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Friday, April 26, 2024

यश भारती सम्मान: क्यों था इतना आकर्षण? और क्या पेंशन बंद होने से भड़के कथित लिब्रल्स जैसे अनुराग कश्यप?

उत्तर प्रदेश में विधानसभा का अब एक ही चरण शेष है। 7 मार्च को अंतिम चरण के बाद 10 मार्च को परिणाम आएँगे। इसी बीच कई मामले रहे, जो बार बार उछले। परन्तु एक विषय ऐसा रहा, जिस पर बहुत अधिक चर्चा नहीं हुई! किसानों को लेकर बातें हुईं, व्यापारियों पर बातें हुईं, नौकरी पर बातें हुईं, मगर सबसे रोचक है ऐसी घोषणा पर बात न करना, जिसे सुनकर वह वर्ग प्रसन्न है जो राय बनाने में सबसे बड़ा प्रेरक है।

अर्थात यश भारती पुरस्कार! पहले तो आप यह जानिये कि यशभारती पुरस्कार किन्हें दिया जाता है और अब तक किन किन “महान” लोगों को दिया गया है!

हम सभी ने हाल ही में देखा था कि कई लेखक, फ़िल्मकार आदि अचानक से ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के विरोध में उतर आए थे और उनमें अनुराग कश्यप भी मुख्य आवाज थे। अनुराग कश्यप, हों या इमरान प्रतापगढ़ी, या फिर सुधीर मिश्रा या फिर ऐसे ही कई और नाम, या फिर विशाल भारद्वाज, यह सब बार बार किसके विरोध में जाते हैं, यह किसी से छिपा नहीं है।

अनुराग कश्यप योगी और मोदी और हिंदुत्व का लगातार विरोध करते रहते हैं, उनकी भाषा भी अश्लील रहती है और बाद में यह भी पता चला था कि उन्होंने अपनी फिल्मों के लिए उत्तर प्रदेश सरकार से सब्सिडी भी ली थी। हालांकि दो और फिल्मों के लिए उन्होंने जब सब्सिडी की मांग की थी तो योगी सरकार ने यह कहते हुए इंकार कर दिया था कि यह फिल्म औपचारिकताओं को पूरा नहीं करती है। और इस बात को लेकर भाजपा नेताओं ने चिट्ठी भी लीक की थी!

खैर, अभी बात केवल यशभारती की।

यशभारती सम्मान, उत्तर प्रदेश का सबसे प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान है। और इसे प्रदेश के उन नागरिकों को दिया जाता है जिन्होनें कला, खेल या संस्कृति के क्षेत्र में प्रदेश का नाम रोशन किया हो।

इसी क्रम में अनुराग कश्यप, सुधीर मिश्रा, इरफ़ान हबीब, राजू श्रीवास्तव, नवाजुद्दीन सिद्दीकी, नसीरुद्दीन शाह, जैसे लोग भी सम्मिलित हैं।

अब आम पाठक यह प्रश्न कर सकता है कि यह लोग तो वास्तव में प्रतिनिधित्व करते हैं, तो सम्मान देने से क्या हर्ज है? ठीक है, कोई नहीं! यह सभी लोग प्रदेश के ही है, परन्तु यशभारती सम्मान जब मुलायम सिंह यादव की सरकार द्वारा आरम्भ किया गया था तब उसकी राशि कम थी। और उसे बाद में बसपा सरकार ने बंद कर दिया था। परन्तु, वर्ष 2012 में फिर से अखिलेश यादव की सरकार ने इसे आरम्भ कर दिया और इसकी पुरस्कार राशि भी 11 लाख कर दी।

इसी के साथ वर्ष वर्ष 2015 में यशभारती पुरस्कारों को पाने वालों के लिए पेंशन योजना भी लाई गयी जिसमें यह प्रावधान था कि पचास हजार रूपए की मासिक पेंशन आजीवन मिलती रहेगी।

अर्थात 11 लाख रूपए एक बार और फिर पचास हजार रूपए हर महीने! और यह किसे किसे मिल रहे थे, क्या वास्तव में उन्हें इसकी आवश्यकता थी? क्या कला के नाम पर आम लोगों के धन का यह दुरूपयोग शोभा देता था? यह सब भी सोचा जाना चाहिए।

फिर उसके बाद वर्ष 2017 में यशभारती पुरस्कार को लेकर एक बहुत बड़ा खुलासा हुआ था। जिसमें इसे एक बहुत बड़ा घोटाला बताया गया था। समाचार4मीडिया नामक वेबसाईट पर इन्डियन एक्सप्रेस के हवाले से पूरा विवरण दिया गया है। और इसमें लिखा है कि

