भारत में सेक्युलर होने का अर्थ मुस्लिम कट्टरता ही अब रह गया है, और सेक्युलर होने का अर्थ केवल शरिया का पालन करना रह गया है। और मुस्लिम अभिनेत्रियों में यह मजहबी कट्टरता अब खुलकर सामने आ रही है, उनके लिए उनका मजहब ही मुख्य है और वह अपने जहरीले विचारों को अब खुलकर कहने लगी हैं।
8 जनवरी को एक यूजर ने ट्वीट किया था कि भारत से बाहर रहने वाले लोगो को यह नहीं पता है कि भारत में हिन्दुओं और मुस्लिमों के लिए अलग अलग पारिवारिक कानून हैं। हिन्दुओं को सेक्युलर कानूनों का पालन करना होता है तो वहीं मुस्लिम न केवल चार शादियाँ कर सकते हैं बल्कि शरिया के नाम पर अपनी बीवीयों और लड़कियों की पढ़ाई लिखाई को भी रोक सकते हैं। सभी के लिए यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड लागू होना चाहिए।
इस पर गौहर खान चिढ़ गईं और उन्होंने ट्वीट किया
“मैं मुस्लिम हूँ और कोई भी हमें हमारे अधिकार से नहीं रोक सकता है। भारत एक सेक्युलर देश है, डेमोक्रेसी है और तुम जैसा चाहती हो वैसा तानाशाह नहीं है। इसलिए अपने अमेरिकन स्टेटस होने के ही आराम में रहो और मेरे देश में नफरत न फैलाओ!
यह बहुत ही अजीब बात है कि यह मोहतरमा जिस इस्लाम का पालन करने का दावा करती हैं, वह सरहदें नहीं मानता और वह सरहदों से परे इस्लाम का शासन लाना चाहता है और यह अमेरिका में रहने वाली हिन्दू आशा जडेजा को उनके ही देश और धर्म के बारे में टिप्पणी करने से रोक रही हैं।
ऐसा नहीं है कि केवल गौहर खान ने ही ऐसी बात की हो! सीएए आन्दोलन के दौरान सुर्खियाँ बटोर चुकी और दंगों में भूमिका के लिए जेल जा चुकी सफूरा जरगर ने ट्वीट किया
मैं मुस्लिम महिला हूँ, और मैं चाहूंगी कि मुझे क्या चाहिए, मैं अपने अधिकारों के लिए लड़ सकती हूँ, मेरी ओर से बोलने का अधिकार तुम्हें किसने दिया।, तुम्हारी बचत नहीं चाहिए। हिन्दू राष्ट्र में trad सती को लाना चाहते हैं। अपने बारे में चिंता करो, खुद को बचाओ, हमें छोडो!
इतना ही नहीं सफूरा जरगर ने यह भी ट्वीट किया था कि अगर आप अपने धार्मिक विश्वासों के भाग के रूप में गौ मूत्र पी सकते हैं, और मेरे पास उसकी आलोचना का अधिकार नहीं है तो मुझे भी अपने इस मजहबी अधिकार की रक्षा करने का अधिकार है कि मेरे शौहर की चार बीवियां हों, और मैं खुद को शिक्षित कर सकती हूँ!
मजे की बात यही है कि गौहर खान, जिन्हें अश्लील कपडे पहनने पर एक मुस्लिम युवक ने इतने सारे लोगों के बीच पीट दिया था, उन्हें अपने समुदाय में कट्टरता नहीं दिखती कि उन्हीं के समुदाय के आदमी ने उन्हें मारा था, किसी हिन्दू युवक ने नहीं! एक कार्यक्रम के दौरान किसी मोहम्मद अकील ने उन्हें थप्पड़ मारा था और गलत तरीके से छुआ था।
परन्तु शायद यह गौहर खान के अपने समुदाय के आदमी द्वारा किया गया काम था, इसलिए गौहर खान ने चुप रह जाना ही ठीक समझा होगा और मीडिया ने भी दोनों को आपसी मामला मानकर शोर नहीं किया।
क्या गौहर खान और सफूरा जरगर जैसी लडकियां यह कह रही हैं कि उनके समुदाय वाले उन पर कुछ भी करते रहें, उनका अधिकार है, तो क्या यही कारण है कि वह अपने यहाँ की पीड़ित लड़कियों के बारे में तब तक मुंह नहीं खोलती हैं जब तक उनका कथित शोषण किसी हिन्दू द्वारा न किया जाए?
सफूरा जरगर और गौहर खान जैसी लडकियां अपने समुदाय की उन लड़कियों के बारे में नहीं बोलती हैं जिन्हें मुताह निकाह के बहाने अमीर मुस्लिमों के जिस्म की भूख मिटाने के लिए प्रयोग किया जाता है? मिस्यार निकाह के बारे में भी यह लोग नहीं बात करती हैं?
