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Sunday, October 13, 2024

कैसे थे गांधी के राम? महर्षि वाल्मीकि या गोस्वामी तुलसीदास के देहधारी अवतारपुरुष या फिर अपनी कल्पना के राम?

जब जब गांधी जी की बात होती है, तो यह कहा जाता है कि वह प्रभु श्री राम को मानते थे। परन्तु उनके राम कौन थे? क्या वह राम, जिन्होनें मनु की अयोध्या जी में मानव रूप में जन्म लिया एवं आदर्श स्थापित किए, अन्याय का अंत किया, हर रूप में एक नया मूल्य प्रदान किया, या फिर गांधी जी के राम कुछ और ही थे?

इन सभी प्रश्नों के उत्तर गांधी जी स्वयं ही देते हैं। उन्होंने 30 मार्च 1928 को रामनवमी पर आश्रम में दिए गए भाषण में कहा था कि ( mahatma-gandhi-collected-works-volume-41)

“हम जिस राम को गाते हैं, वह न ही वाल्मीकि के राम हैं, न ही तुलसी के राम हैं – हालांकि रामायण मुझे बहुत प्रिय है, और मैं उसे बहुत ही शानदार ग्रन्थ मानता हूँ। ——– आज हालांकि हम तुलसीदास के राम या गिरधर के राम के बारे में नहीं सोचेंगे।”

फिर वह आगे कहते हैं कि आज हम जिस राम का नाम दोहराते हैं, वह वह राम नहीं हैं। अगर आज कोई कष्ट में है तो मैं उसे राम नाम दोहराने के लिए कहूँगा, और कोई सो नहीं  पा रहा है तो मैं उसे राम नाम दोहराने के लिए कहूँगा, परन्तु वह राम दशरथ के पुत्र या सीता के पति नहीं हैं। हकीकत में वह देहधारी राम नहीं हैं।

mahatma-gandhi-collected-works-volume-41 page 338

वह कहते हैं कि देहधारी राम कैसे किसी व्यक्ति के हृदय में रह सकते हैं। दिल एक अंगूठे से भी छोटा है और राम जो सबके दिल में निवास करते हैं, उनकी देह नहीं हो सकती है और वह किसी विशेष वर्ष में चैत्र माह की नवमी को भी पैदा हुए नहीं हो सकते हैं।

वह अजन्मे हैं, वह तो जगत के स्वामी हैं। इसलिए हमें केवल उस राम को स्मरण करना चाहिए जो हमारी कल्पना के राम हैं, न कि दुसरे की कल्पना के!

अर्थात इससे एक बात स्पष्ट होती है कि गांधी जी के राम, महर्षि वाल्मीकि के वास्तविक राम नहीं हैं। महर्षि वाल्मीकि के राम कल्पना कैसे हो सकते हैं जब वह बालकाण्ड में लिखते हैं: 

प्राप्त राज्यस्य रामस्य वाल्मीकिर् भगवान् ऋषिः ।

चकार चरितम् कृत्स्नम् विचित्र पदम् अर्थवत् ॥१-४-१॥

अर्थात जब श्री रामचंद्र जी अयोधना के राज-सिंहासन पर आसीन हो चुके थे तब महर्षि वाल्मीकि ने विचित्र पदों से युक्त इस काव्य की रचना की।

परन्तु गांधी जी के राम महर्षि वाल्मीकि के यह वास्तविक राम, और गोस्वामी तुलसीदास के राम नहीं हैं, जो अन्याय का सामना करने के लिए उठ खड़े होते हैं। जो शस्त्र और शास्त्र दोनों के समन्वय के माध्यम से धर्म की स्थापना पर बल देते हैं। वह राम जो केवट को गले लगाते हैं, वह राम जो अपने पिता के वचन का पालन करने के लिए अपना साम्राज्य त्याग कर चले जाते हैं, वह राम जो अपनी पत्नी सीता के अपहरण के लिए विश्व विजेता रावण को क्षमा नहीं करते हैं, वह राम जो न्याय की स्थापना करते हैं, वह राम गांधी जी के राम नहीं हैं।