‘इंडियन एक्सप्रेस’ की इस खबर को उसकी सहयोगी हिंदी वेबसाइट जनसत्ता ने भी प्रकाशित किया, जिसे आप यहां पढ़ सकते हैं-

सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत मिली जानकारी से उत्तर प्रदेश की अखिलेश यादव सरकार में यश भारती जीतने वालों की जो लिस्ट सामने आयी है उसमें सैफई महोत्सव के सूत्रधार टीवी एंकर, मुख्यमंत्री कार्यालय के एक अधिकारी जिन्होंने खुद ही अपने नाम की अनुशंसा की थी, एक शोधकर्ता ने जिसने अपनी उपलब्धि मेघालय में किया गया दो महीने लंबा “फील्डवर्क” बतायी थी, “ज्योतिष और मनोविज्ञान आधारित युगांतकारी वस्त्र निर्माता” के नाम शामिल हैं। इस लिस्ट में तत्कालीन सीएम अखिलेश यादव के चाचा और एक स्थानीय संपादक द्वारा सुझाए गए नाम भी हैं। अखिलेश यादव सरकार ने साल 2012 से 2017 के बीच ये पुरस्कार बांटे थे।

जो भी विवरण इंडियन एक्सप्रेस को मिला था यदि उसकी सूची देखी जाए तो उससे यह स्पष्ट होता है कि यश भारती बांटने में जमकर भाई-भतीजावाद हुआ है। पुरस्कार देने के लिए कोई तय आवेदन प्रक्रिया या मानदंड नहीं था। कई लोगों ने सीधे मुख्यमंत्री कार्यालय को अपने आवेदन भेजे थे जबकि ये पुरस्कार आधिकारिक तौर पर राज्य का संस्कृति मंत्रालय देता था।

कुछ बड़े नाम ऊपर देख चुके हैं, जिनमें और बड़े नाम जोड़े जाएं, तो अमिताभ बच्चन, अभिषेक बच्चन, जय बच्चन, ऐश्वर्या राय बच्चन, शुभा मुद्गल, रेखा भारद्वाज, कैलाश खेर, रीता गांगुली, जिमी शेरगिल, राज बब्बर, नादिरा बब्बर, सुरेश रैना आदि नाम भी सम्मिलित हैं।

हालांकि अमिताभ बच्चन ने पेंशन लेने से इंकार कर दिया था।

अब आइये देखते हैं कि समाचार4मीडिया में किन लोगों के नाम दिए गए हैं, जिन्हें पुरस्कार देते समय ऐसा लगा जैसे पक्षपात किया गया था:

शिखा पाण्डे- दूरदर्शन की एक्सटर्नल कोऑर्डिनेटर- वर्ष 2016 में उनके नाम की अनुशंसा लखनऊ के तत्कालीन एडीएम जय शंकर दुबे ने की थी। इनके सीवी में लिखा था कि उन्होंने चार साल तक मुख्यमंत्री आवास पर आयोजित कार्यक्रम का आयोजन किया जिसकी प्रशंसा सीएम ने भी की।

अशोक निगम- 2013 में यश भारत पाने वाले निगम ने सीवी में लिखा है, “संप्रति समाजवादी पार्टी की पत्रिका समाजवादी बुलेटिन का कार्यकारी संपादक।”

रतीश चंद्र अग्रवाल- मुख्यमंत्री के ओएसडी ने तीन सितंबर 2016 को अपने नाम की ही अनुशंसा की और उन्हें यश भारती पुरस्कार और पेंशन मिल गये।

नवाब जफर मीर अब्दुल्लाह- नवाब को खेल वर्ग में यश भारती मिला। वो अवध रियासत के वजीर रहे नवाब अहमद अली खान के वंशज हैं। उनकी सीवी में लिखा है कि वो कारोबारी” हैं और उनका आवास “लखनऊ और पूरा भारत” है।

काशीनाथ यादव- समाजवादी पार्टी के सांस्कृतिक सेल के राष्ट्रीय अध्यक्ष। उन्होंने 27 अप्रैल 2016 को पार्टी के लेटरहेड पर अपनी सीवी भेजी। उनकी सीवी में लिखा है कि उन्होंने कई सांस्कृतिक कार्यक्रम किए, गीत गाए और समाजवादी पार्टी की योजनाओं का प्रचार-प्रसार किया। सपा से इतर इनकी उपलब्धि जो यश भारती में थी वह यह कि इन्होनें 1997 में सैफई महोत्सव में भोजपुरी लोकगीत गाया था।