क्या हैं यह दोनों निकाह:
कुछ वर्ष पहले हैदराबाद के मौलिम मोहसिन बिन हुसैन ने अपनी याचिका में दोनों निकाहों को अवैध घोषित करने की मांग की थी। उन्होंने अपनी याचिका में कहा था कि मुता निकाह शिया और मिस्यार निकाह सुन्नी मुस्लिमों में प्रचलित है। और यह दोनों ही प्रथाएं संविधान में महिलाओं को मिले बराबरी और जीने के मौलिक अधिकार का उल्लंघन हैं। याचिकाकर्ता ने शरीयत एक्ट 1937 की धारा 2 के वह तथ्य असंवैधानिक घोषित करने की मांग की है, जिनमें इन दोनों निकाहों को मान्यता दी गई है।
यह किया किसलिए जाता है
हैदराबाद में, जहाँ के ओवैसी “साहब” ने अहमदाबाद की आयशा के दहेज़ को लेकर आत्महत्या किए जाने पर भावुक करने वाले भाषण दिए थे, उसी हैदराबाद में मुताह निकाह के अधिक प्रचलित होने का कारण दहेज़ था। स्थानीय मुस्लिमों में इतना दहेज़ माँगा जाता है कि गरीब परिवार अपनी लड़कियों को विदेशी लोगों के हाथों में सौंप देते हैं। और फिर जब उनका मन भर जाता है तो वह अमीर उन लडकियों को वापस छोड़ जाते हैं। ऐसा एक मामला “अमीना” का सामने आया था, तब बहुत शोर मचा था।
परन्तु न ही तीन तलाक पर, न ही हलाला पर, और न ही मुताह आदि पर सफूरा जरगर और गौहर खान जैसी कट्टरपंथी लडकियां कुछ बोलती हैं। यहाँ तक कि यह कट्टरपंथी लडकियां तालिबान के हाथों मारी जा रही मुस्लिम लड़कियों के बारे में नहीं बोलती हैं, क्योंकि यह मर्दों की गुलाम हैं और कहीं न कहीं मानसिक रूप से इस बात के लिए तैयार हैं कि उनके आदमी उनके साथ कुछ भी कर सकते हैं!
मुताह निकाह में मुस्लिम लड़कियों के साथ क्या अन्याय होता है, उसे लखनऊ की नाइश हसन ने अपने लेख में सविस्तार बताया था, उदाहरणों के साथ!
परन्तु उन सब मामलों पर इसलिए न बोला जाए क्योंकि भारत एक सेक्युलर देश है और उस देश में गौहर खान को शरिया चाहिए!
नाइश हसन ने लिखा था कि “हैदराबाद में आज भी काफी संख्या में अरबी, सूडानी, यमनी, ओमानी और कभी कभी मुंबई के लोग भी मुताह निकाह के लिए आते हैं। वे कभी-कभी तो चंद घंटों के लिए निकाह करते हैं। उसके बाद महिला को छोड़ कर चले जाते हैं। हैदराबाद की सामाजिक कार्यकर्ता जमीला निशात का कहना है कि ऐसे लोग धर्म के नाम पर गरीबी का फायदा उठाकर लड़कियों को यौन दासी बनाते हैं।“
पर सफूरा जरगर कभी इन मामलों पर आवाज़ उठाती नहीं दिखती हैं, गौहर खान कभी इन मामलों पर आवाज उठाती नहीं दिखती हैं!”
यह दुःख की बात है कि भारत में और विशेषकर बॉलीवुड में कट्टर इस्लामी मजहबी विचारधारा का विस्तार बहुत तेजी से हो रहा है और अभिनेत्रियाँ इसका शिकार ही नहीं हो रही हैं, बल्कि इसे फैला रही हैं। जैसे जायरा वसीम ने इस्लाम का हवाला देकर फिल्म इंडस्ट्री छोड़ दी और सना खान ने भी कहा कि वह अब इस्लाम की खिदमत करेंगी और इसलिए फ़िल्में छोड़ दीं!
मगर इस्लाम के नाम पर फ़िल्में छोड़ने वाली या इस्लाम के नाम पर हो हल्ला करने वाली यह कट्टर कठपुतलियाँ कभी भी भारत में अपनी ही उन बहनों के साथ खड़ी नहीं होतीं जो इस्लाम की कट्टरपंथी सोच का शिकार हो रही हैं, जो जहेज के नाम पर कुर्बान हो रही हैं, जो हलाला के माध्यम से शोषण का शिकार हो रही हैं और न ही वह अपनी कथित अब्दी पहचान का लाभ उठाकर अफगानिस्तान में उन लड़कियों के पक्ष में नहीं बोलती हैं, जो कट्टर मजहबी विचारधारा का शिकार होती हैं, और दिनों दिन मारी जा रही हैं!
यह मात्र मजहबी कट्टरपंथी इस्लामी आदमियों के हाथों की कठपुतलियाँ हैं!