दिल्ली में जहांगीरपुरी हिंसा में एमसीडी के बुलडोज़र रुकने के बाद अब नया समाचार यह है कि वहां पर हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही समुदायों ने कथित रूप से “भाईचारे” की ओर कदम बढ़ा दिए हैं। और आपस में कथित “गलती” के लिए माफी मांग ली है। हालांकि वह कथित गलती पूरे देश के लिए कितनी भारी पड़ी है, यह उन्हें भी नहीं पता होगा!
एक और बात विशेष है कि अब भी वहां पर नेताओं का पर्यटन भी चालू है तो वहीं उसके अतीत को भी कहीं भुलाकर डिब्बे में पैक कर दिया है! वहीं जहांगीरपुरी में जहाँ पर हनुमान जन्मोत्सव के दिन हिन्दुओं पर जानलेवा हमला हुआ था, एवं तलवारों और पत्थरों के साथ युद्ध छेड़ दिया गया था, वही क्षेत्र है जहां वर्ष 2020 में नागरिकता सुरक्षा कानून को लेकर दंगे हुए थे ।
पाठकों को अभी तक स्मरण होगा ही कि कैसे सुनियोजित तरीके से यह दंगे उस समय किए गए थे जब फरवरी 2020 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत आए थे! उसी समय जानते बूझते हुए वामपंथी विचारधारा और कट्टर इस्लामिक संगठनों यह दंगे कराए गए थे।
दंगे कराने का मुख्य उद्देश्य यही था कि देश की छवि बदनाम हो और नागरिकता संशोधन कानून को वापस लिया जाए। यह दंगे बड़े ही सुनियोजित तरीके से किए गए थे, वामपंथी और कट्टर इस्लामिक संगठनों के लोगो ने इसकी तैयारी बहुत पहले से ही कर ली थी ।
अब यह भी बात निकल कर आ रही है, कि जहांगीरपुरी से ही दिल्ली दंगों के समय भी लोग भर-भर कर शाहीन बाग़ में धरने के लिए गए थे!
अमर उजाला के अनुसार
जहांगीरपुरी में जिस कुशल चौक, सी-ब्लाक में शोभा यात्रा पर पथराव के बाद हिंसा हुई थी, उस कुशल चौक का 2020 में हुए दिल्ली दंगों का कनेक्शन है। कुशल चौक से करीब सात बसों में भरकर बांग्लादेशी महिलाएं, बच्चों व पुरुषों को शाहीन बाग प्रदर्शन में शामिल होने के लिए ले जाया गया था। दंगा करने के लिए लोग कुशल चौक से गए थे।
अब जब बार-बार यह जाहिर होता जा रहा है कि जहांगीरपुरी हिंसा में अवैध बांग्लादेशियों हिस्सेदारी है तो एक बार फिर से दिल्ली में अवैध घुसपैठियों का मुद्दा गरमाने लगा है। यह भी देखा गया है कि यह मामला चुनावों के समय उठता है और फिर यह ठंडा हो जाता है!
भाजपा नेता जहां बांग्लादेश और रोहिंग्या घुसपैठियों को राजधानी और देश की सुरक्षा के लिए खतरा बताते हुए इन्हें बाहर निकालने की मांग करते हैं तो वहीं आम आदमी पार्टी और कांग्रेस पर देश की सुरक्षा को ताक पर रखकर इन घुसपैठियों को संरक्षण देने की बात का आरोप बीजेपी द्वारा लगाया गया था।
यह माना जाता है और कई गैर सरकारी संगठनों का अनुमान भी है कि देश की राजधानी में लाखों की संख्या में अवैध बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुसलमान रहते हैं। इसे लेकर राजनीति तो खूब होती है लेकिन समस्या दूर करने की दिशा में ठोस कदम उठाया नहीं जाता है ।
आज दोनों समुदायों के नेता आपस में कथित रूप से गले मिल रहे हैं, परन्तु क्या यह लोग इस बात का उत्तर दे सकते हैं कि ऐसी घटनाएं नहीं होंगी? और क्या इस गले मिलने से हिन्दुओं पर पड़े वह घाव भर सकते हैं जो जानबूझकर एक ऐसी सोच के साथ दिए गए कि जय श्री राम का नारा क्यों लगा?
क्या हिंदू इस देश में सुरक्षा से अपना त्यौहार भी नहीं मना सकते हैं ? यहां तक की शोभायात्रा भी नहीं निकाल सकते हैं?
हालांकि गिरफ्तारियां हो रही हैं, कथित शांतिवार्ता भी हो रही है, परन्तु मूलभूत प्रश्न अभी भी अनुत्तरित है कि जब यह तथ्य स्पष्ट होते जा रहे हैं कि जहांगीरपुरी में अवैध रूप से रोहिंग्या भी हो सकते हैं तो उन्हें हटाने के उपाय क्यों प्रशासन की ओर से नहीं किये जा रहे हैं? लोग बुलडोज़र की कार्यवाही रोकने पर भी प्रश्न उठा रहे हैं
यह बात ठीक है कि अब पुलिस की जांच समय बीतने के साथ तेज होती जा रही है तो देखना होगा कि कैसे पिछली बार दंगों और इस बार ही हिंसा के बीच के तार को स्पष्ट करते हुए दिल्ली को दो बार जलाने वाले अपराधियों पर क़ानून का शिकंजा कस पाता है?