हरियाणा में टोहाना में सैंट मेरी स्कूल ने कई शर्तों के साथ क्षमा मांग ली है और यह भी आश्वासन दिया गया है कि भविष्य में कभी भी ऐसा कोई कार्य नहीं किया जाएगा जिससे हिन्दू भावनाओं को ठेस लगे। प्रभु श्री राम, माता सीता एवं सम्पूर्ण रामायण का जिस प्रकार बेहूदा मंचन किया गया था, उससे पूरे देश के हिन्दू आक्रोशित थे।
हरियाणा का टोहना क्षेत्र पूरी तरह से हिन्दू बाहुल्य क्षेत्र है और सबसे रोचक बात है कि सैंट मेरी स्कूल का कोई भी लेना देना ईसाई समुदाय से नहीं है। फिर भी स्कूल का नाम ही ईसाई नहीं रखा गया, बल्कि साथ ही वह कुकृत्य किया गया, जो भारत में सहज होता ही नहीं है। बच्चों द्वारा अभिनय करना इतना हैरान नहीं करता है, हैरान और दुखी करता है, उस वीडियो में स्टाफ द्वारा उन संवादों पर हंसना ही नहीं, बल्कि सहयोग करना।
इस वीडियो से यह तो स्पष्ट है कि यह अनजाने में नहीं हुआ है, जैसा पहले स्कूल की प्रिंसिपल ने अपने फेसबुक पेज या क्षमा वाले पत्र में लिखा था। यह जानते बूझते हुए किया गया कृत्य था। साथ ही यह कहीं न कहीं हिन्दू परिवारों में अपनी धरोहरों के प्रति उदासीनता को भी दिखाता है। क्योंकि जो बच्चा प्रभु श्री राम बना है, वह किशोर प्रतीत हो रहा है। क्या उसके भीतर यह नहीं भाव उत्पन्न हो पाया कि यह गलत है।
अभी हाल ही में हमने ऑस्ट्रेलिया से एक बच्चे का मामला हम सभी ने देखा था। ऑस्ट्रेलिया में ब्रिसबेन में एक 12 साल के हिन्दू बच्चे को फुटबाल के मैच में सम्मिलित नहीं किया गया था क्योंकि उसने तुलसी माला पहनी हुई थी। तुलसी की माला पहनने के कारण शुभ पटेल को फुटबॉल का एक मैच खेलने से रोक दिया गया था। और उससे कहा गया था कि कोई भी खिलाड़ी धार्मिक प्रतीक पहनकर खेल नहीं खेल सकता। इस पर शुभ पटेल का कहना था कि वह इस माला को पांच वर्ष की उम्र से ही पहने हुए है, इसलिए वह इसे नहीं छोड़ सकता। वह मैच खेलना छोड़ सकता है, परन्तु वह तुलसी माला नहीं छोड़ेगा!
बाद में मामले के तूल पकड़ने पर संस्था ने क्षमा माँगी थी। और शुभ पटेल को तुलसी की माला के साथ खेलने की अनुमति दी गयी थी।
यह उदाहरण इसलिए दिया गया कि क्या कहीं न कहीं हम भारत में अपने धर्म के प्रति गर्व की भावना खोते जा रहे हैं? जिन बच्चों ने इसमें भाग लिया, वह सभी हिन्दू ही रहे होंगे, फिर उनमें यह भाव क्यों नहीं प्रकट हो पाया कि प्रभु श्री राम हमारे आराध्य हैं, माता सीता हमारी माता है, उनका अपमान हमारी माता के अपमान की भांति है।
शुभ पटेल जैसे बच्चे जो विदेश में रहकर फुटबॉल मैच को अपनी तुलसी माला के लिए ठोकर मार सकते हैं, तो ऐसी क्या उदासीनता हो गयी थी कि यह बच्चे सहर्ष प्रभु श्री राम का अपमान करने के लिए तैयार हो गए?
क्या प्रभु श्री राम का अपमान हिन्दू स्वयं कर रहा है? प्रश्न इसलिए उठता है क्योंकि एकेडमिक्स में यह बहुत आम बात हो गयी है कि प्रभु श्री राम का अपमान किया जाए। बच्चों को यह पता ही नहीं होता है कि धर्म और संस्कृति दोनों एक हैं। बच्चों के लिए पुस्तकें जिस प्रकार डिजाइन की गयी हैं, वह कहीं न कहीं इस प्रकार बनाई गयी हैं, जो अपने धर्म के प्रति एक अनिच्छा का भाव प्रकट करती हैं।
एनसीईआरटी की इतिहास की पुस्तकों में उन्हें लगभग यह विश्वास दिला दिया जाता है कि उनका इतिहास आरम्भ ही गौतम बुद्ध से हुआ था और गौतम बुद्ध हिन्दू धर्म की बुराइयों के खिलाफ खड़े हुए थे।
परन्तु यह तो बच्चों की बात है, स्कूल के स्टाफ पर सबसे बड़ा प्रश्न है। इस अपमान पर हिन्दू संगठनों ने खुलकर विरोध प्रदर्शन किया और जहाँ सैंट मेरी स्कूल के प्रशासन ने माफी माँगी थी। डीएवी स्कूल में भी रामायण मंचन में अभद्रता की गयी थी। स्कूल के बाहर धरना प्रदर्शन के साथ हनुमान चालीसा का पाठ किया गया था।
अंतत: सैंट मेरी स्कूल के प्रशासन को निम्नलिखित शर्तों पर क्षमा दी गयी:
- स्कूल प्रशासन द्वारा एक सप्ताह तक धार्मिक स्थान पर सेवा की जाएगी
- स्कूल में रामायण का पाठ आयोजित किया जाएगा
- स्कूल का नाम सैंट मेरी के नाम से बदलकर सनातन धर्म पर रखा जाएगा
स्कूल ने इन सभी शर्तों को पूरी पंचायत में स्वीकार किया गया और तभी विश्व हिन्दू परिषद एवं बजरंग दल द्वारा सैंट मेरी स्कूल के खिलाफ पुलिस स्टेशन में दर्ज की गयी शिकायत को वापस लेने का निर्णय लिया गया।
यद्यपि ऐसा प्रतीत होता है कि हाल फिलहाल यह मामला हल हो गया है, फिर भी यह देखना अत्यंत पीड़ादायक है कि हिन्दू जिन स्कूलों में अपने बच्चों को पढने और आगे बढ़ने के लिए तैयार करने के लिए भेजते हैं, वही हिन्दुओं की जड़ों को काटने का कार्य कर रहे हैं एवं संस्कार रहित शिक्षक और शिक्षिकाओं के साथ मिलकर बच्चों को उनके धर्म से विमुख करने के महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं, जिस पर अब अधिक ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है!