गुडगाँव पुलिस ने आज एक ट्वीट किया, कि सड़क पर नमाज के लिए स्थान दोनों पक्षों की ओर से बातचीत के बाद निर्धारित किया गया था. और फिर उस ट्वीट में उन्होंने सामजिक सौहार्द की अपील भी की. परन्तु कुछ ही देर बाद पुलिस को वह ट्वीट मिटाना पड़ गया क्योंकि यह दांव उल्टा पड़ गया था, और आम जनता से पूछना आरम्भ किया कि सड़क पर नमाज पढने को किस सोसाइटी ने अनुमति दी.

मामला गुडगाँव का है, जहाँ पर मुस्लिमों की संख्या अधिक नहीं है, पर फिर भी सड़क पर नमाज पढी गयी. और लोगों को परेशानी हुई. जब इसकी शिकायत लेकर लोग पुलिस के पास गए तो जो वीडियो आया है, उसमे आम नागरिक का दर्द उभर कर आ रहा है. लोग कह रहे हैं कि “सवाल करना, दंगे भड़काना नहीं होता है!”
सही में, सवाल पूछना दंगे भड़काना कैसे हो गया? यह एक अजीब बात है? मगर हिन्दुओं के सवाल पूछने से दंगे भड़कते हैं, और मुस्लिमों के कुछ करने से कुछ नहीं होता? सड़क पर नमाज पढने से कुछ नहीं होता? क्या उतनी देर के लिए यातायात समस्या नहीं होती? क्या उस दौरान बंद हुए यातायात में कोई प्रसव पीड़ा से पीड़ित स्त्री नहीं फंसती? कोई एम्बुलेंस नहीं फंसती?
यह कुछ ऐसे प्रश्न हैं, जिनके उत्तर दिए जाने बहुत जरूरी है, क्योंकि यह कम्युनल हार्मनी के नाम पर हिन्दुओं को प्रताड़ित करने का दौर बहुत अधिक हो गया है. यह एक लम्बा दौर चला आया है, जो त्यौहार आते ही और तेज हो जाता है.
यहाँ तक कि विज्ञापन ही ऐसे बना दिए जाते हैं, जो हमें ही आहत करते हैं और वह भी हमारे ही त्योहारों पर!
जैसे सीएट ने बना दिया! सीएट टायर के दो विज्ञापन आए हैं, जिनमें सड़क किसलिए होती हैं, वह दिखाया गया है. एक विज्ञापन में दिखाया गया है कि सड़कें नागिन डांस के लिए नहीं होती है, अर्थात बरात पर प्रहार है, कि सड़कों पर डांस नहीं करना चाहिए और दूसरा है, कि पटाखे सड़कों पर नहीं चलाने चाहिए.
हालांकि बहुत सफाई से इसमें जो कहना था कह दिया है, पटाखों अर्थात बच्चों के उत्साह पर प्रहार भी हो गया, और दीपावली का नाम भी नहीं आया. अब आते हैं सड़कों पर बरात और पटाखों की बात पर! क्या हिन्दुओं में रोज शादियाँ होती हैं? क्या रोज हर गली मोहल्ले में शादी और बरात के कारण सड़कें जाम होती हैं? विज्ञापन बनाने वालों ने क्या यह जानने का प्रयास किया है कि क्यों और कब सड़कें जाम होती हैं?
शायद नहीं, यदि उन्होंने जाना होता तो वह यह विज्ञापन नहीं बनाते!
क्या वह सोशल मीडिया पर गुडगाँव जैसे यह वीडियो नहीं देखते हैं? यदि देखते तो उन्हें पता चलता कि सड़कें किसलिए होती हैं?
यह बहुत अच्छी बात है कि सड़कें नागिन डांस के लिए नहीं होती हैं, पर सड़कें किसलिए होती हैं? सड़कें यातायात के लिए होती हैं, परन्तु सड़कें क्या आन्दोलन के लिए होती हैं? इतने दिन नागरिकता क़ानून के विरोध में दिल्ली में शाहीन बाग़ में आन्दोलन चलता रहा, दिल्ली पुलिस के रोज यातायात डाइवर्ट करने के मेसेज आते रहे, परन्तु सीएट ने विज्ञापन नहीं चलाया कि सड़कें आन्दोलन करने के लिए नहीं होती हैं, या सड़कें नारेबाजी के लिए नहीं होती हैं!
क्या समाज सुधार के लिए आन्दोलन विषय नहीं है? सीएए के कारण चले आन्दोलन से क्या परेशानी नहीं थी? स्पष्ट है हुई थी, मगर फिर भी एक भी बार यह नहीं आया कि सड़कें आन्दोलन करने के लिए नहीं होतीं!
सड़कें चलने के लिए होती हैं, फिर किसान आन्दोलन के कारण जो समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं, कभी इसके लिए कोई विज्ञापन नहीं बनता?
हिन्दू शादियों के लिए और उन पटाखों के लिए क्यों उपदेशक की भूमिका में सब आ जाते हैं, जिनके विषय में पाठ्यपुस्तकों में ही जहर भरा जाता है? कक्षा 7 की विज्ञान की पुस्तक में अध्याय 6 में यह लिखा हुआ है कि चूंकि पटाखा चलाने से जहरीली गैस पैदा होती हैं, इसलिए उन्हें न चलाने की सलाह दी जाती है.

