कोरोना के समय में कई ऐसे सब्जी और फल विक्रेताओं के वीडियो वायरल हुए थे, जो अपना थूक लगाकर बेच रहे थे, परन्तु जब जब ऐसे समाचार आए तो एक वर्ग ने कहा कि नहीं ऐसा नहीं होता है, ऐसा हो ही नहीं सकता है। और हिन्दू लोग मुस्लिमों के प्रति घृणा भर रहे हैं।
लोगों ने उल्टी कहानियां आरम्भ की, जबकि यह बात बार-बार प्रमाणित हुई कि यह सभी घटनाएं सत्य हैं। अब फिर से ऐसा ही मामला सामने आया है, और जो बहुत ही हैरान और गुस्से में भरने वाला है। यह घटना ऐसी है, जो एक पूरे समुदाय की दूसरे समुदाय के प्रति घृणा को व्यक्त करती है। यह ऐसी घटना है जिसके विषय में कोई सहज सोच भी नहीं सकता है।
यह घटना है, विश्वास को तार तार करती हुई! यह घटना है बरेली की, जहाँ पर “शरीफ” नाम का मुस्लिम विक्रेता सब्जियों पर पेशाब करके उन्हें हिन्दू क्षेत्रों में बेचता था। इस घटना का वीडियो भी बना लिया, नहीं तो लोग इस घटना को भी किसी हिन्दू के दिमाग की उपज बता देते:
यह घिनौनी हरकत करने के लिए कितना गंदगी दिमाग में लानी होती होगी, इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है। यह घिनौनी हरकत तभी की जा सकती है, जब किसी के दिल में दूसरे समुदाय के प्रति हद से अधिक घृणा भरी हो, वह यह न सोच पाए कि इसका परिणाम क्या होगा? और इस घृणा से वह अपने ही समुदाय के प्रति अविश्वास को और गहरा कर रहा है!
दैनिक भास्कर के अनुसार सब्जियों पर पेशाब करने का वीडियो दुर्गेश कुमार गुप्ता ने बनाया है। वह हिन्दू जागरण मंच से जुड़े हुए हैं। उन्होंने बताया, “मैं कार से जनकपुरी में कैलाश अस्पताल के पास से निकल रहा था। उसी दौरान किसी काम से कार रोकी। अचानक मेरी निगाह कॉलोनी के सड़क किनारे सब्जी का ठेला लिए खड़े व्यक्ति पर पड़ी। मैंने देखा कि सब्जी बेचने वाला ठेले की आड़ में ठेले के नीचे रखी सब्जियों पर टॉयलेट कर रहा था।
उन्होंने मोबाइल से ठेले वाले की इस करतूत का वीडियो बना लिया। इसके बाद वह ठेले वाले के पास पहुंचे और पूछताछ शुरू की। ठेले वाले ने अपना नाम शरीफ निवासी परतापुर चौधरी थाना इज्जतनगर बताया। इसके बाद दुर्गेश ने शरीफ से सब्जियों पर टॉयलेट करने के बारे में पूछा तो शरीफ दुर्गेश पर उल्टा इल्जाम लगाने की बात कहते हुए भड़क गया।“
परन्तु दुर्भाग्य की बात यही है कि लोगों को दुर्गेश की बात पर विश्वास नहीं हुआ, और वह दुर्गेश से ही झगड़ा करने लगे और “शरीफ” का पक्ष लेने लगे।
अब चूंकि शरीफ की जो छवि बनी हुई है, उसके अनुसार दुर्गेश तो खलनायक लगेंगे ही। शरीफ का तो अर्थ ही होता है, निर्दोष टाइप! रेख्ता के अनुसार “शरीफ” शब्द का अर्थ है
कुलीन, खानदानी, सज्जन, सुशील, शालीन, सभ्य, शिष्ट, निश्छल, निष्कपट, सरल स्वभाव, लड़ाई झगड़ों से दूर रहने वाला, भलामानस, मालिक, आक़ा, सरदार, हाकिम, अफ़्सर,
पैग़म्बर मोहम्मद की नस्ल के किसी भी व्यक्ति की उपाधि
संज्ञा, पुल्लिंग
ऊँचे घराने का व्यक्ति, कुलीन मनुष्य, सज्जन और सभ्य व्यक्ति, भला आदमी, कुलीन एवं सज्जन व्यक्ति
थोपी हुई शराफत की परिभाषा इस हद तक गुलाम बना चुकी है कि एक बड़ा वर्ग रेख्ता आदि की डिक्शनरी की परिभाषा के अनुसा03र ही जीवन जीने लगा है!
हमारे मस्तिष्क में इतना प्रदूषण है और हीनता की भावना है कि दुर्गेश तो गलत हो सकता है, दुर्गेश तो घृणा फैला सकता है, मगर “शरीफ” तो खानदानी है, वह कैसे कुछ गलत कर सकता है? वह तो ऊंचे घराने का है, वह तो शराफत से भरा हुआ है। मगर “शरीफ” की सारी शराफत जैसे ही उन्होंने अपनी आँखों से उस वीडियो में भेजी, जो दुर्गेश ने बनाया था, तो फिर उसका पक्ष लेने वालों ने ही उसकी पिटाई कर दी! और उसी बीच “शरीफ” की शराफत जाग गयी और फिर उसने माफी मांगते हुए कहा कि उससे गलती हो गयी थी और उसे माफ़ कर दिया जाए! इसी बीच शरीफ की शराफत की जानकारी पुलिस को दी गयी और फिर पुलिस उसे प्रेमनगर थाणे ले आई और दुर्गेश की शिकायत पर शरीफ के खिलाफ सांप्रदायिक माहौल बिगाड़ने, धार्मिक भावनाएं आहत करने व संक्रमण फैलाने की धाराओं में मुकदमा दर्ज कर उसे गिरफ्तार कर लिया।

यह घटना जहां एक घृणा को बताती है, वहीं यह भी बताती है कि यदि दुर्गेश ने वीडियो नहीं बनाया होता तो लोग दुर्गेश पर विश्वास नहीं करते? और शरीफ की शराफत में धुली हुई सब्जियों का सेवन करते रहते, अंतत: इतनी आत्महीनता क्यों है कि “दुर्गेश” पर अविश्वास कर लिया जाता है?
वहीं कथित लेखक और लेखिकाएं ऐसे विद्वेष फैलाने वाली घटनाओं पर मौन रहते हैं, जिसका परिणाम होता है कि जिस समुदाय के विरुद्ध यह घृणा फैलाई जा रही है, वह कदम उठाता है, वह लिखता है, और वह पुलिस में जाता है, उसके बाद उन लेखकों और लेखिकाओं की भूमिका आरम्भ होती है, जिसमें बहुसंख्यक हिन्दुओं के खिलाफ घृणा फैलाने वाले को कभी गरीब, मानसिक रोगी या फिर एक आधाबार भटका हुआ बताया जाता है! और उनके परिवार वालों के साक्षात्कार बार-बार लिए जाते हैं और सहानुभूति पैदा की जाती है!