मजहबी-कट्टरता से अब ईसाई –समाज भी अछूता नहीं रहा है। केरल के मलपूरम जिले के कोंडोटी में रहने वाले एक मौलवी अल हिकामी ने ईसा मसीह के खिलाफ अपमानजनक पोस्ट डालकर ईसाईयों मे आक्रोश भड़का दिया है। शिकायत पर कोच्ची साईबर पुलिस नें मौलवी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली है । याद रहे कुछ महीने पूर्व ही केरल में एक चर्च के बिशप नें देश को सावधान करते हुए कहा था कि ‘लव-जिहाद’ और ‘ ‘नारकोटिक- जिहाद’ एक-दूसरे के पूरक हैं, जिनका उपयोग एक हथियार की तरह होता है जिससे कि गैर मुसलमानों को बर्बादी के रास्ते पर डालकर उनसे गैर कानूनी कार्य कराया जा सके।
देखा जाये तो मजहबी-कट्टरता की व्यापक होती घटनाओं के लिए मुस्लिम बुद्धिजीवी वर्ग कम दोषी नहीं। साम्प्रदायिकता के विरुद्ध जिस बड़ी संख्या में और जिस प्रभावी स्तर पर हिन्दू बुद्धिजीवी-वर्ग मुखर हो उठता है, मुस्लिम वर्ग से आने वाले नसरुद्दीन शाह , फरहान अख्तर, और पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी जैसे ख्याति प्राप्त लोगों को मजहबी-कट्टरता को लेकर मौन धारण किये रहना उपयुक्त लगता है । मार्ग चाहे जो हो, एक सच्चे मुसलमान की तरह बाहर से उदार दिखने वाले ये तमाम लोगों का अंतिम लक्ष्य सिर्फ इस्लाम की खिदमतगारी ही है इतना समझ लीजीयेगा । और आज से नहीं, सेकड़ों वर्ष पहले से।
देखें ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ के पूर्व संपादक गिरिलाल जैन का क्या कहना है-‘अक्सर लोगों को इस बारे में भ्रम हो जाता है कि हिंदुस्तान में जो मुसलमान सूफी, फ़कीर या पीर हुए उन्हें उदारवादी मानकर अपने(हिंदुत्व) नज़दीक समझना चाहिए। यह इतिहास की समझ न रखने का परिणाम है। मैं सूफियों और पीरों को इस्लाम में भर्ती करने की संस्था मानता हूँ ’
आप चौंक सकते है, पर ऐसे ही एक पीर और उसको पूजने वाले हिन्दुओं के एक किस्से पर जरा नज़र डालीये! गाज़ी का मतलब होता है ‘काफ़िर का वध करने वाला’। एक गाज़ी ‘सलार मसूद’ हुआ है, जो कि महमूद गजनवी की बहिन का पुत्र था। इसने ही गजनवी को सोमनाथ का मंदिर तोड़ने के लिए प्रेरित किया था। समस्त भूमि अल्लाह की भूमि मानने वाले मसूद ने भारत पर हमला करने के उद्देश्य से अपने सरदारों को सेना के साथ जब भेजा तो उसने जो कहा उसे देखें-‘ हम तुम्हें अल्लाह के सुपुर्द करते हैं। हिन्दू यदि इस्लाम ग्रहण कर लें तो उन पर दया करना, अन्यथा वध कर देना।’
लड़ते- लड़ते अन्तत: सलार मसूद गाज़ी की पराजय 15 जून 1033 के दिन ऊप्र के बहराइच में तब हुई जब राजा सुहेल देव के एक बाण से उसके प्राण का अंत हुआ। बहराइच में आज ‘गाज़ी सैयद सलार मसूद’ की दरगाह स्थापित है,जहाँ बड़ी संख्या में हिन्दू अपनी ‘मनोकामना’ पूर्ण करने पहुँचते है ! !(पृष्ठ- 9, 10; ‘सूफियों द्वारा भारत का इस्लामीकरण’: पुरषोत्तम)
Blindly Hindus follow Shirdi saibaba who was a muslim faqir. Is it not a proof of Hindu faith blindness when there are Hindu acharyas to be followed and worshipped