जब बच्चों के कोमल में कन्यादान के नाम पर जहर बोया जाता है और विवाह से पहले ही विमुख कर दिया जा रहा हो, जब कथित समाज सुधार के नाम पर पूरे इतिहास में हिन्दू धर्म की बुराइयां पढ़ाई जा रही हों, तो ऐसे में वह विवाह से वैसे भी अधिक जुड़े नहीं रह पाते हैं और गिने चुने दिनों में होने वाले शादी ब्याह टायर बनाने वालों के लिए और आमिर खान के लिए इतना जरूरी हो गए कि उन्होंने विज्ञापन बना डाले?
वहीं हर सप्ताह हर छोटे छोटे शहर की सड़कों को घेरने वालों पर आमिर खान नहीं बोल पाते हैं कि सड़कें गाड़ियों के चलने के लिए होती हैं, घेर कर नमाज पढ़ने के लिए नहीं, क्या आमिर खान या सीएट टायर्स वालों ने समाज सुधारकों की अपनी भूमिका का विस्तार करते हुए यह अभियान चलाया कि क्रांति के नाम पर या आन्दोलन के नाम पर दिल्ली, जो कि भारत की राजधानी है, वहां पर सड़कों को नहीं घेरा जाना चाहिए? दिल्ली ही क्यों, नागरिकता आन्दोलन के समय तो लगभग हर गली मोहल्ले को शाहीन बाग़ बनाने की धमकी दी जाती थी? पर क्या आमिर खान ने कहा आकर कि सड़कें तो चलने के लिए होती हैं?

नहीं! नहीं कहा और उसके साथ ही न ही अभी इतने दिनों से किसान आन्दोलन में बोल रहे हैं? इतना ही नहीं झारखंड में छोटे छोटे बच्चों को नमाज के बहाने सड़कों पर बैठा दिया था, उसके विषय में सीएट टायर्स ने कहा कि सड़कें बसों के चलने के लिए होती हैं, नहीं! नहीं कहा! और कह भी नहीं सकते! क्या डलिया भर के समाज सुधारक बनने की उत्कंठा हिन्दू धर्म के लिए ही उत्पन्न होती है? हालांकि फोटो वायरल होने पर गिरफ्तारी हुई थी, परन्तु क्या यह घटनाएं और अब लगभग आर स्थान पर होने वाली घटनाएँ क्या विज्ञापन बनाने वालों को दिखती नहीं हैं?

आज गुडगाँव का वह वीडियो और सीएट टायर्स के विज्ञापन हर किसी को मुंह चिढ़ा रहे हैं और सबसे बढ़कर पुलिस का ट्वीट, जिसके लिए अब आरटीआई भी दायर कर दी गयी है कि आखिर किस सोसाइटी से सहमति ली गयी है? इतना तो उत्तर देना ही होगा न पुलिस को!
इस आरटीआई का क्या उत्तर आता है, यह देखना होगा!