नैरेटिव का संसार बहुत ही अद्भुत होता है, वह आपको अपनी तरफ खींचता है। जैसा यह नैरेटिव कि बाबर की रगों में एशिया के महान वंशों का रक्त बहता था। पिता तैमूरलंग के पुत्र मीरानशाह के वंशधर थे और माता चंगेज़ खान के पुत्र चग्त्ताई वंश की थीं।
बाबर की पुत्री गुलबदन बेगम ने अपने सौतेले भाई हुमायूं की जीवनी लिखी है। यह बहुत ही रोचक है और अपने आप में कई स्थानों पर विरोधाभास से भरी भी। अब नैरेटिव है कि बाबर बहुत दयालु और वीर था। वह वीर था मगर दयालु! यह ज़रा सोचना होगा। बाबर के समरकंद से वर्ष 1501 में बाहर निकलने के बाद की घटना का वर्णन करते हुए गुलबदन बेगम ने लिखा है,
“कन्दज़ और बदख्शां प्रांत में खुसरू शाह की सेना और मनुष्य थे। उसने आकर मेरे सम्राट पिता की अधीनता स्वीकार की। यद्यपि इसने कई बुरे कर्म किए थे, जैसे बायसंगर मिर्जा को मार डाला था और सुलतान मसऊद मिर्जा को अंधा कर दिया था, जो मेरे पिता के ममेरे भाई थे और जब आवश्यकता पड़ने से बादशाह चढ़ाइयों के समय उसके प्रांत में होकर जा रहे थे, तब उसने पता लगाकर इन्हें अपने देश से बाहर निकाल दिया था, तिसपर भी बादशाह ने जो वीरता, शौर्य और दया से पूर्ण थे, उससे बदला का विचार करके कहा”
इसके बाद आगे परिवार के और लोगों के द्वारा विद्रोह और उन्हें बाबर के द्वारा क्षमा किए जाने का महिमामंडन है, मगर क्या यह दया दूसरे धर्मों के लिए भी थी? क्या बाबर का आंकलन केवल इसी आधार पर दयावान आंका जा सकता है कि उसने अपने परिवार और मज़हब के लोगों को क्षमा किया? उत्तर क्या है, यह मैं आप पर छोड़ती हूँ!
गुलबदन ने अपने पिता को दया से पूर्ण बताया है, यहीं पर आगे जब बाबर के द्वारा भारत पर आक्रमण की बात लिखी गयी है, उसमें वह लिखती हैं
“जब भाई लोग अंत में चल बसे, और कोई अमीर नहीं रहा जो इनकी इच्छा के विरुद्ध बोल सके तब सन 1519 ईस्वी (हिजरी ९२५) में इन्होनें बिजौर को दो तीन घड़ी में युद्ध कर ले लिया और वहां के सब रहने वालों को मरवा डाला।”
जी हाँ, दयालु बाबर ने वहां पर रहने वाले सभी को मरवा दिया था, फुट नोट में लिखा गया है कि भारत पर आक्रमण करने को जाते समय यह घटना रस्ते में हुई थी, यहाँ के रहने वाले मुसलमान नहीं थे।
जी हाँ, यह स्पष्ट रूप से लिखा हुआ है कि यहाँ के रहने वाले मुसलमान नहीं थे और वहां पर सभी को मार डाला!
हिन्दुस्तान पर विजय के बाद हरम भी बनाया, यह भी गुलबदन बेगम ने लिखा है!
बाबर ने अपने दुश्मन हिन्दू शासकों को मारा और जनता को मारा यह किसी भी शासक का कदम हो सकता है, समस्या इस बात की है कि इस तरह की नृशंसता को छिपाया गया। और बाबर को सदी का ऐसा महान योद्धा बताया गया, जो लाखों वर्षों की ऐसी जाहिल सभ्यता को सभ्य बनाने आया था, जिसका वैभव उसे सपने में तडपाता था। जो तथ्य थे उनमें से वह वह छांट कर पढ़ाए गए जिनसे इस क्रूरता के विषय में हम सोच नहीं पाए। आज जो क्रूरता आईएसआईएस दिखा रहा है, क्या वह उस क्रूरता से कम है जो बाबर ने दिखाई, और वही बाबर जब हमारे बच्चों के सामने मैनेजमेंट का उदाहरण बनकर आता है, तब आप क्या करेंगे? क्या आप अपने बच्चों को एक ऐसा मैनेजमेंट गुरु बनाकर प्रस्तुत करना चाहेंगे जिसके हाथ पूरे के पूरे खून से रंगे हैं? ऐसे में एक दिन बगदादी को भी यजीदियों और ईसाइयों का कत्लेआम भुलाकर ऐसा मसीहा गढ़ दिया जाएगा जिसने पश्चिमी शक्तियों से लोहा लिया।
और कश्मीर फाइल्स का वह लोग विरोध कर रहे हैं जिन्होनें आज तक यह नैरेटिव गढ़ा कि कश्मीर में तो कुछ गलत हुआ ही नहीं था, कश्मीरी पंडित तो अपने आप भागे थे। जगमोहन ने उन्हें वहां से निकाला था जिससे मुसलमानों को दोषी ठहराया जा सके और मुस्लिमों पर अत्याचार किया जा सके!
जिन्होनें हमारे विशाल एवं सुन्दर मंदिरों को अनदेखा करके बार बार यह नैरेटिव बनाया कि भारत को पहचान ही मुस्लिमों ने दी थी! मुस्लिमों के आने से पहले भारत में कुछ नहीं था!
यही नैरेटिव के निर्माण की शक्ति है। धीरे धीरे औरंगजेब भी हीराबाई का महान प्रेमी घोषित होने जा रहा है और हमारे ही बच्चे किसी लेखिका या लेखक द्वारा औरंगजेब को महान पढेंगे।