दिल्ली में महिला पत्रकारों के लिए इंडियन वीमेन प्रेस कोर्प को आवंटित हुए बंगले को खाली करने का नोटिस जारी कर दिया गया है। हालांकि पांच अगस्त को जारी इस नोटिस के अनुसार उन्हें यह बँगला खाली करना है, दरअसल मामला यह है कि आईडब्ल्यूपीसी पर तीस लाख से अधिक का किराया बकाया है और सरकार ने ऐसा नहीं कि केवल आईडब्ल्यूपीसी को ही नोटिस जारी किया है, बल्कि श्यामा प्रसाद रिसर्च फाउंडेशन को भी नोटिस जारी किया है। पर आईडब्ल्यूपीसी का मामला इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यहाँ पर अधिकतर महिला पत्रकार सदस्य हैं।
Modi govt goes after Indian Women Press Corps @iwpcdelhi. Issues eviction order. The press body is asked to vacate their office premises at Windsor Place which was allotted to them in 1994 by a Cong govt. pic.twitter.com/bmn1EVz7sp
— Sanjukta Basu (@sanjukta) August 8, 2021
कांग्रेस के पक्ष में हमेशा बोलने वाली और इस सरकार को हमेशा अपशब्द कहने वाली संजुक्ता बासु ने ने ट्वीट किया कि मोदी सरकार इंडियन वीमेन प्रेस कोर्प के बंगले को खाली कराना चाहती है, जो बँगला उसे एक कांग्रेस सरकार ने वर्ष 1994 में आवंटित किया था।
यह सही है कि इस बंगले को महिला पत्रकारों को कांग्रेस सरकार ने ही आवंटित किया था। मगर महिला पत्रकारों का यह संगठन उन महिला पत्रकारों की कितनी मदद करता था, जिन्हें वाकई मदद की जरूरत होती थी, यह भी स्वयं में एक प्रश्न है। क्या यह सभी महिला पत्रकार, वाकई महिलाओं के साथ खडी होती हैं, क्योंकि किसान आन्दोलन के दौरान कई ऐसे मौके आए जब महिला पत्रकारों के साथ अभद्रता हुई, पर आईडब्ल्यूपीसी की तरफ से कोई आवाज़ उठी हो ऐसा नहीं दिखाई दिया। जैसा एक महिला पत्रकार ने ही ट्वीट कर बताया था:
Our farmers have already etched themselves in world history..but they would be doing themselves the biggest disfavour by letting a sizeable chunk of depraves to sexually harass reporters..our own team has enough incidents to report ..those in solidarity need to call this out too!
— Preeti Choudhry (@PreetiChoudhry) January 8, 2021
तरुण तेजपाल को छोड़े जाने पर और उस महिला पत्रकार को ही कठघरे में खड़ा किये जाने पर जरूर आईडब्ल्यूपीसी द्वारा निंदा की गई थी! और आईडब्ल्यूपीसी अभी हाल में भास्कर समूह के साथ खड़ा दिखाई दिया, मगर जब रिपब्लिक टीवी के सभी स्टाफ पर राजनीतिक विद्वेष के चलते एफआईआर दर्ज कर दी गयी थी, तब आईडब्ल्यूपीसी ने रिपब्लिक के महिला पत्रकारों पर कुछ कहा हो, ऐसा नहीं लगता! या फिर गोदी मीडिया कहते हुए किसान आन्दोलन में जी और रिपब्लिक की महिला पत्रकारों पर हमला किया गया था!