गांधी जी के राम वाली का वध करने वाले नहीं हैं। न ही रावण का वध करने वाले हैं। वह प्रश्न करते हैं कि किसी का वध करने में क्या आनंद हो सकता है? रावण को उन्होंने सही तरीके से या छल से मारा! आज के समय में यदि रावण पैदा भी होता है, दस नहीं असंख्य सिर वाला तो तोप से कोई भी बच्चा उसका सिर क्या उसे पूरा उड़ा देगा। तो क्या हम ऐसे बच्चे को महामानव कहेंगे, हमें उसे महादानव के रूप में देखना चाहिए। हमें उसकी पूजा करके आंतरिक शान्ति नहीं चाहिए।

हमें उस आतंरिक शासक की पूजा करनी चाहिए जो सबके दिल में वास करता है, “निर्बल के बल राम!” जैसा हम गाते हैं!

फिर वह द्रौपदी के वस्त्रहरण का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि क्या यदि द्रौपदी ने देहधारी राम को पुकारा होता तो वह आते? फिर भी इस गीत के गीतकार ने लिखा है कि राम ने द्रौपदी का मान बचाया, तो यहाँ पर वह राम हैं, जो सबके दिल में बसने वाले हैं।

आश्रम में संबोधित करते हुए वह कहते हैं कि हम हर साल इसीलिए राम का जन्मदिन मनाते हैं, जिससे हम आत्म-नियंत्रण का अभ्यास कर सकें और बच्चे खुशी मना सकें एवं रामायण पढ़कर कुछ सीख सकें।

गांधी जी कहते हैं कि हर देहधारी व्यक्ति भगवान को भी देह के रूप में देखता है, क्योंकि उसकी कल्पना की सीमा ही यहीं तक है। वह यह सोचता है कि उसके भगवान की देह है और उन्होंने जन्म लिया है।

वह कहते हैं कि इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि कोई ऐतिहासिक व्यक्ति भगवान का अवतार था या किसी ऐतिहासिक व्यक्ति के महान कृत्यों से प्रभावित होकर किसी को भगवान का अवतार बताया जा सकता है।

वह कहते हैं कि इन बातों को ध्यान में रखकर कई भक्त वाल्मीकि या तुलसी के राम में उसी भगवान की व्याख्या करते हैं तो उन भजनों को गाने में कोई नुकसान नहीं है।

वह कहते हैं कि यदि मैंने जो कहा है, उसे ध्यान में रखा जाएगा तो हम विचलित नहीं होंगे और कोई जबरन हमें यह कहेगा तो हमें कहना होगा कि हम किसी और की कल्पना के राम की पूजा नहीं करते, हमारे अपने राम हैं!

इसी बात को उन्होंने अपने निबंध मोक्षदाता राम में भी लिखा है। जिसे कई विश्वविद्यालयों में पढ़ाया भी जाता है।

इस भाषण को पढने से स्पष्ट हो जाता है कि गांधी जी जिन राम की बात करते थे, वह कहीं न कहीं उस जनमानस से जुड़ा हुआ नाम नहीं है, जो भारत के लोक में बसा है, क्योंकि भारत का लोक तो अभी भी उन्हीं राम को पूजता है जो अपने पिता के वचनों का मान करते हुए त्याग देते हैं सब कुछ, जो अपनी प्राण प्यारी के लिए भिड जाते हैं, किसी भी विश्व विजेता से! जो अपने भाई के चोट लगने पर बिलखते हैं, जो केवट को गले लगाते हैं, जो सुग्रीव की मित्रता का मान रखते हैं!

भारत का लोक तुलसीदास के राम और महर्षि वाल्मीकि के राम को मानता है! जो भगवान विष्णु के अवतार हैं, एवं वह किसी की कल्पना नहीं हैं, बल्कि सत्य हैं! तुलसी और वाल्मीकि के राम ही हैं, जो असंख्यों को अन्याय का डटकर मुकाबला करने का साहस देते हैं, राम मोक्षदाता होने के साथ साथ बलदाता भी हैं, यह भारत का जनमानस स्वीकारता है!

तभी वह कहता है “सबके राजा राम”! और यह राजा मात्र दशरथ के ही पुत्र हैं! गांधी जी की कल्पना के राम नहीं, बल्कि तुलसीदास और महर्षि वाल्मीकि के राम! अवतारी राम!

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