मणिन्द्र कुमार मिश्रा- सपा नेता मुरलीधर मिश्रा के बेटे। आईआईएमसी से पत्रकारिता की पढ़ाई करने वाले मिश्रा ने अपने सीवी में लिखा है कि उन्होंने साल 2010 में मेघालय के खासी जनजाति के बीच रहकर दो महीने तक फील्डवर्क किया था। मिश्रा ने अखिलेश यादव पर समाजवादी मॉडल के युवा ध्वजवाहक” नामक किताब भी लिखी है।

ओमा उपाध्याय- साल 2016 में यश भारती पाने वाले उपाध्याय ने अपनी सीवी में लिखा है कि उन्होंने 2010 में ज्योतिष और मनोविज्ञान आधारित विशेष वस्त्र बनाने की युगांतकारी तकनीकी विकसित की थी।

अर्चना सतीश- अर्चना सतीश के नाम को 27 अक्टूबर 2016 को यश भारती पुरस्कार समारोह में ही मंच पर अखिलेश यादव ने मंजूरी दे दी। अर्चना सतीश कार्यक्रम का संचालन कर रही थीं। उनकी सीवी में लिखा है, “प्रतिष्ठित सैफई महोत्सव का पिछले तीन सालों से संचालन”,  और ” 4-5 जनवरी 2016 को आगरा में यूपी सरकार के अतिप्रतिष्ठित एनआरआई दिवस कार्यक्रम का संचालन”

सुरभी रंजन- उस समय यूपी के मुख्य सचिव आलोक रंजन की पत्नी। उन्हें एक प्रतिष्ठित गायिका बताया गया है।

शिवानी मतानहेलिया– दिवंगत कांग्रेसी नेता जगदीश मतानहेलिया की बेटी। शिवानी प्रतापगढ़ के एक कॉलेज में संगीत पढ़ाती हैं।

हेमंत शर्मा- वरिष्ठ पत्रकार। उनकी सीवी में लिखा है, “पहले लेखन को गुजर बसर का सहारा माना, अब जीवन जीने का।” शर्मा की सीवी में दावा किया गया है कि वो 1989, 2001 और 2013 का महाकुम्भ कवर करने वाले एकलौते पत्रकार हैं।

सबसे रोचक मामला है यश भारती पाने वाली 20 वर्षीय स्थावी अस्थाना का। पुरस्कार पाने के समय वो एनएलयू दिल्ली में कानून की पढ़ाई कर रही थीं। उनके पिता हिमांशु कुमार आईएएस रैंक के अफसर हैं और उस समय यूपी सरकार के प्रधान सचिव थे। अस्थाना को घुड़सवारी के लिए खेल वर्ग में यश भारती दिया गया।

उत्तर प्रदेश सरकार की वेबसाइट पर यश भारती पाने वाले करीब तीन दर्जन नाम ऐसे हैं जिनके बारे में आरटीआई के तहत जानकारी नहीं दी गयी।

इस विषय पर पत्रकार सुशांत सिन्हा का वीडियो भी बहुत लोकप्रिय हुआ था:

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने न केवल यह पुरस्कार बंद किया बल्कि आम जनता के पैसे को जिस प्रकार पेंशन के रूप में लुटाया जा रहा था उसे बंद किया।

उन्होंने नए नियम बनाए और यह निर्धारित किया गया कि

  1. पेंशन केवल उन्हीं को मिलेगी जो आयकर नहीं दे रहे हैं और
  2. पेंशन की राशि पचास हजार से घटाकर पच्चीस हजार कर दी गयी थी

आयकरदाता न होने की शर्त के बाद बाद वह सभी लोग इसमें से अपने आप बाहर हो गए जो जनता के पैसे पर एश कर रहे थे, और वह भी तब उपलब्धि के नाम पर आपके पास कुंठा हो, किसी दल विशेष के लिए नाचना हो या फिर दल विशेष के लिए लिखना हो!

यही कारण है कि कथित लेखक वर्ग योगी आदित्यनाथ से गुस्सा है कि उन्हें अपने व्यक्तिगत शौक के लिए जनता के पैसों से मलाई क्यों नहीं मिल रही?

एक दो नहीं बल्कि कई घोटाले सपा की सरकार में हुए थे! मगर मजे की बात यह है कि हर बात पर प्रश्न उठाने वाले कथित सेक्युलर लेखकों की ओर से भी शोर नहीं आया जो योगी सरकार में सुई लेकर असंतोष खोजते हैं!

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