कथा है, नैराश्य के अँधेरे को काटकर प्रेम के प्रकाश के उत्पन्न होने की कथा है!

यह अत्यंत दुर्भाग्य की बात है कि जो कथा जीवन की निराशा को एक सकारात्मकता में परिवर्तित कर सकती थी, उसे वामपंथ के एजेंडे के चलते एक ऐसी कथा बता दिया गया, जिसका नाम लेना ही विमर्श में पाप था। और जिसने भी सावित्री का नाम लिया, उसे विमर्श से बाहर कर दिया गया।

Subscribe to our channels on Telegram &  YouTube. Follow us on Twitter and Facebook

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest Articles

Sign up to receive HinduPost content in your inbox
Select list(s):

We don’t spam! Read our privacy policy for more info.

Thanks for Visiting Hindupost

Dear valued reader,
HinduPost.in has been your reliable source for news and perspectives vital to the Hindu community. We strive to amplify diverse voices and broaden understanding, but we can't do it alone. Keeping our platform free and high-quality requires resources. As a non-profit, we rely on reader contributions. Please consider donating to HinduPost.in. Any amount you give can make a real difference. It's simple - click on this button:
By supporting us, you invest in a platform dedicated to truth, understanding, and the voices of the Hindu community. Thank you for standing with us.