इसके साथ ही खुद को राजनीतिक न मानने वाली महिला पत्रकारों का पक्ष मुख्यत: कांग्रेस का ही रहता था, जैसे संस्थापक सदस्य, मृणाल पाण्डेय, नीरजा चौधरी आदि। अभी भी आईडब्ल्यूपीसी पर मुख्यत: एक ही विचारधारा का अधिकार है, और यही कारण है कि चंद्रशेखर आज़ाद, अरुंधती रॉय जैसे लोगों को आमंत्रित किया जाता है। हाँ संजीव सान्याल जैसे लोगों को भी कभी कभी बुला लिया जाता है।
मगर महिला पत्रकार होने के नाते क्या क्या रचनात्मक किया जा रहा है, क्या हर पक्ष के लोगों को आईडब्ल्यूपीसी की कमिटी में ही जगह मिल रही है, यह भी देखना होगा क्योंकि जब चुनाव होते हैं, तो हर विचार के पत्रकारों का समर्थन लेने के लिए काफी कुछ अनौपचारिक बातें और वादे होते हैं, पर बाद में क्या होता है? क्या वास्तव में सभी विचारों के प्रतिनिधियों को आईडब्ल्यूपीसी में बुलाया जाता है, ऐसा नहीं लगता क्योंकि उनकी वेबसाईट पर ही गतिविधियों में ऐसा कोई विशेष विचारक उनके विपरीत विचारों का नहीं है, जिसे उन्होंने अपने विचार रखने के लिए आमंत्रित किया हो जैसे साहित्य में वह अशोक वाजपेई वगैर को करती हैं।
आईडब्ल्यूपीसी पर हाल में यह आरोप लगा है कि पाकिस्तानी डिप्लोमैट के लिए डिनर का आयोजन अनौपचारिक रूप से किया गया था, जो आईएसआई का व्यक्ति था और जिसमें महिला पत्रकार सम्मिलित हुई थीं:
Directorate of estates sends eviction order to Indian Women's Press Corps (IWPC) asking it to pay outstanding dues immediately. Incidentally, IWPC hosted a party on July 24 to honour Khawaja Maaz Tariq, Press Attache (an ISI man) at Pakistan HC. Notice issued on Aug5 @MOHUA_India pic.twitter.com/vhkpqyaG2b
— Ashutosh Bhatia (@AshutoshGhazal) August 8, 2021
परन्तु एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न यहाँ पर इन कथित महिला पत्रकारों से है कि हर समय जमीर, अंतरात्मा आदि की बात करने वाली यह महिला पत्रकार आम भारतीय के करों पर पार्टी करती हैं, और फिर उसमें वह देश के दुश्मन आईएसआई के व्यक्ति को अनौपचारिक रूप से आमंत्रित भी करती हैं? उस समय इनका ज़मीर कहाँ चला जाता है?
हालांकि इस मामले में शायद ही कोई कार्यवाही हो क्योंकि महिला पत्रकारों की ओर से सरकार के साथ बातचीत होगी और मामला मात्र आज़ादी के खतरे तक ही सिमट जाएगा! परन्तु क्या भारतीय कर दाताओं के पैसों से उन पत्रकारों के लिए इतने आलीशान स्थान की व्यवस्था होनी चाहिए, जो महिला पत्रकार जनादेश को ही मानने से इंकार करें, एक तरफ़ा रिपोर्टिंग करें और एक तरफ़ा विचारों के साथ ही हमेशा आएं और जिनकी निष्ठा अपने आराम के लिए बँगला देने वाली कांग्रेस के प्रति हो, न कि उस जनता के प्रति जिसके लिए लिखने का वह दावा करती हैं।
मामले के दबने के आसार इसलिए हैं क्योंकि आईडब्ल्यूपीसी की विनीता पाण्डेय का कहना है कि यह कोई मुद्दा नहीं है, क्योंकि महामारी और लॉक डाउन के कारण यह देरी हुई है और हम और सरकार मिलकर इस मुद्दे को हल करने की कोशिश में हैं।
Thank you for your concern but don't make an issue out of non- issue. These are due to procedural delays due to the pandemic and lockdown. We and the government are working to resolve this.
— vineeta pandey (@p_vineeta) August 8, 2021
जाहिर है, शोर जैसा मचा है थम जाएगा, और महिला पत्रकारों के लिए यह सरकारी बँगला बना रहेगा, मगर महिला पत्रकारों पर यह प्रश्न तो रहेगा कि उनकी निष्ठा देश के प्रति मूल्यों के प्रति है या फिर कांग्रेस और अपने मूल वाम विचारों के प्रति? या फिर वह कभी जनता को यह समझाने में सफल हो पाएंगी कि आखिर उन्हें यह बंगला क्यों किराए पर मिला है जिसका वह किराया चुकाना जरूरी नहीं समझतीं!
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